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बिहार, भारत की कला, संस्कृति और साहित्य.......Art, Culture and Literature of Bihar, India ..... E-mail: editorbejodindia@gmail.com / अपनी सामग्री को ब्लॉग से डाउनलोड कर सुरक्षित कर लें.

# DAILY QUOTE # -"हर भले आदमी की एक रेल होती है/ जो माँ के घर तक जाती है/ सीटी बजाती हुई / धुआँ उड़ाती हुई"/ Every good man has a rail / Which goes to his mother / Blowing wistles / Making smokes [– आलोक धन्वा, विख्यात कवि की एक पूर्ण कविता / A full poem by Alok Dhanwa, Renowned poet]

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Thursday, 23 July 2020

आज घायल हुए अश'आर / अर्जुन प्रभात की दो गज़लें

ग़ज़ल -1
    आज घायल हुए अश'आर     

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आज घायल हुए अशआर ग़ज़ल रोती है 
जिन्दगी खुद से है बेज़ार ग़ज़ल रोती है ।

जल रहे शम्मा के मानिंद रात काली है 
तीरगी आज बेशुमार ग़ज़ल रोती है ।

यूँ तो तनहाइयाँ बढ़ी बड़ी खामोशी है 
जाने किसका है इंतज़ार ग़ज़ल रोती है ।

वो जो अपने थे कभी आज हैं बेगानों में
बीच में बन गयी दीवार ग़ज़ल रोती है ।

अजनबी आज क्यों हुए हैं यहां हम अर्जुन ?
कर के रिश्तों को दरकिनार ग़ज़ल रोती है ।
.....   
         
                
ग़ज़ल -2 
 कहाँ जायें बतलाओ
              
थके -थके हैं पाँव ,कहाँ जायें बतलाओ ?
हुआ वीराना गाँव, कहाँ जायें बतलाओ  ?

द्रोहानल में आज दग्ध होता जन जीवन ।
नहीं नेह की छाँव कहाँ जायें बतलाओ  ?

काका, भैया के रिश्ते अब पड़े पुराने ।
अब हर ओर तनाव, कहाँ जायें बतलाओ ?

सूने हैं चौपाल आज पनघट सूना है ।
सबसे है अलगाव, कहाँ जायें बतलाओ  ?

आज न दरवाजे पर लोगों की है टोली ।
बुझते सभी अलाव, कहाँ जायें बतलाओ  ?

खूनी होली, नफरत की अब है दीवाली ।
सभी खोजते दाँव, कहाँ जायें बतलाओ  ?

अर्जुन आहत हृदय और आंखें पथरायी ।
हरे हुए सब घाव, कहाँ जायें बतलाओ  ?
                ...


कवि - अर्जुन प्रभात
पता - मोहीउद्दीन नगर, समस्तीपुर ( बिहार )
कवि का ईमेल आईडी - arjunprabhat1960@gmail.com
प्रतिक्रिया हेतु इस ब्लॉग का ईमेल आईडी - editorbejodindia@gmail.com

Thursday, 16 July 2020

भा.युवा साहित्यकार परिषद के द्वारा मधुरेश नारायण का एकल आभासी काव्य पाठ 15.7.2020 को सम्पन्न

आज भर का ही है गरल

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"सामाजिक चेतना को जाग्रत करती है, 
कल के सुनहरे पल के लिये ही तो जी रहा हूँ
आज भर का ही है गरल, यह सोच के पी रहा हूँ।
उम्मीद पर ही तो दुनिया टिकी, हम भी टिके हैं
वक़्त के ज़ख़्म को धैर्य के सूई धाँगे से सी रहा हूँ।"

और कविता की यह रवानगी भी देखिये -
"मैं वह पत्थर नहीं जिसे तराश कर बुत बनाया जाये
न मैं वह पारस हूँ जिसे छू कर कुंदन बनाया जाये
मैं दुनिया के मेले का एक अदना-सा मुसाफ़िर हूँ
कोशिश करता हूँ, भटके हुए को रास्ता  दिखाया जाये।"

आन लाइन "हेलो फेसबुक साहित्य प्रभात के तहत अपने एकल काव्य पाठ में वरिष्ठ कवि मधुरेश नारायण ने एक से बढ़कर एक गीत, गजलों और नगमों की झड़ी लगा दी। मौका था, भारतीय युवा साहित्यकार परिषद के तत्वावधान में आयोजित तथा अवसर साहित्यधर्मी पत्रिका के फेसबुक पेज पर आयोजित लाइव एकलयपाठ का। कविताओं पर चर्चा करते हुए संयोजक सिद्धेश्वर ने कहा कि - "साहित्य कर्म का धर्म भी यही है कि अपनी सृजनात्मकता से, दिग्भ्रमितों को एक नई दिशा दिखलाते हुए, उनके भीतर उत्साह का संचार करें। इस मायने से साहित्य सृजन के पथ पर सामाजिक चेतना को जगाने का धर्म निभा रही है मधुरेश नारायण की कविताएं।" 
........

प्रस्तुति - सिद्धेश्वर
प्रस्तोता का परिचय - अध्यक्ष, भारतीय युवा साहित्यकार परिषद 'पटना
चलभाष -9234760365
प्रातिक्रिया हेतु इस ब्लॉग का ईमेल आईडी - editorvbejodindia@gmail.com




Sunday, 21 June 2020

महिला काव्य मंच बिहार की आभासी गोष्ठी 16.6.2020 को संपन्न

न धरा चाहिए न गगन चाहिए / देह‌ पर इक तिरंगा कफ़न चाहिेए

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१९ जून २०२० को, महिला काव्य मंच  बिहार का पट ७ बजे शाम को खुला और एक-एक करके अर्घ्य ‌सुमन अर्पित होने लगे। चलचित्र की तरह पट पर लोग दिखने  गे। नरेश नाज  के संरक्षण एवं डॉ. अन्नपूर्णा श्रीवास्तव  की अध्यक्षता में काव्यमृत सलिला प्रवाहित होने लगी। मणिबेन  के दीप प्रज्वलन एवं माला अर्पण के बाद नरेश़ नाज  की सरस्वती बंदना की मिठास‌ कानों में घुलने लगी -  मां शारदे दान विद्या का दे के मुझे तार दे।

सुधा सिन्हा 'सावी' ने रूमानी रंग घोला - 
गर मुहब्बत यहाँ नहीँ होतीं
तो दिवानी किधर गयी होती

हरेन्द्र सिन्हा ने देशभक्ति से सराबोर कर दिया -
न धरा चाहिए न गगन चाहिए
 देह‌ पर इक तिरंगा कफ़न चाहिेए।

क्या खूब कहा । नरेश नाज ने एक राजनीतिक निशाना साध दिया।

एम के अम्बष्टा कुछ कम न थे -
जीवन मिला अनमोल इसे प्यार से जीकर देखो
औरों में खुशियां बांटो ।

थोडी मधुरेश नारायण से सुने -
मिलजुल कर रहते है हम।

प्रभात से सुनें__
तब तुम भी कुछ बन जाती हो और मैं भी ‌कुछ बन जाता हूं।
 इतना ही नहीं इनकी थोड़ी ज़़जबात तो  समझिए -
तेरी आंखो की‌ चमक रोज बढ़ती जाती है 
किसके इश्क का कजल लगा लिया तुमने
-क्या खूब। 

भगवती प्रसाद द्विवेदी से सुनिए-
भटका मृगशावक मन जंगल-जंगल,
कस्तूरी-गंध छिपी गाँव में ।
दूसरा भोजपुरी नवगीत:
सूखि गइल सरिता उमंग के
कुम्हिला गइल सुमन,
कहाँ निरेखीं आपन सूरत,
दरक गइल दरपन ।

भोजपुरी भी सुनिये -
सूख गईल सरिता, उमंग के
 कुम्हला गईल सुमन ।

धनश्याम  की तो बात ही निराली -
तेरी‌ आ़खो की नादानी न होती
मुझे इतनी परेशानी न होती।

इसके अलावे पूनम सिन्हा श्रेयसी, मीना परिहार, रजनी पाठक, प्रतिभा परासर, राशी श्रीवास्तव, डा पुष्पा जमुआर, लता प्रासर, अनिता सिद्धि, उषाकिरण, किरण कुमारी, नूतन सिन्हा, संतोष बंसल, अनिमा श्रीवास्तव, डा अन्नपूर्णा श्रीवास्तव ने   भी काव्य सुमन अर्पित किये। अनिता सिद्धि एवं मणिबेन ने क्या  खूब मंच संचालन किया।
.....

रपट की प्रस्तोता - सुधा सिन्हा 'सावी'
प्रस्तोता का ईमेल आईडी -
प्रतिक्रिया हेतु इस ब्लॉग का ईमेल आईडी - editorbejodindia@gmail.com
नोट- जिनकी पढ़ी गई पंक्तियाँ शामिल नहीं हों पाईं या बहुत कम हुईं वे ईमेल से भेजें कार्यक्रम की तारीख और आयोजक संस्था के नाम के साथ - editorbejodindia@gmail.com

Friday, 29 May 2020

साहित्यकार ई. हृषीकेश पाठक : एक बहुआयामी व्यक्तित्व / लेखक - प्रवीर कुमार विशुद्धानंद

दिवंगत साहित्यकार हृषीकेश पाठक को नमन 

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कुछ माह पूर्व ही 15.2.2020 को एक अत्यंत सक्रिय, क्षमतावान साहित्यकार का पटना में जीभ के कैंसर से निधन हो गया जिससे न सिर्फ बिहार ने साहित्य का एक चमकता सितारा खो दिया बल्कि अदालतगंज स्थित बिहार कनीय अभियंता संघ का सभागार भी मानो अनाथ-सा हो गया| ध्यातव्य है कि श्री पाठक पेशे से एक अभियंता रहे थे और बिहार कनीय अभियंता संघ के महत्वपूर्ण पद पर वर्षों विराजमान रहे| कहने की आवश्यकता नहीं कि इतने वर्षों तक कोई अत्यंत जूझारू और लोकप्रिय व्यक्ति ही इस पद पर रह सकता है| जाहिर है कि यह व्यक्तित्व मात्र साहित्य से वास्ता नहीं रखता था बल्कि कामगारों के आन्दोलन से भी उतनी ही सक्रियता से जुड़ा था| किन्तु यह भी सत्य है कि साहित्यिक सभाओं में उनके विशुद्ध साहित्यिक रूप के दर्शन होते और लगता ही नहीं कि इतना संवेदनशील व्यक्ति कामगारों के पेचीदगी भरे  संघर्ष से कैसे इतना जुडाव रख सकता है| स्वाभाव से अत्यंत सौम्य और भाषा बिलकुल परिमार्जित| निश्चित रूप से एक ऐसा सुखकर संयोग था जो बिरले ही देखने को मिलता है| मुझे 2015-18 के दौरान कई बार उनसे मिलने का अवसर मिला अक्सर बिहार कनीय अभियंता संघ के सभागार के साहित्यिक कार्यक्रमों में जिसका संचालन वही किया करते थे और कभी किसी को उन्होंने शिकायत का मौका नहीं दिया| सबको बोलने का मौका देते थे चाहे श्री भगवती प्रसाद द्विवेदी जैसे वरिष्ठ साहित्यकार हो या मेरे जैसा नया| मेरे पहले एकल काव्य संग्रह को भी उन्होंने प्रमोट किया था अपने फेसबुक पर और मेरा सौभाग्य रहा "बिहारी धमाका ब्लॉग" में उनके कम से कम आधे दर्जन काय्रक्रमों की विस्तृत रपट के साथ साथ "प्लेटफार्म  पर एक रात" की विस्तुत समीक्षा कर उसे प्रकाशित करने का भी मौका मिला| मुझे कभी  लगा ही नहीं कि जिनसे मैं लगातार मिल रहा हूँ वो जल्द ही इतिहास के स्वर्ण पृष्ठों में समाने वाले व्यक्तित्व हैं. पहले श्री विशुद्धानंद जी के जाने पर जैसा खालीपन का अहसास हुआ वह इनके जाने से और दोहरा हो गया| स्व. पाठक जी के विराट व्यक्तित्व को नमन. (- हेमंत दास 'हिम')


सन 1956 में, बिहार राज्य के बक्सर जिलान्तर्गत सिमरी प्रखंड का नियाजीपुर गाँव, जो उत्तरप्रदेश एवं बिहार के बीच मन्दाकिनी (गंगा) के तट पर अवस्थित है, में एक मध्यमवर्गीय कृषक परिवार में, कार्तिक मास की शुक्ल पक्ष, सप्तमी तिथि को (अर्थात कार्तिक छठ व्रत के अगले दिन ही) उपमन्यु गोत्री पंडित राम नारायण पाठक एवं उनकी धर्मपत्नी लक्ष्मी देवी के कुटुंब में द्वितीय पुत्र के रूप में एक सुन्दर बालक का जन्म हुआ | नाम रखा गया हृषीकेश |

वैसे तो उनके जीवन के अनेक पहलू हैं जिनमें प्रत्येक के बारे में एक किताब लिखी जा सकती है लेकिन हम यहाँ उनके सिर्फ साहित्यिक पक्ष को ही संक्षेप में रखने का प्रयास कर रहे हैं - 

पाठक जी की तत्परता एवं क्रियाशीलता इतनी तीव्र थी की अल्प समय में ही इनकी कुल सात पुस्तकों के प्रकाशन एवं लोकार्पण का कार्यसम्पूर्ण हो गया| 

अपनी बुद्धि, कुशलता, संवेदनशीलता एवं परिश्रम के बल पर हृषीकेश पाठक जी ने साहित्य जगत के नभ में प्रकाशमान एक उज्जवल तारे के रूप में स्वयं को प्रतिष्ठित करने में सफलता अर्जित की| अत्यंत अल्पावधि में ही कुल सात पुस्तकों का आनंदाश्रम प्रकाशन के सहयोग से प्रकाशन एवं उसका लोकार्पण, साहित्य के प्रति हृषीकेश पाठक जी का सेवा भाव परिलक्षित करता है| उनकी सातों पुस्तकों का क्रमवार विवरण निम्नवत है :
1. “स्याह – सच” (लघुकथा-संग्रह) (आनंदाश्रम प्रकाशन)
2. “लोकावतरण से लोकान्तरण तक” (स्वामी पशुपतिनाथ की प्रमाणिक सम्पूर्ण
जीवनी) (आनंदाश्रम प्रकाशन)
3. “महर्षि उपमन्यु और उनके वंशज” (आनंदाश्रम प्रकाशन)
4. “ गीतासार – संग्रह” (स्वामी पशुपतिनाथ के अमृत-वचनों पर आधारित पुस्तक)
(आनंदाश्रम प्रकाशन)
5. “प्लेटफार्म की एक रात” (कहानी – संग्रह) (आनंदाश्रम प्रकाशन)
6. लोकतंत्र की धड़कती नाड़ी” ( काव्य – संग्रह) (आनंदाश्रम प्रकाशन)
7. “आँखुवाते शूल” (काव्य – संग्रह ) (आनंदाश्रम प्रकाशन)

हृषीकेश पाठक जी के साहित्यिक रचनाओं की उत्कृष्टता का स्तर उल्लेखनीय रूप से उच्य कोटि था, जिसके कारण उनको कई सम्मानों से अलंकृत भी किया गया जिनमे से कुछ प्रमुख सम्मान निम्नलिखित है:
 राजा राधिका रमण प्रसाद सिंह शिखर सम्मान ( अखिल भारतीय साहित्यकार संसद द्वारा )
 लघुकथा सम्मान ( नई – धारा द्वारा )
 साहित्य सम्मान (प्रति-श्रुति द्वारा)
 पंडित हंस कुमार तिवारी सम्मान (बिहार हिंदी साहित्य सम्मलेन द्वारा) इत्यादि

साहित्य- सेवी पाठक जी ने अवर अभियंता संघ की मुख्य मासिक पत्रिका, “निर्माता-निर्देश” का अपने महामंत्रीत्व काल में सफल संपादन तो किया ही, साथ-साथ अखिल भारतीय धर्मसंघ कि बिहार इकाई कि मासिक पत्रिका “धर्मनिष्ठा” का भी संपादन कार्य अंपने अंतिम क्षणों तक किया| जो की इनके साहित्य सेवा का उत्कृष्ट उदहारण है| ये पाठक जी का व्यक्तित्व एवं उनके रचनाओं की उत्कृष्टता एवं प्रभावशीलता ही थी, जो की कई साहित्यकार जैसे साहित्यकार स्व. विशुद्धानंद, डॉ. भगवती प्रसाद द्विवेदी, डॉ. शिव नारायण, बांके बिहारी साव, वयोवृद्ध साहित्यकार सत्यनारायण, डॉ. अनिल सुलभ , सिद्धेश्वर , स्व. भोला प्रसाद सिंह तोमर, आचार्य विजय गुंजन, डॉ किशोर सिन्हा, डॉ शम्भू पी. सिंह, राजकुमार प्रेमी, आर. पी. घायल, डॉ. भावना शेखर,अरुण कुमार जी, स्वर्गीय पं. शंभू नाथ पाण्डेय(पूर्व प्राचार्य, उच्च विद्यालय, बड़का राजपुर), रामाधार जी इत्यादि अन्य कई साहित्यकारसहित अवर अभियंता संघ के अरविन्द तिवारी, अशोक सिंह, रामाशंकर ओझा संग अन्य सदस्य गण, पाठक जी के मुरीद थे|

वयोवृद्ध साहित्यकार श्रीमान सत्यनारायण जी (पूर्व अध्यक्ष, हिंदी प्रगति समिति), पाठक जी के बारे में “आँखुवाते शूल” पुस्तक में लिखते है की: “कवि-कथाकार हृषीकेश पाठक किसी परिचय के मोहताज नहीं हैं| हिंदी साहित्य में इनकी सात पुस्तकें आ चुकी है| पाठकजी ने समाज की विद्रूपताओं को सामने लाकर रचनात्मक धरातल पर अपनी लेखनी से समाज तक पहुँचने और समाज को उससे संघर्ष करने के लिए ताकत देने की पहल की है| इनकी रचनाधर्मिता के प्रति मेरी हार्दिक शुभकामनाएँ|”

पाठक जी के मित्र स्वर्गीय साहित्यकार विशुद्धानंद जी (अध्यक्ष, आनंदाश्रम) (जिन्हें स्नेहवश, पाठक जी सदैव भाईजी कहते थे) के अनुसार :
“अभियंत्रण के पेशे से जुड़े पाठक जी एक संवेदनशील कवि एवं कुशल कथाकार हैं, जिनकी संवेदना उनकी लघुकथाओं एवं कविताओं में सदैव रूपायित हुई है| उन्होंने आंचलिक शब्दों का तत्सम और उर्दू शब्दों के साथ सामंजस्य स्थापित करते हुए, अपना अलग त्रिआयामी शिल्प विकसित किया है, यह एक विशिष्ट उदहारण है, जो विरले ही देखने को मिलता है |”

श्रीमान भगवती प्रसाद द्विवेदी जी ने अपने एक आलेख में पाठक जी के बारे में यह सत्य ही लिखा है की :
“ अभियांत्रिकी सेवा की काजल की कोठरी में रह कर भी इन्होने पूरी ईमानदारी- निष्ठा के साथ बेदाग “ ज्यों कि त्यों धर दीनी चदरिया” चरितार्थ कर दिखाया| साथ ही अवर अभियंता संघ के सभागार में अनवरत साहित्यिक - सांस्कृतिक संगोष्ठीयों, सम्मेलनों को आयोजित करने का श्रेय पूर्ण रूप से पाठक जी को ही जाता है, दरअसल वह साहित्य- संस्कृति की जीवंत प्रतिमूर्ति थे|”

साहित्यकार शिवनारायण जी (संपादक, नई धारा) , स्याह सच की अपनी भूमिका में लिखते है कि :
“भोजपुर (बिहार) की मिट्टी से उपजासंवेदनशील लघुकथाकार हृषीकेश पाठक की लघुकथाएँ समय से जुड़ी अपनी विविध आयामी आस्वाद के कारण ध्यानाकर्षित करती है| हृषीकेश पाठक अपने समय को जीते हुए जिन व्यंजनामूलक गति में उसे रचनात्मक अभिव्यक्ति देते हैं, उसका पाठकों में सहजसम्प्रेषण हो जाता है| उनकी लघुकथाएँ साक्षरता, दहेज़, बालश्रम, पर्यावरण, सामाजिक-सांस्कृतिक प्रदूषण से सम्बंधित हों अथवा देशभक्ति, साम्प्रदायिकता, उग्रवाद,भ्रष्टाचार, गरीबी, आतंकवाद, राजनितिक भ्रष्टाचार, मूल्यबोधहीनता आदि से सम्बंधित, उनमें अपने विषयों में गहरे पैठकर वर्ण्य विषयों का प्रभाव सम्प्रेषित करने की क्षमता दिखती है| अपने पहले ही संग्रह में इतनी अच्छी लघुकथाओं के लिए मैं अपने मित्र हृषीकेश पाठक को बधाई देना चाहता हूँ |”

इसी क्रम में श्रीमान सिद्धेश्वर जी (संम्पादक, कथासागर) लिखते है की :
“पाठक जी कि लघुकथाओं में मौलिक दृष्टि और वैचारिक विशिष्टता प्रभावकारी बन पड़ी है| सामाजिक, राजनैतिक, आर्थिक, विसंगतियों को उन्होंने अपने ढंग से व्यंजित किया है| जीवन की तमाम विषमताओं के बीच जीवन के प्रति आशा, आस्था, मोह, प्रेम जगाती हुई आत्म प्रेरक रचनाओं का आज आभाव होता जा रहा है| इस आभाव को दूर करने में हृषीकेश पाठक की लघुकथाएँ सक्षम दिख पड़ती हैं|

हृषीकेश पाठक जी प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से कई साहित्यिक एवं सामाजिक संस्थाओं के कर्ता-धर्ता थे| चाहे “आनंदाश्रम” के संगठन मंत्री के रूप में हो, नियाजीपुर नव युवक संघ के अध्यक्ष के रूप में हो या “सृजन- संगति” के महामंत्री के रूप में, सदैव उन्होंने अपने तन -मन- धन से साहित्य एवं समाज कि सेवा का कार्य ही किया| ये आत्मीय तो इतने थे की एक बार किसी को अपनाया तो फिर उसके ही होके रह गए | इनका यह गुण इस तथ्य से परिलक्षित होता है की अपने मित्र स्वर्गीय भोला प्रसाद तोमर जी की स्मृति में प्रत्येक वर्ष 27 अप्रैल को स्मृति दिवस सह साहित्यिक गोष्ठी का आयोजन, लगातार कई वर्षो तक करते रहे, अपने अंत समय तक, बिना तोमर जी के परिवार के सदस्यों के किसी भी प्रकार के सहयोग के, ताकि तोमर जी के व्यक्तित्व एवं विचारों को सामाजिक रूप से जीवंत रखा जा सके| ये कोई आम बात नहीं थी| साधारण सा जीवन व्यतीत करने वाले हृषीकेश जी दया एवं परोपकार की भी प्रतिमूर्ति थे, अक्सर राह चलते किसी गरीब, असहाय या जरूरतमंद को पेट भर भोजन करा देना, अपने शरीर के वस्त्र – चादर इत्यादि रह चलते ही जरुरतमदों को दान कर देना इत्यादि उनके दिनचर्या का अहम् हिस्सा था | अपने शरीर की चिंता न करते हुए अपने इष्ट- मित्रों कि सहायता हेतु सदैव तत्पर एवं उपलब्ध रहना उनकी ऐसी विशेषता थी, जिसके कारण सभी उनके आत्मीय बन जाते थे| उनके आत्मीय जनों में उम्र की कोई बाध्यता नहीं थी| सभी उम्र के व्यक्ति उनके आत्मीय थे, हैं भी, उनके स्वर्गवासी होने के बाद भी , और कारण बस एकथा मिलानसार एवं उदार व्यक्तित्व| 

पाठक जी के एक परम मित्र बृजेश कुमार त्यागी जी ने अपना एक अनुभव मुझ से साझा किया था जिसे यहाँ उल्लेखित करना मुझे उचित प्रतीत होता है, उन्ही के शब्दों को यहाँ प्रस्तुत कर रहा हूँ :
“ स्वर्गीय हृषीकेश पाठक जी से मेरा पहला परिचय मेरे सिंचाई विभाग में गोरौल में पदस्थापना के दौरान हुआ था| यद्यपि वह मेरे आधीन पदस्थापित नहीं थे परन्तु उनकी सरलता, सुहृदयता के कारण हमारे परिवार एवं उनके परिवार में एक ऐसा सुदृढ़ स्नेह संबंध बन गया जो आज तक कायम है| गोरौल में मेरे पदस्थापना के दौरान मेरी पत्नी का पटना में आपरेशन हुआ था| उस समय मेरे दोनों पुत्र छोटे और नादान थे, तथा मेरे माता पिता वयोवृद्ध थे और इन सभी को सतत देखभाल की जरूरत थी| पत्नी की चिकित्सा के कारण हम कई - कई महीने बम्बई में रहते थे और इस काल में मेरे घर का दायित्व पाठकजी निर्वहन करते थे| मेरे माता-पिता सदा मुझे कहा करते थे कि पाठक जी मेरी अनुपस्थिति में एक पुत्र की भांति ही उनका ध्यान रखते है | मेरे दोनों  बच्चे भी उनसे इतना हिल मिल गये थे कि उनके आते ही दोनों उनकी गोद में बैठने के लिए झगड़ जाते थे | मैंने अपने जीवन में इतना स्नेहशील और परोपकारी मनुष्य दूसरा नहीं देखा| ऐसे अनन्य व्यक्तित्व के असमय प्रयाण से ईश्वर की न्याय व्यवस्था से विश्वाश उठ सा जाताहै| जो भी हो, मै और मेरा परिवार तो उनके आजन्म कर्जदार हैं|”

है यहाँ शून्य अब शेष, कहाँ है लेश मात्र जीवन का 
शिथिल पड़े ये नेत्र, भाल पे कहाँ तिलक विजय का !
गीली आँखों - सूखे कंठों में ध्वनि न आस जरा सा 
क्यों छोड़ गये हृषीकेश शेष, ये पीड़ हृदय वेदन का ।
अथक प्रयास किये हमने, तुम सुनो न रुदन हृदय का,
किंतु अपनी भी सीमाएं, कैसे रुके ये पीड़ बिषम सा ?
नयनों से झड़ पड़े अश्रु जल, अनवरत धार नदियों सा,
बोलों तुम ही, इतनी जल्दी क्यूं छोड़े आस विजय का?
(-प्रवीर कु. विशुद्धानंद)
......

(आलेख का सम्पादित अंश प्रकाशित किया गया है.)
मूल आलेख - प्रवीर कुमार विशुद्धानंद 
लेखक का ईमेल आईडी - praveer87@gmail.com
प्रतिक्रिया हेतु इस ब्लॉग का इमेल आईडी - editorbejodindia@gmail.com





Friday, 22 May 2020

भा युवा साहित्यकार परिषद के संगीत कार्यक्रम - 19.5.2020 के साथ ही दैनिक आभासी गोष्ठियों का सिलसिला सम्पन्न

साहित्याकारों ने लोकप्रिय गीतों को ऑनलाइन गाकर सबका मनोरंजन किया 
दैनिक गोष्ठियोंं की दैनिक शृंखला का समापन

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पटना। भारतीय युवा साहित्यकार परिषद के तत्वाधान में फेसबुक के "अवसर साहित्यधर्मी पत्रिका" पेज पर, "हेलो फेसबुक साहित्य प्रभात" के दैनिक कार्यक्रम के तहत, 19/05/2020 को फिल्मी गीत संगीत का रंगारंग कार्यक्रम का संचालन करते हुए कवि सिद्धेश्वर ने कहा कि - "फूल के लिए रस और सुगंध की जरूरत होती है, ठीक उसी प्रकार जीवन को सही मायने में जीने के लिए गीत संगीत की जरूरत है। कहते हैं संगीत के बिना तो जीवन ही अधूरा होता है! संजीदगी भरी जिंदगी जीने वाले लोग बेसुरी आवाज में भी गाते दिख पड़ते हैं कि- "गाना आए या ना आए गाना चाहिए /सुर और संगीत के साथ दिल को मिलाना चाहिए।.   

इस समारोह की मुख्य अतिथि वीणाश्री हेम्ब्रम ने कहा कि- "संस्था के संस्थापक अध्यक्ष सिद्धेश्वर को हार्दिक बधाई देते हुए आज गीत संगीत की प्रासंगिकता पर बताना चाहती हूँ कि, संगीत आज से ही नहीं वरन पुरातन काल से ही मनोविनोद का सबसे उत्तम साधन माना गया है। हम गौर करेंगे तो पाएंगे कि प्रकृति के हरेक कण व स्वरूप में संगीत विद्यमान है। आज भी भागम-भाग वाली वर्तमान जीवन शैली में यही संगीत दिनभर के थके हारे मन को एक सुकून प्रदान करता है। विशेषकर इस लॉकडाउन में ये एक सुनहरा अवसर है संगीतप्रेमियों के लिए की वो पूरा समय संगीत साधना व रियाज़ में लगा सकते हैं। संगीत जीवन में प्रेम का संचार करता है इसलिए गाना आये या न आये गाते रहिये,  आनंदित रहिये।

इस यादगार आनलाइन सांस्कृतिक कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए वरिष्ठ गीतकार मधुरेश नारायण ने कहा कि - "भारतीय युवा साहित्यकार परिषद् और अवसर साहित्य धर्मी पत्रिका के संयुक्त तत्वधान में हैलो फ़ेसबुक  साहित्य प्रभात दूारा आयोजित अॉन लाईन फ़िल्मी गीत/संगीत के कार्यक्रम कई मायने में सफल और सराहनीय रहा। साहित्य और संगीत का बहुत गहरा संबंध है।

आज जब हम लाँक डाउन के चौथे चरण में प्रवेश किये है। हरेक इंसान घर में रह कर ऊबने लगा है।ऐसे में इस तरह का कार्यक्रम संजीवनी का काम करता है।आज जितने भी प्रतिभागी इसमें हिस्सा लिये सबने एक से एक बढ कर गाना गाया।यह प्लेटफ़ार्म मनोरंजन को ध्यान में रख कर किया गया है जो सार्थक रहा। मैं सबको बहुत-बहुत बधाई देता हूँ।

पिछले 15 दिनों से हर दिन लगातार 1 घंटे का यह लाइव कार्यक्रम पूरे देश भर में सराहा गया। इस लाइव प्रसारण के संयोजक सिद्धेश्वर ने कहा  कि -" हमारे इस ऑनलाइन की बढ़ती हुई लोकप्रियता को देखते हुए, हम सप्ताह के प्रत्येक रविवार को, साहित्य की सभी विधाओं पर केंद्रित ऑनलाइन गोष्ठी जारी रखेंगे। और प्रत्येक माह के अंतिम रविवार" को "हेलो फेसबुक कवि सम्मेलन " का आयोजन करेंगे। हमारा अगला रविवार लघुकथा को समर्पित रहेगा।। 
इस कार्यक्रम में जिन कलाकारों और कलाकारों  ने अपनी संगीतमय प्रस्तुति  दिया, वह उस प्रकार है। - 
आस्था दीपाली (नई दिल्ली) 
सुशील साहिल
स्वास्तिका सिद्धेश्
नूतन सिंह (जमुई)
सुमन कुमारी
जुगल आशीष और सुमन 🇧🇩
कुमारी सुमन
वीणाश्री हेम्ब्रम 
आरती कुमारी
सिद्धेश्वर
मधुरेश नारायण
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प्रस्तुति - सिद्धेश्वर
प्रस्तोता का पता - सिद्धेश सदन", द्वारिकापुरी रोड नं:02,पोस्ट :बीएचसी, हनुमान नगर, कंकड़बाग, पटना:800026
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Thursday, 14 May 2020

भारतीय युवा साहित्यकार परिषद द्वारा 13.5.2020 को आयोजित" अंतरजाल(इंटरनेट) कथा पाठ और चर्चा सम्पन्न

सामाजिक विसंगतियों-विद्रूपताओं  के चित्र उकेरकर एक जरूरी सवाल उठाती है कहानी

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पटन्। 13 /05/2020.  हर दिन साहित्य चर्चा को लेकर भारतीय युवा साहित्यकार परिषद द्वारा आयोजित" हेलो फेसबुक साहित्य प्रभात" के तहत आज आन लाइन वरिष्ठ कथाकार भगवती प्रसाद द्विवेदी, जयंत और युवा कथाकार संजीव कुमार कथा द्वारा पाठ किया गया। 

कहानी पर समीक्षात्मक टिप्पणी करते हुए, मुख्य अतिथि भगवती प्रसाद द्विवेदी ने कहा कि   - "समकालीन कहानी समयगत सच्चाइयों का आईना है। आज की कहानी सामाजिक विसंगतियों-विद्रूपताओं  के चित्र उकेरकर एक जरूरी सवाल उठाती है और वह प्रश्न पाठकीय संवेदना जगाकर अंतर्मंथन के लिए विवश करता है। जयंत की कहानी 'पहचान' जहाँ बालमनोविज्ञान के जीवंत चित्र उकेरती है, वहीं संजीव कुमार की किस्सागोई भी संभावना जगाती है।" उन्होंने इस विधा पर सार्थक विमर्श के आयोजन पर बल देते हुए इस हेतु संयोजक सिद्धेश्वर की इस कार्य हेतु सराहना की। 

उन्होंने युवा लेखिका मीना कुमारी परिहार और विनोद प्रसाद द्वारा कहानी विधा पर पूछे गए सवालों का सारगर्भित विचार भी प्रस्तुत किया।       
संचालन के क्रम में संयोजक सिद्धेश्वर ने कहा कि - "हिंदी साहित्य में लघुकथा के बाद, आज भी कहानी सर्वाधिक पठनीय विधा बनकर उभरी है जो समय-संदर्भित भी दिखाई पड़ती है। सामाजिक परिवर्तन में प्रेरक और जीवन की तल्ख सच्चायों को आईना दिखलाने वाली कहानियों की अहम भूमिका है। और आज भी ऐसी कहानियों की ही प्रासंगिकता है। 

एक घंटे की इस साहित्य संगोष्ठी के आयोजन में कथाकार जयंत से संयोजक सिद्धेश्वर ने संक्षिप्त भेंटवार्ता भी लिया। उन्होंने भेंटवार्ता के दौरान कहा कि - "हिंदी साहित्य में कहानी प्राचीनतम विधाओं में से एक है। यह विधा सभी  समय सर्वाधिक लोकप्रिय रही है। ऐसा इसलिए की कविता और अन्य विधाओं की तुलना में कहानी को पढ़ना समझना सरल होता है।"

जिस तरह से एक स्त्री अपने संतान को पालती है साहित्यकार अपनी रचना को अपने हृदय में पालता है और समय आने पर उसे कागज पर उकेराता है।

कहानी के शीर्षक 'पहचान' से मैंने आरंभ से ही पाठकों में उत्सुकता के तत्व रोपण का प्रयास किया है -ऐसा कहना था कहानी के लेखक का कहानी के अंत में यह यह बात सामने आती है कि बच्चे अपने पंछियों को पहचान नहीं पाते। 

सजीव (lलाइव) चर्चा के दौरान ऋचा वर्मा, मधुरेश नारायण, विनोद प्रसाद, अनिता, गोरखनाथ मस्ताना, मीना कुमारी परिहार, पुष्पा जमुआर, पुष्प रंजन, आदि की सहभागिता भी रही। 
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प्रस्तुति : सिद्धेश्वर
प्रस्तोता का परिचय -अध्यक्ष :भारतीय युवा साहित्यकार परिषद /अवसर प्रकाशन
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राष्ट्रीय संस्था "महिला काव्य मंच" बिहार प्रांत की मासिक काव्य - गोष्ठी (आभासी) दिनांक 10-5-2020 को संपन्न

जहां गयी आवाज तो देदो

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अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर साहित्यिक गोष्ठी आयोजित करने वाली राष्ट्रीय संस्था "महिला काव्य मंच" बिहार प्रांत  की मासिक काव्य - गोष्ठी दिनांक 10-5-2020 को 3 बजे से प्रारंभ हो कर 6 बजे तक बिहार अध्यक्ष डॉ उषा किरण श्रीवास्तव, उपाध्यक्ष डॉ अन्नपूर्णा श्रीवास्तव, सचिव डॉ सुधा सिंहा सावी , पटना जिलाध्यक्ष डॉ मीना परिहार बेतिया की डॉ शिप्रा मिश्रा, डॉ अणिमा, नूतन सिंहा  डॉ संगीता  आदि कवयित्रियों की उपस्थिति एवंआन लाइन काव्य पाठ  से आयोजन सार्थक हुआ   बिहार के विभिन्न जिलों कीअध्यक्ष एवं सदस्यों ने बढ़ चढ कर भाग लिया! सुखद संयोग कल मातृदिवस रहने के कारण अधिकांश कवयित्रियों के काव्य पाठ की केन्द्र बिंदु माँ ही रही। सबों ने विभिन्न रूपों में "माँ " को अपनी भावनाएँ समर्पित की!अध्यक्ष डॉ उषा किरण जी,उपाध्यक्ष डॉ अन्नपूर्णा श्रीवास्तव एवं सचिव डॉ सुधा सिंहा सावी की उपस्थिति एवं संगीता जी के कुशल संचालन में सम्पन्न की गई!


पढ़ी गई रचनाओं में से कुछ की झलक प्रस्तुत है - 

अध्यक्ष ऊषा किरण ने माँ  की विविध रूप को दिखाया -
ये मां तुम क्या कहां नहीं हो,
तुम प्रकृति की हरियाली हो
बच्चों के होंठों की लाली  हो

उपाध्यक्ष डॉ. अन्नपूर्णा श्रीवास्तव ने माँ को अप्रतिम भगवान् बताया -
तेरी ममता का प्रतिदान नहीं
तुझ जैसा तो भगवान नहीं
  
सचिव डॉ. सुधा सिन्हा ने अपनी दिवंगत माँ को बुलाना चाहा - 
जहां गयी आवाज तो देदो
अपनी एक झलक दिखला दो,
समझाना मुश्किल आंखों को,
रोक न सकूं अश्रुधार को।

इस कार्यक्रम के आल्योजन में महासचि डॉ. नीलिमा वर्मा की भी महत्वपूर्ण भूमिका रही.

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रपट की प्रस्तुति - डॉ. अन्नपूर्णा श्रीवास्तव / डॉ. सुधा सिन्हा
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