होली में नशा का क्या कहना /  साली को कहे घरवाली और घरवाली को बहना 
( बिहार दिवस - 22  मार्च पर भागवतशरण झा 'अनिमेष' की विशेष कविता पढ़िए - यहाँ क्लिक कीजिए ) 
भारतीय युवा साहित्यकार परिषद् और स्टेशन राजभाषा कार्यान्वयन समिति के संयुक्त तत्वावधान में राजेन्द्र नगर टर्मिनल स्थित रामवृक्ष बेनीपुरी पुस्तकालय में होली मिलन काव्योत्सव का आयोजन किया गया.काव्योत्सव की अध्यक्षता जाने माने शायर रमेश कंवल ने की. संचालन कवि, कथाकार और चित्रकार सिद्धेश्वर ने किया. इस अवसर पर पूर्व मध्य रेलवे दानापुर के राजभाषा अधिकारी राजमणि मिश्र ने मुख्य अतिथि के रूप में आयोजन का शुभारंभ होली पर अपने संस्मरणात्मक ललित निबंध के पाठ से किया.
रंगों से खेलती हैं जाग रहीं संवेदना
जोशीले गीत लिखती हैं ये कल्पनाएँ
होली में नशा का क्या कहना 
  साली को कहे घरवाली और घरवाली को बहना 
(सिद्धेश्वर प्रसाद)
हौले हौले चुपके चुपके है ये किसकी आहट
खिड़की से बाहर झांका तो खड़ी मिली फगुनाहट 
(-मधुरेश नारायण)
फागुन ने तन को छुआ मन में उठी उमंग 
पुलकित होकर झूमने लगा अंग प्रत्यंग 
(-घनश्याम) 
होली की उमंग है बाजे मिरदंग है 
मौसम के यौवन पर चढ़ गया रंग है 
(-एम. के. मधु)
हर शिकवे गिले मिटाकर लग जाओ गले कि  आज होली है 
ज़ुज्फें अपनी बिखराकर आ जाओ कि आज होली है 
(-शमा कौसार शमा)
काँटों को भी अबीर लगाती हुई गली
उड़ता हुआ गुलाल फिजां में गली गली 
हर सम्त नाचती हुई मस्तों की मंडली 
(-मो. नसीम अख्तर)
होली के अवसर पर शुभकामनायें लीजिए 
मेरी और पंक्तियाँ चाँद लिजीये 
(-जयंत)
कैसे मनाऊँ अब के बरस अब मैं होली 
भले जवानी में सज धज कर खेली सपनों की होली 
वहीं आतंकी सरहद पर खून की खेलें होली 
(-अर्चना त्रिपाठी)
महबूब की याद में भटकते क्यों 
फंदे गले में डाल  के लटकते क्यों 
मोहब्बत किया तो क्या होश नहीं था
अपने सर को शिला पर पटकते क्यों 
(- श्रीकांत व्यास)
कौन रिश्ता वफ़ा निभाता है 
आजमाते हैं तो रुलाता है 
मरकजज़े- दिल रहे वहीं कायम 
मौत तक साथ जो निभाता है 
(- सुनील कुमार)
होली की बहारें आई हैं 
मस्ती की फुहारें लाई हैं
फागुन का महीना नस नस में 
शालीनता ने तोड़ी कसमें 
(-रमेश कँवल)
काव्य गोष्ठी में कवयित्री लता प्रासर, डा.अर्चना त्रिपाठी, शमा कौसर, शायर सुनील कुमार, नसीम अख़्तर, जयंत कुमार, श्रीकांत व्यास, डा.एम.के.मधु, मधुरेश नारायण, रमेश कंवल और सिद्धेश्वर के अलावा घनश्याम ने  भी काव्य पाठ किया.इस अवसर पर उर्दू एकेडमी, पटना के सचिव परवेज़ आलम ने होली के उपलक्ष्य में अपना उद्गार व्यक्त करते हुए उपस्थित कवियों और शायरों को अपनी शुभकामनाएं अर्पित की. धन्यवाद ज्ञापन नसीम अख्तर ने किया.
काव्य गोष्ठी में कवियों और शायरों ने होली पर आधारित रचनाओं का पाठ कर वातावरण को सरस और रंगीन बना दिया. गोष्ठी का समापन उपस्थित लोगों ने एक दूसरे को गले लगाकर और चेहरे पर गुलाल लगाकर किया। 
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आलेख -  घनश्याम /  सिद्धेश्वर 
छायाचित्र - भारतीय युवा साहित्यकार परिषद
संयोजन और प्रस्तुति - हेमन्त दास 'हिम'
प्रतिक्रिया हेतु ईमेल आईडी - editorbejodindia@yahoo.com
होली के अवसर पर एक पूरी ग़ज़ल  - 
गाल पर मल दो कभी भी रंग होली में
है नहीं छूना मनाही अंग होली में
खीर पूड़ी मालपूआ का मजा दूना
आप जब खाते मिलाकर भंग होली में
कस कमर फौलाद कर लो देह होली में
वाह क्या होती सुहानी जंग होली में
फाड़ते हैं लोग कुर्ता पायजामा भी
क्या कभी देखा नहीं हुड़दंग होली में
यार तुम बचना सँभल कर रंग को मलना
भाभियाँ करती बहुत ही तंग होली में
लोग तुमको प्यार आदर मान भी देंगे
प्यार का जब तुम बहाते गंग होली में
...
(कवि - अवधेश कुमार आशुतोष)
avadheshkumar973@gmail.com
इस होली ग़ज़ल में मात्रा अनुक्रम-  2122  2122 2122 2
   
 
सबों को होली की हार्दिक शुभकामनाएं!
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