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Saturday, 1 April 2017

चैत मासे राम के जनमिया हो रामा - भागवत 'अनिमेष' का आलेख ('Chaitaa' songs in Bihar - an article by Bhagwat 'Animesh')

(English translation of this article is placed below the Hndi text)
Link of the picture at the end of article 
🎁चैत मास का लोकगायन  
- भागवत शरण झा 'अनिमेष'
हमारा परिवेश , प्राकृतिक वातावरण और ऋतुगत प्रभाव हमारे जनजीवन पर गहरा असर छोड़ता है। फागुन अगर फाग के लिए जाना जाता है , तो चैत का महीना ऋतु के गहरे भाव-बोध का महीना माना जाता है।फागुन रंग और उमंग के लिए जाना जाता है ,तो चैत प्रेम के गहरे रंग में दिल के दाग़ को देखने का महीना है।चैता , चैती , घाटो या चैतावर चैत मास का गायन है।इस मास से सम्बन्धित राग-चित्र भी मिलते हैं। जैसे चित्रों द्वारा बारहमासा के रचे जाने का प्रमाण मिलता है , ठीक वैसे ही गायन में भी ऋतु-सुलभ गायन की परम्परा रही है। यह शास्त्रीय संगीत में भी है , और लोकसंगीत में भी।चैता या चैतावर और चैती अखण्ड बिहार , पूर्वी उत्तर प्रदेश और अवध का लोकगायन है। इसमें आह्लाद और करुणा ,दोनों भाव रहते हैं।सुख और दुःख , आशा-निराशा और जय-पराजय जीवन के दो ध्रुव हैं। इस गायन में दोनों रंग होते हैं ---- चटख और गहरे।

     होली और चैता में मूलभूत अंतर यह है कि होली की तरह इसमें हल्का, फूहड़ , व्यंग्य-विनोद भरा और सतही होने की थोड़ी भी गुंजाइश नहीं होती है। यह गंभीर भाव-बोधों का सहज गायन है।जैसे हवा में सिहरन की जगह मस्ती भरती जाती है, रात की चाँदनी मादक और झकाझक होती जाती है , अमराई में कोयल की कूक मन में हूक जगाने लगती है , वैसे ही यह गायन राग-रम्य और बेधक हो जाता है। चूँकि होली चैत्र मास की प्रतिपदा तिथि को मनाई जाती है , इसलिए उस दिन होली गायन के साथ ही चैता और चैती गायन का भी विधान है।स्तरीय गायक होली के साथ चैता गाते हैं , विरह से भरा चैता , फिर ख़ुशी के मूड की होली सुनाते हैं। फागुन की परिणति चैत है।यह आनंद के शिखर पर चढ़ने का ठहराव भी है।गंभीर मन की गमक भी है। चूँकि चैत्र शुक्ल पक्ष नवमी को भगवान श्री राम का जन्म हुआ था , (भये प्रगट कृपाला दीनदयाला ...!)अतः इस ख़ुशी को चैता गायन में प्रमुख स्थान मिला है । रामनवमी मेला में चैता का दूगोला गायन मुकाबला देखते बनता है।रामभद्र( हाज़ीपुर ) मेला सहित बिहार -झारखण्ड और पूर्वी उत्तर प्रदेश में राम जन्मोत्सव और चैता गायन के जुगलबंदी की परम्परा रही है। " चैत मासे राम के जनमिया हो रामा , चैत मासे।" यह बहुत ही लोकप्रिय चैता गीत है।

     #चैता ग्राम्यजीवन से जुड़ा है।इसमें पुरुष मण्डली गायन करती है।इसमें लोक प्रबल होता है। शास्त्रीयता का आग्रह आवश्यक नहीं है।यह शुद्ध लोकगायन है। #चैती उपशास्त्रीय ( सेमी क्लासिकल) गायन की ऋतु -अनुरूप परम्परा है।विदुषी गिरिजा देवी,शोभा गुर्टू , शुभा मुद्गल सहित कई गायिकाओं ने चैती का भाव-विभोर गायन किया है।चैती गायन में हारमोनियम , सारंगी , तबला और बाँसुरी जैसे साज प्रयोग में लाये जाते हैं।पं0 छन्नूलाल मिश्र का बनारसी चैती गायन एक अलग समा बाँधता है।उनका एक मशहूर चैती गायन का बन्द निम्न प्रकार से है :

"सेजिया से सइयाँ रूठि गइले हो रामा
कोयल तोरी बोलिया ...
रोज तू बोलेली सांझ-सवेरबा 
आज काहे बोले अधरतिया हो रामा...
होत भोर तोर खोतबा उजारबो
और कटइबो बन-बगिया हो रामा..."

    " रात हम देखली सपनवा हो रामा .." ( #विदुषी गिरिजा देवी) , "चैत मासे चुनरी रंगा दे पियबा " (विदुषी शोभा गुर्टू) और "सूतल निंदिया जगाए हो रामा" ( विदुषी शुभा मुद्गल )जैसे कई बोल इस गायकी के अनमोल रत्न हैं।यह खजाना कभी भी खाली नहीं हो सकता ।

    लोकगायन हमेशा लोककण्ठ से फूटता है। चैता भी लोककण्ठ से ही फूटा ग्राम्यजीवन और कृषि संस्कृति का स्वर है। फागुन के बाद फसल के पककर तैयार होने की ख़ुशी का यह समय किसानों के अकथ आह्लाद का समय होता है।ऐसे में शाम ढलते ही ढोल , ताशे , झाल , करताल , हारमोनियम जैसे पारम्परिक वाद्य के साथ चैता गान देर रात तक चलता है।गायन का शुभारम्भ व्यास प्रायः भजन-सुमिरन से करते हैं। यथा : " कंठ सुर मा होख न सहइया हो रामा , कंठ सुर मा...!

     इस लोकानुभव को उपशास्त्रीय गायन में भी स्वीकार किया गया है।अतः चैता की छटा केवल गाँव के कमपढ़ या अनपढ़ लोगों तक ही सीमित नहीं रही है ; बल्कि सांस्कृतिक रूप से सम्पन्न जनमानस ने भी इसे सहेजा और सँवारा है।कई सांस्कृतिक हस्तियों ने भी इसे आश्रय दिया है। भोजपुरिया संस्कृति ने भी इसे हाथोंहाथ लिया है , इसे व्यापक बनाया है।चैता के बोल बहुत ही सहज , किन्तु काव्यात्मक और बेधक होते हैं।बोल की भावगम्यता और अर्थव्यञ्जकता चिरनवीन और बेधक होती है।वसंत ने उल्लसित कर दिया था।फागुन में होलीमिलन की प्रतीक्षा थी।पिया नहीं आए।अब विरह की वेदना चरम पर है।यह दशा कहने या सुनने की दशा नहीं है।यह पीड़ा की पराकाष्ठा है।अब कुछ भी सुहाता नहीं है।

" पिया-पिया रटत पियर भेल देहिया ए रामा ...
पिया-पिया
लोगवा कहेला पांडू रोगवा ए रामा 
पिया-पिया ..! "
     होली के धमार की तरह यह भी बहुत धीमे से, हौले से शुरू होता है , फिर गति बढ़ती है , और अंत में दुःख ही या सुख झमक उठता है। पहले व्यास या प्रमुख गवैया गाता है, बाद में उसी गायन को सहगायक - दल दुहराते हैं। इसी बीच नाच और स्वांग का भी दौर चलता है। इसी क्रम में इनाम में रुपया उड़ाने का चलन भी देखने के लिए मिल जाएगा। नायिका के दैनिक जीवन की साधारण घटना पर भी असाधरण गीत बन जाते हैं :
" एही ठइयाँ टिकुली हेरायल हो रामा 
एहि ठइयाँ..!
टिकुली हेरायल मोरा बेसरा हेरायल
फुले-फुले भँवरा लोभाएल हो रामा
एहि ठइयाँ "

     मुंशी प्रेमचन्द की चर्चित कृति 'गोदान ' पर बनी फ़िल्म में नायक 'होरी' की पीड़ा की मार्मिक अभिव्यक्ति के लिए चैता शैली के एकल गीत का सहारा लिया गया है , और यह प्रयास बहुत सफल रहा है। इस गीत का बोल "जिया जरत रहत दिन-रैन" बहुत ही बेधक है। मालिनी अवस्थी , कल्पना , विजयभारती और मनोज तिवारी सहित कई सेलिब्रिटी लाइव शो में भी इस लोकशैली के गीत गाकर अपार भीड़ का मनोरंजन बिहार और यूपी से बाहर जाकर भी करते रहे हैं।इसे भोजपुरी फ़िल्म -उद्योग से भी मजबूती मिली है।पूरबी के बाद चैता भोजपुरी फ़िल्म के गानों में उचित स्थान पाता रहा है।आकाशवाणी , दूरदर्शन , संगीतस्नेहीजन और खुद लोकभाषा के गायकों ने इसे बचाकर रखा है। हाल ही विजयभारती ने एक अतिविशिष्ट होली गायन के कार्यक्रम में चैती गाकर श्रोताओं को भाव-विभोर कर दिया। दूरदर्शन द्वारा रिकार्डेड इस चैता को नई पीढ़ी ने खूब सराहा और मदहोश हो गए । इस चैता के बोल सुनिए -

" चढ़ल चईत चित्त लागेला न हो रामा
बाबा के भवनमा sss...।
बीर बभनमा सगुनमा बिचारो
कब होइहें पिया से मिलनमा हो रामा
बाबा के भवनमा ... ।


याद आवत है पी की बतिया
उर बीच उठत लहरबा हो रामा
बाबा के भवनमा..। "

    चैत मास में गाए जानेवाली इस गायकी का पासवर्ड ' हो रा..मा..' है।इस शैली के हर गीत में यह पुछल्ला जरूर रहता है। चैता और चैती के बोल ( लिरिक) एक ही हो सकते हैं। सिद्धांततः कोई अड़चन नहीं है। हाँ , उपशास्त्रीय गायनवाले लिरिक की गुणवत्ता पर ज्यादा ज़ोर देते हैं। इसमें साहित्य और कवित्व उच्चकोटि का होता है। सामान्य गायन में फूहड़ , बाज़ारू और अश्लील बोल भी आ जाते हैं।

      पारम्परिक चैता के बोल भी अनमोल रहे हैं ;किन्तु सस्ती लोकप्रियता , धन कमाने की होड़ और फूहड़पन के अपवाद के कारण चैता के भदेस होने का खतरा बढ़ गया है। इससे जुड़े रंगारंग बड़े कार्यक्रमों के अपसंस्कृत होने कई वीडियो आप खोज सकते हैं।।लौंडा -नाच तक तो ठीक है , लेकिन अब कई औद्योगिक क्षेत्र में हुए ऐसे कार्यक्रमों में बारबालाओं का नाच , रुपये उड़ाना और लम्पटपन का थोड़ा भी उदाहरण प्रस्तुत करना एक सांस्कृतिक और सामाजिक पतन की सम्भावना को रेखांकित करता है।

    प्रगतिशील सोच के बिना लोककला भी अपना मूल स्वरूप और लक्ष्य खो देती है। आइए , इस लोक-धरोहर के संरक्षण का संकल्प लें।हज़ार सालों से भी अधिक समय से चली आ रही इस लोक-परम्परा को बचाकर सांस्कृतिक विपन्नता के संकट से बचें। चैता के नए बोल भी गढ़े जाने चाहिए , जिसमें आज के देश-काल की धमक हो। क्या पर्यावरण , कन्याभ्रूणहत्या और मज़दूर - किसानों की पीड़ा जैसे कुछ नए विषय कायदे से इसके बोल नहीं बन सकते हैं ? गुणीजनो ! आपलोग कोशिश तो करें।विचार के स्तर पर ठहराव कला,संस्कृति और समाज के लिए ठीक स्थिति नहीं होती।
(कॉपीराइट प्रभावी)
# भागवतशरण झा 'अनिमेष '
आयकर अधिकारी ( अंतर्राष्ट्रीय कराधान)
द्वितीय तल , केंद्रीय राजस्व भवन , पटना-१.
फोन : 08986911256.

              (English translation made by Google and partly improved by Hemant 'Him')
 Folk Songs of Chaitra month # Bhagwat Sharan Jha 'Animesh'

     Our environment, natural environment and seasonal effects leave a profound effect on our lives. If the Fagun is known for the Phag (Holi festival), then the month of Chait is considered as a month of deep emotional sensation. Fagun is known for color and warmth. , Then it is the month of seeing the stain of love rooted the heart in the dark color of Chaiti . Caita, Chaitya, Ghato or Chaitwar singing of Chaita month. Raga-pictures also related to this month are also seen in vogue. There is evidence of ‘Barahamasa’ being created, in the same way this singing has been a tradition of seasonal singing. It is also in classical music, and also in folk music. Chaita or Chaitwar and Chaita of undivided Bihar, Eastern Uttar Pradesh and Awadh There is folk music in it. Both are filled with affection and compassion. Suffering and sadness, hope-despair and win-defeat are two pole of life. In this singing, both colors are ---- bright and deep. The difference is that like in Holi, there is little room here to be light, slut, satire, junk and be superficial. This is a simple singing of serious feelings. Just like the night is filled with joy in the air, at night the moonlight becomes narcotic and delirious.

    When the flowers of mango appear, the cuckoo's cook begins to create aching in the mind, so the singing becomes ragged though graceful. As the festival of Holi is celebrated on the first day of the month Chatra, Chaiata and Chaiti are also sung on that day along with the songs of Holi.  Various singers sing Chaita with Holi, Chaita full of joy, then recite the Holi of happiness mood. The culmination of Fagun is chaita. It is about climbing the summit of happiness There is also a stagnation. There is also an aroma of serious mind. Since Lord Rama was born on Chaitra Shukla Paksha (Bhaye Pragat Kripala Deenadaya ...!) So this happiness has got prominent place in Chaita singing. The Chaita Dugola singing is seen in the Ramanavmi Mela.  During Ramabhadra (Hajipur) fair, it has been in tadition in Bihar-Jharkhand and eastern Uttar Pradesh to sing of Chaita songs along with songs of Ram’s birth. "Chait masa Ram janamiya ho Rama, chait maase." This is a very popular Chaita song.

     # Chaita is associated with rustic life. In this, the male congregation performs singing. In this, ethnic element is strong. The insistence of classicality is not necessary. This is a pure folk song. # Chaiati  (Semi-classical) is the seasonal tradition of singing. Many singers including Learned Girija Devi, Shobha Gurtu, Shubha Mudgal have rendered soulful singing of Chaita. In Chaiti singing, use of harmonium, violin, tabla and flute are prominent. The Banarasi Chaitya singing of Pannu Chunnulal Mishra forms a separate affair. Their famous teetotaling vocals are as follows:

"Seiji ke saiye ruthi gayle ho rama
Kole Tori Bolia ...
Daily thou shalt be sun-sherbaara
Today is said to be an obstacle, Rama ...
How are you
And Katiebo bun-baghi ​​ho raa ... "

    Many nights like "night we saw sapnava ho rama .." (#wadushi girija devi), "Chait masa chunari ranga de piya" (Vidhishi shobha gertu) and "sundal nindiya waje ho rama" (Vidyshi shubha mudgal) are precious There are gems. This treasure can never be empty.

    Folklore always grows through the folk dance. Chaita is also the tone of rural life and agricultural culture, which has been eroded from folk dance. This time of joy is ready for the harvest of fog after the phagun. In such a case, the chaata song can be played late in the night with a traditional instrument like drums, trays, hooves, curls, harmonium. The beginning of the diameter is often done by the recitation of the poem. Either: "Kunda saur ma hokh na cheyya ho rama, kund sir ma ...!

     This popularization has also been accepted in subtropical singing. Therefore, the Chaita shade is not limited to only the poor or illiterate people of the village; Rather, culturally rich people also saved and restored it. Many cultural figures have also sheltered it. Bhojpuria culture has also taken it handsome, it has made it broad. The speech of Chetna is very simple but poetic and addictive. The senses of the words and the meaningfulness are eternal and inexhaustible. Vastant had jubilated. There was a wait. Don't come. Now the pain of the dead is at the peak.It is not the condition to say or hear the condition. It is the culmination of suffering. Now nothing is merciful.

"Piya-piya raatat peer bhel dhia a rama ...
Pia-pia
Logwa Kheela Pandu Rogava Aa Rama
Pia-piya ..! "
     Like the dust of holi, it starts very slowly, starts from the sky, then the speed increases, and ultimately the sorrow or happiness blows up. The first diameter or singer sings the song, then repeating the same singing conjunction There is also a period of dancing and swung between this. In this order, the reward of blowing the rupee in the reward will also be available to see. On the simple incident of the daily life of the heroine, even the unusual songs become:
"Aha Thais Tikuli Herial Ho Rama
Eh thaaye ..!
Tikuli Heral Mora Besra Harial
Flora-flower bhavra lobhal ho raama
Eh thaaye "

     Munshi Premchand's famous work 'Gondan' has been used to support the singing of Chaita-style single song for the poignant expression of the pain of hero 'Hori', and this effort has been very successful.This song is said to be "Jia Jarat Rahat Day-Ran "is very useful.Malini Awasthi, Kalpana, Vijay Bharati and Manoj Tiwari, along with many celebrity live shows also sing this locale song and entertain a crowd of people even outside Bihar and UP It has been strengthened by the Bhojpuri film industry too. After oriental, Chaita is getting proper place in the Bhojpuri movie songs. Activities, Doordarshan, music-makers and singers of their own languages ​​have preserved it. Right now, Vijayavati has given a teal in the program of a very special Holi singing, Gave. The new generation of the Cata recorded by television appreciated and become intoxicated. Listen to this verse -

"Chast chit chit laange na hau rama
Baba's temple is sss ....
Bir bababna sagunma bicharo
Jab Hohen Haiheen Piya Se Milamma Ho Rama
Baba's temple ....
Remember the time of P
Rama woke up in the middle of ur
Baba's temple ... "

    The singer's password, which is sung in the Chait month, is 'Ho Ra..me ..'. This song is definitely in every song of this genre. Chaetas and tealas (lyrics) can be the same. Theoretically there is no constraint. Yes, Upshastriy Gaynwale put more emphasis on the quality of the lyric is on these publications and muse majority. Slut normal singing, the vulgarity and obscene lyrics come.

      The lyrics of traditional chaita are also priceless; But due to the inexpensive popularity, money-making competition and sloganism, the risk of becoming a victim of Chaita has increased. You can find many videos to be compliant with the colorful events associated with this. Lollipop It is okay to do nach till now, but in many industrial areas now in such programs, it is a bit of a kind of example to dance, The Skritik and underlines the potential of social collapse.

    Without progressive think folk have also lost their original appearance and goal. Let's resolve this patronage of the heritage. By avoiding this long tradition of more than a thousand years, avoiding the crisis of cultural extremism. New words of cheating should also be fabricated, in which today's days Do not be afraid of some new subjects like environment, girl-bridegroom and laborer-farmers suffering from the law. Guys! You people trying to stay on Krenkvichar level of art, culture and does not fix the situation for society.
(Copyright effective)

# Bhagwat Sharan Jha 'Animesh'
Income tax officer (international taxation)
2nd Floor, Central Revenue Building, Patna-1

Phone: 08986911256
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