आज भर का ही है गरल
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कल के सुनहरे पल के लिये ही तो जी रहा हूँ
आज भर का ही है गरल, यह सोच के पी रहा हूँ।
उम्मीद पर ही तो दुनिया टिकी, हम भी टिके हैं
वक़्त के ज़ख़्म को धैर्य के सूई धाँगे से सी रहा हूँ।"
और कविता की यह रवानगी भी देखिये -
"मैं वह पत्थर नहीं जिसे तराश कर बुत बनाया जाये
न मैं वह पारस हूँ जिसे छू कर कुंदन बनाया जाये
मैं दुनिया के मेले का एक अदना-सा मुसाफ़िर हूँ
कोशिश करता हूँ, भटके हुए को रास्ता दिखाया जाये।"
आन लाइन "हेलो फेसबुक साहित्य प्रभात के तहत अपने एकल काव्य पाठ में वरिष्ठ कवि मधुरेश नारायण ने एक से बढ़कर एक गीत, गजलों और नगमों की झड़ी लगा दी। मौका था, भारतीय युवा साहित्यकार परिषद के तत्वावधान में आयोजित तथा अवसर साहित्यधर्मी पत्रिका के फेसबुक पेज पर आयोजित लाइव एकलयपाठ का। कविताओं पर चर्चा करते हुए संयोजक सिद्धेश्वर ने कहा कि - "साहित्य कर्म का धर्म भी यही है कि अपनी सृजनात्मकता से, दिग्भ्रमितों को एक नई दिशा दिखलाते हुए, उनके भीतर उत्साह का संचार करें। इस मायने से साहित्य सृजन के पथ पर सामाजिक चेतना को जगाने का धर्म निभा रही है मधुरेश नारायण की कविताएं।"
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प्रस्तुति - सिद्धेश्वर
प्रस्तोता का परिचय - अध्यक्ष, भारतीय युवा साहित्यकार परिषद 'पटना
चलभाष -9234760365
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