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बिहार, भारत की कला, संस्कृति और साहित्य.......Art, Culture and Literature of Bihar, India ..... E-mail: editorbejodindia@gmail.com / अपनी सामग्री को ब्लॉग से डाउनलोड कर सुरक्षित कर लें.

# DAILY QUOTE # -"हर भले आदमी की एक रेल होती है/ जो माँ के घर तक जाती है/ सीटी बजाती हुई / धुआँ उड़ाती हुई"/ Every good man has a rail / Which goes to his mother / Blowing wistles / Making smokes [– आलोक धन्वा, विख्यात कवि की एक पूर्ण कविता / A full poem by Alok Dhanwa, Renowned poet]

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Friday, 11 October 2019

अमन शांति की खोज में, गया स्वर्ग के द्वार

शोक में दोहे 
 22 वर्षीय श्रेष्ठ दोहाकार ग़ज़लकार अमन चांदपुरी के असामयिक निधन पर कविता
कवि - हरि नारायण सिंह 'हरि'

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अमन चाँदपुरी (जन्म 25 नवम्बर 1997 – निधन 10 अक्टूबर 2019)

(बिहारी धमाका / बेजोड़ इंडिया ब्लॉग की ओर से 
अत्यंत अल्प आयु के एक अति प्रतिभाशाली कवि के निधन पर हार्दिक शोक)

अमन शांति की खोज में, गया स्वर्ग के द्वार ।
यहाँ निरंतर रो रही, कविता जार-बेजार ।

ऐसे निष्ठुर क्यों बने, अमन! गये क्यों भाग ।
यहाँ अभागा रो रहा, सुबुक-सुबुक अनुराग ।

सबके प्रिय तुम थे बने, सबके जिगरी यार ।
अमन! तुम्हारे बिन यहाँ, फीके सब त्योहार ।

यद्यपि परिचय था नहीं, भले बहुत थे दूर ।
तुमको रचता देख-सुन, मैं भी था मगरूर ।

दोहा मंथन में अमन हम हैं तेरे साथ ।
इतनी जल्दी चल दिये, अरे, छुड़ाकर हाथ !

राहुल रो-रो कह रहा, कहाँ गये तुम यार ।
फैजाबादी हरि सुबक, करता दुख इजहार ।

खेरवार तो दुःख से हुआ कि ऐसा मौन ।
उसे मनाये किस तरह, और मनाये कौन ।

गरिमा और सुमित्र हरि, करुण और कवि अन्य ।
सभी शोक विह्वल अमन! तुम थे प्रिय अनन्य ।

वश में रही न 'भावना', आँखों में है लोर।
अमन! हाय!क्यों चल दिये, इतनी जल्दी छोड़ ।
...
कवि - हरि नारायणसिंह 'हरि'
प्रतिक्रिया हेतु ईमेल - editorbejodindia@yahoo.com

शोक संतप्त कवि - हरिनारायण सिंह 'हरि'


बिहार के कुछ कवियों के साथ अमन चांदपुरी 

बिहार के कवियों के साथ अमन चांदपुरी


Wednesday, 2 October 2019

अन्तरराष्ट्रीय वृद्ध दिवस (1 अक्टूबर्) पर लेख्य मंजूषा की अंतराजाल साहित्य गोष्ठी

बैठ जाओ कदमों तले उनके / अबूझ जीवन का हर हल निकाल लो 
जिंदगी जो शेष है बस वही विशेष है

(मुख्य पेज पर जायें- bejodindia.blogspot.com / हर 12 घंटे पर देखते रहें - FB+ Watch Bejod India)

फाइल चित्र

अन्तरराष्ट्रीय वृद्ध दिवस सम्पूर्ण विश्व में अक्टूबर मास के १ दिनांक को मनाया जाता है । इस दिन पर वरिष्ठ नागरिको और वरिष्ठ सम्बन्धिओं का सम्मान किया जाता है। वरिष्ठों के हित के लिए चिन्तन भी होता है। विभा रानी श्रीवास्तव ने इस अवसर पर साहित्यकारों और अन्य लोगों से अपने-अपने अनुभव बाँटने का आमंत्रण दिया  अनेक सुधी लोगों ने अपनी अभिव्यक्ति की जो नीचे प्रस्तुत है -

1. विश्वमोहन (दिल्ली) -
बुजुर्गों के पास क्षमा का हथियार, अहिंसा का अस्त्र. होता है. धन रहते भी धन न देनेवाला से महान  है वह धनहीन जो अपना सर्वस्व समर्पित करनेको उद्धत रहता है... यह बेबसी के बीज से बढ़े वृक्ष नहीं हैं. ये तो आत्मिक सबलता और आंतरिक सोंदर्य से अंकुरित कल्पतरु हैं, जिसकी छाया तले भटके पथिक को जीवन के शाश्वत सत्य के दर्शन होते हैं 

2. रंजना सिंह -
बुजुर्ग हमारे प्रहरी हैं
गाँव के हों या शहरी हैं

3. पूनम देवा -
बुजूर्गु  हमारे घने वट वृक्ष की छाया है
क्या हुआ, अगर जीर्ण क्षीण ,इनकी काया है
उपर वाले की माया है
अगर हम पर इनकी छाया है।

4. प्रियंका श्रीवास्तव 'शुभ्र' -
बुजुर्ग घर के आन मान सम्मान हैं
बच्चों को उनसे मिलता सुंदर ज्ञान है

5. अभिलाषा सिंह -
खत्म होने के कगार पर खड़ी है जिंदगी
किसी खंडहर के द्वार पर पड़ी है जिंदगी
तुम्हारे ही प्यार ने दे रखी है वो ताकत
कि कई दफा मौत से लड़ी है जिंदगी
पास बैठो बुजुर्गों के कि बातें चंद कर सकें
इसी आस में आज तक धरी है जिंदगी।
लग जाना गले से फुर्सत निकाल कर कभी
यही सोचकर कि अब तो आखिरी है जिंदगी।

6. मधुरेश नारायण -
खुद बुजुर्ग हूँ, दूसरे बुजुर्गों के बारे में क्या कहूँ
अपनों को सब सुख मिले, दर्द मैं उनका सहूँ।

7. पूनम (कतरियार) -
सफेद बालों में संजोये दुनियादारी
जीवन-भर की कमाई वफादारी है
अशक्त -कमजोर हो या बीमारी
खुश दिखना इनकी लाचारी है
शब्द घुटते रहते हैं पोपले मुख के,
दिन कटते स्मरण में विगत सुख के।

8. राजेन्द्र पुरोहित (जोधपुर) -
बालों की सफेदी को सम्मान चाहिए
घर में बुजुर्गियत की पहचान चाहिए
दौलत की तबोताब की उनको नहीं है आस
बस वक़्त दीजिये, यही एहसान चाहिए।

9. मीरा प्रकाश -
बुजुर्गों के बिना घर अधूरा है
उनके पांव में स्वर्ग और धरा है
उनका प्यार मिले सभी को-
उनके ज्ञान बिना घर अंधेरा है।

10. मिनाक्षी कुमारी -
जिंदगी जो शेष है बस वही विशेष है
नहीं गुनाह बुढ़ापे का कुछ भी
एक अटल सत्य है आज यह भी।
इच्छा दफन कर जिंदगी भर तालमेल बैठाते रहे
शेष बचे जीवन के क्षण का
बाहें फैलाकर अब आप स्वागत करें।

11. नूतन सिन्हा -
बुजुर्ग हमारे लिये संचय किया हुआ धन से भी बढकर होते हैं उनके आगे धन दौलत भी फीका है धन तो खर्च हो जाता है परन्तु बुजुर्गों का शाया बरगद के पेड़ की तरह शीतल छाया देकर हरवक्त नया मार्गदर्शन देकर हमारी नई पहचान बनाते हैं। बोला जाये तो प्रकृति स्वरुप बुजुर्ग होते हैं जिनकी आवश्यकता हमारे शरीर के रक्त के समान होते हैं।

12. प्रेमलता सिंह -
बुजुर्ग के आशीर्वाद और प्यार से ही हमारा घर स्वर्ग समान बनता हैं।  जैसे पेड़ कितना भी हरा -भरा हो, इसकी जड़ काट दी जाए तो पेड़ सूख जाता हैं। वैसे ही हमारे बुजुर्ग हमारे परिवार की बुनियाद हैं।

13. प्रभास कुमार 'प्रभास' -
जितना माता-पिता बच्चों की सेवा करते हैं
वृद्धावस्था में वो वापस नहीं पा पाते हैं
जब आती है ऋण चुकाने की बारी
तब उनके बच्चे अपना हाथ खड़ा कर देते हैं।

14. संजय कु सिंह -
भागती जिंदगी से कुछ पल निकाल लो
आज नहीं तो कल निकाल लो
बैठ जाओ कदमों तले उनके
अबूझ जीवन का हर हल निकाल लो।

15. राजकांता राज -
दादा-दादी, माता -पिता हमारे बल है
बुजुर्ग हमारे आने वाला कल है
बुजुर्ग पारिवार की नींव है
बुजुर्ग घर की रौनक है

16. विष्णु सिंह -
काँपते हाथ
झुर्रियाँ
किसको पसंद आते हैं
कौन चाहता है, ऐसे हालात में रहना
पर क्या करें समय का तकाज़ा है
अनुभव लेते लेते, सबको आना पड़ता है इस उम्र के पड़ाव पर
सब इन्हें बुजुर्ग कहते हैं
हम इन्हें धरोहर कहते हैं, छत कहते हैं।
ज़रा सोचिएगा,
बिना छत के मकान होते हैं क्या?
आओ मिलकर प्रण लें
झूठा अहंकार त्याग दे आज
ले बुजुर्गों का आशीर्वाद
ले हम बुजुर्गों का आशीर्वाद।

17. संगीता गोविल -
सब कुछ है घर में सिर्फ एक बुजुर्ग की कमी है,
आज खुद पोंछे जो यादों से उनकी आई नमी है।
जब थे वो घर में, सुरक्षित हम आजाद परिंदे थे,
अब गृहाधिपति बने तो जिम्मेदारियों की बर्फ जमी है।

18. कंचन अपराजिता (चेन्नई) -
बरगद के पेड़ को देखे..
कितनी बैठकों के गवाह बने
हमारे बुजुर्ग है उस छाँव जैसे
आभार उनका भी हम करे
उनके चेहरे पर मुस्कान
हम से ही तो रहते है खिले
चलो अपने कुछ पलों को
सिर्फ उनके लिए जी ले।

 19. मधु खोवाला -
जिस घर में हो बुजुर्गो का सम्मान
आसमान भी करता है
उस घर को झुक कर प्रणाम।
.....

प्रस्तुति - विभा रानी श्रीवास्तव
प्रस्तोता का ईमेल - virani.shrivastava@gmail.com
प्रतिक्रिया हेतु ईमेल -editorbejodindia@yahoo.com

फाइल चित्र



मेरा साथ निभाना होगा / सिद्धेश्वर की कुछ कविताएँ

 हिंसा के विरोध में एक कवि 

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पूर्व मध्य रेल (पटना जंक्शन) में कार्यरत उप-मुख्य टिकट निरीक्षक सिद्धेश्वर प्रसाद गुप्ता सफलतापूर्वक नौकरी करते हुए सेवानिवृत्त हो गए। उनका विदाई समारोह पटना में रेलवे के कार्यालय में 28/09/2019 को हुआ। वे पिछले बीस वर्षों से राजेन्द्र नगर टर्मिनल स्टेशन राजभाषा कार्यान्वयन समिति के सचिव एवं रामवृक्ष बेनीपुरी हिंदी पुस्तकालय के अध्यक्ष के पद पर भी अपना अभूतपूर्व योगदान देते हुए विचार गोष्ठी, कवि गोष्ठी, राजभाषा बैठक, पुस्तक लोकार्पण आदि गतिविधियों के द्वारा, राजभाषा हिन्दी से रेलकर्मियों को जोड़ने का उत्साहजनक काम किया वे इन कार्यों के लिए रेल मंत्रालय से लेकर रेल महाप्रबंधक तक के कई पुरस्कारों से सम्मानित भी हुए। 

साहित्य जगत में 'सिद्धेश्वर' के नाम से साहित्य सृजन करनेवाले इस रेलकर्मी ने सर्वश्रेष्ठ साहित्य लेखन और सर्वश्रेष्ठ पुस्तक लेखन के लिए भी रेल मंत्रालय (भारत सरकार) द्वारा दो बार प्रथम पुरस्कार से सम्मानित होकर दानापुर रेल मंडल का नाम रौशन किया है। विदित हो कि रेल मंत्रालय (भारत सरकार) द्वारा इनके काव्य संग्रह "इतिहास झूठ बोलता है" को मैथिलीशरण गुप्त पुरस्कार और उनकी कथा संग्रह "ढलता सूरज :ढलती शाम" को प्रेमचंद पुरस्कार से सम्मानित किया गया था। रेल की पत्रिकाओं में भी सिद्धेश्वर के सैंकड़ों कविताएं, कहानियाँ लघुकथाएं, आलोचनात्मक आलेख, भेंटवार्ता तथा रेखाचित्र और पेंटिंग्स भी सम्मान पूर्वक प्रकाशित होते रहे हैं। रेल विभाग में इस तरह की कई प्रतिभाएं, सेवानिवृत्त होने के बाद भी, साहित्य साधना करते रहे हैं। सिद्धेश्वर भी इस दिशा में अग्रसर हैं। 

(उपरोक्त जानकारियाँ श्री सिद्धेश्वर एवं उनकी पत्नी श्रीमती बीना गुप्ता द्वारा प्राप्त सूचनाओं के आधार पर है.)

लीजिए प्रस्तुत हैं कवि सिद्धेश्वर रचित कुछ कविताएँ-
1. तू नागन है मैं चंदन

मेरा  साथ  निभाना  होगा
मंजिल तक पहुंचना  होगा
मैं  जब  तन्हा  हो  जाऊंगा
तेरे  साथ   जमाना होगा 

रूठ  के  घर से जाने वाले
 एक  दिन  वापस आना होगा
अगर  पड़ोसी जालिम है तो 
खुद को तुम्हें  बचाना  होगा

विष  का  प्याला है सच्चाई
फिर भी मुझे पी जाना होगा
 कीचड़ में  खिलते  हैं फूल 
 दुनिया  को बतलाना होगा

ये  धरती, आकाश  बताए
मेरा  कहां  ठिकाना  होगा
 दुनिया से मत पूछो 'सिद्धेश'
क्या खोना क्या पाना होगा?
...

2. भूख से परेशां
 वह
पहले 
रोटियां छीन कर 
खा लिया करता था! 
     जब
     छीनने पर भी 
      नहीं मिली रोटी,
तब
   'भाई' को खाया उसने
फिर
'बहन' को
फिर 
'मां' को
फिर 
'बाप' को
फिर 
'पत्नी' को
फिर 
'बच्चे' को
      अंततः
        और कोई न बचा
       तब..? 
      खुद को खा गया, वह! 
....

युद्ध :तीन क्षणिकाएं 
 (एक) 
युद्ध! 
वरदान भी है  
अभिशाप भी है 
युद्ध
सवाल है 
युद्ध को तुम 
अपनी लड़ाई का 
आरंभिक हथियार बनाते हो 
दरअसल है यह अंतिम हथियार.!

(दो)
दो देशों के युद्ध में
हमेशा 
जीत होती है
किसी एक देश के 
राजा की!     
लेकिन 
हमेशा हार होती है
हिंसा के विरोध में लड़ रहे
करोड़ों देश की जनता की.

(तीन)
युद्ध में
दो देश के 
योद्धाओं के बीच
सिर्फ 
अस्त्रों-शस्त्रों से
नहीं होती लडा़ई! 
एक लडा़ई होती है
भूख  से भी ! 
 जिसके योद्धा होते हैं
युद्धरत सभी देशों की
लाखों में गरीब 
और असहाय जनता!
...
प्रस्तुति - बीना गुप्ता 
कविताएँ- सिद्धेश्वर
प्रतिक्रिया हेतु ईमेल - editorbejodindia@yahoo.com
नोट - इस रपट की लेखिका श्रीमती बीना गुप्ता, सिद्धेश्वर प्रसाद गुप्ता की पत्नी हैं.

Wednesday, 25 September 2019

‘हिंदी गौरव’ संस्था द्वारा पटना में 22.9.2019 कवि गोष्ठी सम्पन्न

संयम, निष्ठा, प्रेम पर भारी पड़ी प्रपंच
(मुख्य पेज पर जायें- bejodindia.blogspot.com / हर 12 घंटे पर देखते रहें - FB+ Watch Bejod India)



वरिष्ठ शायर संजय कुमार ‘कुंदन, जाने-माने कवि घनश्याम, नामचीन शायर समीर परिमल व गोड्डा से आमंत्रित और कार्यक्रम में सम्मिलित हुए शायर सुशील साहिल की उपस्थिति में दिनांक 22.09.19 को पटना के मुसल्लहपुर हाट में अवस्थित स्वाध्याय क्लासेज परिसर में लोकप्रिय शायर सुनील कुमार की अध्यक्षता में एक शानदार कवि-गोष्ठी आयोजित हुई जिसमें आद्योपांत ग़ज़लों, गीतों, छंदों और शेर-ओ-शायरी की एक अविरल रसधार बहती रही घंटों ।

राष्ट्रीय संस्था "हिंदी गौरव" के तत्वाधान में इसकी बिहार इकाई के संयोजक युवा कवि मनीष तिवारी व अनुराग कश्यप ठाकुर के संयोजन से आहूत इस कविगोष्ठी के कुशल संचालन का जिम्मा उठाया युवा कवि राहुलकांत पांडेय ने जिसमें युवा कवियों ने विशेष रूप से अपनी प्रस्तुतियों से बेजोड़ समां बाँधा। यह कहते हुए कि “युवा हाथों में हिंदी कविता का भविष्य न केवल सुरक्षित है अपितु उसे एक नया आयाम और ऊँचाई मिलेगी ऐसी आश्वस्ति भी दिखती है” एक सकारात्मक और उत्साहवर्धक टिप्पणी करके युवा कवियों की हौसला अफ़ज़ाई की गई।

इस काव्य गोष्ठी में पधारे वरिष्ठ कवियों और शायरों ने इस गोष्ठी में चार चांद लगा दिये।
पटना बिहार से घनश्याम ने दोहे पढ़े -
“हर भाषा का हम करें यथा योग्य सम्मान
लेकिन हिन्दी से बने भारत देश महान”

पटना निवासी सुप्रसिद्ध शायर समीर परिमल ने भी अपनी ग़ज़लों के अलावा ये दोहा पढ़ा :-
“धर्म का हेवी ब्रेकफास्ट और अफवाहों का लंच
संयम, निष्ठा, प्रेम पर भारी पड़ी प्रपंच।“

पटना में रहनेवाले ही वरिष्ठ शायर संजय कुमार कुंदन ने अपनी एक उम्दा नज़्म प्रस्तुत की -
“फ़रमान लेके घूमते सकाफत के ठेकेदार
 हम पहनेंगे क्या, खाएंगे क्या लिखवाया हुआ है।“

गोड्डा से आये सुशील साहिल ने पड़ोसी देश के विरुद्ध एक कविता पढ़ी।

शायरी में प्रौढ़त्व प्राप्त कर चुके युवा कवि कुंदन आनंद ने इश्किया लहजे में एक बड़ा सच सामने रख दिया -
“फिरता है आवारा लड़का
इक लड़की का मारा लड़का
ख्वाबों से डरता है अब तो
ख्वाबों का हत्यारा लड़का।“

उनके बाद अनेक युवा कवि-कवयित्रियों ने अपने जोशीले और इश्किया मिज़ाज में शायरी और कविताओं के नमूने प्रस्तुत किये -

अनुराग कश्यप ठाकुर  ने पढ़ा ने उम्र बढ़ने के साथ-साथ बिम्बों के अर्थ में हुए बदलाओं को उजागर किया-
“जो कभी चांद को मामा कहता था,
अब उसे माशूका कहने लगा है।
मेरे अंदर का वो छोटा बच्चा
अब बड़ा होने लगा है।“

मनीष तिवारी ने सरस घनाक्षरी छंद पढ़ कर अपना परिचय कुछ इस प्रकार दिया :-
मेरा प्यारा प्यारा गांव, कदंब की ठंडी छांव,
वहां का मुरारी हूं मैं, आप भान लीजिए।

कवि राहुल कांत पांडे ने ने अपनी माशूका को ग़ज़लों में बसने की बात की -
मुहब्बत के तिरे किस्से सुनाता हूँ मैं मंचो से
तू मेरी शायरी बनकर मेरी गजलों में रहती है।

कवि केशव कौशिक जैसे अंतर्दृष्टि रखनेवालों को माजरा समझने में देर नहीं लगती -
“ये मेरे दूर का रिश्तेदार हैं
 ये झूठ तुम कितनो को समझाती हो?”

उत्कर्ष आनंद की ग़ज़ल पर तमाम लोग झूम उठे -
“यूं सज- धज के निकलो न घर से अकेले
कि लड़ते हैं कह सब हमारा  हमारा”

मुकेश ओझा ने प्यार की नजाकत को सलीके से रखा -
“अपना  हाल- ए -दिल बताऊँ  तो बताऊँ  कैसे
जो राज दिल में है वो छुपाऊँ तो छुपाऊँ कैसे
एक पल में तो नहीं मिली हैं ये ज़िंदगी की  सौगात
फिर इस ज़िंदगी को भूलाऊँ तो भूलाऊँ  कैसे।“

कवियत्री सिमरन ने अपना यथार्थवादी तेवर दिखाया -
“सुखी हुई नदी की एक घूँट हूं मैं
हां ये सच है कि एक झूठ हूं मैं”

इसके अलावा कवियत्री निधि राज, डॉ. प्रतिज्ञा, कवि विकास राज, आशुतोष, रंजन, अश्वनी सरकार एवं अन्य नवोदित कवि-कवयित्रियों ने अपने शानदार काव्य पाठ से सबको मंत्रमुग्ध कर दिया।

कार्यक्रम के अंत में कार्यक्रम के अध्यक्ष सुनील कुमार ने अपनी दो ग़ज़लों के अलावा एक मस्त हास्य प्रतिगीत पढ़ा जिसे सुनते ही समस्त उपस्थित कवि श्रोता बरबस ठहाकों के बीच झूम उठे।
गीत के बोल कुछ यूँ थे -
“मिली पत्नी से फटकार / अरे रे बाबा ना बाबा
कहो कौन करेगा प्यार / अरे रे बाबा ना बाबा"

वैसे तो युवा कवि-कवयित्रियों ने भी खूब वाहवाही लूटी लेकिन सच यह है कि वरीय कवियों की गरिमामयी उपस्थिति एवं शानदार काव्य पाठ ने काव्य गोष्ठी को साहित्यिक सोपान के एक  उच्च स्तर पर प्रतिष्ठापित कर दिया।
.....

रपट के लेखक - सुनील कुमार
छायाचित्र सौजन्य -  हिन्दी गौरव
प्रतिक्रिया हेतु ईमेल - editorbejodindia@yahoo.com





Tuesday, 24 September 2019

बेटी दिवस - 22.9.2019 को लेख्य-मंजूषा की अंतराजाल (इंटरनेट) कवि-गोष्ठी सम्पन्न

तुम पर होगा नाज,  आसमां को तू छू ले

(मुख्य पेज पर जायें- bejodindia.blogspot.com / हर 12 घंटे पर देखते रहें - FB+ Watch Bejod India)
फाइल से चित्रों का संकलन
बेटी दिवस (22 सितम्बर) के अवसर पर  लेख्य-मंजूषा में बेटी दिवस मनाई गई सभी प्रतिभागियों ने अपनी स्व रचित भावाभिव्यक्ति से शमां बाँधा। नवोदय विद्यालय में पढ़ रही देश की एक बेटी की मौत की खबर ने हमें विचलित कर रखा  है। 


विभा रानी श्रीवास्तव ने बेटे को पतवार तो बेटी को सौगात बताया - 
वक़्त के अवलम्बन हैं बेटे, जीवन की दिन-रात हैं बेटियाँ
भंवर के पतवार हैं बेटे, आँखों की होती सौगात हैं बेटियाँ

वहीं अनीता मिश्रा सिद्धि ने बेटी को जीवन का सार और आधार माना -
बेटी तू ही जननी
तू ही बनी भगिनी
तू जीवन का सार है
तेरी हँसी बड़ी प्यारी 
तेरी छवि बड़ी न्यारी 
तू जीवन आधार है।

पूनम (कतरियार) भी एक अच्छी कवयित्री हैं. उन्होंने बेटियों के के झोले में तमगों की झड़ी लगा दी-
"बेटियाँ, हमारा अभिमान"

कोमल -चंचल बाला जब
 फौलाद हो जाती हैं ,
सहमी -सकुचाई आंखों में   
 'निश्चय' उभर जाता है
'अबला'  कहने वालों को
 'दैवीय' लगने लगती है
 भारत -माता का आंचल 
 जब   तमगों से भर देती हैं.
अजेय हिमालय का शीश 
'हिमा'मय*  हो  जाता  है
हर्ष -विह्वल अधरो पर तब
'जन -गण' मचल जाता है.
स्वर्ण-रजत -कांस्य उपलब्धियां     
 गले  का  हार बन  जाती  है
सवा- सौ करोड़  दिलों पर 
एक  गुरूर -सा  छा  जाता  है
'बेटियां,   हमारा   अभिमान' 
आन, बान, शान  बन  जाती  हैं,
बुलंदियां उनके कदमों को चूमती हैं  
पूरा हिंदुस्तान झूम -झूम जाता है
(हिमा दास, आईएएएफ वर्ल्ड अंडर-20 एथलेटिक्स चैम्पियनशिप की 400 मीटर दौड़ स्पर्धा में स्वर्ण पदक जीतने वाली पहली भारतीय महिला खिलाड़ी हैं - संपादक)
                 
प्रियंका श्रीवास्तव 'शुभ्र' भी कहाँ पीछे रहनेवाली थीं. उन्होंने भी बेटियों के प्रशस्तिगान का परचम लहराया पूरे शान और मान से -
बेटियां  बाबुल की शान हैं
अव्वल आ रखती ये मान हैं
घर बाहर दोनों संभाल
रखती सबका ख्याल हैं।
सासरा को स्वर्ग बनाती
मायका में याद सताती
सर्वत्र है इनका परचम
तभी तो सर्वत्र प्यार पाती।
दादी नानी बनकर भी
बालिका बन जाती
बच्चों संग खेल रचाती
सखियों से यारी निभाती।
       
मीनाक्षी सिंह ने बेटियों को औरों से जुदा बताया -
सात सुरों की सतरंगी तान हैं बेटियाँ।
सुमधुर धुन पायल की झंकार हैं बेटियाँ
समझो ईश्वर का आशीर्वाद इनको सब
औरों से जुदा खुद में बेमिसाल हैं बेटियाँ।

तो वहीं पर आज की युवा आवाज, नेहा नारायण सिंह खुद को माँ के अक्स में ढालती दिखीं -
 "मैं तू"
दर्पण  मैं  तेारी बनी
उसका तू  प्रतिबिंब 
नवी रूप की काया
लगे  उषा की ओस
निहार  के खुद को
तेरा मैं शुभ मनाऊं
देव  करे  पूरा तोहे
बिन मांगे बलिदान

प्रेमलता सिंह ने बेटियों में ईश्वर को भी कोख में रखने की क्षमता बताई-
घर की रौनक होती हैं बेटियां
पिता की शान तो मां की सम्मान होती है बेटियां
ईश्वर की दी हुई सौगात होती हैं बेटियां
ईश्वर को भी अपने कोख में रखने की ताकत रखती हैं बेटियां 
फिर क्यों कहते हो ऐ दुनिया वालों की कमजोर होती हैं बेटियां।
     ‌‌
संगीता गोविल ने बेटियों को स्वयं अपने जंग लड़नेवाली बताया -
धरा का पर्याय है बेटियाँ, वंश की पहचान है
बेटियाँ तो गगन के सितारों की भी शान है
इनकी शक्ति, इनका धीरज मत तौलो
अपनी जंग की ये हीं नेता और निगेहबान हैं ।

मधु खोवाला ने बेटी को भाई की राखी और पापा का प्यार कहा -
बेटी तू मेरी नैया 
तू जीवन आधार
तू भाई की राखी
तू पापा का प्यार

राजेन्द्र पुरोहित ने बताया कि कोकिला सा गान गानेवाली इन बेटियाँ के कारण ही घर, घर होता है -
 "बेटियाँ"
खुशियों की चहक
मोगरे सी महक
मयूरी सा नाद
अमिया सा स्वाद
चिड़िया सी उड़ान
कोकिला सा गान
पिता भाव अनूप
माता का प्रतिरूप
हौसलों का पर है
बिटिया से ही घर है

राज कान्ता राज ने अपनी गुड़िया को ताकत की पुड़िया बनाने में कोई कसर न छोड़ी -
ताकत की पुड़िया है 
मेरी ए गुड़िया 
छोटे छोटे पाँव 
और छोटे से हाथ 
लेकर मैं उसको जब चूमूँ 
छूती कभी गाल, कभी बाल 
कभी बिन्दी और नाक
छुप के छुपा के रहना सिखाई 
जैसे हीरे को बन्द कर डिबिया
ताकत की पुड़िया है 
मेरी ए गुड़िया 
गले लगती खिलखिला के
हँसी उसकी खूबियाँ 
ताकत की पुड़िया है 
मेरी ये गुड़िया
अब वो हुई पराई 
अकेली हूँ साथ तन्हाई
बीते हुए लम्हों की याद बहुत आई
चली अपने घर, साथ में जमाई 
सदा खुश रहना अपनी शहरिया
ताकत की पुड़िया है 
मेरी ये गुड़िया ।

वहीं वीणाश्री हेम्ब्रम जो कवयित्री होने के साथ-साथ अनेक सामाजिक संघठनों से भी जुड़ी हैं, ने अपनी बेटी की रुनझुन सी झंकार सुनी कुछ इस तरह से -
रुनझुन सी झंकार लिए
गुड़ियों की भांति इठलाती
घर आँगन आबाद किए
ममत्व जहां में फैलाती
शक्ति है वो स्रष्टा भी
विपत्तियों में दुर्गा भी!

डॉ. पूनम देवा ने हर दिन बेटी का सम्मान किया है और करती रहेंगी -
 मान हैं, अभिमान है
बेटियां ‌दो,दो घरों की 
पहचान ‌हैं ।
एक  हीं दिन क्यूं हो ? 
हर दिन उनका
सम्मान  है।

वहीं ज्योति मिश्रा. कुंडलियां छंद में बेटी को हर जगह आगे बढ़ाती दिखीं -
01
छू लूं चंदा आज मैं, मां तुम देना साथ 
मुट्ठी में आकाश हो, तारे अपने हाथ 
तारे अपने हाथ,  बनी तुम मेरी  सीढी
बेटी है मुस्कान, खिलेगी अगली पीढी 
तेरा सपना पाल, ऑख अपनी मैं खोलूं 
सब पूरा हो  आज,  कहो जो  चंदा छू लूं   !
02
बेटी की मुस्कान से, मात  खिली है आज
कर पाई  यदि मैं नहीं, तुम पर  होगा  नाज 
तुम पर होगा नाज,  आसमां को तू छू ले 
बनूं सहारा नाथ,  हाथ में चंदा  झूले 
बेटों देखो आज,  कम नहीं  हैं  ये चेटी 
खेल -कूद  मैदान , हर जगह  आगे बेटी

प्रभास   ने वर्ण पिरामिड में बेटियों के सद्गुणों को ढाला -
                मैं     है
             बेटी     बेटी
           सौम्य     निडर
         सुशील     नीरजा
       सकुशल     अभिमान
   स्वाभिमानी    प्रतिभावान
सबकी चहेती     स्व आत्मनिर्भर
    
शशि शर्मा 'खुशी'  ने बेटियों को सांसों का तरन्नुम और लबों का तबस्सुम बताया -
हृदय की धड़कन, सांसों की तरन्नुम है बेटियाँ
घर की किलकारी, लबों का तब्बसुम है बेटियाँ
जो घर-आँगन आबाद है बेटियों के आगमन से
उस घर की सुख समृद्धि का हसीं संगम है बेटियाँ।

अभिलाषा सिंह ने भगवतियों को पूजने की बजाय बेटियों में ही उनके दर्शन कर लिए -
दुर्गा, लक्ष्मी, सरस्वती
तीनों ही तुझमें बसती हैं
तू क्योंकर इनको पूजे
ये खुद कर्मों में तेरे सजती हैं।
है शक्तिस्वरूपा देवी तू
सबकुछ कर सकने में सक्षम
मनोबल कभी कम हो पाए नहीं
मैं संग तुम्हारे हूँ हरदम।
               
मधुरेश नारायण सस्वर पाठ करनेवाले एक संवेदनशील गीतकार हैं. उन्होंने तो पूरा बिटिया-पुराण ही रच डाला -
मेरी प्यारी बिटिया
बेटे तो बेटे हैं पर बिटिया उनसे कहाँ कम है
जिस घर में बिटिया हो फिर काहे का गम है
वंश बढ़े यह सोच कर बेटे की ही कामना करते 
बिन बिटिया वंश कैसे बढे, उसकी अवमानना करते
बेटा-बेटी दो आँखें हमारी बात न हम यह भूलने पाएं
बेटा कहने पर गर्व हो जितना न बेटी कहने में शरमाये
कंधे से कंधा मिला कर हर तरफ बिटिया नजर आती 
अंतरिक्ष हो या विमान उड़ाना बिटिया कहाँ पीछे रहती
अंदर बाहर की जिम्मेदारी बराबर से बिटिया निभाती
माँ बनने का सौभाग्य धरा पर बिटियाँ ही है पाती 
भगवान भी अवतार लेते है,माँ के आंचल में खेलने को
माँ पर आई मुसीबत को अपने पर लेकर झेलने को
वह बिटिया ही तो है जो पहले बहन, पत्नी, माँ रही
हर रूप को जीने में न जाने कितनी तकलीफे है सही
कितना बखान करूँ बिटिया की गुणवती होने की यहाँ
कितने खंड लग जाएंगे, बिटिया-पुराण लिखने में यहां।

शायरा शाइस्ता अंजुम ने बेटियों को दरख्तों के साये में धूप झेलते पाया -           
जहां दरख्तों के साये में
धूप लगती है,
वहीं तो संघर्ष की 
कली खिलती है
वहीं पर
खिल उठती है बेटियाँ।

इस तरह से हमें महसूस होता है कि बेटियाँ अपने-आप में एक सृष्टि हैं और सम्पूर्ण जगत उन्हीं के दम पर चल रहा है। नि:संदेह बेटों का भी अपना महत्व है लेकिन महिलाओं के विविध रूपों में सहायता लिये बिना वे कुछ भी नहीं कर सकते।
......


संयोजिका - विभा रानी श्रीवास्तव
संयोजिका का ईमेल - vrani.shrivastava@gmail.com
प्रस्तुति - हेमन्त दास 'हिम'
प्रतिक्रिया हेतु ईमेल - editorbejodindia@yahoo.com

फाइल फोटो 

Monday, 23 September 2019

मंत्रिमंडल सचिवालय द्वारा आयोजित 'प्रभात' एवं 'दिनकर' की जयंती पर,संगोष्ठी और कवि गोष्ठी 23.9.2019 को पटना में सम्पन्न

"स्वाधीन भावना को समर्पित थी दिनकर की कविताएँ"

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मंत्रिमंडल सचिवालय (राजभाषा) विभाग द्वारा आयोजित केदारनाथ मिश्र प्रभात एवं रामधारी सिंह दिनकर की जयंती पर, उनकी कविताओं का राष्ट्रीय पक्ष विषय पर व्याख्यान और कवि गोष्ठी का आयोजन बिहार राज्य अभिलेख भवन सभागार, पटना में सम्पन्न हुआ।

प्रमोद कुमार ने संचालन के क्रम में कहा कि 'प्रभात' की रचनाएं सतत जीवन की उजियाली को दार्शनिकता से रंजित कर यथार्थ बोध के जीवित स्पंदनों से भर देती है - 
"बनो कर्म के लिए कल्पना मेघदीप की मणिमाला!
बनो कर्म के लिए प्रेरणा, बनो चेतना की ज्वाला!"

युवा साहित्यकार ऋषिकेश मिश्रा ने कहा कि - "केदारनाथ जी ने कैकयी जैसी उपेक्षित पात्र को सकारात्मक दृष्टि दिया है।" जबकि कुमार गौरव का कहना था कि-"दिनकर ने अपना पूरा जीवन साहित्य में तपाया है। प्रकृतिवादी और मानवतावादी कवि के रूप में पहचाने जाते हैं दिनकर। दिनकर जी अपने समय के सूर्य थे। दिनकर ऐसे इन्द्रधनुष हैं, जिनपर अंगारे भी जलते हैं।"

रेल स्टेशन प्रबंधक निलेश कुमार ने कहा कि-"न मैं वक्ता हूं, न विद्वान हूं। लेकिन फिर भी कहना चाहूंगा कि एक ही विचार दुहराने के अपेक्षा, इन बातों पर विमर्श किया जाए कि दिनकर ही राष्ट्रकवि क्यों? दूसरा क्यों नहीं? दिनकर बचपन से ही विद्रोही थे। केवल एक दिन नहीं सालों भर दिनकर को सम्मान दीजिए। हमने ऐसा ही प्रयास किया है, अपने स्टेशन पटना जं. पर। पटना जंक्शन के बाहर दीवार पर दिनकर की छवि और उनकी काव्य पंक्तियां देखी जा सकती है।"

डॉ. हरज़ान ने कहा कि - "नवयुग की गाथा कह गए दिनकर जी। जनजागरण का जयघोष कर गए दिनकर। वीर रस से ओतप्रोत और देश के स्वाधीन भावना को समर्पित थी दिनकर की कविताएँ।"

विजय कुमार शांडिल्य ने कहा कि -"प्रभात जी हिन्दी काव्य के विभूति थे। आग अंबर में लगाना जानते थे वे।" दूसरी तरफ, शिववंश पांडेय ने कहा कि- "सरकारी भय से बचने के लिए वे छायावाद की ओर मुड़ गए थे और देश की आजादी के बाद प्रभात जी फिर राष्ट्रीय भावना की ओर मुड़ गए।"

राम उपदेश सिंह 'विदेह' ने पहले अपने ही कृतित्वों पर चर्चा की। कुछ देर बाद अपने विषय पर लौटते हुए उन्होंने कहा - "दिनकर की कविताओं को पढ़ते हुए मेरे भीतर कवितापन आया। सच यह भी है कि साहित्य तो राजनीति को शुद्ध नहीं कर पाया, लेकिन राजनीति ने साहित्य को दुषित जरूर कर दिया है।

दिनकर का साहित्य इतना विस्तृत है कि उन पर त्वरित चर्चा संभव नहीं। दिनकर सरकार के विरोध में भी कविताएं लिखा लेकिन अपने नाम से नहीं बल्कि अपने छद्म नाम 'अमिताभ' नाम से। राष्ट्रीय चेतना की एक सशक्त कविता "कलम आज उनकी जय बोल!" सर्वाधिक लोकप्रिय रही है।

दिनकर की काव्य पंक्तियां और अपनी काव्य पंक्तियां प्रस्तुत करते हुए 'विदेह' जी  यह प्रमाणित करना चाह रहे थे कि, दिनकर, हरिवंशराय बच्चन और मेरी कविताओं में कितनी समानता है!!

समारोह के बीच में, केदारनाथ प्रभात के पुत्र और पुत्रवधू, मोहन और नम्रता को साल ओढ़ा कर सम्मानित भी किया गया। उन्होंने कहा कि दिनकर और मेरे ससुर प्रभात जी, एक ही मुहल्ले में रहते थे। दोनों को एक साथ नमन किया जाना सुखद अनुभव है। "

कवि गोष्ठी के पूर्व अपने अध्यक्षीय उद्बबोधन में सत्यनारायण जी ने कहा कि - "दिनकर जी अपने समय के अर्धनारीश्वर कवि थे। उन्होंने कुरुक्षेत्र से उर्वशी तक की काव्य रचना किया। दिनकर आशा और विश्वास के कवि थे। उनकी काव्य दृष्टि में कलात्मकता सहज रूप से दिख पड़ता है। अपने समकालीनों से अलग थे दिनकर। बावजूद युवा कवियों ने उनकी कविताओं से प्रेरणा लेते रहें हैं।

चेतना के शिखर पर नंगे पांव चलना क्या होता है, यह प्रभात की कविताओं में देखा जा सकता है। साहित्य के क्षेत्र में, बिहार को अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर पहचान दिलाने में, रामधारी सिंह दिनकर की रचनाशीलता की अहम भूमिका रही है। हरिवंशराय बच्चन ने आत्मकथा चार खंडों में लिखा है, वह उपन्यास से भी रोचक है। अविस्मरणीय है। उसी तरह "शुद्ध कविता की खोज" जैसा लेख लिखा है दिनकर ने,  वह भी चमत्कृत करने जैसा हो। उनका गद्ध लेखन भी कहीं से कमतर नहीं है।

आमंत्रित कवियों में , कविता का आरंभ कवयित्री मनोरमा कुमारी से हुआ - 
"मैंने सबको नाच नचाया 
मैं कैसा हूं / मैं पैसा हूं!"

कुमारी सरस्वती की गजल भी खूब रही -
"मन का मिलना- मिलाना मुझे आ गया! 
दिल किसी से लगाना मुझे आ गया 
कैसी हालत मेरी, इश्क में हो गई 
गम में भी मुस्कुराना मुझे आ गया!"

पत्रकार हृदयनारायण झा की कविता थी -
"भारत में आकर फिर से लोगों को जगाओ बापू!! "

कवयित्री रानी श्रीवास्तव की कविता, पौराणिक कथाओं पर आधारित थी-
"अनंत काल से चली आ रही तुम्हारे पुरुषत्व की चुनौती नहीं देती मैं! 
और पांडवों की एकता का प्रतीक बनाई गई द्रोपदी!"

इस साहित्यिक समारोह में मधुरेश नारायण, विजय प्रकाश, घनश्याम, सिद्धेश्वर, लताप्रासर, ओम प्रकाश, सविता मिश्र माधवी, कमला प्रसाद, डॉ. अर्चना त्रिपाठी, पूनम श्रेयसी आदि साहित्यकारों की भी उपस्थिति रही।

समारोह के अंत में, लाल बाबू पासवान ने सभी साहित्यकारों और श्रोताओं की भीड के प्रति कृतज्ञता प्रकट करते हुए धन्यवाद दिया। 
......

आलेख - सिद्धेश्वर 
छायाचित्र - सिद्धेश्वर
प्रतिक्रिया हेतु ईमेल - editorbejodindia@yahoo.com










चाणक्य स्कूल आफ पालिटिकल राईट्स एण्ड रिसर्च के द्वारा "हिन्दी साहित्य और राजनीति" विषय पर परिचर्चा और गोष्ठी दि.22.9.2019 को पटना में सम्पन्न

सहित्य का राजनीति से प्रभावित होना एक खतरनाक संकेत

(मुख्य पेज पर जायें- bejodindia.blogspot.com / हर 12 घंटे पर देखते रहें - FB+ Watch Bejod India)



हिन्दी पखवाड़ा के तहत, चाणक्य स्कूल आफ पालिटिकल राईट्स एण्ड रिसर्च (पटना) के तत्वावधान में "हिन्दी साहित्य और राजनीति" विषय पर परिचर्चा, कवि गोष्ठी और सम्मान समारोह का आयोजन किया। बिहार इंडस्ट्रीज एसोसिएशन पटना के सभागार में आयोजित इस कार्यक्रम के मुख्य अतिथि नालंदा खुला विश्वविद्यालय के कुलपति रासबिहारी प्रसाद सहित पत्रकारिता, कला आदि के क्षेत्र में पांच गणमान्य व्यक्तियों - राम उपदेश सिंह विदेह, नृपेन्द्रनाथ गुप्त, कृष्ण प्रसाद सिंह केसरी, बांके बिहारी सिंह और कुमार जितेन्द्र ज्योति को सम्मानित किया गया।

हिंदी साहित्य और राजनीति विषयक संगोष्ठी में विभिन्न साहित्यकारों ने अपने - अपने उद्गार व्यक्त किए। आखिर में अनेक कवियों ने अपने काव्य पाठ से श्रोताओं को मंत्रमुग्ध कर दिया। 

"हिंदी के विरोध करने वाले देश की  राष्ट्रीयता की बात नहीं करते, सिर्फ अपनी राजनीति करते हैं! समारोह में स्वागत भाषण करते हुए संस्था के अध्यक्ष सुनील कुमार सिंह ने इन बातों को  कहा। 

मुख्य अतिथि नालंदा विश्वविद्यालय के कुलपति रास बिहारी प्रसाद ने कहा कि "हमारे एक पूर्व प्रधानमंत्री ने हिंदी को विश्व स्तर पर पहुंचाकर, इसे ग्लोबल का रुप दिया। अंग्रेजी के बजाय स्थानीय भाषा को अंगीकार करना चाहिए। हम खुद हिंदी को उपेक्षित कर रहे हैं। आखिर वह कौन सा कारण है कि हम विश्वविद्यालय के स्तर पर भी, हिंदी की बजाए अंग्रेजी भाषा का चुनाव करते हैं? इन बातों पर चिंतन-मनन करने की आवश्यकता है।"

बिहार राज्य सूचना आयुक्त  ने कहा कि शिक्षा का उद्देश्य रोजगार के लिए है। और रोजगार में अंग्रेजी जानने वालों को ही प्राथमिकता मिलती है। ऐसे में  छात्र  हिंदी के प्रति लगाव क्यों रखेगा? 

विशिष्ट अतिथि  सिद्धेश्वर ने कहा कि राजनीति और साहित्य पर अलग-अलग विचार किया जाना चाहिए। जिनके कंधे पर देश बदलने की जिम्मेदारी दी गई है वे खुद ही नहीं बदल रहे हैं तो देश कैसे बदलेगा? यह भी साहित्य का विषय है। 

उन्होंने कहा कि  हमारे नेता, सरकारी अधिकारी और कर्मचारी भष्टाचार के आकंठ में डूबे हुए हैं। ऐसे में स्वच्छ प्रशासन की बात बेमानी है। जब राजनीति अपने रास्ते से भटकती है, साहित्य उसे संभाल लेता है। । किंतु राजनीति आज इतनी दलदल में फंस गई है कि लगता है साहित्य ही राजनीति के दलदल में फंसता जा रहा है। सहित्य ही  राजनीति से प्रभावित होने लगी है जो खतरनाक समय का संकेत है। 

इसके बाद एक कवि गोष्ठी भी चली जिसमें कवियों ने अपनी-अपनी रचनाएँ सुनाईं-

कवयित्री आराधना प्रसाद ने सस्वर एक गजल का पाठ किया -
"मौत  को भी मार आई जिंदगी
जिंदगी भर डगमगाई जिंदगी!"

आचार्य विजय गुंजन ने दो नवगीत का पाठ किया -
 "जज्बातों को समझना अगर होता आसान और 
 हिंदी की छोटी बहन, उर्दू है कमसिन 
 "अपने ही घर में है देखो, रानी पड़ी उदास रे 
ऊंचा पद, ऊंचा सिंहासन और मिले सम्मान, उसे खास रे!" 

कवि प्रणय कुमार सिन्हा ने मां के  संदर्भ में काव्य पाठ किया -
"मां मृत्यु तुम्हें कैसे आई? 
मां, तुम तो अब तक मुझमें जीवित हो!" 

पत्रकार कवि प्रभात कुमार धवन की कविता थी -
"अपनी पीड़ाओं के बीच अकेली रहती हैं मां
जो मां सबकी चिंता. करती है 
उनके करीब आने से क्यो भागते हैं लोग? 
रिश्तों की लम्बाई क्यों छोटी पड़ गई, मां? 
    
सुनील की गजल थी -
"मैंने एक सपना देखा है यारों
 आफताब को भी डूबते देखा है यारों! "
   
चंद्र प्रकाश महतो ने कविता सुनाई-
"मां !कौन तुम्हारे कोख की लाज रखे समझ नहीं आता 
अपना दुःख दर्द किससे कहें  
सभी तो नजर आते हैं बेगाने " 
      
 अर्जुन कुमार गुप्ता ने कहा - 
"तू मेरी मुरली की धून 
 मैं तेरा संगीत प्रिय 
             
 संचालक महोदय ने कहा कि -
"बचने को मेरी कविता से 
वो नदी पार कर जाते हैं।" 
       
अपने अध्यक्षीय उद्बबोधन में  श्याम जी सहाय  ने कहा कि -
"कहीं उर्दू की मारी है 
कहीं अंग्रेजी से हारी है! हिन्दी आज भी बेचारी है!"

सच यही है कि शुद्ध राजनीति के कारण ही  हिन्दी आज भी बेचारी बनी हुई है। 
      
समारोह में मात्र एक महिला कवयित्री आई थीं-आराधना प्रसाद। वे भी अपनी कविता पढ़ी और चली गई। ऐसा दुर्भाग्य है  आज की कविता और कवि गोष्ठी की। समारोह का संचालन अशोक प्रियदर्शी ने किया। 
......

आलेख - सिद्धेश्वर
छायाचित्र - सिद्धेश्वर
प्रतिक्रिया हेतु ईमेल - editorbejodindia@yahoo.com