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Tuesday, 11 September 2018

लेख्य मंजूषा पटना की ओर से अपनी पत्रिका 'साहित्यिक स्पन्दन' का लोकार्पण एवं कवि-गोष्ठी दिल्ली में सम्पन्न

उसकी लम्बी जुबान है शायद/ यानी दौलत की शान है शायद




सांस्कृतिक संस्था 'लेख्य मंजूषा' की पत्रिका 'साहित्यिक स्पंदन' का लोकार्पण भव्य समारोह के बीच दिनांक 8.9.2018 को दिल्ली में इंस्टीट्यूशन आॅफ इंजीनियर्स के सभागार में संपन्न हुआ, स्वागत भाषण संगीता गोविल ने किया. लोकार्पण के बाद एक शानदार, कवि गोष्ठी "समाज-सौगात सौ के जज़्बात " का आयोजन हुआ। जहाँ मुख्य अतिथि के रूप में मौजूद थीं - श्रीमती प्रतिमा चतुर्वेदी, श्रीमती नीलिमा शर्मा, औरश्री मुकेश कुमार सिन्हा.

इनके अलावा लेख्य मंजूषा की अध्यक्ष श्रीमती विभा रानी श्रीवास्तव, साहित्यिक स्पंदन पत्रिका के संपादक मो. नसीम अख्तर एवं अन्य कई बड़े शायरों और कवि-कवयित्रियों ने अपनी ग़ज़लें और कविताएँ पेश कीं.

सुनील कुमार ने लम्बी जुबान रखनेवाओं का गुमान तोड़ दिया-
उसकी लंबी जुबान है शायद
यानी दौलत की शान है शायद
वक़्त करवट यहाँ बदलता है
टूटता हर गुमान है शायद

लेकिन लक्ष्मी माहोर 'लकी' का गुमाँ कायम रहा क्योंकि वह दौलत पर नहीं बल्कि अपने नायाब सनम पर था-
 नहीं होगा कोई भी दूसरा  मेरे सनम जैसा
उतर कर आसमां से  जमीं पर चाँद आया है

इधर चाँदनी से जगमागाती रात में  मो. नसीम अख्तर आँसुओं से फूलों को नम करते रहे- 
फासला रखना बहुत था फिर भी कम रखना पड़ा
अपने उसके दरमयाँ ग़म का भरम रखना पड़ा
थीं अमानत फेंकता कमरे से बाहर किस तरह
आँसुओं से रात भर फूलों को नम रखना पड़ा

मयंक आर्यन श्रीवास्तव को बहुत चिढ़ है वैसे लोगों से साल में एक ही दिन माँ का ख्याल रखते हैं-
एक दिन माँ को देने से क्या फायदा
पूरी उमर माँ को दो तो अलग बात है,
एक दिन की खुशी से है क्या फायदा,
हर खुशी माँ को दो तो अलग बात है
                     
नीतिश तिवारी भी किसी के बारे में चिंतित हैं पर वो माँ की बजाय उनकी कोई बेवफा प्रेमिका है-
मैं तो संभल जाउंगा तेरी बेवफाई के बाद
हैराँ हूँ क्या तेरा होगा मुझसे जुदाई के बाद 

अंत में  श्रीमती पम्मी सिंह ने आये हुए अतिथियों का धन्यवाद ज्ञापण किया और अध्यक्ष की अनुमति से सभा की समाप्ति की घोषणा की.
.......
आलेख- नसीम अख्तर
छायाचित्र- लेख्य मंजूषा 
प्रतिक्रिया या सुझाव हेतु ईमेल- editorbiharidhamaka@yahoo.com
























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