"देखने तक? छूने तक? नोचने तक? या जिस्म के टुकड़े-टूकड़े होने तक ?
दुनिया की आधी आबादी दिन-प्रतिदिन की हिंसा, शोषण और दुराचार को झेलने को अभिशप्त है. हमारे जैसे रूढ़िवादी देश में तो इसकी दशा और भी भयावह है जहाँ नारी पर हो रहे हर अत्याचार को संस्कार का नाम देकर उसकी सहनशीलता की परीक्षा के नाम पर रफा-दफा कर दिया जाता है. हमारे जिस समाज में नारी ज्यादा से ज्यादा बर्दाश्त करने वाली होती है उस समाज को उच्च समाज कहा जाता है. चलो, हम कुछ पल के लिए मान भी लें कि शांति बनाये रखने के लिए नारी को बर्दाश्त करना ही चाहिए लेकिन सवाल उठता है कि आखिर कब तक? इस ढकोसले वाली शांति का जिम्मा सिर्फ नारी ही क्यों उठाये और वो भी किस सीमा तक - देखने तक ?छूने तक ? नोचने तक ? या जिस्म के टुकड़े-टूकड़े होने तक ? आप ही बताइये आखिर कब तक?
पुरुष-प्रधान परिवार से, समाज से और देश से चीख-चीख कर दिलो-दिमाग को दहला देनेवाले ये सवाल पूछती लड़कियाँ कोई विदेशी, परायी या दूर-दराज की नहीं हैं. ये हैं आपके और हमारे घर की बच्चियां, आपके और हमारे घर की नारियाँ. न जाने कब से ये लड़का-लड़की में भेदभाव, समय से पहले या बिना इच्छा के शादी, बड़ी होकर अपने सपनों को तिलांजलि, घरेलू हिंसा से लेकर भ्रूण हत्या तक के अमानवीय कृत्य सहती चली आ रही हैं! अगर इन सब से परे कोई लड़की घर से बाहर निकल भी जाती हैं तो उन्हें छेड़खानी, बलात्कार, ऐसिड अटैक तक का शिकार होना पड़ता है.
रूबी खातून द्वारा लिखित और निर्देशित यह नुक्कड़ नाटक, निर्माण कला मंच के 31वें स्थापना दिवस पर पटना के प्रेमचंद रंगशाला के प्रांगण में प्रदर्शित हुआ. दर्जनों नाटक में अबतक अपनी अभिनय क्षमता का लोहा मनवा चुकी रूबी खातून अब अपने अनुभव को निर्देशन और लेखन में भी रूपांतरित कर रही हैं जो उनकी सफलता कही जानी चाहिए. उपस्थित दर्शकों ने बार-बार तालियाँ बजाकर अपना समर्थन जताया. भाग लेनेवाली महिला कलाकारों ने भी अच्छा अभिनय किया. संगीत रोहित चन्द्र का था. अभिनय करनेवाली कलाकार नेहा निहारिका, माजरी मणि त्रिपाठी, लक्ष्मी राजपूत, प्रीति शर्मा एवं शान्ति थीं.
आज के समय में जब निर्भया जैसा जघन्य काण्ड होने के वाद भी रोज वैसी ही खौफनाक वारदातें होती जा रहीं हैं जिन्हें कभी-कभी सिर्फ जातीय या साम्प्रदायिक रूप से देखने की कोशिश भी होती है. यह सही है कि किसी भी अत्याचार का शिकार कमजोर वर्ग ही ज्यादा होता है लेकिन नारी पर हो रहे जुल्म का अपना स्वरूप भी बहुत भयावह है जो वर्ग विभाजन के परे भी है. मुद्दा है नारी पर अत्याचार हो रहा है और बढ़ता ही जा रहा है. इस अति ज्वलंत मुद्दे को जोरदार तरीके से उठाने हेतु रूबी खातून और उनके समूह के सारे कलाकारों की तारीफ़ करनी होगी.
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आलेख - बेजोड़ इंडिया ब्यूरो
छायाचित्र सौजन्य - रूबी खातुन
प्रतिक्रिया हेतु ईमेल - editorbejodindia@yahoo.com
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