कविताएँ
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1.
मदार के उजले फूलों की तरह
तुम आई हो कूड़ेदान भरे मेरे इस जीवन में
तितलियों, भौरों जैसा उमड़ता
सूंघता रहता हूं तुम्हारी त्वचा से उठती गंध
तुम्हारे स्पर्श से उभरती चाहतों की कोमलता
तुम्हारी पनीली आंखों में छाया पोखरे का फैलाव
तुम्हारी आवाज की गूंज में चूते हैं मेरे अंदर के महुए
जब भी बहती है अप्रैल की सुबह में धीमी हवा
डुलती है चांदनी की हरी पत्तियां अपने धवल फूलों के साथ
मचलता हूं घड़ी दो घड़ी के लिए भी
बनी रहे हमारी सन्निकटता
2.
बभनी पहाड़ी के माथे पर उगा
संजीवनी बूटी हूं मैं
जो तप रहा हूं मई के जलते अंगारों से
जीवित हूं यह उम्मीद लगाए
कि तुम आओगी बारिश की मेघ- मालाओं के साथ
बस एक छुअन से हरा हो जाएगा
बस एक छुअन से हरा हो जाएगा
झुलस चुकी मेरी देह की यह काया
3.
चूल्हे की राख-सा नीला पड़ गया है मेरे मन का आकाश
तभी तुम झम से आती हो
जलकुंभी के नीले फूलों जैसी खिली- खिली
तुम्हें देखकर पिघलने लगती हैं
दुनिया की कठोरता से सिकुड़े
मेरे सपनों के हिमखंड
4.
शगुन की पीली साड़ी में लिपटी
तुम देखी थी पहली बार
जैसे बसंत बहार की टहनियों में भर गए हों फूल
सरसों के फूलों से छा गए हो खेत
भर गई हो बगिया लिली- पुष्पों से
कनेर की लचकती डालियां डुल रही हों धीमी
तुम्हें देखकर पीला रंग उतरता गया
आंखों के सहारे मेरी आत्मा के गह्वर में
समय के इस मोड़ पर नदी किनारे खड़ा एक जड़ वृक्ष हूं मैं
तुम कुदरुन की लताओं- सी चढ़ गई हो पुलुई पात पर
हवा के झोंकों से गतिमान है तुम्हारे अंग- प्रत्यंग
तुम्हारे स्पर्श से थिरकता है मेरा निष्कलुश उद्वेग
5.
दीए की मद्धिम लौ में पारा
काजल लगाती हो जब आंखों की बरौनिओं में
काले रंग से चमक जाता है तुम्हारा चेहरा
जिसके बीच जोहता हूं मीठे सपने
आशंकाओं के घने अंधकार में भी
दिख जाती है फांक भर मुझे रोशनी की लकीरें
जिसके सहारे निर्विघ्न चल देता हूं जिंदगी की हर जंग में
6.
भोर का उगता सूरज
गुलाब की खुलती पंखुड़ियां
स्थिर हो गई हैं तुम्हारे होठों की लाली पर
जिसके आगे फीके हैं अबीर - गुलाल के रंग
चकाचौंध से भरे बाजार की नकली उत्पादों के बरअक्स
हमने अपने हिस्से में बचा कर रखी है
यह अद्भुत नैसर्गिकता !
7.
इंद्रधनुष के रंग युग्मों -सी
घुल गई हो तुम मेरे संग
आंचल की किनारी से चलाती हो जब
सहलाती हो जब मेरे टभकते घावों को
घिर आता हूं मीठे सपनों की
बारिश की झड़ी में..!
ग़ज़ल
कोहरे से झांकता हुआ आया
मांगी थी रोशनी ये क्या आया
सूर्य रथ पर सवार था कोई
उसके आते ही जलजला आया
घोंसले पंछियों के फिर उजड़े
फिर कहीं से बहेलिया आया
दूर अब भी बहार आँखों से
दरमियाँ बस ये फ़ासला आया
काकी की रेत में भूली बटुली
मेघ गरजा तो जल बहा आया
जो गया था उधर उम्मीदों से
उसका चेहरा बुझा बुझा आया
बागों में शोख तितलियां भी थीं
पर नहीं फूल का पता आया.
....
कवि - लक्ष्मीकांत मुकुल
प्रतिक्रिया हेतु ईमेल - editorbejodindia@yahoo.com
________परिचय
लक्ष्मीकांत मुकुल
जन्म – 08 जनवरी 1973
शिक्षा – विधि स्नातक
संप्रति - स्वतंत्र लेखन / सामाजिक कार्य ।किसान कवि/मौन प्रतिरोध का कवि.
कवितायें एवं आलेख विभिन्न पत्र – पत्रिकाओं में प्रकाशित .
पुष्पांजलि प्रकाशन ,दिल्ली से कविता संकलन “लाल चोंच वाले पंछी’’ प्रकाशित.
संपर्क :- ग्राम – मैरा, पोस्ट – सैसड, भाया – धनसोई , जिला – रोहतास (बिहार) – 802117
ईमेल – kvimukul12111@gmail.com
मोबाइल नंबर- 6202077236
"अनारकली ऑफ आर" फिल्म की नायिका स्वरा भास्कर |
कवि - लक्ष्मीकांत मुकुल |
"अनारकली ऑफ आरा" के निर्देशक अविनाश दास के साथ |
जी नमस्ते,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल सोमवार(०४ -११ -२०१९ ) को "जिंदगी इन दिनों, जीवन के अंदर, जीवन के बाहर"(चर्चा अंक
३५०९ ) पर भी होगी
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का
महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
आप भी सादर आमंत्रित है
….
अनीता सैनी
आपका हार्दिक आभार हमारा लिंक शेयर करने के लिए. हम जरूर उस पर जाकर देखेंगे और जवाब देंगे. आपके बहमूल्य सहयोग हेतु पुन: आभार!
Deleteलाजवाब कृतियाँ ।
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