बिहारी धमाका / بہاری دھماکا - A blog in English, हिन्दी, اردو, मैथिली, भोजपुरी, मगही, अंगिका and बज्जिका. / Contact us at editorbejodindia@gmail.com (IT'S LINKS CAN NOT BE SHARED ON FACEBOOK but CAN BE SHARED IN WHATSAPP, TWITTER etc.) (For full view, open the blog in web/desktop version by clicking on the option given at the bottom.)
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# DAILY QUOTE # -"हर भले आदमी की एक रेल होती है/ जो माँ के घर तक जाती है/ सीटी बजाती हुई / धुआँ उड़ाती हुई"/ Every good man has a rail / Which goes to his mother / Blowing wistles / Making smokes [– आलोक धन्वा, विख्यात कवि की एक पूर्ण कविता / A full poem by Alok Dhanwa, Renowned poet]
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Friday, 12 July 2019
मुंशी प्रेमचंद लिखित "दिल की रानी" और रंगमार्च द्वारा उसका 27.6.2019 को पटना में मंचन
Friday, 5 July 2019
साहित्य परिक्रमा तथा व. ना. साहित्यकार मंच द्वारा पटना में 4.7.2019 को कवि गोष्ठी सम्पन्न
सुपौल और सिलचर के साहोत्यकारों ने भी भाग किया
"गुलशन गुलशन खार दिखाई देता है
मौसम कुछ बीमार दिखाई देता है"
मौसम बरसात का यूँ तो बहुत सुहावना होता है लेकिन अक्सर कवियों को गुलशन की हरियाली में खार भी नजर आने लगते हैं. इस बहुरंगी मौसम में कवियों की रचनाएँ भी विविध स्वरूप लेकर बाहर आती हैं.
दिनांक 4.7.2019 को साहित्य परिक्रमा तथा वरिष्ठ नागरिक साहित्यकार मंच,पटना के संयुक्त तत्वावधान में मधुरेश नारायण जी के गोबिंद इंक्लैव अपार्टमेंट, चांदमारी रोड, पटना स्थित आवास पर एक काव्य गोष्ठी का आयोजन किया गया.
गज़लकार प्रेम किरण ने अपने जोशीले अंदाज में इन्सान की नाकामियों पर सवाल उठाया-
कर सकेगा वो हमें बर्बाद क्या
हम हुए भी हैं कभी आबाद क्या?
कोई मैंना है न बुलबुल शाख पर
बागबां भी हो गए सैय्याद क्या?
मधुरेश शरण ने शाम को अपने इष्ट को लौटाने को कहा -
जाओ कहीं दूर मगर लौट के आ जाओ.
डॉ. किशोर सिन्हा ने हसरतों का नई तस्वीर खींची -
हसरतें हरी घास बन कर उगती है आस पास.
घनश्याम ने गुलशन में आजकल सिर्फ ख़ार ही ख़ार दिख रहे हैं -
गुलशन गुलशन खार दिखाई देता है
मौसम कुछ बीमार दिखाई देता है
जाने कैसी हवा चली है जहरीली
जीना अब दुश्वार दिखाई देता है
आगजनी, पथराव, धमाके, खूंरेजी
आतंकित घर-बार दिखाई देता है
विध्वंशक हो गई समय की गतिविधियाँ
संकट में संसार दिखाई देता है.
हास्य कवि विश्वनाथ प्रसाद वर्मा ने दाँव-पेंच की बात की -
दाँव पेंच खूब जानते हो
रात दिन डींग़े हाँकते हो.
सिलचर से पधारे चितरंजन भारती ने पक्षधर होने पर भी लाभ न पाने का दृश्य रखा -
हम साधारण जन
पक्षधर होकर भी क्या मिला?
सुपौल से आये हुए योगेन्द्र हीरा ले अपने मकान की नींव कहाँ पर डालिए, देखिए -
मेरी भी कल्पना थी मकान की
लेकिन नींव ली भावना की कब्र पर.
कुशल संचालन कर रहे सिद्धेश्वर ने खुद से सवाल किया -
मंदिर हो, मस्जिद हो, गुरुद्वारा ऐ सिद्धेश
तूने कहीं भी सर को झुकाया नहीं है क्या?
हरेन्द्र सिन्हा ने बरसात में वसंत की बहार ला दी -
तुम क्या मिले हर पल मेरा जीवन्त हो गया
देखो सनम मौसम हसीं वसन्त हो गया
कोई शकुन्तला तो कोई दुष्यंत हो गया.
शायर शुभचन्द्र सिन्हा पर सितम ही सितम हो रहे हैं -
इक तेरे ख्यालों के सितम हैं बेशुमार
उस पर तेरे न आने के बहाने हैं बहुत.
इनके अतिरिक्त विभारानी श्रीवास्तव, लता प्रासर और शशिकान्त श्रीवास्तव की कविताएँ भी पसंद की गईं.
अंत में गोष्ठी के अध्यक्ष भगवती प्रसाद द्विवेदी ने पढ़ी गई रचनाओं पर अपनी संक्षिप्त टिप्पणी करने के बाद अपनी कविता में सफलता पाकर जड़ को भूल जानेवालों को याद किया -
कहाँ गए वो लोग / वो बातें उजालों से भरी
कामयाब जो हुए / उड़नछू होते चले गए.
छायाचित्र - सिद्धेश्वर
लेखक का ईमेल आईडी - sidheshwarpoet.arat@gmail.com
Wednesday, 3 July 2019
ये पब्लिक इस्कूल या कि सोने के अंडे हैं / हरिनारायण सिंह 'हरि' के दो गीत
(मुख्य पेज पर जायें- bejodindia.blogspot.com / हर 12 घंटे पर देखते रहें - FB+ Watch Bejod India)
Tuesday, 2 July 2019
आगमन और भा.यु.सा.प.के संयुक्त तत्वावधान में पटना में 29.6.2019 को आयोजित कवि गोष्ठी सम्पन्न

Monday, 1 July 2019
"दूसरा शनिवार" की मासिक गोष्ठी लंबे अंतराल के बाद 29.6.2019 को पटना में फिर आरम्भ

छायाचित्र - दूसरा शनिवार
लेखक का साइट - http://aksharchhaya.blogspot.com/
प्रतिक्रिया हेतु ईमेल आईडी - editorbejodindia@yahoo.com