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Saturday, 1 April 2017

कविता पाठ और काव्य-विमर्श -प्रगतिशील लेखक संघ, पटना इकाई द्वारा 29.3.2017 को आयोजित (Recital and discussion of poems organised by Pragatishil Lekhak Sangh, Patna Unit)

बहुरूपिया तन्त्र की बखिया उधेड़ता समकालीन कविता-विमर्श
(English translation of the full report is placed below the Hindi text)
  प्रगतिशील लेखक संघ, पटना इकाई द्वारा मदन कश्यप को नागार्जुन सम्मान मिलने पर पटना के टेक्नो हेराल्ड, महाराजा कामेश्वर कॉम्प्लेक्स, बुद्ध पार्क के पास एक कार्यक्रम आयोजित किया गया जिसमें समकालीन कविता के अनेक सशक्त हस्ताक्षर उपस्थित थे. प्रभात सरसिज की अध्यक्षता में राजकिशोर राजन ने इस का संचालन किया. वरिष्ठ कवियों में गंगेश गुंजन, देवशंकर नवीन, शेखर, संजय कुमार कुंदन, शहंशाह आलम आदि प्रमुख थे. प्रथम सत्र में मदन कश्यप ने सात कविताओं का पाठ किया जिनके शीर्षक थे -  भारत माता की जय, डपोर शंख, छोटे-छोटे ईश्वर, पुरखों का दुःख बहुरूपिया, काल-यात्री और बिजूका.

   उनकी हर कविता घोर यथार्थवादी पृष्ठभूमि में लिखी गई कविताएँ हैं जो बिना शोर मचाये मनुष्य को भीतर से झकझोरती है और व्यवस्था के ढकोसलों के विरुद्ध आक्रोश भी उत्पन्न करती है. बहुरूपिया शीर्षक कविता में वे कहते हैं-
“इस बहुरूपियायी तन्त्र में
बहुत मुश्किल है
किसी का बहुरूपिया बना रहना”

और बाद में वो निर्भीकता से कह उठते हैं कि-
“आज के समाज में / केवल बहुरूपिया ही है / जो बहुरूपिया नहीं है”

सच है, केवल बहुरूपिया की आजीविका पर जीनेवाले जैसा अशक्त वर्ग ही मात्र इस खेल से आजीविका चलाने हेतु भेस बदलता है नहीं तो जिसे थोड़ा भी पावरमिल गया वह लगता है जनता को प्रतिदिन भेस बदल-बदलकर छद्म रूपों के साथ जनता को मूर्ख बनाने और अपना उल्लू सीधा करने.

अन्य कविता की बेधक पंक्तियों में उन्होंने कहा-
“किसी भी अन्य नदी से प्राचीन है / वेदना की नदी
जो समय की दिशा में बहती है/ पीढ़ी-दर-पीढ़ी / पुस्त-दर-पुस्त”

विल्कुल सही है, यह शक्तिशाली लोगों द्वारा कमजोरों को कष्ट पहुँचाने और उन्हें पीड़ा देने का क्रम लगातार चलता ही रहता है चाहे कोई युग क्यों न हो. सवाल यह है कि आखिर मनुष्य क्यों नहीं अपनाता है मनुष्यता को और अगर कोई शासन या तत्र उसके अन्याय को रोकने का प्रयत्न ही नहीं करता तो उसके बने रहने का क्या औचित्य है?

कुछ कविताओं में मदन कश्यप ने वैश्विक परिवेश में संवेदनशीलता के ह्रास पर प्रभावकारी ढंग से ध्यान आकृष्ट किया तो कुछ में भारतीय राजनीति की अवांछित हलचलों को भी समेटा. एक में उन्होंने नारी के बारे में पूछते हुए कहा-
“क्या उस युग में भी / क्या स्त्रियों और बेटियों को / मिल पाता था भर पेट खाना”

   कश्यप की कविताओं को सुनने के बाद अनेक वरिष्ठ आलोचकों ने समीचीन टिप्पणियाँ की. टिपण्णी करने वालों में गंगेश गुंजन, देवशंकर नवीन, शेखर आदि प्रमुख थे. शेखर ने कहा कि कवि की कविताएँ काफी दमदार हैं किन्तु कवि को कविता के बारे में कोई परिचय या व्याख्या देने की आवश्यक्ता नहीं है. यह काम श्रोताओं का है और कविता में स्वत: समझे जाने की क्षमता होनी चाहिए.  देवशंकर नवीन ने कहा कि मदन कश्यप की कविता गूढ़ संदेशों से समाहित होती है और श्रोताओं के मन में बिम्ब निर्माण से वह परत-दर-परत खुलती चली जाती है. यही उनकी विशेषता है. प्रभात सरसिज ने कहा कि मदन की पहली तीन कविताएँ अभ्यांतरण की कविताएँ हैं. कविता में मदन उतरते चले जाते हैं. उन्होंने यह भी कहा कि गज़ल और छन्दबद्ध कविता का भी महत्व है और वह निश्चित रूप से पाठकीयता की समस्या को दूर करने में सक्षम है अगर उसमें समकालीन संन्देश हों.

   दूसरे सत्र में कवि-गोष्ठी का आयोजन हुआ जिसमें अनेक नये-पुराने कवियों ने भाग लिया. युवा कवि कुन्दन आनन्द ने मद्धिम ही सही परंतु निश्चित पनप रहे समकालीन तेवर को दिखाया और पढ़ा-
“लोग क्या से क्या नहीं कर जाते हैं / इस जमाने में रंग जमाने के लिए
देख मुझे पापा खूब हँसते हैं / अपने सारे गम को भुलाने के लिए”

एक कवि ने सूरज की तारीफ में कशीदे पढ़े और उनकी वह तथाकथित गज़ल बड़ी लम्बी थी. पंक्तियों का उद्धरण देना यहाँ आवश्यक नहीं है.

रामनाथ शोधार्थी एक अच्छे युवा शायर हैं और समकालीन भी. उनकी बानगी देखिये-
“उछलकर बादलों में फँस गया क्या / बहुत सुनी थी काले धन की बातें”

फिर हेमन्त दास हिम ने खंडहर शीर्षक कविता पढी जिसकी कुछ पंक्तियाँ थीं-
“धधकते प्रतिशोध को / वहीं बुझा सकता हूँ
उसी के खण्डों को / और खण्डित करके
क्योंकि खण्डित का ख़ण्डन अपराध नहीं”
एक जीर्ण-शीर्ण संसाधन वाले व्यक्ति पर बार-बार शक्तिशालियों द्वारा प्रहार होने पर क्षोभ को कवि ने उपर्युक्त पंक्तियों के माध्यम से प्रभावकारी शैली में व्यक्त किया है.

पुन: भागवत अनिमेष मे धान रोपती बेटियाँ शीर्षक कविता का पाठ किया जो आज की हिन्दुस्तानी बालाओं की सकारात्मक कार्यशीलता के अनेक पक्षों को उजागर करती है. छन्द-निर्माण की नवीन शैली और सलेटियाँ एवम अपडेटियाँ जैसे नवीन शब्द-प्रयोग के लिए इस कविता को जाना जा सकता है. कुछ पंक्तियाँ थीं-
“धान रोपती बेटियाँ / सुंदरियाँ स्लेटियाँ / हर इक अपने मन की रानी / नहीं किसी की चेटियाँ”

उनके बाद आजकल पट्ना में अपनी दमदार शायरी की झड़ी लगाकर लोगों को कविता से जोड़ने की सफल कोशिश में लगे समीर परिमल ने क्रांतिकारी शंखनाद किया-
“आग लग जाएगी जमाने में / जब वे बेजुबान बोलेंगे
यूँ तो भरने न देंगे जख्मों को / भर गए तो निशान बोलेंगे”
शोषितों की कराह को आग में बदलने और उस अग्नि को जिलाए रखने का यह शायराना प्रयत्न श्लाघनीय है.

कविता पाठ के क्रम को आगे बढ़ाते हुए शिवचरण ने मौसम के बदलते रंग पर कहा-
“कैसी है ये हवा / कैसा है ये पतझड़ी का खेल”
अनिल बिभाकर ने बिहारी व्यंजनों का कविता के माध्यम से आस्वादन कराया-
“जाड़े में साग-भात खाने का / अलग ही आनन्द है” 
उन्होंने पूस में खाये जाने वाले पुसहा पिट्ठे की बात भी की.

बिहार की समकालीन कविता के सशक्त प्रतिनिधि राजकिशोर राजन ने जीवन की सहजता में जीवन का रहस्य को ढूँढ लिया और कहा-
“दूब, गुलाब, तितली / का पीछा करते /  मैंने जाना / जीवन का रहस्य”

उनके बाद आए बेबाकी और निर्भीकता के साथ चमत्कारिक गति से प्रभावकारी कविता-निर्माण करनेवाले राष्ट्रीय स्तर के बहुचर्चित कवि शहंशाह आलम. उन्होंने उदास मौसम की कविता शीर्षक से कविता सुनाते हुए पिता की बिड़ी की आग को जिलाये रखने के बहाने शोषण के विरुद्ध क्रांति की आग को जिलाये रखने का काफी मजबूत सन्देश दिया. कुछ पंक्तियाँ इस प्रकार थीं-
“जहाँ मैं काम करता हूँ / वहाँ आग को मुझसे दूर रखी गई है
क्योंकि सत्ताधीश को मालूम है
इसी आग से मैं जला दूँगा / उसके अन्याय सारी दिवारों को”

वरिष्ठ कवि संजय कुन्दन ने कैट वॉक शीर्षक कविता पढ़ी जिसका अंश उद्धरित है-
“भला कब तक / अपने खूँ के कतरे-कतरे को /इन्हीं फैशन परेडों में
 रंग भरने के लिए / बिना कुछ सोचे-समझे / अता करती चलेगी”

फिर डॉ. बी.एन. विश्वकर्मा ने नोटबन्दी पर अपनी कविता सुनाई और लोगों द्वारा झेली गई परेशानियों को दिखाया.  प्रभात कुमार धवन, संजीव कुमार श्रीवास्तव आदि ने भी अपनी कविताएँ पढ़ी.
 

अंतिम कविता पाठ अध्यक्ष समकालीन कविता के प्रसिद्ध कवि  प्रभात सरसिज ने किया. - सामन्तवादियों के विरुद्ध जनमानस को उद्वेलित करने में उनकी कविताओं का एक विशेष स्थान है. उनकी कुछ पंक्तियाँ थीं‌
“अपनी उत्पत्ति के केंद्र सर ही / अपनी कीर्त्ति लेकर आए हैं लोक संहारक /
अब अपनी यशःकीर्त्ति के गुण स्वयं गा रहे हैं”

कार्यक्रम के अन्त में शहंशाह आलम ने आए हुए कविगण और श्रोताओं का धन्यवाद ज्ञापन किया. कुल मिलाकर मदन कश्यप और अन्य कवियों की यह गोष्ठी जिसमें न केवल कविता-पाठ हुआ बल्कि उनपर सार्थक संवाद भी हुआ और इस अर्थ में यह इस वर्ष में बिहार की एक बड़ी सृजनात्मक पहल मानी जा सकती है.

नोट: कार्यक्रम की इस रपट में सुधार / संवृद्धि / सुझाव हेतु ई-मेल पर सम्पर्क किया जाय: hemantdas_2001@yaaho.com
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(English translation made by Google after improvement by Hemant 'Him')
Unfolding the layers of polymorphic system 
- a  discussion on contemporary poetry
On receiving the Nagarjuna Award by Madan Kashyap, progressive writer association, Patna unit, a program was organized near the Techno Herald, Maharaja Keshwar Complex, Buddha Park in Patna, in which several emphatic signatures of contemporary poetry were present. Under the chairmanship of Prabhat Sarasij, Rajkishore Rajan conducted the operation. Among the senior poets, Ganesh Gunjan, Devshankar Naveen, Shekhar, Sanjay Kumar Kundan, Shahenshah Alam were prominent. In the first session, Madan Kashyap recited seven poems, whose titles were - Bharat Mata Ki Jai, Dopur Shankh, Small God, Sadness of the Ancestors, Purvriya, Kala-Passenger and Scarecrow.
Each of his poems is a poem written in a realistic background, which shakes a person without any noise, and also produces resentment against the rules of the system. In the poem titled 'Protean', he says,
"In this polymorphic system
It is very difficult
 To survive by profession of protean"

And later, they say with fear that,
"in today's society
Only prolific
Which is not polarized "
The truth is, only the poor people who live with profession of protean for livelihood only change the traits to run their livelihood, otherwise if someone who has got 'Power', it seems that by changing the disguise to the public, to make the people fool and straighten their owls.

In the extant lines of other poems, he said-
"Any other river is ancient / river of pain
Which flows in the direction of time / generation-by-generation / book-by-book "
Absolutely right, the sequence of painting and oppressing the vulnerable by powerful people keeps running continuously, even if there is no era. The question is, why does not a person adopt humanity, and if any government or territory does not try to stop its injustice, then what is the justification for its existence?
In some poems, Madan Kashyap impressed the effectiveness of sensitivity in the global environment, and in some cases, the unwanted movements of Indian politics could also be summoned. In one, he asked about the woman, said:
"In that era, did women / daughters get / could get food to meet the hnger?

After listening to Kashyap's poems, many senior critics made quick comments. Among the commentators were Gangesh Gunjan, Devshankar Naveen, Shekhar etc. Shekhar said that poet poems are very strong but the poet does not need to give any introduction or explanation about poetry. This work is of the listeners and the ability to be understood automatically in the poem. Devshankar Naveen said that the poetry of Madan Kashyap is contained with cryptic messages, and with the creation of the idol in the mind of the listeners, the layer-to-layer opens. That's their specialty. Prabhat Sarasij said that Madan's first three poems are poetry of transcendence. Madan goes down in poetry. He also said that the ghazal and the stylized poem also have significance and it is definitely capable of removing the problem of readership if it contains contemporary connotations.

In the second session, a poem was held in which many new poets participated. Youth poet Kundan Anand showed the right, but definite, contemporary phase of Dharmi and read-
"What do people do not do / to change colors in this era
Seeing me my father smiles / Just to forget all his pains "
A poet reads the compositions in praise of the sun and his so called ghazal was very long. Quoting lines is not necessary here.

Ramnath Shodharthi is a good young poet and contemporary too. See his allegorical lines:
"Whether has stuck in the clouds / We listened to much of black money?"
Then Hemant Das 'Him' read the poem titled 'Ruins', which had some lines-
"I can extinguish my burning feeling of retaliation
Only by breaking the pieces more which are already broken
Because the breaking of the already broken is not a crime "
The poet has effectively expressed the angst of the resource-less people who are bearing blows of injustice at the hands of a few persons in the power.

Again, in Bhagwat 'Aimmeesh', the text of the poem titled 'Paddy planating Daughters', which reveals many aspects of today's Indian girl's positive functioning. This new poem can be known for the new style of cinemaking and new words like 'salatiyan' and 'updaiyan'. There were some lines-
"Paddy planting daughters / beauties slates / everyone is queen of her mind / no one's follower"

After this, Sameer Parimal, who started his successful Shayari, in a successful attempt to connect people with poetry in Pattna nowadays, revolutionized the revolution -
"Fire will be in the fall / when they will speak out loud
If fill the wounds, then the marks will will speak "
This Shaiyarana attempt to turn the groans of the exploited ones into the fire and keep the fire alive is auspicious.

Moving forward the sequence of poetry recitation, Shiv Charan said on the changing mood of the weather-
"How is this air / how is that game of decency"
Anil Bibhakar tweeted through the poem of Bihari dishes-
"There is joy in eating / drinking greens in the winter"

Powerful representative of Bihar's contemporary poetry Rajkishor Rajan has found the secret of life in the simplicity of life and said-
"Grass, rose and Butterfly / Chasing them / I get / Mystery of Life"

After him, the national-level poet, Shahanshah Alam, who came after him with fearless and effective poem- He gave a strong message to keep alive the revolution against the exploitation and showed this by allegory of keeping alive the fire in the rustic cigarette of his father, while reciting the poem titled 'Poetry of sad weather'. Some lines were thus-
"Where I work / Fire has been kept away from me
Because the ruler knows
With this fire, I will burn / burn all his walls of injustice"

Senior poet Sanjay Kundan read the poem titled 'Cat Walk', and here is the excerpt-
"How long does will we keep shedding / our blood / for these fashion parades
 To fill the color / without thinking something / against it "
Then Dr. B.N. Vishwakarma recited his poem on note ban and showed the problems faced by the people. Prabhat Kumar Dhawan, Sanjeev Kumar Shrivastav also recited their poems.

Prabhat Sarasij, the famous poet of the contemporary poetry, read the last poem of this program. - His poems have a special place in powerful communication to the public against the feudalistic ideology. Here is some lines
"The center of its origin has brought itself / his fame.
Now the virtues of your faith are singing itself "
At the end of the program, Shahanshah Alam thanked the poets and listeners who came. On the whole, this assembly of Madan Kashyap and other poets in which not only poetry was read out but also a meaningful dialogue  did take place. And in this sense it can be considered as a major creative initiative of Bihar this year.

Note: Email / Email for Improvement / Growth / Suggestion in this Report of the Program: hemantdas_2001@yaaho.com





























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