पालतू कुत्ता पैर से नs पेट से दउड़s हे
आलेख - नरेन्द्र कुमार
दिनांक 20.05.2017 शनिवार, शाम 5 बजे। पटना में सीजन का सबसे गर्म दिन―तापमान 42.2℃
था। ऐसी गर्मियों में जब महा जनकवि बिना
वातानुकूलित हॉल के किसी भी गोष्ठी का निमंत्रण स्वीकार नहीं करते, हमलोग खुले वातावरण में गाँधी मैदान की गाँधी
मूर्ति के पास कवि राकेश प्रियदर्शी को सुनने के लिए उपस्थित थे। संजय कुमार कुंदन,
भावना शेखर, राजकिशोर राजन, प्रत्यूष चन्द्र मिश्र, समीर परिमल,
डॉ सुजीत वर्मा, रामनाथ शोधार्थी, हेमंत दास 'हिम', कुमार पंकजेश, शशांक, अमरनाथ झा एवं
नरेन्द्र कुमार 'दूसरा शनिवार'
की गोष्ठी में सम्मिलित हुए। भावना शेखर की
उपस्थिति गोष्ठी की उपलब्धि रही। कवि राकेश प्रियदर्शी ने 'पिता का चश्मा', 'एक युग का अवसान', 'नदी', 'कागज बिनता बच्चा', 'इतिहास' (मगही एवं हिंदी),
'जहाँ प्रेम तड़प रहा है', 'लोमड़ी', 'पालतू कुत्ता' (मगही एवं हिंदी), 'मुक्तिपथ',
'मछली', 'घास और बकरी', 'साँप', 'हर्ष-विषाद'
एवं 'असफ़लता' शीर्षक वाली
कविताएं सुनाई।
राकेश प्रियदर्शी को सुनना जीवन को सुनना था। कवि की सरलता एवं सहजता उनकी
रचनाओं में पिरोई हुई थी, पर भाव एवं अर्थ में कई गूढ़ बातें उद्घाटित कर
रही थीं। कविता-पाठ के उपरांत कुमार पंकजेश का कहना था कि कवि की रचनाएं
सरल एवं सुगम हैं। इन्हें सुनने के लिए कोई माथा-पच्ची करने की जरूरत नहीं
पड़ती। सुनने के उपरांत श्रोताओं के मन में अपना बिंब छोड़ जाती हैं। कविताओं
में आम आदमी की तकलीफ है तथा कई कविताएं व्यंग्य शैली में लिखी गयी हैं जो
सोचने पर मजबूर करती हैं। हिम दास 'हिम' का मानना था कि राकेश प्रियदर्शी
की कविताएं लोकभाषा में मुखर होती हैं। पालतू कुत्ता शीर्षक वाली कविता
व्यंग्यात्मक शैली में बहुत असरदार है। वे रचनाओं में मुहावरों का प्रयोग
करते हैं तो कई मुहावरे गढ़ भी लेते हैं। रामनाथ शोधार्थी ने चर्चा को आगे
बढ़ाते हुए कहा कि सभी कविताएं अच्छी लगीं। शब्दों का चयन एवं संयोजन
बेहतरीन है तथा कविताएं अपना प्रभाव छोड़ जाती हैं।
संजय कुमार
कुंदन ने दूसरा शनिवार का हार्दिक आभार व्यक्त करते हुए कहा कि राकेश
प्रियदर्शी जैसे लो-प्रोफाइल कवि को एकल-पाठ के लिए चुनना सार्थक रहा। कवि
जितने सीधे एवं सरल हैं, कविताएं भी वैसी ही दिख रहीं हैं पर असीम गहराई
लिए हुए है। बिंबों का अद्भुत प्रयोग उनकी कविताओं में है। समीर परिमल
कविता-पाठ से सन्तुष्ट दिख रहे थे। उनका कहना था कि सहज-सुबोध कविताएं
प्रभावित कर गयीं। प्रत्यूष चन्द्र मिश्र ने कहा कि इतना सहज-सरल कवि आज के
साहित्यिक समाज में हाशिये पर क्यों है जबकि कवि का दो संग्रह आ चुका है।
कविताएं प्रचलित फॉर्मेट में रची गयी हैं तथा लयात्मकता इनकी विशेषता है।
भावना शेखर ने दूसरा शनिवार में शामिल होने पर प्रसन्नता व्यक्त की तथा
कविताओं पर बोलते हुए उन्होंने कहा कि सरल-सुबोध कविताएं समय के माकूल हैं
तथा समाज की समस्याओं को हौले-से छू जाती हैं। इन कविताओं में तपन है।
सुजीत वर्मा ने "कविता जीवन की आलोचना होती है" उद्धृत करते हुए कहा कि
राकेश जी की कविताएं सीधे मन में उतरती हैं।
नरेन्द्र कुमार ने कहा
कि कवि की रचनाओं में दो तरह के भाव आये हैं। एक तरफ वे समय एवं समाज की
विद्रूपता को अपने व्यंग्यात्मक लहजे में पुष्ट करते हैं, वहीं प्रेम या
अन्य संबंधों पर रची कविताएं उनकी सहज एवं घनीभूत संवेदना को पूर्णता में
व्यक्त करती हैं। जहाँ तक आलोचकों का ध्यान न जाने का प्रश्न है तो आज
अधिकांश रचनाकारों के अपने आलोचक हैं तो आलोचकों के अपने रचनाकार। इसमें
सीधे-साधे एवं इन छद्मों से अलग रचनाकारों को हाशिये पर डाल ही दिया जाता
है। आलोचकों को रचनाओं में चमत्कार दिखाना होता है। शशांक ने कहा बांग्ला
एवं तमिल साहित्य में रचनाकर पाठकों से सीधे जुड़ते हैं क्योंकि वे स्थानीय
भाषा का प्रयोग करते हैं। आज की कविताएं सीधे श्रोताओं तक पहुंची हैं।
राजकिशोर राजन का कहना था कि राकेश प्रियदर्शी की कविताएं सहजता की साधना
है और इसी कारण साहित्यिक समाज में अलक्षित रह गयी हैं।
चर्चा के उपरांत सभी रचनाकारों ने अपनी-अपनी रचनाएं सुनाईं। उसके बात चाय एवं बतकही का एक और दौर बिस्कोमान भवन के पास।
इस आलेख के लेखक: नरेन्द्र कुमार (narendrapatna@gmail.com)
लेखक के लिंक:
कवि- राकेश प्रियदर्शी (Poet- Rakesh Priyadarshi) |
Writer of this article- Narendra Kumar (नरेन्द्र कुमार) |
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