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Friday, 30 June 2017

'मास्टर'- अंगिका कविता अंग्रेजी काव्यानुवाद के साथ / कवि- कैलाश झा किंकर ('Master'- Angika poem of Kailash Jha Kinkar with poetic English translation)

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'मास्टर' - अंगिका कविता
('Master'- Angika poem)



मास्टर के मस्टरबा कहभो
ते बच्चा पढ़तो कहियो नै
ऐतो-जैतो स्कूल लेकिन
आगू बढ़तो कहियो नै
If you abuse the teacher
Your child will never learn
Will go to and come from school
But into learned one, he would never turn


उत्स ज्ञान के गुरुवे छथनी
गुरुवे से ईंजोर छै
देखै नै छो दस बरस से
केहन घटा घनघोर छै
The origin of knowledge is the very teacher
Only through him, it’s light everywhere
Don’t you see, since last ten years
It’s thunder cloud here and there

  
रहलो इहे हाल अगर ते
देश सुधरतो कहियो नै
मास्टर के मस्टरबा कहभो
ते बच्चा पढ़तो कहियो नै
If this remains the condition
From progress, nation would get spurn
If you abuse the teacher
Your child will never learn


वेतन जब से मिलै लगलै
गुरु चढ़ल छो ऐँख पर
जब विकास के सीढ़ी मिललै
चोट करै छो पैंख पर
Since salary payment became regular
Teacher is object of envy
Since one is flying above to progress
On plumes, strike is heavy


नौकर जब तक बुझतें रहभो
ज्ञान मँजरतो कहियो नै
मास्टर के मस्टरबा कहभो
ते बच्चा पढ़तो कहियो नै
Till you treat him as a servant
Understanding- child won’t earn
If you abuse the teacher
Your child will never learn


गुरु ते ब्रह्मा, विष्णु, शिव के
धरती पर अवतार छथिन
गुरु ते भव-सागर तड़वैया
माँझी के पतवार छथिन
In Brahma, Vishnu and  Mahesha
 The very teacher incarnated on earth
Teacher is a rudder to boatmen
In the seas of cycle of birth


मिलतै नै सम्मान गुरु के
ते स्वर्ग उतरतो कहियो नै
मास्टर के मस्टरबा कहभो
ते बच्चा पढ़तो कहियो नै ।
If teacher don’t get honour
Then the gloom would never burn
If you abuse the teacher
Your child would never learn
.........
Original Poem in Angkika by Kailash Jha Kinkar
Poetic English tranlation by Hemant Das 'Him'


Mobile No. of Kailash Jha Kinkar: 9430042712

कवि-परिचय: कैलाश झा किंकर, अंगिका और हिन्दी के प्रसिद्ध कवि हैं और खगड़िया में रहते हैं. ये 'कौशिकी' नामक साहित्यिक पत्रिका के सम्पादक हैं और इनकी प्रकाशित पुस्तकों में 'मुझको अपना बना के लूटेगा' भी एक है. किंकर की खासियत हैं इनकी सकारत्मकता. तमाम विषमताओं के बीच ये ऊर्जा से परिपूर्ण वांछित स्थितिओं को साकार होते हुए देखते हैं या यूँ कहिए कि उनके अंवेषण में इस तरह से लीन हैं कि वह उन्हें कल्पना नहीं बल्कि एक सत्य दिखता है. 
Introduction of Poet: Kailash Jha Kinkar is a well-known poet in Angika and Hindi. He lives in Khagaria and is the editor of a literary magazine titled 'Kaushiki'. One of his published book is titled as 'Mujhko Apna Bana Ke Lootega' (He will rob me after making me his own).The specialty of Kinkar is his optimism. Even among the glut of paradoxes, he finds lining of hopes. This is his absolute identification with the desired worldly set up that makes him unique. 








Saturday, 24 June 2017

कुमार पंकजेश की गज़ल-1 अंग्रेजी काव्यानुवाद के साथ (Hindi poem of Kumar Pankajesh with poetic English translation)

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ग़ज़ल  (A poem)
(- कुमार पंकजेश / Kumar Pankajesh)



इक लौ उम्मीद की है और तूफ़ान से लड़ना है,
मेरे यक़ीन को यारो गुमान से लड़ना है,
I have a flame of hope and a storm to defeat
As my determination is fighting my conceit

जिस्म लोहे का और दिल बना हो पत्थर का,
इक आदमी को तो पूरे जहान से लड़ना है,
Body must be of iron with a heart of stone
As man has to fight the whole world, definite

दुश्मन मेरे हो मगर दोस्त से भी अच्छे हो,
गले मिलो तो ज़रा इत्मीनान से लड़ना है,
You are my enemy but not less a good friend
Come and embrace before in battleground we meet

करेंगे क़त्ल मेरा लोग तेग़ो ख़ंजर से,
मगर मुझे तो बस मुस्कान से लड़ना है,
People will kill me with their sword and daggers
But here I am all smiles with me to beat

तेरा ये हौसला सबसे बड़ा है सरमाया ,
क़दम-क़दम पे तुझे इम्तिहान से लड़ना है,
This, your courage is the biggest capital of yours
With this you have to clear all the exams, well neat 

किसी के घर की हो बेटी तो एक चिड़िया है,
ज़रा सी जान को इस आसमान से लड़ना है,
If the daughter is at someone’s house, she’s a bird
And this little creature has to fight sky indefinite 

जानो दिल से चाहा था किसी वक़्त तुझे,
इक रोज़ आओ के दिलो जान से लड़ना है,
I had loved you wholehearted at some point of time
Now come before me, I have to wage a war concrete  

ये ज़िंदगी है क्या परखते रहो ख़ुद ही को,
सबको ज़मीर के मीज़ान से लड़ना है ,
Such strange is  life, keep testing yourself
On scales of conscience, see whether you right?
____

Word-meanings: (1) गुमान-भ्रम, (2) यक़ीन-विश्वास, (3) जिस्म-शरीर, (4) सरमाया-पूँजी, (5) ज़मीर-अंतरात्मा, (6) मीज़ान-तराजू
......
Original Poem in Hindi by Kumar Pankajesh
Poetic English translation by Hemant Das 'Him'

कवि-परिचय: कुमार पंकजेश एक उत्कृष्ट रचनाकार हैं और पटना में रहते हैं. इनकी गज़लें काफी संजीदगी के साथ जिंदगी का बयाँ करती हैं. इनके अनेक लेख सम्मानित अखबारों और पत्रिकाओं में प्रकशित हो चुके हैं. ये सी.आर.डी. पटना पुस्तक मेला के प्रेस प्रवक्ता हैं. और हिन्दुस्तान और प्रभात खबर जैसे प्रतिष्ठित अखबारों में काम करने का इन्हें वृहत अनुभव है.
Introduction of the Poet: Kumar Pankajesh is an excellent writer and poet and lives in Patna. His gazals presents very poignant analysis of life. His articles have been published in reputed newspapers and magazines.  He has been media coordinator of CDR Patna Book Fair and has a long experience of working with widely circulated newspapers like 'Hindustan' and 'Prabhat Khabar'.

कुमार पंकजेश का मोबाइल /Mobile No. of Kumar Pankajesh: 9631107179
कुमार पंकजेश का लिंक /Link of Kumar Pankajesh: 

  






Friday, 23 June 2017

मिथिला विवाह के चित्र (Pictures of Mithila marriage ceremony)

नये और पुराने अनुष्ठानों का संगम
Confluence of new and old rituals

(हिन्दी में नीचे पढ़िये)
Pic-1

         Mithila culture is still one of the most conservative cultures of India  even though the modernisation has cast its effect on it slowly. Some new rituals like Jayamala and Var-vadhu swagat (Reception) have lately become almost  an essential ingredient of it. The ceremony of Siddhant (engagement) is still performed in its pristine form. Still, the Battisgama families in Mithila do not ask for dowry in cash or kind and of course, the bridegroom still sports dhoti kurta at least while marrying. Moreover the bridegroom still wears a 'Mour' (cap) of archaic style. And last but not least, the marrying partners are still not permitted to attend their engagement ritual and strangely they still go by the agreement about their marriage made by their family persons in Siddhant ceremony before a gathering belonging to their community.

          मिथिला संस्कृति अभी भी भारत की सबसे रूढ़िवादी संस्कृतियों में से एक है यद्यपि आधुनिकीकरण इसके प्रभाव धीरे धीरे पर डाल रहा है. जैसे कि जयमाल और वर-वधु स्वागत (रिसेप्शन) जैसे कुछ नए अनुष्ठानों को इसमें अनिवार्य रूप से जोड़ दिया गया है, सिद्धान्त (सगाई) का समारोह अभी भी अपने प्राचीन रूप में किया जाता है। आज भी, मिथिला में बत्तीसगाम परिवार दहेज में नकदी या वस्तु किसी भी रूप में नहीं माँगते हैं और निश्चित रूप से दुल्हा कम से कम विवाह के दिन धोती-कुर्ता ही पहनता है। इसके अलावा, दूल्हे अभी भी प्राचीन शैली की 'मौर' (मुकुट) पहनता हैं। और तो और, अभी भी विवाह करने जा रहे जोड़े को उनकी सगाई में शामिल होने की अनुमति नहीं होती है और वे अभी भी अपने परिवार के लोगों द्वारा अपने समुदाय के समक्ष सिद्धान्त की रस्म में उनके विवाह के बारे में किये गये सार्वजनिक निर्णय को मानते हैं।


Pic-2: Siddhant

In Picture No.2, We see that in the custom of 'Pasahin', the bride is being decorated by beauty ointments being treated on her body. Her cousin brother is also sitting with her for the same as he has also to undergo a separate ceremony called 'Chudakarn' or 'Janeoo'. Though the 'Chudakarn' ceremony has no relation to marriage but it is generally performed along with someone's marriage in family so that a separate function is avoided. the bride and her cousin brother are sitting together for their bodies being rubbed with turmeric powder and other beauty ointments. 

पिक्चर नं 2 में हम देखते हैं कि 'पसाहिन' विधि के अंतर्गत दुल्हन को उसके शरीर पर सौंदर्य-प्रसाधनों जैसे हल्दी आदि के लेपों से सजाया जा रहा है। उसके चचेरे भाई भी अपने शरीर पर  उसके साथ बैठे हैं क्योंकि उन्हें 'चूड़ाकर्ण' या 'जनेऊ' नामक एक अलग समारोह से गुजरना पड़ता है। यद्यपि 'चूड़ाकर्ण' समारोह का विवाह से कोई संबंध नहीं है लेकिन आम तौर पर परिवार में किसी की शादी के साथ यह सम्पन्न किया जाता है, ताकि इसके लिए एक अलग समारोह से बचा जा सके। दुल्हन और उसके चचेरे भाई भाई के शरीर पर हल्दी पाउडर और अन्य सौंदर्य मलहम से लेप किया जाता है।


Pic-3: Siddhant


In Picture 3, We see the actual ceremony of Siddhant in which representatives (more oftenly brothers) from the sides of bride and bridegroom are holding a metallic water pot called 'Suvarna' full of holy water while a 'Pajikar' (community registrar) chants some Sanskrit mantras and makes announcement about the fixation of marriage between the two parties. The special thing is that he introduces both parties by their respective male lineages upto seventh generation  from paternal and maternal sides. He also makes announcement that there is no brother-sister relationship in any manner between both the marrying parties even after considering the seven generations back.

चित्र 3 में, हम 'सिद्धान्त' के वास्तविक समारोह को देखते हैं जिसमें दुल्हन और दुल्हन के तरफ से प्रतिनिधियों (अधिकतर समय  भाइयों) के हाथों में एक '' सुवर्णा '' नामक एक धातु के जलपात्र होते हैं जो पवित्र जल से भरे होते हैं जबकि 'पंजीकर' (समुदाय का रजिस्ट्रार) कुछ संस्कृत मंत्रों को पढ़ने के बाद दोनों पक्षों के बीच विवाह के निर्धारण के बारे में घोषणा कर देता है। खास बात यह है कि वह पैतृक और मातृ तरफ से सातवें पीढ़ी तक अपने-अपने पुरुष वंशजों से वैवाहिक जोड़ों में से प्रत्येक का परिचय देता है। उन्होंने यह भी घोषणा सात पीढ़ियों वापस विचार करने के बाद भी दोनों पक्षों के बीच किसी भी तरीके से कोई भाई-बहन रिश्ता नहीं है और दोनो के बीच विवाह हो सकता है।


Pic-4: Kumram

In Picture 4, the bridegroom is going for 'Kumaram' just before one day of marriage. The mother of the bridegroom is covering the head of the bridegroom with the end of her saree.
चित्र संख्या 4 में वधु कुमरम विधि हेतु जा रही है जो विवाह के एक दिन पहले होता है. वधु की माता अपने साड़ी के पल्लू से वधु के माथे को ढँके हुए है.
Pic-5:

Pic-6 (Jayamala)


Pic-7

In picture 7, the head of the bride is anointed with a kind of 'sindoor' in the ritul of Chaturthi. It is noteworthy that the bridegroom is expected to stay at bridegroom's house for at least four days before leaving for his own village with the  bride.
चित्र संक्या 7 में चतुर्थी की रस्म में वधु का सिर एक प्रकार के सिंदूर से लेपा जा रहा है. ध्यातव्य है कि दूल्हे से आशा की जाती है कि वधु को अपने साथ ले जाने के पहले वह कमसे कम चार दिनों तक ससुराल में रहे और चतुर्थी पूजन के बाद ही वधु को लेकर अपने गाँव जाये.

Pic-8

Pic-9

Pic-10

Pic-11

Pic-12: 

Pic-13: Pujan

Pic-14: Vat-vriksha pujan

Picture No. 14 shows as in the ceremony of 'Barsaiat' (Vat-savitri pujan)  ceremony the banyan tree is worshipped.
चित्र संख्या 14 में 'वरसाइत ('वट-सावित्री पूजन) विवाह के कुछ दिनों बाद होता है जब वर के पेड़ को पूजा जाता है.


Pic-15: Vat-vriksh pujan

Pic-16


चित्र सौजन्य: शंकर एवम शिखा / Photos courtesy : Shankar and Shikha
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Thursday, 22 June 2017

'स्वजन' रचित बिना मात्रा की मैथिली कविता और उसका अंग्रेजी काव्यानुवाद (Maithili poem of 'Swajan' without vowels with poetic English translation)

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शिव-स्तुति (बिनु मात्रा केँ) / कवि- खड्ग बल्लभ दास 'स्वजन' 
Prayer to God Shiva (without vowels)  / Poet - Khadg Ballabh Das 'Swajan'

(Late) Khad Ballabh Das 'Swajan' with his wife (Late) Indra Maya Devi

गगन-पवन-जल-अनल जगत-कण
जकर धवल यश पसरल
नवल कमल-सन वदन, जकर तन
सगरल फणधर-जकड़ल

Sky, air, water, dust and fire
Whose bright fame, all admire
Fresh lotus like is whose face
On body, cobra is there to embrace


जकर नयन-शर पल-मह तत क्षण
भसम कयल तन मदनक
दशरथ-तनयक पद-रज-कण लय
बनल तनय वर पवनक

Whose arrow of eyes can in a  moment, if got rid
Turn the body to ashes of Cupid
Who after taking the dust of the Rama's feet
Became the son of air, a might in surfeit 
......
Son of air= Hamumana


जकर वरद-कर पड़त भगत पर
हर क्षण अशरण-शरणक
तकर चरण पर जकर सतत मन
रहत, कहब हम नरवर
हर-जन-भल पर अरपन तन-धन
तकर 'स्वजन' हम सहचर.

Whose big hand falls on devotee
Who is always a shelter to helpless,with glee
On such one's feet who keeps his mind soulfully 
I shall call his a great person absolutely
'Swajan' follows him who, for other's welfare
Keeps his total body and wealth spare.
............



कवि-परिचय: स्वर्गीय खडग बल्लभ दास 'स्वजन' मैथिली के एक प्रसिद्ध कवि हैं और उनकी सबसे प्रसिद्ध कृति  महाकाव्य 'सीता-शील' है। 'सीता-शील' मैथिली साहित्य की विद्वत-मंडली में अत्यधिक प्रशंसित हुई है क्योंकि उसमें देवी सीता के प्रति करुणा की अद्वितीय ऊंचाई और कवि 'स्वजन' के मन में मिथिला की बेटी के रूप में उन्हें देखते हुए गहरी सम्वेदना है। ब्लॉगर हेमंत दास 'हिम' इस बात हेतु अत्यंत गर्वांवित अनुभव करता है कि वह ऐसे महान कवि 'स्वजन' का पोता है।
Introduction of Poet: Late Khadg Ballabh Das 'Swajan' is a renowned poet in Maithili and his masterpiece is 'Seeta-sheel'. 'Seeta-sheel' has been highly acclaimed in Maithili literary circles because of its unparalleled height of compassion for the Goddess Sita, and the poet 'Swajan' has a deep feel for her as a daughter of Mithila. Blogger Hemant Das 'Him' feels proud to be grand son of such a great poet as 'Swajan' ji. 

सीता-शील को खरीदने या मुफ्त में पढ़ने के लिए लिंक नीचे है.
Links for buying or reading 'Seeta Sheel' in free are given below:
सीता-शील का फेसबुक पेज ; https://www.facebook.com/seetasheel/
सीता-शील का वेबसाइट:  https://books.google.co.in/books/about/Seeta_Sheel.html?id=8RodmX5cs1sC&redir_esc=y

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Monday, 19 June 2017

दरभंगा जिला (बिहार) के मैथिली गायक सुन्दरम की दिल्ली में धूम / Delhi rocks by the Maithili singing by Sundaram of Darbhanga (Bihar)



                                                         (English text follows Hindi text)
         सुंदरम का जन्म बिहार में हुआ है और दिल्ली विश्वविद्यालय से विधि में स्नातक होने के बाद से लगभग 18 सालों से ये दिल्ली उच्च न्यायालय में वकालत कर रहे हैं और पेशे में काफी सफल हैं. परंतु इनमें जो बात इन्हें लाखों में एक बनाती है वह है इनका सुमधुर कंठ और सुरीला गला. इन दिनों इन्होंने दिल्ली में मैथिली लोकगीत और सुगम संगीत गायन कर धूम मचाया हुआ है और स्टेज पर कार्यक्रम करने के लिए इन्हें अच्छी रकम भी मिलती है. इनके गायन  में अन्य गायिकाओं के साथ-साथ इनकी अर्धांगिनी प्रभा भी इनका भरपूर साथ देती हैं.  इनके लगभग पाँच ऑडियो कैसेट निकल चुके हैं और वीडियो निकलने की प्रक्रिया में है. इनकी माता श्रीमती विद्या एक बहुत उत्तम कोटि की लोकगीत गायिका रही हैं और उन्हीं से इन्हें गायन की प्रेरणा मिली.


       सुन्दरम के पिता श्री अर्जुन नारायण चौधरी एक वरिष्ठ लेखक, कवि और पत्रकार हैं और उन्हें 'सीनियर सीटिजन ऑफ बिहार' का सम्मान भी मिल चुका है. इन्होंने अनेक गीत अपने बड़े भाई शिवम के बनाये भी गाये हैं जो कि स्टेट बैंक में ए.जी.एम. हैं और काफी सम्वेदनशील गीतकार हैं. सुंदरम ने 'तुम आओ चहकत हुए' के कवि हेमन्त 'हिम' की गज़लों को भी अपना स्वर दिया है जो काफी सराहा गया है. सुन्दरम का पैत्रिक गाँव तारालाही (दरभंगा) है और इन्हें अपने गाँव से अब भी उतना ही लगाव है जितना कि बचपन में था.
इनकी कुछ गज़लों के लिंक नीचे दिये जा रहे हैं-

https://youtu.be/eOx-HzJLWio

https://youtu.be/xlXRbxqkCyk

https://youtu.be/qAqfqMZL4V8

       Sundaram was born in Bihar and has been practicing law in Delhi High Court for almost 18 years since he graduated in law from the University of Delhi. He has been very successful in his profession of advocacy. Though what makes him one among the millions is the fact that he has a sweet voice and melodious throat. Nowadays, he has been singing Maithili folklore and light music in Delhi and charges a good amount for his program on stage. Along with other singers in his singing, his better half, Prabha also provides her valuable support to him. About five audio cassettes have been sent to market and the video album is in the process of getting out. His mother, Smt. Vidya, is a very good folk singer and he has been inspired by her singing.

       Sundaram's father, Shri Arjun Narayan Chaudhary is a senior writer, poet and journalist and he has also got the honor of 'Senior Citizen of Bihar'. He also sang many songs composed by his elder brother Shivam, who is an AGM in State Bank of India and is a sensitive lyricist as well. Sundaram has given his voice to the ghazals of Hemant 'Him', poet of 'Tum Aao Chahakte Hue' (You come chirping), which has been greatly appreciated. The beautiful village of Sundaram is Taralahi (Darbhanga) and he still has the same attachment to his village as it had been in his childhood.
Links of some of his ghazals are given above.













Singer Sundaram with his wife Prabha Chaoudhary

घमण्डी राम की मगही पुस्तकों का लोकार्पण पटना में 17.6.2017 को सम्पन्न -लता पराशर की रिपोर्ट

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शास्त्र और लोक तत्वों से साहित्य- ठेठ मगही शब्दों को न छोड़ें 
लता पराशर की रिपोर्ट

     पटना के जमाल रोड में स्थित बिहार माध्यमिक शिक्षक संघ के सभागार में 17.6.2017 को मगही के प्रसिद्ध रचानाकार घमण्डी राम की दो पुस्तकों का लोकार्पण हुआ. ये पुस्तके हैं 'कजरिया' (कहानी-संग्रह) और 'ढाई आखर प्रेम का'. इस अवसर पर मगही और हिन्दी के अनेक जाने-माने साहित्यकार उपस्थित थे. उनमें से कई ने अपने विचार मगही में प्रकट किये जबकि कुछ ने हिन्दी में  अपनी बातों को रखा. तैयब हुसैन ने कहा कि शास्त्र और लोक दोनो तत्वों से साहित्य की रचना होती है. अब यह पुराना भ्रम टूट चुका है कि शास्त्रीय साहित्य ही साहित्य है.

लता पराशर
      हरेंन्द्र विद्यार्थी ने घमंडी राम के बारे में कहा कि बाबूलाल मधुकर के बाद घमण्डी राम ने ही खाँटी मगही के शब्दों का प्रयोग किया है. उन्होंने कहा कि मगही के साथ आज भी सौतेला व्यवहार हो रहा है. 9वीं और 10वीं में अन्य भाषाओं को तो पढ़ाया जाता है पर मगही को नहीं. हृषीकेश पाठक ने अपने उद्गार कुछ यूँ व्यक्त किये,” इनकी पुस्तकों को देख कर लगता है कि यह काव्य है पर कजरिया एक कहानी-संग्रह है जबकि ढाई आखर प्रेम का एक निबन्ध संग्रह. यही इनकी सबसे बड़ी विशेषता है.”

      जफर इमाम ने कहा कि पढ़ना-लिखना बड़ा खतरनाक पेशा हो गया है आजकल. और उस पर अपनी वचारिक लड़ाई लड़ना तो और भी कठिन.
भगवती प्रसाद द्विवेदी के विचार थे कि ये मूलत: गद्य कवि हैं और इनके गद्य में भी सरसता है. लेखक की कोशिश है कि गद्य को काव्यात्मक बनाया जाय. आज का दौर आलोचना कर्म के संकट का दौर है. आलोचना आजकल व्यक्तिपरक हो गई है और रचनाकर्म से जुड़े लोगों की उपेक्षा हो रही है. बिहार मगही मंडल के सचिव राजकुमार प्रेमी ने कहा कि जो रचनाकर्म जनता के बीच में जाकर किया जाता है वही सही रचनाकर्म होता है. घमंडी जी की रचनाएँ वैसी ही हैं. सत्येंद्र सुमन ने भाषा की असली पहचान को बचाये रखने की वकालत करते हुए कहा कि सिर्फ क्रिया का रूप बदल देने से हिन्दी शब्द मगही नहीं हो जाता. अगर मगही में लिखना है तो मगही के ठेठ शब्दों का प्रयोग करना होगा. आज के समय का दुर्भाग्य है कि नेता की छवि वाले लोगों को मगही का पुरस्कार दिया जा रहा है.

     विजय कुमार सिन्हा ने घमंडी राम की तुलना कबीर से की क्योंकि मगही भाषा को बचाने में इनका योगदान इतना महत्वपूर्ण है. उन्होंने कजरिया कहानी का उल्लेख करते हुए कहा कि कजरिया को कुछ गुण्डे ले जाते हैं जहाँ उसका शीलहरण होता है. लेकिन इन बातों के बावजूद कजरिया आगे चलकर बिधायिका बन जाती है. स्थिति का यह बदलाव स्वागत योग्य है. अलका मिश्रा ने कहा कि कजरिया के बारे में लिखा गया है कि “कैसे खेलन जहिये सावन में बदरिया / घिर घिर आये बदरिया हे सजनी”. समाज में स्त्री की जो स्थिति है उसे दिखाया है घमंडी राम ने और महिला-उत्पीड़न को भी भली-भाँति प्रदर्शित किया है.

     विनीतांश ने कहा कि कजरिया, गुलगुलिया जाति से आती है. इस जाति की महिलाएँ बहुत निर्भीक होती है. उन्होंने कहा कि आज के नवमानवता वाद में क्या सम्भव नहीं है. यह भी हो सकता है कि कजरिया जैसी महिला भी बिधायक बन जाये. उन्होंने बताया कि विफनी काकी ने इन्हें बहुत प्रभावित किया. तपेशर ने बिफनी काकी का दूध पिया है फिर भी आगे चल कर समय आने अर अपना असली सामंती रंग दिखा ही देता है. लोकार्पित पुस्तकों के लेखक घमंडी राम ने कहा कि वे उपेक्षा के शिकार रहे हैं. उनकी पुस्तकों की ठीक ढंग से समीक्षा नहीं की गई है. उन्होंने कहा कि साहित्य हमारे लिए हथियार है कोई मनोरंजन नहीं.

      श्रीराम तिवारी ने अपने अध्यक्षीय भाषण में कहा कि हमलोग भूगोल में रह रहे हैं इतिहास में नहीं. हमें अपने इतिहास से जुड़ कर रहना सीखना होगा. नारी जब हाथ में बन्दूक उठाएगी. इनकी दोनो पुस्तकों में आन्दोलन की बात कही गई है. संस्कृति के बाजारवाद के कारण साहित्य की दुर्गति हो रही है. है. घमंडी राम ने अपनी पुस्तक ढाइ आखर प्रेम का में बाजारवाद का उत्तर दिया है. ये पुस्तकें प्रतिरोध का साहित्य है. जो बातें अनकही रह जातीं हैं वही प्रतीकात्मक रूप से प्रतिरोध को व्यक्त करती हैं.

      कार्यक्रम में नचिकेता और बिहार हिन्दी साहित्य सम्मेलन के अध्यक्ष अनिल सुलभ ने भी पुस्तकों पर अपने विचार व्यक्त किये. अंत में लक्षीकांत निराला ने सभी आगन्तुकों  का धन्यवाद ज्ञापन देते हुए कहा कि जिस तरह से भोजपुरी लोकभाषा में भिखारी ठाकुर हैं उसी तरह से मगही में घमंडी राम हैं घमंडी राम के साहित्यमें जीवन का चित्र है. आज के साहित्यकारों  की दृष्टि में लोभ वृति नहीं होनी चाहिए.  कार्यक्रम की अध्यक्षता श्रीराम तिवारी और संचालन डॉ. सीमा रानी ने किया. सभा में उपर्युक्त वक्ताओं के अलावे डॉ. चंद्रावती चंदन, राकेश प्रियदर्शी, आनन्द किशोर शर्मा, डॉ. बी.एन.विश्वकर्मा, हरेंदर सिन्हा, लता प्रासर, हेमन्त दास 'हिम'  भी उपस्थित थे. 

आलेख: लता पराशर
प्रस्तुति और छायाचित्र: हेमन्त दास 'हिम' 
अन्य जानकारी या सुधार के सुझाव इ-मेल द्वारा भेजें : hemantdas_2001@yahoo.com

Ghamandi Ram (middle)

Sriram Tiwari (standing)









From left no.3- Bhagwati Pd Dwivedi, 4- Harender Sinha, 6- Rakesh Priyadarshi, 7- Anand Kishore Shastri