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Friday, 14 September 2018

हम शहरी हो गये - हरिनारायण सिंह हरि रचित गीत (We turned townees - Hindi poem by Harinarayan Singh 'Hari' with poetic English translation)

हम शहरी हो गये / We turned townees 
 कवि- हरिनारायण सिंह 'हरि' / Poet- Harinarayan singh Hari


हम शहरी हो गये कि छूटा प्यारा अपना गाँव 
जड़ से हम तो उखड़ गये ही, फिसले अपने पाँव 
Leaving lovely village we turned townees
Roots apart we are brought to our knees

नहीं गांव की महक यहां है,ना घर का अपनापन
अपने मन जो आये करते, कहां बड़ों का शासन 
घर के आगे नहीं जुटौरा, ना बरगद की छाँव 
हम शहरी हो गये कि छूटा प्यारा अपना गाँव 
No fragrance of village here  nobody shows affinity
Being directionless here we forgot our duty
No gathering near the house missing banyan trees
Roots apart we are brought to our knees

खेती नहीं पथारी अपनी,शिफ्ट-शिफ्ट का चाकर
सच कहता हूं, सब कुछ बदला, मीत, शहर में आकर 
बना मशीनी जीवन अपना, बचा न कुछ भी चाव
हम शहरी हो गये कि छूटा प्यारा अपना गाँव 
No land in village here I work in shifts
Here in city everything took to urban drift
My life is like a machine nothing here to please
Roots apart we are brought to our knees
                                        
बाबा -बाबू -भइया छूटे ,छूट गयी निज भाषा ,
भौतिकता का ताना-बाना, नभचुंबी अभिलाषा 
खुद की कुछ पहचान बची ना,मिले न वैसे भाव 
हम शहरी हो गये कि छूटा प्यारा अपना गाँव 
Far from grandpa, father, brother and our dialect
The world of materialism here too high they expect
Whole identity we lost and respects decrease
Roots apart we are brought to our knees

डंका बजता बीस कोस तक मेरे दादा जी का
मुझको यहां न कोई जाने ,बगल मुहल्ले भी का 
गुमनामी में जीवन बीते,डगमग -डगमग नाव
हम शहरी हो गये कि छूटा प्यारा अपना गाँव 
Awe of grandpa was there up to twenty miles
Here even  coming  across neighbour never smiles
As a staggered boat  anonymous feels unease
Roots apart we are brought to our knees

भीड़ बहुत है यहां, लोग का तांता लगा हुआ है 
सब अपने में मगन -मस्त हैं, मन बिगड़ा -बिगड़ा है 
सब केवल खुद की ही सोचे, केवल अपने दाव 
हम शहरी हो गये कि छूटा प्यारा अपना गाँव. 
A large crowd is here and people are in ques
Everyone is lost himself so my heart rues
Self-centered people don't care other's worries
Roots apart we are brought to our knees.
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गीत-2
हुआ मशीनी जीवन

शिफ्ट -शिफ्ट की सर्विस अपनी, हुआ मशीनी जीवन 

भौतिकता का तानाबाना, थका -थका अपना मन 


अभिलाषाएं नभचुंबी हैं, इच्छाएं हैं दुर्दम  
और-और का रोग लगा है, जो है सो काफी कम 
महल-अंटारी दे दो जितना नहीं तुष्ट हैं परिजन 


हुई पढ़ाई महंगी इतनी,बड़ी कमाई कम है
बच्चों की इच्छापूर्ति में निकल रहा अब दम है 
रोज -रोज का ड्रेस चेंज यह,है क्या कम उत्पीड़न!


अस्पताल का चक्कर ऐसा, पैसे सारे कम हैं 
जांच -दवा के तंत्र -जाल में,हम तो अब बेदम हैं 
लाइलाज रोगों से जर्जर तन का है नित छीजन 


'सुखदायक संतोष परम' का अरे जमाना बीता 
जितना पानी भरो घड़ा में वो रीता- का-रीता 
यह विकास का नया नमूना बांट रहा उद्दीपन 


अपना नहीं बचा इसमें कुछ, नहीं मौज, ना मस्ती 
अधकचरा जीवन यह अपना, ना शहरी ना बस्ती 
खटते -खटते मर जायेंगे, चुक जायेंगे ईंधन!
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मूल हिन्दी गीत - हरिनारायण सिंह 'हरि' / Original Songs in Hindi by - Harinaryan Singh 'Hari'
मूल कवि का लिंक / Link of the original poet -  यहाँ क्लिक कीजिए / Please click here
अंग्रेजी काव्यानुवाद -  हेमन्त दास 'हिम' / Poetic translation into English by - Hemant Das 'Him'
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कवि-परिचय: हरिनारायण हरि हिन्दी और बज्जिका के अच्छे कवि हैं. 
Introduction of the poet: Haarinarayan Singh Hari is a good poet in Hindi and  Bajjika. 

छायाचित्र- प्रशान्त विप्लवी  /  Photographer - Prashant Viplavi 
हरिनारायण सिंह हरि अपने परिवार के साथ / Harinarayan Singh Hari with his family


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