Blog pageview last count-38456 (Latest figure on computer or web version of 4G mobile)
मुल्क का मिज़ाज बदलेगा जरूर / आप दिल से दिल मिलाकर देखिए
मधुरेश नारायण और हरेन्द्र सिन्हा की पुस्तकों के लोकार्पण के कुछ मिनटों के बाद उन्हीं की अध्यक्षता में एक कवि सम्मेलन आयोजित हुआ वहीं आईएमए सभागार, पटना में 16 अक्टूबर,2017 को. कार्यक्रम का संचालन किया हेमन्त दास 'हिम' ने. सम्माननीय वरिष्ठ कवि सत्यनारायण की पहल पर अपेक्षाकृत कुछ नए कवियों को भी मंच पर बिठाया गया क्योंकि रचनाकर्म में कोई बड़ा या छोटा नहीं होता. फिर एक-एक करके कवियों को संचालक ने आकर कविता सुनाने का आग्रह किया जिसे कवि स्वीकार करते रहे.
डॉ.रामनाथ शोधार्थी ने इंसान के व्यकतिगत और सामाजिक स्तर पर नकारात्मक प्रवृतियों के बोलबाले का सुंदर चित्रण किया-
लौटा हूँ जबसे अपना मैं ईमान बेच कर
ज़िंदा हूँ या मरा हूँ मुझे कुछ पता नहीं
कोई जला रहा है तो कोई बुझा रहा
पूरा कि अधजला हूँ मुझे कुछ पता नहीं.
नसीम अख्तर ने मुल्क की ज़िंदगी के लिए हवा से भी जरूरी एकता को बताया-
ये डैम,कारखाने ,मशीनें ये सब्ज़ खेत किस काम के ये सब जो अधूरी है एकता
साँसें जहाँ जहाँ हैं वहाँ तक खबर करो
अब मुल्क में हवा से ज़रुरी है एकता.
डॉ.संजय कुमार ने मगही भाषा में दारू को लहू पीने के बराबर बताया-
कोय पीयS हे दारू चाहे लेहू / भुखले मरे के हे जेकरा
मरइत जाय हे मरइत जाय हे.
सतीश प्रासाद सिन्हा ने कर्मण्यता का जयघोष करने पर नियति को भी विवश कर दिया-
क्षण भर को / लेकर मेरे प्राण / विवश हो / स्वयं ही अपने शिलाखण्ड पर
मेरी कर्म छेनी से / गोदेगा गहरे / मेरा नाम / मेरे जीवन्त होने का प्रमाण.
डॉ रमाकान्त पाण्डेय ने कलेजा दरकने के बावजूद भी सहारा माँगने से इनकार कर दिया-
हार कर भी हार को स्वीकारना आता नहीं / फट गई है एड़ियाँ कलेजा दरक गया है
फिर भी अकड़ ऐसी कि / सहारा माँगना आता नहीं
डॉ. आसिफ रोहतासवी ने भोजपुरी में ताल में डूबने की कीमत पर भी सीप से मोती निकालने की बात की-
काँपेला कतना देर से हियरा ई ताल के / अंजुरी भ' रउआ देख लीं पानी निकाल के
दरियाव में कुदली हमीं, डुबली हमीं त का / हमहीं नु लइलीं सीप से मोती निकाल के
विश्वनाथ शर्मा ने व्यंग्य सुनाकर माहौल को हल्का कर दिया और टॉप होने का मंत्र दिया, मिलावट और मुनाफाखोरी -
हिन्दी कवियों में मेरा नाम टाप है / मिलावट, मुनाफाखोरी प्रतिदिन का जाप है
आपको मालूम नहीं लतीफा मेरी प्रेमिका / और चुटकुला ही है जिसके हम बाप हैं
डॉ योगेन्द्र उपाध्याय ने भोजपुरी में बिना मसजिद को तोड़े मंदिर से लगाव रखने की मनसा जाहिर की-
नयँ मंदिर छोड़ल चाहही / नयँ मसज़िद तोड़ल चाहही
प्रेम के रसरी टूट चलल हे / ओकरा जोड़ल चाहही
राजकुमार 'प्रेमी' ने मगही में हिन्दी की उपेक्षा के मुद्दे को पुरजोर तरीके से उठाया-
भटकल देशभक्ती बिलख बिलख रोवे, एकता में पड़ि गईल दरार भारतबसिया
जाईं जाईं भईया आपन देसबा में देखि आई, सुनी इनसान के चित्कार भारतबसिया
श्रीराम तिवारी ने जड़ तक जाने के लिए मेघों सा लद कर आने का चित्र उकेरा-
साया जीवन का / पानी बन कर आएंगे / कूँची से रंग भरेंगे
मेघों सा लद कर आएंगे / जड़ तक जानेवाले
लता पराशर ने दिवाली के अवसर पर सफाई करते समय अपने ख्वाबों की सफाई भी कर लेने की सलाह दी-
आओ हम सब भी कर लें / कुछ ख्वाबों की सफाई
जो ख्वाब पाल रखे थे ईर्ष्या मक्कारी की
समस्याओं के पहाड़ को तोड़ने बाले दसरथ मांझी की भूमिका निभाती है कवि सिद्धेश्वर की कविता-
जब भी समस्याएँ बन जातीं हैं पहाड़ / हम कविता को उसके आस-पास बिखेर देते हैं
ताकि शब्दों की आँच में तप कर पहाड़ कहीं से पिघल जाए / और हमारे लिए
निकल आए कोई छोटी सी पगड्ण्डी
चर्चित पुस्तक 'दिल्ली चीखती है' के शायर ने ज़िंद्गी जैसी भी है उसे चाव से जीने का संदेश दिया-
मैं बनाता तुम्हें हमसफर ज़िंदगी
काश आती कभी मेरे घर ज़िंदगी
तू गुजारे या जी भर के जी ले इसे
आज की रात है रात भर ज़िंदगी
भगवती प्रसाद द्विवेदी ने आज के संदर्भ में रिश्तों को काँचों की किरचें बताया-
उमड़े जनसैलाब मगर है एकाकी परदेसी
शिखरों में भी कूट-कूट कर भरा हुआ बौनापन
रिश्ते काँचों की किरचें, करता आहत अपनापन
निरख रहा चिलमन के पीछे की झाँकी परदेसी
'बिहारी धमाका' के ब्लॉगर हेमन्त दास 'हिम' ने समाज की विषमता पर व्यंंग्य करते हुए कहा कि यह केवल दीपक ही है जो जनसमुदाय से समतापूर्वक व्यवहार करता है-
जिसकी पावन दृष्टि में निश दिन /
हर कोई हर पल सम है
यह जलता दीप मनोरम है
सत्यनारायण उत्सव के माहौल में भरे-पूरे परिवार के आनंद का चित्र उपस्थित किया-
बेटी बेटा नाती पोता सबका होना है
भरा पूरा घर बेलपत्र का जैसे कोना है
बड़ी उम्र में बच्चों के साथ बचपन लौटा है
बेर कुबेर वही काला कंडा कजरौटा है
चूँकि इस कवि सम्मेलन के अध्यक्ष थे उस दिन लोकार्पित पुस्तकों के दोनो कवि अत: उन्हें अंत में मौका मिला अपनी कविताएँ पढ़ने का. हरेन्द्र सिन्हा ने आज ही अपनी लोकार्पित पुस्तक 'जीवन-गीत' में दिल से दिल मिलाकर मुल्क का मिज़ाज बदलने की बात कही-
मुल्क का मिज़ाज बदलेगा जरूर
आप दिल से दिल मिलाकर देखिए
आप क्यों गमगीन बैठे हैं जनाब
आप भी कुछ गुनगुनाकर देखिए
मधुरेश नारायण ने रिश्तों की उजास में हँसते-खेलते एक परिवार की परिकल्पना को अपनी आज लोकार्पित पुस्तक 'मन की हसरत' से उद्धृत करते हुए सुनाया-
बाबूजी का वह गाना, मम्मी की मीठी लोरी / दीवाली, छ्ठ पूजा, वह रंग-बिरंगी होरी
रह-रह कर याद आए वह सावन की फुहार / कब से कर रहा है दिल तेरा इंतजार
अंत में कवि मधुरेश नारायण की अध्यक्षता में चल रहे नाट्य संस्था 'प्रागण' के निलेश्वर मिश्रा ने आए हुए कविगण का और पूरे चाव से सुन रहे सभागार में बड़ी संख्या में मौजूद श्रोताओं का धन्यवाद ज्ञापण किया और आभार व्यक्त किया. कवि सम्मेलन के समापन पर लोकार्पित पुस्तकों के दोनों कवियों को चादर ओढ़ा कर सम्मानित किया गया जो काम भगवती प्र. द्विवेदी और जीतेंद्र कुमार ने किया. प्रथम सत्र की संचालिका दिव्या रश्मि को कवयित्री लता पराशर ने चादर ओढ़ा कर सम्मानित किया. सभागार शुरू से अंत तक तालियों की गड़ग़ड़ाहट से गूँजता रहा और अधिक रात हो जाने के बावजूद बड़ी संख्या में श्रोतागण टिके रहे.
...................
इस आलेख के लेखक- हेमन्त दास 'हिम'
प्रतिक्रिया भेजने हेतु ईमेल आईडी- hemantdas_2001@yahoo.com
No comments:
Post a Comment
अपने कमेंट को यहाँ नहीं देकर इस पेज के ऊपर में दिये गए Comment Box के लिंक को खोलकर दीजिए. उसे यहाँ जोड़ दिया जाएगा. ब्लॉग के वेब/ डेस्कटॉप वर्शन में सबसे नीचे दिये गए Contact Form के द्वारा भी दे सकते हैं.
Note: only a member of this blog may post a comment.