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Monday, 19 June 2017

घमण्डी राम की मगही पुस्तकों का लोकार्पण पटना में 17.6.2017 को सम्पन्न -लता पराशर की रिपोर्ट

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शास्त्र और लोक तत्वों से साहित्य- ठेठ मगही शब्दों को न छोड़ें 
लता पराशर की रिपोर्ट

     पटना के जमाल रोड में स्थित बिहार माध्यमिक शिक्षक संघ के सभागार में 17.6.2017 को मगही के प्रसिद्ध रचानाकार घमण्डी राम की दो पुस्तकों का लोकार्पण हुआ. ये पुस्तके हैं 'कजरिया' (कहानी-संग्रह) और 'ढाई आखर प्रेम का'. इस अवसर पर मगही और हिन्दी के अनेक जाने-माने साहित्यकार उपस्थित थे. उनमें से कई ने अपने विचार मगही में प्रकट किये जबकि कुछ ने हिन्दी में  अपनी बातों को रखा. तैयब हुसैन ने कहा कि शास्त्र और लोक दोनो तत्वों से साहित्य की रचना होती है. अब यह पुराना भ्रम टूट चुका है कि शास्त्रीय साहित्य ही साहित्य है.

लता पराशर
      हरेंन्द्र विद्यार्थी ने घमंडी राम के बारे में कहा कि बाबूलाल मधुकर के बाद घमण्डी राम ने ही खाँटी मगही के शब्दों का प्रयोग किया है. उन्होंने कहा कि मगही के साथ आज भी सौतेला व्यवहार हो रहा है. 9वीं और 10वीं में अन्य भाषाओं को तो पढ़ाया जाता है पर मगही को नहीं. हृषीकेश पाठक ने अपने उद्गार कुछ यूँ व्यक्त किये,” इनकी पुस्तकों को देख कर लगता है कि यह काव्य है पर कजरिया एक कहानी-संग्रह है जबकि ढाई आखर प्रेम का एक निबन्ध संग्रह. यही इनकी सबसे बड़ी विशेषता है.”

      जफर इमाम ने कहा कि पढ़ना-लिखना बड़ा खतरनाक पेशा हो गया है आजकल. और उस पर अपनी वचारिक लड़ाई लड़ना तो और भी कठिन.
भगवती प्रसाद द्विवेदी के विचार थे कि ये मूलत: गद्य कवि हैं और इनके गद्य में भी सरसता है. लेखक की कोशिश है कि गद्य को काव्यात्मक बनाया जाय. आज का दौर आलोचना कर्म के संकट का दौर है. आलोचना आजकल व्यक्तिपरक हो गई है और रचनाकर्म से जुड़े लोगों की उपेक्षा हो रही है. बिहार मगही मंडल के सचिव राजकुमार प्रेमी ने कहा कि जो रचनाकर्म जनता के बीच में जाकर किया जाता है वही सही रचनाकर्म होता है. घमंडी जी की रचनाएँ वैसी ही हैं. सत्येंद्र सुमन ने भाषा की असली पहचान को बचाये रखने की वकालत करते हुए कहा कि सिर्फ क्रिया का रूप बदल देने से हिन्दी शब्द मगही नहीं हो जाता. अगर मगही में लिखना है तो मगही के ठेठ शब्दों का प्रयोग करना होगा. आज के समय का दुर्भाग्य है कि नेता की छवि वाले लोगों को मगही का पुरस्कार दिया जा रहा है.

     विजय कुमार सिन्हा ने घमंडी राम की तुलना कबीर से की क्योंकि मगही भाषा को बचाने में इनका योगदान इतना महत्वपूर्ण है. उन्होंने कजरिया कहानी का उल्लेख करते हुए कहा कि कजरिया को कुछ गुण्डे ले जाते हैं जहाँ उसका शीलहरण होता है. लेकिन इन बातों के बावजूद कजरिया आगे चलकर बिधायिका बन जाती है. स्थिति का यह बदलाव स्वागत योग्य है. अलका मिश्रा ने कहा कि कजरिया के बारे में लिखा गया है कि “कैसे खेलन जहिये सावन में बदरिया / घिर घिर आये बदरिया हे सजनी”. समाज में स्त्री की जो स्थिति है उसे दिखाया है घमंडी राम ने और महिला-उत्पीड़न को भी भली-भाँति प्रदर्शित किया है.

     विनीतांश ने कहा कि कजरिया, गुलगुलिया जाति से आती है. इस जाति की महिलाएँ बहुत निर्भीक होती है. उन्होंने कहा कि आज के नवमानवता वाद में क्या सम्भव नहीं है. यह भी हो सकता है कि कजरिया जैसी महिला भी बिधायक बन जाये. उन्होंने बताया कि विफनी काकी ने इन्हें बहुत प्रभावित किया. तपेशर ने बिफनी काकी का दूध पिया है फिर भी आगे चल कर समय आने अर अपना असली सामंती रंग दिखा ही देता है. लोकार्पित पुस्तकों के लेखक घमंडी राम ने कहा कि वे उपेक्षा के शिकार रहे हैं. उनकी पुस्तकों की ठीक ढंग से समीक्षा नहीं की गई है. उन्होंने कहा कि साहित्य हमारे लिए हथियार है कोई मनोरंजन नहीं.

      श्रीराम तिवारी ने अपने अध्यक्षीय भाषण में कहा कि हमलोग भूगोल में रह रहे हैं इतिहास में नहीं. हमें अपने इतिहास से जुड़ कर रहना सीखना होगा. नारी जब हाथ में बन्दूक उठाएगी. इनकी दोनो पुस्तकों में आन्दोलन की बात कही गई है. संस्कृति के बाजारवाद के कारण साहित्य की दुर्गति हो रही है. है. घमंडी राम ने अपनी पुस्तक ढाइ आखर प्रेम का में बाजारवाद का उत्तर दिया है. ये पुस्तकें प्रतिरोध का साहित्य है. जो बातें अनकही रह जातीं हैं वही प्रतीकात्मक रूप से प्रतिरोध को व्यक्त करती हैं.

      कार्यक्रम में नचिकेता और बिहार हिन्दी साहित्य सम्मेलन के अध्यक्ष अनिल सुलभ ने भी पुस्तकों पर अपने विचार व्यक्त किये. अंत में लक्षीकांत निराला ने सभी आगन्तुकों  का धन्यवाद ज्ञापन देते हुए कहा कि जिस तरह से भोजपुरी लोकभाषा में भिखारी ठाकुर हैं उसी तरह से मगही में घमंडी राम हैं घमंडी राम के साहित्यमें जीवन का चित्र है. आज के साहित्यकारों  की दृष्टि में लोभ वृति नहीं होनी चाहिए.  कार्यक्रम की अध्यक्षता श्रीराम तिवारी और संचालन डॉ. सीमा रानी ने किया. सभा में उपर्युक्त वक्ताओं के अलावे डॉ. चंद्रावती चंदन, राकेश प्रियदर्शी, आनन्द किशोर शर्मा, डॉ. बी.एन.विश्वकर्मा, हरेंदर सिन्हा, लता प्रासर, हेमन्त दास 'हिम'  भी उपस्थित थे. 

आलेख: लता पराशर
प्रस्तुति और छायाचित्र: हेमन्त दास 'हिम' 
अन्य जानकारी या सुधार के सुझाव इ-मेल द्वारा भेजें : hemantdas_2001@yahoo.com

Ghamandi Ram (middle)

Sriram Tiwari (standing)









From left no.3- Bhagwati Pd Dwivedi, 4- Harender Sinha, 6- Rakesh Priyadarshi, 7- Anand Kishore Shastri





















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