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Wednesday, 28 August 2019

"हिन्दी भाषा साहित्य परिषद्" खगड़िया, द्वारा "जानकी वल्लभशास्त्री स्मृति पर्व" खगडिया में 24&25 अगस्त को सम्पन्न

"जनता धरती पर बैठी है नभ में मंच खड़ा है"
जानकी बल्लल्भ शास्त्री - चेतना और दार्शनिकता का अद्भुत समन्वय

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खगड़िया: 24-25 अगस्त 2019 "हिन्दी भाषा साहित्य परिषद्" खगड़िया, बिहार के दो दिवसीय 17 वें महाधिवेशन "जानकी वल्लभशास्त्री स्मृति पर्व" का आग़ाज़ झंडोत्तोलन से हुआ। अध्यक्ष "रामदेव पंडित राजा" ने साहित्य पताका फहराया और सभी उपस्थित साहित्यकारों ने "जय-जय-जय साहित्य पताका" सामवेत स्वर में गाकर कार्यक्रम की शुरूआत की।

कार्यक्रम का उद्घाटन बिहार अंगिका अकादमी पटना के अध्यक्ष "डॉ० लखन लाल सिंह आरोही" ने दीप प्रज्वलित करके किया। उन्होंने अपने उद्बोधन में कहा कि खगड़िया में साहित्य की लेखन, प्रकाशन और आयोजन की त्रिवेणी बहती है। यह साहित्य का प्रयाग है। खगड़िया की आज देश में विशेष पहचान है, जिसे कैलाश झा "किंकर" एवं उनके सहयोगी हैं, विगत बीस वर्षों से अनवरत संघर्ष करते हुए खगड़िया-साहित्य को इस मुकाम तक पहुँचाया है इसकी मैं भूरी-भूरी प्रशंसा करता हूँ एवं खगड़िया की धरती को प्रणाम करता हूँ।

सरस्वती वन्दना और स्वागत गान के बाद स्वागताध्यक्ष ई० धर्मेंद्र कुमार एवं सचिव "कविता परवाना" द्वारा प्रतिवेदन प्रस्तुत किया। "कैलाश झा किंकर" के सम्पादकत्व में जानकी वल्लभशास्त्री पर केन्द्रित कौशिकी के 70 वें अंक का लोकार्पण मुख्य अतिथि डॉ० संजय पंकज समेत सभी मंचस्थ अतिथियों ने किया।

डॉ० कपिलदेव महतो ने मंचसंचालन करते हुए "जानकी वल्लभशास्त्री" जी और उनके रचना संसार पर परिचर्चा के लिए विषय प्रवेश कराया। डॉ० सिद्धेश्वर काश्यप जी ने कहा कि जानकी वल्लभ शास्त्री एक स्वाभिमानी साहित्यकार थे। पद्मश्री सम्मान ठुकराने की हिम्मत सब में नहीं होती है। मानवीय स्मिता के संपोषक आचार्य "जानकी वल्लभ शास्त्री" पर हमें गर्व है। मुजफ्फरपुर से पधारे पं० "गंगा प्रसाद झा" ने कहा कि आचार्य जानकी वल्लभशास्त्री जी के विपुल साहित्य-संसार में साहित्यिक चेतना और दार्शनिकता का अद्भुत समन्वय है। डॉ० उमेश प्रसाद सिंह, प्राचार्य, "अवध बिहारी संस्कृत महाविद्यालय" रहीमपुर खगड़िया ने अपने उद्गार में कहा कि आचार्य जानकी वल्लभ शास्त्री जी के संदर्भ में रवीन्द्र नाथ ठाकुर" ने कहा था कि "जानकी वल्लभशास्त्री" आधुनिक युग के कालिदास हैं। संस्कृत के इतने बड़े उद्भट विद्वान और साहित्यकार ने निराला जी के कहने पर हिन्दी में भी रचना करने लगे। 

विकास कुमार, सुनील कुमार मिश्र एवम् मणिभूषण सिंह ने आचार्य जानकी वल्लभशास्त्री को पशु-प्रेमी और दार्शनिक कवि मानते हुए उनके गाय, कुत्ता, बिल्ली आदि के प्रेम को रेखांकित किया। डॉ० वन्दना भारती, हिन्दी अधिकारी, पूर्वोत्तर केन्द्रीय विश्वविद्यालय ने कहा कि आलोचक उन्हें कभी छायावादी कवि, कभी प्रगतिशील तो कभी श्रृंगारिक कवि मानते रहे। सच्चे अर्थों में वो साहित्य के हर विधा के आचार्य कवि थे। "मणिभूषण सिंह" ने "निराला निकेतन" की महत्ता पर प्रकाश डालते हुए कहा कि निराला निकेतन एक साहित्यिक तीर्थ है। जिन्होंने भी वहाँ अवगाहन किया धन्य हुआ। झारखंड से पधारे डॉ० प्रदीप प्रभात ने "आचार्य जानकी वल्लभ शास्त्री" को बेजोड़ कवि कहा। संवदिया के संपादक "मांगन मिश्र मार्तण्ड" ने आचार्य जानकी वल्लभशास्त्री जी को किसी भी वाद से ऊपर का कवि माना। उन्होंने उनकी कविता की पंक्ति को दुहराया-
जनता धरती पर बैठी है नभ में मंच खड़ा है
जो जितना है दूर मही से उतना वही बड़ा है।

मुख्य अतिथि डॉ० संजय पंकज ने आचार्य जानकी वल्लभशास्त्री से जुड़े अनन्य संस्मरण सुनाए। उन्होंने कहा कि "निराला" जी के कहने पर आचार्य जी हिन्दी में रचना करने लगे, यह बात नहीं है। बात यह है कि "निराला" जी ने हिन्दी के भविष्य के प्रति उन्हें आगाह करते हुए कहा था कि सामान्य जन तक हिन्दी में लिखी रचनाएँ ही पहुंच बना पाएगी। संस्कृत, हिन्दी और बंगला भाषा के ऐसे साहित्य-मनीषी समय और मूल्यहीनता से आहत थे। उनकी अनेक रचनाओं की चर्चा करते हुए उन्होंने कहा-
ऊपर-ऊपर पी जाते हैं जो पीने वाले हैं
कहते ऐसे ही जीते हैं जो जीने वाले हैं।

"रवीन्द्रनाथ ठाकुर" और "जानकी वल्लभशास्त्री" के संवाद संस्मरण से श्रोतागण भी संवेदनशील हुए। इस परिचर्चा में खगड़िया से डॉ० विभा माधवी भी शामिल हुई।

अपने अध्यक्षीय उद्बोधन में "रामदेव पंडित राजा" ने कहा कि आचार्य जानकी वल्लभशास्त्री जी का सिद्धांत था "जीओ और जिलाओ"। अपने सामर्थ्य के अनुसार जरूर औरों की मदद करनी चाहिए। गाएँ, कुत्ते और बिल्लियाँ उन्हें प्रिय थे। कौशिकी के आवरण चित्र से पाठक भी इसे समझ पाएँगे।

स्वागत सचिव बड़े लाल यादव ने सभी अतिथियों के प्रति आभार प्रकट करते हुए धन्यवाद ज्ञापन किया। उन्होंने कैलाश झा किंकर, रामदेव पंडित राजा और कविता परवाना के साहित्यिक संघर्षों को भी रेखांकित किया। इस अवसर पर सभी अतिथियों को "जानकी वल्लभ शास्त्री" स्मृति सम्मान से सम्मानित किया गया। सम्मान में अंगवस्त्र, सम्मान पत्र, डायरी और चाँदी की कलम से साहित्यकारों को अलंकृत करते हुए परिषद् स्वयम् सम्मानित हुई।

द्वितीय सत्र  में "कवि सम्मेलन" की अध्यक्षता प्रो० चन्द्रिका प्रसाद सिंह विभाकर ने की। इसमें राष्ट्रभक्ति पर आधारित रचनाएँ विशेष रूप से पढ़ी  गईं उद्घाटन कर्ता थे कवि घनश्याम। मुख्य अतिथि के रूप में तमिलनाडू "हिन्दी साहित्य अकादमी" के महासचिव "ईश्वर करुण" थे। विशिष्ट अतिथि के रूप में काव्य पाठ करने वालों में "अशोक मिज़ाज बद्र", सागर मध्यप्रदेश, दीनानाथ सुमित्र, अवधेश्वर प्रसाद सिंह, चाँद मुसाफिर, बाबा बैद्यनाथ झा, हरि नारायण सिंह हरि, सूर्य कुमार पासवान, अनिल कुमार झा, झारखंड, अवनीश त्रिपाठी, उत्तर प्रदेश, ज्ञानेन्द्र मोहन ज्ञान, उमाशंकर राव उरेन्दु, गोविंद राकेश, प्रकाश सेन प्रीतम, राजीव रंजन, सियाराम यादव मयंक, रवि कुमार रवि, दिनकर दीवाना, रंजित तिवारी, मुकेश कुमार सिन्हा, सुखनन्दन पासवान, विजय व्रत कंठ, अवधेश कुमार "आशुतोष", अशोक कुमार चौधरी, संदीप कपूर वक़्तनाम, विनोद कुमार हँसौड़ा, सच्चिदानंद किरण, शिव कुमार सुमन,सुधीर कुमार प्रोग्रामर, भागलपुर और शिव कुमार सुमन, खगड़िया ने देर रात तक अपनी बेहतरीन प्रस्तुति से श्रोताओं को बाँधे रखा।   

"कैलाश झा किंकर" विरचित ग़ज़ल संग्रह " दूरी न रहेगी" का लोकार्पण सागर, मध्यप्रदेश से पधारे अन्तर्राष्ट्रीय ग़ज़लकार "अशोक मिज़ाज बद्र" ने किया और पुस्तक की सराहना की।

सभी प्रतिभागी कवियों को सम्मान पत्र, अंगवस्त्र, डायरी और चाँदी की कलम से आदरपूर्वक सम्मानित किया गया। 25-08-2019 (रविवार) को तीसरे सत्र में कवयित्री सम्मेलन का उद्घाटन डॉ०अलका वर्मा, त्रिवेणीगंज ने किया। डॉ० "कविता परवाना" की अध्यक्षता में आयोजित कविसम्मेलन की मुख्य अतिथि डॉ० ज्योत्सना सक्सेना, राजस्थान मंचस्थ थी। विशिष्ट अतिथि के रूप में कविता पाठ करने वालों में पंखुड़ी सिन्हा, डॉ० भावना, डॉ० अर्चना पाठ्या, महाराष्ट्र, डॉ० प्रतिभा कुमारी पराशर, डॉ० अन्नपूर्णा श्रीवास्तव, डॉ० कल्याणी कुसुम स़िह, रंजना सिंह, रंजना सिंह "अंगवाणी", अर्चना चौधरी, चम्पा राय, संगीता चौरसिया, कुमारी स्मृति उर्फ कुमकुम, निभा उत्प्रेक्षा, विनीता साहा, रूबी  कुमारी, नीलम सयानी, नेहा नूपुर, अणिमा रानी आदि प्रमुख थीं। 

कवयित्री सत्र का मंच संचालन नेहा नूपुर, आरा और अणिमा रानी, खगड़िया को काफी सराहा गया। धन्यवाद ज्ञापन डॉ० विभा माधवी द्वारा किया गया।   उन्होंने कहा कि "शहीद प्रभुनारायण" और "जावेद" की इस पवित्र धरती खगड़िया में "जानकीवल्लभ शास्त्री महाधिवेशन" के  आज इस कार्यक्रम की वजह से पूरे देश की नजर खगड़िया की ओर है।"

आज खगड़िया में मिले, कवि लेखक विद्वान।
चमक खगड़िया की बढ़ी, पूरे हिंदुस्तान।।
एक साथ हैं मंच पर, सौ-सौ सुधी अदीब।
मिला बहुत संयोग से, ऐसा हमें नसीब।

चतुर्थ सत्र का उद्घाटन भागलपुर से पधारे लब्ध प्रतिष्ठ वयोवृद्ध लघुकथाकार "दिनेश बाबा" ने किया। डॉ० रामदेव प्रसाद शर्मा की अध्यक्षता में आयोजित लघुकथा पाठ के मुख्य अतिथि थे कथाकार संजय कुमार अविनाश, लखीसराय और विशिष्ट अतिथि के रूप में माधवी चौधरी, विनोद कुमार विक्की, संजना तिवारी, स्मिताश्री, डॉ० राजेन्द्र प्रसाद, नीरज कुमार सिन्हा, बाबा बैद्यनाथ झा, राहुल शिवाय आदि ने अपनी-अपनी लघुकथाओं से श्रोताओं को प्रभावित कर दिया।

इस अवसर पर "संजय कुमार अविनाश" लिखित पुस्तक "पगडंडी टू हाईवे" का लोकार्पण डॉ० दिनेश बाबा और मंचस्थ अतिथियों ने सोल्लास सम्पन्न किया। इस सत्र के मंचसंचालक राहुल शिवाय, उपनिदेशक, कविता कोश ने किया।

पंचम सत्र की शुरूआत 'अवधेश कुमार आशुतोष' जी की सरस्वती वंदना से हुई। इस सत्र का उदघाटन जट-जटिन फिल्म के निदेशक "अनिल पतंग" ने दीप प्रज्वलित करके किया। "सूर्य कुमार पासवान" की अध्यक्षता में आयोजित इस अभिनय सत्र के मुख्य अतिथि थे बिहार के प्रसिद्ध फिल्म-नायक अमिय कश्यप। विशिष्ट अतिथि के रूप में सैकड़ों मंचि नाटकों के निदेशक साथी सुरेश सूर्य ।

'राजेश कुमार राही' के निर्देशन में होली बड स्कूल के छात्रों ने एकलव्य नाटक का मंचन किया। गुरु द्रोणाचार्य की भूमिका में प्रतीक राज, एकलव्य की भूमिका अंकित कुमार, एकलव्य की माँ की भूमिका में राहुल कुमार, युधिष्ठिर की भूमिका  में आदित्य सक्सेना, भीम की भूमिका में अवनीश कुमार, अर्जुन की भूमिका में कीर्ति नलिन, सहदेव की भूमिका में सत्यम, नकुल की भूमिका में अमन कुमार, दुर्योधन की भूमिका में सौरभ कुमार, दुश्शासन की भूमिका में रौशन कुमार के अलावे हंस, मोर, बत्तख, कुत्ता आदि की भूमिका में क्रमश: राम कुमार, युवराज, आदित्यमूर्ति और अमन ने दर्शकों का दिल जीत लिया।

इस सत्र में "अवधेश कुमार आशुतोष" लिखित किताब "झंकृत कर माँ ज्ञान को" का लोकार्पण रंग अभियान के सम्पादक "अनिल पतंग", "बाबा वैद्यनाथ झा" समेत सभी मंचस्थ अतिथियों ने आह्लाद पूर्वक किया। इस सत्र का मंच संचालन " कैलाश झा किंकर ने किया।

षष्ठ सत्र का उद्घाटन डॉ० नरेश कुमार विकल, समस्तीपुर ने किया। 'अवधेश्वर प्रसाद सिंह' की अध्यक्षता में आयोजित यह सम्मान समारोह खास था। स्वर्ण पत्र/रजत पत्र से कृति के लिए सम्मानित करने की परंपरा सिर्फ खगड़िया में है। कृति के लिए बीस और एक श्रेष्ठ कार्यकर्ता के लिए कुल इक्कीस स्वर्ण पत्र/रजत पत्र बनाए गये थे जिनमें "अशोक मिजाज़" की चुनिंदा ग़ज़लें के लिए अशोक मिजाज़ (सागर, म.प्र.) को रामवली परवाना स्वर्ण स्मृति सम्मान, दिन कटे हैं धूप चुनते के लिए अवनीश त्रिपाठी (सुलतानपुर, उ. प्र.) को हरिवंश राय बच्चन रजत स्मृति सम्मान ,चुप्पियों के बीच के लिए डॉ भावना (मुजफ्फरपुर, बिहार) को दुष्यंत कुमार रजत स्मृति सम्मान, जीवन की हर बात के लिए डॉ हरि फ़ैज़ाबादी (लखनऊ, उ.प्र.), को कवि रहीम रजत स्मृति सम्मान, महात्मा गांधी का शैक्षणिक चिंतन के लिए डॉ अर्चना पाठ्या (वर्धा, महाराष्ट्र) को लषण शर्मा रजत स्मृति सम्मान ,और कब तक के लिए ज्ञानेन्द्र मोहन 'ज्ञान" (शाहजहांपुर, उ. प्र.) को रमन रजत स्मृति सम्मान , रेगमाही के लिए ज्योत्सना सक्सेना (जयपुर, राजस्थान) को फणीश्वर नाथ रेणु रजत स्मृति सम्मान , जाने अनजाने न देख के लिए बाबा बैद्यनाथ झा (पूर्णिया, बिहार) को कृष्णदेव चौधरी रजत स्मृति सम्मान, अन्तर्मन की गूँज के लिए माधवी चौधरी (भागलपुर, बिहार) को महादेवी वर्मा रजत स्मृति सम्मान, हुआ कठिन अब सच-सच लिखना के लिए हरिनारायण सिंह 'हरि' (समस्तीपुर, बिहार) को रामधारी सिंह दिनकर रजत स्मृति सम्मान, हास्य व्यंग्य की भेलपुरी के लिए विनोद कुमार विक्की (महेशखूंट, बिहार) को नागार्जुन रजत स्मृति सम्मान, समय की पुकार हूँ मैं के लिए रथेन्द्र विष्णु 'नन्हें' (भागलपुर, बिहार) को आरसी प्रसाद सिंह रजत स्मृति सम्मान, दुनिया का खेल निराला है के लिए  सूर्य कुमार पासवान (मुंगेर, बिहार) को कमलाकांत प्रसाद सिंह कमल रजत स्मृति सम्मान, बूंद-बूंद में सागर के लिए नीरज कुमार सिन्हा (गोड्डा, झारखंड) को रामविलास रजत स्मृति सम्मान, ठिठके यादों का मौसम के लिए अनिल कुमार झा (देवघर, झारखंड) को जितेन्द्र कुमार रजत स्मृति सम्मान, एम्बीशन के लिए कविता परवाना (खगड़िया, बिहार) को  उपेन्द्र कुमार रजत स्मृति सम्मान, हारिल की लकड़ी के लिए दीनानाथ सुमित्र (बेगूसराय, बिहार) को सूर्यकांत त्रिपाठी निराला रजत स्मृति सम्मान, बँटवारा के लिए विनोद कुमार हँसौड़ा (दरभंगा) को विधान चंद्र राय रजत स्मृति सम्मान, मन मंदिर कान्हा बसे के लिए  अवधेश कुमार आशुतोष (खगड़िया, बिहार) को  विश्वानंद रजत स्मृति सम्मान तथा, शब्दों का गुलदस्ता लाया हूँ के लिए अवधेश्वर प्रसाद सिंह (रोसड़ा, बिहार) को माहताब अली रजत स्मृति सम्मान से सम्मानित किया गया। श्रेष्ठ कार्यकर्ता के लिए निर्धारित द्रौपदी देवी रजत स्मृति सम्मान से सचिव राहुल शिवाय को सम्मानित किया गया।

मुख्य अतिथि के रूप में मंचस्थ प्रसिद्ध ग़ज़ल-गो अनिरुद्ध सिन्हा और मंचस्थ अतिथियों के द्वारा सभी साहित्यकारों को स्वर्ण पत्र/रजत-पत्र, सम्मान पत्र से सम्मानित किया गया। डॉ० हरि फ़ैज़ाबादी विरचित "माता का उपहार " का लोकार्पण मंचस्थ अतिथियों ने किया। मंचसंचालक का दायित्व कैलाश झा किंकर, सम्पादक "कौशिकी" ने निभाया।

 साँस्कृतिक सत्र का उद्घाटन दर्जनों साहित्यिक विदेश यात्राएँ कर चुके प्रख्यात शायर सुशील साहिल, गोड्डा, झारखंड ने किया। अशोक कुमार चौधरी की अध्यक्षता में आयोजित इस सत्र के मुख्य अतिथि के रूप में पं० भीम  शंकर चौधरी, निदेशक, माँ राजकुमारी संगीत महाविद्यालय, खगड़िया मंचस्थ थे। विशिष्ट अतिथि डा० राकेश प्रसाद, वीरेन्द्र कुमार दीक्षित, रमन आनन्द, मणि शंकर, राहुल दीवाना आदि मंचस्थ थे। सबकी प्रस्तुति सराही गयी। कैलाश झा किंकर ने " हम्मर बेटा छै बकलेल " की अपनी प्रस्तुति से श्रोताओं और दर्शकों का खूब स्नेह पाया। वीणा प्राईमरी एकेडमी पिपरा की छात्राएँ पलक पल्लवी, श्वेता, पार्वती, प्राची, आरती, मोनी, साक्षी और निक्की ने वन्दे मातरम, राजस्थानी लोक नृत्य ढोलना, घर आ जा परदेशी तेरा देश बुलाए रे की प्रस्तुति से श्रोताओं को चमत्कृत कर दिया। ऐश्वर्या राय, मोनिका रानी, मनोज कुमार विषैला और अभिषेक कुमार की प्रस्तुति भी लाजवाब थी। इस अवसर पर चम्मन टोला से फौदार यादव और साथी के द्वारा लोक गीत "अहीरन" की प्रस्तुति देर रात तक होती रही।

इस अवसर पर अशोक कुमार चौधरी विरचित "आरति आली कौन" का लोकार्पण अशोक मिजाज बद्र, ज्योत्सना सक्सेना, साथी सुरेश, प्रकाश सेन प्रीतम आदि ने किया। इस सत्र का सफल मंच संचालन वीरेंद्र कुमार दीक्षित ने किया।

उपस्थित श्रोताओं, दर्शकों, कवियों, पत्रकारों का धन्यवाद ज्ञापन करते हुए महासचिव "कैलाश झा किंकर" ने कहा कि इस आयोजन को सफल करने में साहित्य सेवी ई० रमेश कुमार, ई० धर्मेंद्र कुमार, बड़े लाल यादव, राजीव नयन सारथी, शशि शेखर, रोहित कुमार, अशोक कुमार चौधरी, कविता परवाना, राहुल शिवाय और रामदेव पंडित राजा के साथ-साथ कौशिकी के ह्वाटस्एप ग्रूप का बहुत बड़ा योगदान रहा, सभी के प्रति आभार। इस महाधिवेशन की खास बात यह रही कि दोनों दिन डॉ० विभा माधवी की देख रेख में पुस्तक विक्री केन्द्र खुला हुआ था। बहुत सारी किताबें बिकीं। विदाई के वक़्त बिकी हुई किताबों की राशि सम्बन्धित साहित्यकारों को दे दी गयी। लगभग सात हजार मूल्य की जो बची हुई किताबें थीं, सब राजमाता माधुरी देवी टीचर ट्रेनिंग कॉलेज आवासबोर्ड, रांको, खगड़िया ने अपने पुस्तकालय के लिए खरीद ली।
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आलेख - कैलाश झा किंकर
छायाचित्र - हिंदी भाषा साहित्य परिषद, खगड़िया
प्रतिक्रिया हेतु ईमेल - editorbejodindia@yahoo.com








    

2 comments:

  1. हिन्दी भाषा साहित्य परिषद्, खगड़िया के महाधिवेशन का विस्तृत विवरण प्रकाशित करने हेतु बहुत बहुत बधाई

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    Replies
    1. आपकी सराहना हमारे लिए मूल्यवान है महोदय। आभार।

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