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Sunday, 3 May 2020

जनगीतकार नचिकेता) / लेखक-जितेन्द्र कुमार

साहित्याटन

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साहित्यकार नचिकेता


23 अप्रैल,2017. कल वरिष्ठ जनगीतकार नचिकेता से सेलफोन पर बात हुई है। वे मुजफ्फरपुर में हैं, गीतकार डॉ यशोधरा राठौर के किसी घरेलू कार्यक्रम में।शाम तक पटना लौट आयेंगे। 23अप्रैल को पटना आवास पर मुलाकात हो सकती है।उन्होंने कहा कि पटना जंक्शन पहुँचकर फोन से सूचित कर दीजिए, वैसे बाहर जाने का प्रोग्राम नहीं है।संभव हो तो बहादुर पुर कॉलोनी के लिए ऑटो पकड़कर भूतनाथ रोड मोड़ आ जाइए, वहाँ मैं आ जाऊँगा।भूतनाथ मोड़ से दूसरा ऑटो पकड़ना होगा।अच्छा होगा भूतनाथ रोड मोड़ में मेरा इंतजार कीजिए।


मेरी जानकारी में।वरिष्ठ जनगीतकार नचिकेता के अबतक19गीत-संग्रह प्रकाशित हैं।1973में उनका पहला गीत-संग्रह 'आदमकद खबरें' प्रकाशित हुआ था।इसके अतिरिक्त एक ग़ज़ल-संग्रह 'आइना दरका हुआ' और आलोचना की दो पुस्तकें--'गीत रचना की नयी जमीन' और 'कोहरे में सच 'प्रकाशित हैं।' कोहरे में सच 'संपादित पुस्तक है जिसमें नचिकेता के संपादकीय के अलावे श्रीधर मिश्र, सतीशराज पुष्करणा, अमित कुमार और नचिकेता के एक-एक आलेख संकलित हैं।लेकिन इतने विपुल और स्तरीय लेखन के बाद भी लेखक संगठन के आलोचकों ने उन्हें उपेक्षित रखा।30-31मार्च को फणिश्वरनाथ रेणु भवन के सभागार में राजभाषा परिषद् द्वारा आयोजित पुरस्कार और सम्मान समारोह के अवसर पर काव्य-पाठ में नचिकेता के जनगीतों की श्रोताओं ने खूब सराहना की। उस अवसर पर पढ़ा गया एक जनगीत----
         डरो नहीं
       -------------
झरकी पेड़ों की डालें हैं
                  डरो नहीं
अच्छे दिन आनेवाले हैं
                 डरो नहीं
भेद समझना होगा इस अँधियारे का
महँगाई के बरस रहे अँगारे का
काले धन के मुँह काले हैं
                   .     .      डरो नहीं
खेल सियासत खेल रही कितना अच्छा
खेल नहीं पाता डर के मारे बच्चा
उगे जीभ पर गर छाले हैं
                                डरो नहीं
दूध पीला नागों को पाला पोसा क्यों
सपने तो सपने हैं, करें भरोसा क्यों
फैले मकड़ी के जाले हैं
                                 डरो नहीं
सारे गाँव स्वच्छ और सुंदर होंगे
न्युयार्क जैसे सब महानगर होंगे
अगर अभी गंदे नाले हैं
                                 डरो नहीं

उपरोक्त जनगीत में प्रतिरोध और तंज की जो धार है वो किसी समकालीन कविता से कम नहीं है।ऐसा नहीं कि यह एकलौता जनगीत है इस तरह की अभिव्यंजना का, बल्कि ऐसे जनगीतों की भरमार है नचिकेता के यहाँ।

तो 23अप्रैल है; वीर कुँवर सिंह और बाबा साहेब भीमराव अंबेदकर की जयंती है।सुबह शांत है। कोयल कूक रही है। मैं चाय पीते हुए मन ही मन पटना जाकर नचिकेता जी से मिलने की सोच रहा हूँ।अमिताभ दिल्ली गये हैं।रहते तो ट्रेन का पोजिसन बताते और स्टेशन से टिकट ला देते। मैं स्टेशन जाता हूँ।पूर्वा एक्सप्रेस तीन घंटे बिलंब से चल रही है। संभावित समय नौ बजे है।प्रभु जी जब से रेलमंत्री बने हैं, रेलगाड़ियाँ समय पर चलना भूल गई हैं।

पूर्वा साढ़े नौ बजे आरा पहुँचती है। सवा दस बजे मैं पटना जंक्शन पहुँचता हूँ। निकास वाले हॉल के एक कोने में भीड़ नहीं है।वहाँ खड़ा होकर मैं नचिकेता जी को फोन लगाने की कोशिश करता हूँ।रिंग हो रहा है, फोन कोई उठा नहीं रहा है। दस पन्द्रह मिनट की कोशिश के बाद मैं तय करता हूँ कि भूतनाथ रोड तक ऑटो से चलूँ, आगे कि आगे देखूँगा।

स्टेशन परिसर से बाहर होता हूँ।सामने महावीर मंदिर में भक्तों की अपार भीड़ से फूलमाला वाले, लड्डूवाले-पेंड़ावाले से लेकर पुजारी-पंडा लोग अतिशय प्रसन्न हैं।रेल की भाप इंजन धरोहर के रूप में नुमाइस के लिए रखी गयी है।रेल इंजन और महावीर मंदिर के बीच सड़क पर भिखारियों की भीड़ पूँजीवादी चेहरे पर काले मसा की तरह शोभायमान है।पुजारी के अनुसार ये सब पूर्व जन्म के पापों को भोग रहे हैं।इ समें व्यवस्था क्या करेगी?70साल बीत जाये या देश स्वतंत्रता की शतवार्षिकी क्यों न मना ले।

भाप इंजन के सामने गोलाकार नेहरू पार्क है जिसमें नेहरू शांति कपोत उड़ाते हुए पटना जंक्शन की ओर देख रहे हैं।शीघ्र ही नेहरू पार्क जीपीओ गोलंबर की फ्लाई ओवर को चिरैंयाटांड़ ओवरब्रिज से जोड़ने वाले ऊपरिमार्ग के नीचे आने वाला है। इंजीनियर सोच रहे हैं कि कैसे नेहरू को इस उत्तर आधुनिक उपरि पुल मार्ग से बचाया जाये।नेहरू पार्क के बायें-दाँयें फ्लाईओवर मार्ग बन गया है, बीच में बाकी है सिर्फ।कार्यस्थल लोहे के चादरों से घिरा है।चतुर्दिक धूल गर्दा कचरा बिखरा पड़ा है।वहीं ऑटो पर सवार होता हूँ, भूतनाथ मोड़ के लिए।

चिरैंयाँटांड़ ओवरब्रिज पारकर ऑटो कंकड़मार्ग मेन रोड पर पूरबदिशा में भाग रहा है।अजीब अफरातफरी, अपरिचय और भागमभाग का संसार है। भूतनाथ रोड आ गया है।ऑटो से उतर जाता हूँ। नचिकेता जी को फोन पर संपर्क करने की कोशिश करता हूँ। मोबाइल व्यस्त है या स्वीच ऑफ है।क्या करूँ?लौट जाऊँ?पटना में बहुत थोड़े साहित्यकार हैं जो आपस में मिलते जुलते हैं। हारी-बीमारी में एक दूसरे को देखने तक नहीं जाते। मैं आगे बढ़ने का निश्चय करता हूँ।भूतनाथ रोड से दूसरा ऑटो पकड़ता हूँ आनंद बिहार कॉलोनी के लिए। ऑटो चालक को मौर्या ग्लासेज बताता हूँ।वो नहीं जानता है। ऑटोवाला महावीर मंदिर सह दुर्गा मंदिर के पास उतार देता है, यहीं से पता कीजिए। बिहार में देवी देवताओं के बीच आजकल सामंजस्य बढ़ रहा है। महावीर मंदिर है तो वहाँ दुर्गा जी काली जी शंकर जी सब सह अस्तित्व में रहने को तैयार हो जाते है। पुजारी जैसा चाहते हैं वैसे रहना पड़ता है देवी देवताओं को। मंदिर के पास एकमात्र रिक्शा खड़ा है। नचिकेता जी का मोबाइल व्यस्त है।वे नियमित लेखक हैं। प्रतिदिन गीत लिखते हैं।बहुत लोग एतवार के एतवार कविता लिखते हैं, वे वैसा नहीं हैं जनगीत लिखने में मस्त हो गये होंगे। किसी तरह का व्यवधान गीत की छंद-मात्रा बिगाड़ देगा। ग्यारह बज गये हैं।अप्रैल की धूप अप्रैल की धूप की तरह है।

रिक्शावाला से मौर्या ग्लासेज के बारे में बताता हूँ। संयोग ठीक है। उसी के आसपास वह रहता है।बीस रुपये लेगा।कोई बात नहीं।रिक्शावाला एक दो मंजिला मकान के पास रिक्शा रोकता है, कहता है यही मौर्या ग्लासेज है।नाम बड़े और दर्शन छोटे।सड़क पर अप्रैल में पानी जमा है। अविकसित इलाका है।सामने दक्षिण की ओर बाई पास सड़क दिखती है।यहीं से आनंद बिहार कॉलोनी आरंभ होती है।नचिकेता जी का आवास मौर्या ग्लासेज के दक्षिण है और अगर सचमुच यही मौर्या ग्लासेज भवन है तो यहीं नचिकेता जी भी रहते होंगे।मौर्या ग्लासेज की एक छोटी सी दुकान संचालक से पूछता हूँ--इधर लेखक टाइप का कोई आदमी रहता है।वह थोड़ा दिमाग पर जोर लगाता है--लेखक टाइप का आदमी!हाँ भई, बड़े लेखक हैं।वह आदमी एक मकान के परिसर में आम का छोटा सा पेड़ दिखाता है, वहाँ पूछिए।वहाँ पूछता हूँ। वो बगल के मकान की ओर इशारा करता है। मैं लोहे के लघु गेट के पास जाता हूँ।एक विद्यार्थी सिर में हेलमेट डाले गेट से बाहर आना चाहता है।यहाँ कोई लेखक रहते हैं?हाँ।क्या नाम है?नचिकेता।नचिकेता!हैं क्या घर में?वो विद्यार्थी अंदर जाकर सूचित करता है। सामने के कमरे की खिड़की से नचिकेता जी बनियान और लुंगी में दिखते हैं। मेरा मन बहुत खुश होता है। नचिकेता जी इतनी आसानी से मिल जायेंगे, विश्वास नहीं हो रहा है। उनको आश्चर्य हो रहा है कि मैंने उनका घर इतनी आसानी से खोज लिया जबकि घर के बाहर कोई नेम प्लेट वगैरह नहीं।वे स्नेहपूर्वक अपने कमरे में ले जाते हैं।

सामान्य शिष्टाचार के बाद गीत नवगीत जनगीत की लंबी परंपरा की बात वे करते रहे।शंकर शैलेन्द्र, केदारनाथ अग्रवाल, कैलाश गौतम से लेकर शांति सुमन के गीतों की चर्चा हुई। गीतों के संदर्भ में वरिष्ठ गीतकार नचिकेता जी का अध्ययन व्यापक और गहरा है। ग्रामीण संस्कृति पर नचिकेता जी की गहरी पकड़ है।लोक जीवन के शब्दों ही नहीं बल्कि क्रियाओं प्रक्रियाओं की महीन समझ रखते हैं वे।वे लेखन के साथ अध्ययन भी करते हैं।वे बेहिचक बताते हैं कि अँग्रेजी पर उनकी पकड़ मजबूत नहीं है इसलिए अनुवादों के सहारे वे विदेशी लेखकों की पुस्तकों का अध्ययन करते हैं।वे कहते हैं कि गीतों/जनगीतों की परंपरा वेदों उपनिषदों से भी पुरानी है।गीत जनता की कंठ में बसते हैं, एक पीढ़ी ने दूसरी पीढ़ी को पास ऑन किया। गीतों का उद् भव मनुष्य के श्रम से सीधा जुड़ा है। श्रम करता आदमी गुनगुनाता है।सुख-दुख, युद्ध और प्रतिरोध की अभिव्यक्ति वह गीत गाकर करता है।नचिकेता जी ने जॉर्ज थाम्सन की किताब' मार्क्सिज्म एंड पोएट्री ',क्रिस्टोफर कॉडवेल की पुस्तक "इल्युजन एवं पोएट्री"अर्न्स फिशर की मशहूर पुस्तक"नेसेसिटी ऑफ आर्ट"का अनुवाद पढ़ा है।उन्होंने कहा कि"मदर"में रूसी उपन्यासकार गोर्की ने गीत के उत्स पर पर्याप्त प्रकाश डाला है। नचिकेता गीत रचना की जमीन तलाशते रहे हैं।

वरिष्ठ आलोचक मैनेजर पाण्डेय के बारे में उनकी टिप्पणी है कि वे गीतों की आलोचना के लिए गीतकार के अनुसार आलोचना के प्रतिमान बदलते रहते हैं।पाण्डेय जी शंकर शैलेन्द्र के जनगीतों को आंदोलनधर्मी बताते हैं, नचिकेता के गीतों में करूणा और ममता खोजते हैं, और शांति सुमन के गीतों में उनको लोक चेतना नयी काया में अवतरित दिखती है।आखिर जनगीत का प्रतिमान क्या है--लोकचेतना का अवतरण या आंदोलनधर्मिता या करुणा और ममता का उद्रेक।

बातचीत को मैं थोड़ा घरेलू मोड़ देता हूँजिसमें यह अकादमिक न हो जाये।माता पिता के बारे में बताते हैं कि पिता रामचंद्र दिवाकर1978में गुजर गये, माँ1992में गईं।उनके दो बेटे और दो बेटियाँ हैं।सभी विवाहित।सब के नाम के साथ उपनाम किरण लगा है--प्रत्युष किरण, अमिताभ किरण, उषा किरण और स्मृति किरण।बिहार में जाति सूचक उपनाम रखने की रूढ़ि है।चुनाव लड़ना हो तो और जरूरी है। संख्या के आधार पर वर्चस्वशाली जाति से आते हैं तो सोना में सुहागा। नचिकेता जी का परिवार जातिसूचक केंचुल झाड़ चुका है।इस बीच मिठाई, नमकीन, चाय, पानी आता रहता है।

सन् 2000में नचिकेता जी के हार्ट की ओपेन सर्जरी हुई। तब मैं व्यक्तिगत रूप से परिचित नहीं था। जानकारी बाद में मिली।बाद में कई बार हमलोग मिल चुके हैं।2015में उनके दोनों घुटनों का सफल आपरेशन हुआ।मधुकर सिंह सम्मान समारोह में वे आरा नागरी प्रचारिणी सभागार में आये थे।कथाकार रामधारी सिंह दिवाकर के साथ।मैं मंच संचालन में व्यस्त था। अब वे घुटने की परेशानी से मुक्त हैं।हार्ट की सर्जरी हो या घुटनों का आपरेशन, बहुत कम रचनाकार मित्र हालचाल पूछने आवास तक आये। फोन पर समाचार लेने वाले भी कम ही रहे।

नचिकेता का ही गीत है---"कहें किससे"
मेरे घर में
घुस आया बाजार, कहें किससे
पत्नी की
फरमाईश कभी नहीं पूरी होती
बच्चों की जिद मेरे मन की
मजबूरी होती
हुए सभी रिश्ते--
नाते व्यापार, कहें किससे

विद्वान आलोचक ब्रजेश पाण्डेय ने गीत-संग्रह"तुम्हीं तो हो"की भूमिका में लिखा है----
"विद्यापति(कामिनी करये सनाने)और रीतिकाल के अधिकांश कवियों में लौकिक प्रेम के पर्याप्त और उच्चस्तरीय उदाहरण प्राप्त होते हैं।छायावाद की विशेषता यह है कि उसने नये सिरे से लौकिक प्रेम की आधुनिक भावभूमि तैयार की।उस पर उत्तर छायावाद के कवियों ने प्रेम काव्य की जो इमारतें तैयार कीं उनमें रहस्य की भी कोई विवशता नहीं रही।नायक-नायिका के अन्य पुरुष की विवशता भी कमजोर पड़ी और सीधे उत्तम पुरुष और मध्यम पुरुष के परस्पर प्रेम को प्रवेश मिल गया।.....उत्तम पुरुष और मध्यम पुरुष की प्रधानता होते ही बाह्य अलंकार शृंगार'हटा और आंतरिक भाव'प्रेम'स्वत:कवियों द्वारा गृहित हो गया।

आधुनिक प्रेम काव्य में केदारनाथ अग्रवाल की परंपरा में सर्वश्रेष्ठ गीतकार कवि नचिकेता ने हिन्दी प्रेम काव्य में इस मध्यम पुरुषीय अपनेपन को उल्लेखनीय विस्तार, गहराई और उच्चता दी है।"

नचिकेता जी ने तीन पुस्तकें मुझे भेंट स्वरूप दीं--रंग न खोने दें(2007),तुम्हीं तो हो(2015),कुहरे में सच(2014).कुहरे में सच में श्रीधर मिश्र का28पृष्ठों का आलेख:गीत-पुरुष:नचिकेता, उल्लेखनीय है।इसी तरह"तुम्हीं तो हो"की भूमिका15पृष्ठों की ब्रजेश पाण्डेय की काबिले तारीफ हीनहीं है, नचिकेता के गीतों को समझने में पाठक को मदद भी करती है।

डेढ़ दो घंटे बातचीत के बाद मैं नचिकेता से बिदा लेता हूँ तो उनके गीत'हम न रहेंगे'की पंक्तियाँ याद आ रही हैं----
       हम न रहेंगे
       तब भी चिड़िया चहकेगी
       हम न रहेंगे
        तब भी हरियाली होगी
        हर सुबह-शाम चेहरे पर
        लाली होगी
        औ'ताजा जुते
        खेत की मिट्टी महकेगी
       हम न रहेंगे
       तब भी कोंपल फूटेगी
       जनगण के होंठों की
       खामोशी टूटेगी
       हर चूल्हा के अंदर
      कुछ लकड़ी दहकेगी.
........

लेखक - जितेन्द्र कुमार 
लेखक का ईमेल आईडी - jitendrakumarara46@gmail.com
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लेखक - जितेन्द्र कुमार

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