साठ दिनों में सरकारी खर्चे पर ऊर्दू सिखानेवाले जादूगर
(इस कार्यक्रम से जुड़े सारे लोग कृपया नीचे दिया गया नोट अवश्य पढें)
क्या आपने कभी एक ही राज्य सरकार के अंतर्गत कार्यरत भारतीय प्रशासनिक सेवा (आई.ए.एस.) के उच्च अधिकारी, आरक्षी (कॉन्स्टेबल) और लिपिक को एक साथ कुर्सी पर बैठकर
बिल्कुल एक समान कोई कक्षा में प्रशिक्षण लेते देखा है? .. और
वह भी बिल्कुल अपनी मर्जी से बिना किसी प्रकार
की सरकारी आदेश की बाध्यता के?? तो
जनाब, जान लीजिए ये नजारा आपको देखने को मिलता है भारत ही नहीं विश्व में सम-भाव का
प्रतिमान स्थापित करनेवाले अद्भुत प्रांत बिहार की राजधानी पटना में. यहाँ अवस्थित उर्दू
निदेशालय की प्रशिक्षणशाला में. कोई जबर्दस्ती नहीं है. जिन्हें मन करे सीखें जिन्हें
नहीं मन करे कक्षा में नामांकन नहीं कराएँ. लेकिन हरदिल अजीज़ मो. नूर आलम जैसे प्रशिक्षक
और उर्दू निदेशालय के प्रतिबद्ध निदेशक इम्तियाज क़रीमी साहब का जज़्बा है कि बिहार सरकार
के कर्मचारियों, शिक्षकों और अन्य नागरिकों
को इन कक्षाओं में खींच लाता है.
जिन्होंने
पूरी ज़िंदगी अब तक अलिफ,बे,पे... (उर्दू के शुरुआती
अक्षर) नहीं पढ़े आज वो पचास से अधिक उम्र में
इन गुणी प्रशिक्षकों के कमाल से धड़ाधड़ उर्दू
के अखबार पढ़ने लगे हैं. महज साठ दोनों में एक भाषा के निरक्षरों को उसके माध्यमिक स्तर
तक का पारंगत बना देना एक जादू नहीं तो और क्या है! बिहार सरकार भी कम नहीं है अपनी
दूसरी राजभाषा उर्दू का प्रचार प्रसार करने वाले इस कदम में. कोई शुल्क नहीं, कोई
कागजी अर्हता नहीं. बस आइये और नामांकन कराइये. कुछ दिन पढ़ लेने के बाद मुफ्त में क़िताबें
भी मिलती हैं. उर्दू सीखने हेतु सच्चे प्रशिक्षुकों को चाय और
नाश्ते का भी प्रबंध है प्रतिदिन और वो भी बिना किसी शुल्क के.
पिछले बैच में प्रशिक्षण
लेने वालों में नामचीन लेखक नीलांशु रंजन, अत्यंत लोकप्रिय शायर
समीर परिमल आदि रहे हैं और वर्तमान बैच में भी एक से बढ़ के एक हैं. अति लोकप्रिय पुराने फिल्मी गानों को सुनकर उर्दू में लिखवाना और शेरो-शायरी के साथ साथ छोटा-मोटा मुशायरा आयोजित होते रहना इस कक्षा को और भी रोचक बना देता है जिससे इसके छात्र यहाँ समय से पहले पहुँचने को बेताब रहते हैं.
प्रशिक्षक मो. नूर
आलम बताते हैं कि उर्दू सीखने का सबस बड़ा फायदा यह है कि हमें हिंदी का शुद्ध उच्चारण
करने की क्षमता और बढ़ जाती है. तालव्य 'श', दन्त्य 'स' के साथ साथ
हम नुख़्ते का उच्चारण करना भी सीख लेते हैं.
वे आगे बताते हैं कि उर्दू भाषा हिंदी के बिना अधूरी है और उसी प्रकार हिंदी
भाषा में समाविष्ट अभिन्न रूप से प्रचलित अनेक शब्द अरबी-फारसी अर्थात उर्दू के हैं. उर्दू
और हिंदी का चोली दामन का साथ है या यूँ कहें कि उनमें अन्योनाश्रय सम्बंध है. भारतीय गंगा-जमुनी
तहज़ीब के प्रबलीकरण में उर्दू का प्रसार बहुत बड़ी भूमिका अदा कर सकता है.
उर्दू निदेशालय के
निदेशक जनाब इम्तियास करीमी कहते हैं कि हिंदू और मुस्लिम उसी तरह से एक ही संस्कृति
के दो नाम हैं जैसे कि हिंदुस्तानी भाषा को कुछ लोग हिंदी तो कुछ लोग उर्दू के नाम
से जानते हैं जबकि दोनो एक ही भाषा है. जिस
तरह से भारतीय सिनेमा में प्रयुक्त भाषा दरअसल उर्दू होती है लेकिन उसे हिंदी के नाम
से जाना जाता है उसी तरह से भारतीय हिंदू और
मुसलमान दोनो के सामाजिक व्यवहार और
व्यक्तिगत एवं पारिवारिक धारणाएँ बिल्कुल एक समान हैं मात्र एक ही अंतर है कि
एक मंदिर जाता है और दूसरा मस्ज़िद. जब हम हर चीज में समान ही हैं तो फिर लड़ना किस बात
का? क्यों न एक दूसरे में झूठमूठ की कमियाँ बताने
की बजाय हम सभी अपने गौरवशाली देश को इस दुनिया में एक विकसित देश के रूप में तब्दील करने पर
ध्यान दें,
चाहे स्त्री हों या पुरुष, चाहे युवा हों या प्रौढ़ सभी पर्याप्त संख्या में इसमें पूरी रूचि से प्रशिक्षण ले रहे हैं और उर्दू में अपनी व्यक्तिगत प्रगति से संतुष्ट और उत्सहित हैं. निश्चित रूप से उर्दू निदेशालय का उर्दू प्रशिक्षण का यह कार्यक्रम काबिले-तारीफ है जिसकी मुक्तकंठ प्रशंसा की जानी चाहिए.
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आलेख- हेमन्त दास 'हिम' / लता प्रासरछायाचित्र - बिनय कुमार
प्रतिक्रिया हेतु ईमेल आईडी - editorbiharidhamaka@yahoo.com
नोट- इस कक्षा के तमाम स्टाफ और अधिकारी और विद्यार्थी अपने चित्र के साथ अपना परिचय देते हुए कक्षा के बारे में अपने विचार हमें ईमेल से भेजें ऊपर दिये गए ईमेल आइडी पर. उन्हें अवश्य प्रकाशित किया जाएगा.
Aman Raj (manraj52852@gmail.com) -
I am aman raj, age 18 years student of Patna University first year.First of all I thankfull to urdu directorate that they have organised such a fantastic class for Urdu lovers and provided a great teacher, respected Noor Alam Sir.
What a great motivator and trainer also! He gives to us so many knowledge in the easiest form.Initially I thought that Urdu is very hard but Noor sir has make it easy for us and the result is that I can read and write in Urdu.
I will always remain thankful to Sir and the department until unless this world is alive....
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