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Thursday, 19 October 2017

दीप ऐसे हम जलाएँ - सतीश प्रसाद सिन्हा की कविता (Hindi Poem on Diwali with poetic English translation)

दीप ऐसे हम जलाएँ / Come, Lit such a lamp upright 

Artist - Sanju Das  / Contact her for purchasing her original paintings.  Know more about her- Click here

तन नहाये, मन नहाये
ज्योति में जन-जन नहाये
धार ऐसी रोशनी की हम बहायें.
Body along with mind takes bath
In it, the whole humankind takes bath
Let us throw such a stream of light

नफरतों की रात काली बढ़ रही है
दुश्मनों की यातनाएँ गढ़ रही है
तम जलाये, गम मिटाये
बैर दिल में रह न जाये
जोत के हम गीत ऐसे गुंगुनाये.
The darkness of night is getting denser 
Giving the enemies a heavier fencer
Let us burn darkness, remove the sorrow
No hostility our heart should borrow 
We should hum such a song day and night

लोग अब अपने घरों को लूटते हैं
आज रिश्ते काँच जैसे टूटते हैं
नेह जागे, द्वेष भागे
स्नेह से घर जगमगाये
दीप इतने प्यार के हम सब जलायें.
Now people loot their very dwelling
Relationship breaks like a glass made thing
Love may come and hatred may go
With affection all the houses shine, lo 
Lit thousand lamps of love and never fight.

आस मन के पात जैसे झर रहे हैं
घन निराशा के घनेरे भर रहे हैं
पर उगाये, नभ दिखाये
चेतना मन में जगाये
श्वेत पंखी आस हम ऐसे सजायें.
Expectations shed  like leaves of mind
Clouds of despondency are heavier, you find
Feathers may grow with sky in both eyes
And consciousness in mind is there to arise
We must spruce up aspirations which are white

हर अंधेरे को उजाला बाँटना है
भेद की सब खाइयों को पाटना है
पथ दिखाये, धुंध जाये
दृष्टि को समरस बनाये
ज्ञान की ऐसी जलायें वर्तिकायें.
We are here to give away luster to gloom
Every gap is to be filled, it may not bloom
Haziness should go and ways become obvious
Our sight should become utterly harmonious 
The wick of such a knowledge we must alight.
.................
मूल हिन्दी कविता के रचनाकार- सतीश प्रसाद सिन्हा
मूल रचनाकार का मोबाइल नंंबर- 9234450686
Poetic English translation by -  Hemant Das 'Him'
You may send your responses also to - hemantdas_2001@yahoo.com
कवि-परिचय: सतीश प्रसाद सिन्हा की कविताएँ समकालीन प्रवृति की कविताएँ हैं जिसमें जीवन की जद्दोजहद अपने पूरे ओज के साथ उजागर होती दिखती है. समाज में चेतना और समरसता का अवमूल्यन इन्हें भीतर तक सालता है और इनकी कविताओं में वह मुख्य भाव के रूप में अभिव्यक्त होता है. इन्हें छंदों पर अच्छी पकड़ है और भाषा में सरलता होते हुए भी गहराई है. इनकी सारी कविताएँ और विशेष रूप से नके नवगीत और गज़ल निश्चित रूप से उच्च कोटि के हैं. 
Introduction of the poet: The poems of Satish Prasad Sinha are along contemporary tendency in which life's hardships gets expressed with full intensity. He is peeved at the diminishing consciousness and feelings of harmony in the society and this is expressed as the main subject of his poems, He enjoys a strong grip on the form of verses and his languages is lucid yet deep.. All of his poems, and especially his new lyrics and ghazals are definitely of high reckoning. 












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