बिहारी संस्कृति के दो महामानव- मैथिली कवि मुंशी रघुनंदन दास और लोकगायिका शारदा सिन्हा
जब कार्यक्रम में उपस्थित विशाल जनसमूह बिहार कोकिला और लोकसंगीत की जीवित किंवदंती शारदा सिन्हा के पति  ब्रज किशोर सिन्हा से शारदा जी के साथ युगल गीत गाने की जिद करने लगा तो वे झेंप से गए. उन्होंने स्वीकार किया कि प्रारम्भिक दौर में वे भी गायन करते थे और मुकेश के दीवाने थे. लोकगीत भी गाते थे. लेकिन आज उनकी पत्नी शारदा जी के नाम से ही उन्हें जाना जाता है और इस बात पर उन्हें गर्व है. उन्होंने हँसते हुए कहा कि वे जहाँ भी जाते हैं लोग उन्हें मिस्टर शारदा सिन्हा के नाम से जानते हैं. 
पर लोगों कि जिद थी कि थमने का नाम ही नहीं ले रही थी. अब संगीत की परम साधिका, देवी सरस्वती की साक्षात पुत्री से अपने प्रशंसकों का आग्रह रोकते नहीं बना. वो खड़ी होकर माइक थाम लीं और अपने पति से भी अपने माइक के साथ खड़े होने को कहा.  सचमुच वह गज़ब का समाँ था जब दोनो ने मिलकर गाया- " पिया ला द हमरा सोनपरी". दर्शकों की ताली से पटना संग्रहालय का सभागार गुंजायमान हो उठा और लोग ऐसी विलक्षण प्रतिभाशालिनी जो कि सैकड़ों वर्ष में एक बार अवतरित होतीं हैं, पद्मभूषण शारदा सिन्हा का एक साथ खड़े होकर अभिवादन किया.
मुंशी रघुननंदन दास जिन्हें मैथिली के प्रथम काव्य का रचयिता भी माना जाता है और जो 1945 ई. के आसपास इस दुनिया को अपनी विशाल धरोहर छोड़ गए, की रचनाएं इधर उधर बिखरी पड़ीं थीं. मैथिली संस्कृति के प्रसिद्ध सचेतक और इतिहासविद भैरब लाल दास ने उन रचनाओं का संग्रह कर उनकी रचनावली को अपने सम्पादकत्व में प्रकाशित करवाया है. उसका लोकार्पण भी इस अवसर पर हुआ और इस दौरान रचनाकार मुंशी रघुनंदन दास के पौत्र तथा परपौत्र भी उपस्थित थे.
भारत ही नहीं बल्कि पूरे विश्व में बिहारी लोकसंगीत को अति लोकप्रिय बनानेवाली डॉ. शारदा सिन्हा का सम्मान किया गया और सम्मान करनेवालों में साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित लेखिका पद्मश्री उषा किरण खान भी उपस्थित थीं. कार्यक्रम मैथिली साहित्य संस्थान और मैथिली पुराविद परिषद के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित था.
शारदा सिन्हा ने अपने लोकसंगीत की यात्रा का प्रारम्भ से जिक्र किया और बिहार की संस्कृति  में लोकसंगीत की भूमिका पर प्रकाश डाला. उन्होंने कहा कि उन्होंने बिहार की लोकभाषाओं में कभी विभेद नहीं किया और मैथिली के साथ-साथ उन्होंने भोजपुरी, बज्जिका, अंगिका और मगही में भी गीत गाए हैं. वे चुनाव आयोग की ब्रांड एम्बैसडर भी हैं. अपने व्याख्यान के दौरान श्रीमती सिन्हा दर्शकों को अपने मधुर कंठ से अनेक गीतों के मुखरों को सुनाकर आप्यायित भी करतीं रहीं. 
ब्रज किशोर सिन्हा ने शारदा सिन्हा के संगीत यात्रा में आये उतार चढ़ाव का उल्लेख किया और कहा कि वे लोग जान बूझकर सभी लोकभाषाओं में गीत गाते हैं जिसके लिए उनकी आलोचना भी होती है. दरअसल बिहार की सारी लोकभाषाओं का मूल एक ही है. सोहर, कजरी आदि सभी भाषाओं में है. मैथिली को संविधान की अष्टम सूची में स्थान देने के लिए तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी बाजपेयी जी को श्रेय दिया गया.
भैरब लाल दास ने बिहार की लोकसंस्कृति के संरक्षण पर विशेष बल दिया. मैथिली संस्कृति और रचनाकारों के विषय पर उन्होंने अपनी बातें रखीं.
अंत में शिव कुमार मिश्र ने आये हुए गणमान्य अतिथियों और दर्शकों का हृदय से आभार व्यक्त किया.
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आलेख- हेमन्त दास 'हिम' / नीतेश कुमार
छायाचित्र-  विनय कुमार
ईमेल- editorbiharidhamaka@yahoo.com
































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