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Wednesday, 5 April 2017

पुस्तक-समीक्षा: - विनीता मल्लिक का मैथिली कविता-संग्रह- आऊ बढ़ि चलू’ [Review of Maithili book of poems authored by Binita Mallik- 'Aaoo Badhi Chaloo']

शोषण और विभ्रम के जाल में उलझी नारी-अस्मिता

समीक्षक –हेमन्त दास ‘हिम’)
(English translation made by Google follows the Hindi text)
विनीता मल्लिक की कविताओं में नारी के संघर्षों के विभिन्न आयाम तो प्रतिबिम्बित होते ही हैं परंतु एक अनोखी बात भी है जो उन्हें तथाकथित नारी-आंदोलनों से अलग एक यथार्थवादी विशिष्ट पहचान प्रदान करती है. यह अनोखी बात है इनकी असीम सकारात्मकता से परिपूर्ण वह नारीत्व जो समाज की विषमतावादी सोच से बार-बार घायल होते हुए भी अपने कर्तव्यों से विमुख नहीं हुआ है. वह जानता है कि जहाँ अपने ऊपर हो रहे अत्याचारों को सहना उसे तनिक भी गवारा नहीं है वहीं उसे पूर्णतया भान है अपनी जिम्मेवारी का भी. यह स्वालोचना की प्रवृति विनीता की कविताओं को एक विशिष्ट आयाम प्रदान करती चली जाती है और श्रोतागण नारीवाद में से नारेबाजी को भिन्न पाकर बहुत राहत महसूस करते हैं.
मैथिली पद्य में ‘अहीं जकाँ’ की सफल रचना करने के बाद ‘आऊ बढ़ि चलू’ विनिता जी का दूसरा एकल काव्य-संकलन है जिसमें वो तमाम संकीर्णताओं को तोड़ फेंकते हुए पूरी नारी जाति को देश, समाज और परिवार के लिये अर्पण करने हेतु तैयार करने के प्रयत्न में लगी दिखती हैं. नारी का दैहिक सौंदर्य जहाँ एक ओर नारी के लिये वरदान है वहीं इसको पथभ्रष्ट समाज से बचाये रखने का गुरुतर दायित्व एक बड़े संकल्प की माँग भी करता है. वास्तव में नारी को पुरुष-प्रधान समाज में स्वयं के शारीरिक, मानसिक और आत्मिक शोषण से स्वयं बचाकर रखने में ही जीवन की ऊर्जा का अधिकांश भाग खर्च हो जाता है.कभी यह नारी ‘अखबार’ की तरह दैनिक महत्व की चीज सी प्रयोग में लायी जाती है -
“फेकू तऽ रद्दी पढ़ू तऽ ज्ञानक भंडार लपेटू कवच जकाँ चपैतू वस्त्र जकाँ”
तो कभी इसे ‘सड़क’ बन कर पूरे परिवार को जीवन के गंतव्य की ओर ले जाने हेतु स्वयं पददलित होना पड़ता है-
“सड़क नांघति अछि पहाड़ पहुँचावैत अछि समंदर धरि जीवनक रंगिनियत सँ बेखबर सपाट-स्याह। जरूरत मोताबिक मुड़ि गेल, झुकि गेल कत्तहुँ सँ जुड़ि गेल”
कभी ‘चींटी’ बन कर ये आधी आबादी बस मेहतन किये जाती है दिन-रात अनवरत सम्पूर्ण मेहनत - “जनम सँ बुढ़ापा धरि हरदम काज करैत अछि। सामंजस्यता मे कखनहुँ पाछाँ नहिं हटैत अछि”.................. “झोंकति अछि अपन पूर्ण जीवन, जोगाड़ै मे दाना, सँवारय मे घर अपन अनवरत प्रयाससँ”
‘इलास्टिक’ शीर्षक कविता में स्त्री की सामंजस्य कर लेने की विवशता का अत्यंत सटीक चित्र उकेरा है कवियित्री ने.

“साँचे स्त्रीक जिनगी अछि इलास्टिक पट्टी सन जे बहुतहुँ खींचा-तानीक पश्चात् कनेक चड़मड़ाहटक संग धऽ लैत अछिμ पूर्ण रूप पूर्व रूप”
कुछ उसी प्रकार की विवशता से पाठक का सामना होता है ‘स्त्रीक जीवन’ कविता में . “डेग बहराय सँ पहिने घबड़ाइत अछि। बिनु सहारा लड़खड़ाइत अछि। निर्णय लेमय पर चरमराइत अछि”
‘ रश्मि’ शीर्षक कविता में एक शंखनाद है स्त्री को संघर्ष हेतु खुलकर बाहर आने का –
“की करतीह, अस्तितवक रक्षा हेतु रहतीह दुबकल वा बहरेती ई रश्मि”
‘बेटीक माए’ में पुनरू नाटकीय समाज का पर्दाफाश करते हुए कवियित्री दिखा रही हैं कि बेटी के जन्म पर मनाई जा रही खुशी दरअसल इस बात को लेकर है कि अब फिर से शोषण की जाने वाली कोई चीज, कोई खिलौना मिल गया है इस ढोंगी समाज को –
“बाप खुश जेना जीतल कोनो जंग भाए केर खेलकेँ भेंटल संग समाज केर बेढंग रूप देखि माएक मन पसीज गेल”
कवियित्री सिर्फ स्त्री के अन्याय के विरुद्ध लड़ाकूपन को दिखा कर अपने रचनाकर्म की इतिश्री करनेवाली नहीं है. वह नारी के मधुर मादक श्रृंगारिक रूप को भी नि:संकोच दिखलाती हैं ‘प्रथम मिलन’ जैसी कविता में –
“प्रथम मिलन मधुर मन मदमस्त बनल अछि तन्मय तन तल्लीन। शीतल शीत सतत् पड़य अछि, अधर, आतुल आधीर”
नारी का भला सिर्फ जुलूस निकालने में नहीं बल्कि अपने अंदर अंतर्वीक्षण करने में भी है.उसे स्वयं को भी समाज के रावणों से समझौता करने से बचना होगा. आज की सीता के विकृत रूप को दर्शाती हुई वे कहती हैं -
“एक सीता आई होए छथि जे सोनाक लंका मे वास चाहि रावण संग मिलि अयोध्या दहन करय पर उतारू भेल छथि”
नारी से इतर भी शोषित वर्ग है और बहुत बड़ा वर्ग है वह पढ़ाई-लिखाई से वंचित एक शिशु की दशा देख कर वह द्रवित हैं जिसे सड़क पर फुक्का बेचने को मजबूर हैं-
“फाटल वस्त्रावला रमुआ एक हाथ सँ फुक्का पकड़ने दोसर सँ पेट मलति लाचारी बतवति अछि सर्र दऽ गाड़ी आगाँ बढ़ि गेल”
‘बेटीक बिदाई’ शीर्षक कविता में वह कहती हैं कि बेटियों को बेवजह किसी से बिना किसी गम्भीर कारण के विवाह के मामले में माता-पिता की अवज्ञा से बचना चहिये –
“छी मुँह बौने ठाड़, बेटी विदाईक दुःख मे नोर बहावय केँ, अधिकार छीनति अछि। काल्हिक बेटी आई जवान भेल अछि”
‘जुलूसक झण्डा’ शीर्षक कविता में सामाजिक-आर्थिक दशा पर करारा व्यंग्य करते हुए वह दिखाती हैं कि जुलूस का झण्डा थामना एक गरीब का राजनीतिक निश्चय नहीं बल्कि बस एक शाम की रोटी के वास्ते है-
“कि, पाछाक भीड़ रूख बदलय मे नहिं केलक देर झट डंडा सँ ओ पुरना झंडा फेंकल आ नव झंडा लगाय करैत हिनक जय-जयकार आगाँ बढ़ैत छथि”
‘ मच्छरदानी’ एक बेजोड़ कविता है जिसमें नारी और उसकी शीलहरण करने को पिपासु जगत के बीच युद्ध को उत्पन्न करने का सायास प्रयत्न किया जा रहा है-
“कोना लड़तीह एहि मच्छर जकाँ पिपासु जग सँ आ बहरेती, मुक्ति पेतीह एहि मच्छरदानी आवरण सँ”
‘ नि:शब्द माछ’ कविता अतिश्रेष्ठ कविता है जिसमें वह सचेत करती दिखती हैं यह कहते हुए कि नारी रूपी मछ्ली को उपलब्धियों की चाह में बगुलों के हाथों में जाने से बचना होगा-
“जिनगी मे उपलब्धिक चाह मे जखन कनियो ऊपर उठैत छैक कि टकटकी लगौने बगुला पहुँचा दैत छैन्हि ओहि ऊँचाई पर जतय किनकुहु हाथ ने दृष्टि पहुँच पबैत अछि”
‘ तितली’ शीर्षक कविता में नारी जीवन की परिस्थितियों की तुलना उस तितली से की गई है जो बाँध दी जाती है और सिर्फ मरने पर ही मुक्त की जाती है-
“क्रूर मानव अपन मनोरंजन लेल अधिकार सँ, डोरि बान्हि लाचार करैत अछि ओ तितली अनवरत फड़फड़ायत अछि यावत रहय छैक ओहि मे कनेतो जान। दम तोड़ितहिं स्वतंत्र कएल जाइत अछि”
कुल मिलाकर पुस्तक ‘आऊ बढ़ि चलू’एक पठनीय और संग्रहणीय पुस्तक है जिसे पढ़ने के बाद अधिकार और कर्त्तव्य में सामंजस्य बैठाते हुए आगे बढ़ने की प्रेरणा मिलती है. यद्यपि कुछ कविताओं को और भी विस्तृत किया जा सकता था. विनीता इस पुस्तक के लिये बधाई की पात्र हैं.
समीक्षक : हेमन्त ‘हिम’
ई-मेल: hemantdas_2001@yahoo.com
.....
(English translation made by
Google)
Entangled women n the trap of exploitation and hallucination
Various dimensions of women's struggles in Vinnita Mallik's poetry are reflected as well, but there is also a unique thing that gives them a realistic distinctive identity apart from the so-called women-movements. It is a unique thing that the femininity of their immense positivity, which has been repeatedly wounded by the asymptomatic thinking of the society, has not disagreed with its
duties. He knows that where he is not able to endure the atrocities facing him, he is fully aware of his responsibility. This tendency of soliloquy goes to give a specific dimension tothe poems of Vineeta, and the audience feels very relieved by getting the
slogan different from feminism.
After successful compilation of 'Yahe
Yaakon' in Maithili verse, 'Aaye Gaddi Chiu', the second single is the poetry-compilation of Vinita ji, in which she is preparing to sacrifice all the feminists for thecountry, society and family by breaking them down. Seem to be engaged in tryingto do While the physical beauty of a woman is boon for women on one hand, the greater obligation of saving it from a
misguided society also demands a greatresolution. In fact, most of the energy of life is spent in keeping a womansaved in the male-dominated society with the physical, mental and spiritual exploitation of herself.Every time this woman used the daily importance ofthings like 'newspaper' She goes -
"False trash
Studied stock
Wrap up the armor
Wore white clothes "
So it has to be devised to become the
'road' to take the whole family towards the destination of life-
"Road map good mountain
Reached well
Life style colorlessness
Flat-blue
Needing
Turn Gale, Zuckie Gayle
Kathhun se jdy gayel "
By becoming 'ant', these half of the population is simply mistreated, day and night, all the hard work -
"Janam San Oldham Dhari
Everyday I have
Kanhenah in harmony
I do not know anything
.................
"I feel full, my whole life,
Dana in Jogadai,
Family house
Our continuous efforts "

The poem titled 'Elastic' is a very accurate picture of the compulsion to harmonize the woman in poetry.
"Molds
The woman is good
Elastic bar flax
After a lot of time
Kennel flirtatious
Good enough μ
Complete form "

In the same way, the reader faces a similar kind of rhyme in the 'woman life'
"Dude is wearing deaf hair
Dreaded
Binu Sahara
Wobble
On the decision
Screwed "
A poem in the title 'Rashmi' is a woman's face to come out of struggle for struggle -
"Of course, for the protection of the individual
Live or lean
E rashmi "
Explaining the dramatic society in Betiak Maa', poetry shows that the happiness being celebrated on the birth of a daughter is about the fact that now something has been exploited, no toy hasbeen found, this creeps society To -
"Happy Father Jena Jital Kono Jung
Playing games with frogs
Socially uneven look
Maaaaaaaa Manaa Paseez Gayle "
Poetry is not just a fight against injustice of woman, it is not an anticipation of its creation. She also feels helpless in the sweetly sexy erotic form of the woman, in the poem like 'First Milan' -
"First Match
Sweet mind
Diligence
The cold winter time is constant,
Inferior, inner diameter "
The woman's good is not only in
procession but also in inspection of herself.He himself will have to refrain from compromising society's Ravana. Reflecting the distorted form of today's Sita, she says -
"One Sita came Ho Chithi
Joe Sonak in Lanka
Vas Chahai Ravan Milk
Ayodhya on combustion
Take Bhel Chhathi "
Apart from women, there is also a more
exploited class and a very large class is seeing the condition of a child deprived of education and she is fluid who is forced to sell the street on the road-
"Falte Wastravala Ramua
Catching a hand
Dorsal carcinoma
Helplessness
The train will grow faster "
In the poem titled 'Betike Bidayai'
she says that the daughters should avoid the disobedience of the parents in case of unnecessary marriage without any serious reason -
"Chhicha mouth dwarf chaad,
daughter videekak sorrow
Nor is it safe, right away
Kalhik Daughter I Jawan Bheel Ashchi
"
In the poem titled 'Juhu Kusak Jhanda', in a satire on the socio-economic condition, she shows that the procession is not a political decision of a poor, but it is for an evening roti-
"That,
Due to a change in the crowd
Flutter
Come fresh flag
Karate hink jay cheer
Aga Baratat Chhthi "

The 'mosquito net' is a unique poem in which a woman is trying her best to create war between the world of Pippaasu -
"Kona Fotih
This mosquito is a world where
Aa Bahretti, Mukti Patih
These mosquito nets include "
The silent poem is the best poem in
which it appears to be alert, saying that a female fish would have to refrain from going to the hands of the shepherds in the quest for achievements-
"In the hope that
Chakra Kanio Raises the Wake Up
Gaze
On reaching the height of the
charioteer
Vision
Accessibility "
In the title 'Butterfly' poem, the situation of woman life is compared to that butterfly which is tied and is freed only when it dies -
"Cruel people
Just for their entertainment
Will make her helpless
Binding with the rope of their
authority
Continuous fluttering
That butterfly
is freed
only when she is dead."
Altogether, the book 'Aaye Gana Chillu' is a readable and collectable book that, after reading, inspires in the right and duty to move forward and get motivated to move forward. Although some poems could be further expanded. Vinita is eligible for this book.




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