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Tuesday, 17 October 2017

मधुरेश नारायण और हरेन्द्र सिन्हा की काव्य पुस्तकों का लोकार्पण पटना में 16.10.2017 को सम्पन्न

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सूख रही संवेदनाओं को सहजता के साथ जगाती हुई कविताएँ

पटना के आईएमए सभागार में 14 अक्टूबर को मधुरेश शरण की पुस्तक 'मन की हसरत' और हरेन्द्र सिन्हा की 'जीवन-गीत' का लोकार्पण किया गया. लोकार्पण करनेवाले गणमान्य कविगण थे सत्यनारायण, भगवती प्रसाद द्विवेदी,श्रीराम तिवारी, डॉ. किशोरी सिन्हा,  सतीश प्रसाद सिन्हा, जितेन्द्र कुमार और आसिफ रोहतासवी आदि. कार्यक्रम की अध्यक्षता भगवती प्रसाद द्विवेदी ने की और मुख्य अतिथि थे सत्यनारायण. संचालन युवा साहित्यकर दिव्या रश्मि ने तथा धन्यवाद ज्ञापण प्रांगण के नीलेश्वर मिश्रा ने किया. 

वक्ताओं ने आज के समय में जबकि व्यष्टि और समष्टि के स्तर पर संवेदना की कमी महसूस की जा रही है, कविद्वय ने बैंकों में नौकरी करते हुए भी इतनी भावप्रवण काव्य पुस्तकों की रचना कर डाली यह अद्भुत है.. यह सही है कि काव्य कला एकाएक नहीं आ जाती और इसलिए कहा जा सकता है कि दोनो कविगण पहले से ही इस ओर प्रवृत रहे होंगे किन्तु कार्यालय में व्यस्तता के कारण पुस्तकों के आने में विलम्ब हुआ. 

आकाशवाणी के उपकेंद्र निदेशक किशोरी सिन्हा ने कहा कि वे दोनो कवियों को बहुत पहले से जानते हैं और इनकी रचनात्मक प्रतिभा से काफी प्रभावित होते रहे हैं. उपस्थित वरिष्ठतम कवि सत्यनारायण ने उनकी पुस्तकों की पंक्तियों को उद्धृत कर उनकी विशेषताएँ बताईं और कहा कि उनमें संश्लिष्ट अर्थ व्यापक हैं यद्यपि पाठकों को ऊपर से यह सपाटबयानी लग सकती है. अपने उद्गार उन्होंने इस दोहे के माध्यम से पुष्ट किया-
"छोटा हूँ तो क्या हुआ जैसे आँसू एक
सागर जैसा स्वाद है तू चख कर तो देख"

अंत में अध्यक्षीय भाषण करते हुए वरिष्ठ कवि भगवती प्रसाद द्विवेदी ने मधुरेश नारायण की माँ और पिता पर लिखी कविताओं की चर्चा की और कहा कि एक सच्चा इंसान कभी अपने माता-पिता को अपनी नजरों से ओझल नहीं होने देता. चाहे वो दूर में भी रहें उनका स्मरण प्रतिपल मनुष्य को सचेत रखता है. हरेंद्र सिन्हा को भी अपने माता-पिता इतने याद रहते हैं कि वे उन पर कविताएँ लिख कर उसका प्रमाण दे रहे हैं. भाषा के सहज सम्प्रेषण के बीच भी कविद्वय का अपने-अपने पारिवारिक और सामाजिक रिश्तों के प्रति जो लगाव परिलक्षित होता है वह अनूठा है. उनका गद्य  और पद्य दोनों पर समान अधिकार है. 

संचालिका दिव्या रश्मि ने कुशल संचालन करते हुए अपने ससुर मधुरेश नारायण की कविताओं का सुंदर पाठ भी करती रहीं. इस अवसर पर सिद्धेश्वर, समीर परिमल, रामनाथ शोधार्थी, हेमन्त 'हिम', नसीम अख्तर आदि भी उपस्थित थे. अंत में प्रांगण के निलेश्वर मिश्रा ने सभी आगन्तुकों का तहे-दिल से धन्यवाद ज्ञापण किया और पहले सत्र के समापन की घोषणा की. दूसरे सत्र में कवि सम्मेलन आयोजित हुआ जो कुछ मिनटों के अंतराल के बाद आरम्भ हुआ.
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इस रिपोर्ट के लेखक- हेमन्त दास 'हिम'
फोटोग्राफर- हेमन्त 'हिम' एवं सिद्धेश्वर
प्रतिक्रिया भेजने हेतु ईमेल आईडी- hemantdas_2001@yahoo.com









































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