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Wednesday, 13 May 2020

सिद्धेश्वर का डायरीनामा / साहित्य प्रभात नामक आभासी गोष्ठी 10.5.2020 को संपन्न

इस लॉक डाउन की अवधि में रिश्तों को जीते जाना है

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साहित्य प्रभात का आरंभ करते हुए  उपरोक्त उद्गार  समिति के अध्यक्ष और संयोजक सिद्धेश्वर ने कहा।  मातृत्व दिवस  के अवसर पर  ऑनलाइन  दैनिक गोष्ठी  के उद्घाटन के तहत  मातृदिवस से संदर्भित  कविता, गीत  और लघुकथा  का पाठ, देश भर के साहित्यकारों ने  किया ! मुख्य अतिथि   भगवती प्रसाद द्विवेदी ने  मातृ दिवस पर अपनो एक भावपूर्ण लघुकथा का पाठ किया  और कहा कि  - "अपनी तरह का  यह अनोखा आयोजन है, जो गृहबंदी में भी साहित्य की ज्योति जलाए रखने का  सार्थक प्रयास कर रहे हैं सिद्धेश्वर जी।

कवि गोष्ठी में पढ़ी गई कुछ कविताओं का अंश:
आस्था  दीपाली  (नई दिल्ली) का कोरोना गीत इस प्रकार था - 
प्रतिकूल समय आया है ये , संयम से साथ निभाना है
कोरोना से ये जंग हमे हिम्मत से लड़ते जाना है
**हर गली उदास है पड़ी हुई, हर दरवाज़ा भी बंद हुआ
मानव मानव से दूर खड़ा, अब खुशी का देखो रंग उड़ा
इस लॉक डाउन की अवधि में रिश्तों को जीते जाना है
कोरोना से ये जंग हमे हिम्मत से लड़ते जाना है
**ये अकथ परिश्रम करने वाले मीलों पैदल चलते हैं
संघर्ष ही जीवन है जग में, ये हममें साहस भरते हैं
इस गहन अंधेरी रात में अब, स्वर्णिम सा भोर उगाना है
कोरोना से ये जंग हमे हिम्मत से लड़ते जाना है
 **अब वक्त आ गया हे मानव, कुछ अपना भी मूल्यांकन कर
जिस अहंकार में चूर है तू , कुछ उसका भी निवारण कर
जो चला था चाँद पे बसने को, अब उसको राह दिखाना है
कोरोना से ये जंग हमे हिम्मत से लड़ते जाना है

पुष्पा "स्वाती"-
उजाले यूं उनींदी आंख से देखे नहीं जाते,
दिवाकर को नमन शैया से यूं भेजे नहीं जाते,
जो खोला कोष दाता ने,उसे लाने स्वयं जाएं,
हैं ये इनाम" स्वाति"औरों से मंगवाए नहीं जाते

राकेश कुमार मिश्रा -
हम कहां चांद पे जाने को गजल कहते हैं
अपना दुख दर्द भुलाने को गजल कहते हैं
साथ बीते हुए लम्हों को भुलाया कैसे
बस यही याद दिलाने को गजल कहते हैं
जाने किस बात पर रूठे हैं खुदा ही जाने
हम उन्हें यार मनाने को गजल कहते हैं
महफिलें खत्म हुई यारों ने छुड़ाया दामन
अपनी तन्हाई मिटाने को गजल कहते हैं
फूल कुम्हला गए कलियों का न पूछो 'राकेश'
खाक सेहरा* में उड़ाने को गजल कहते हैं।

पुष्प रंजन कुमार -
रहीम करता है पैदा
या राम जन्म देता है
धूल में मिल जाता है कोई
और कोई धुआं हो जाता है
बरखुदार, लगता है
मेरा ईश्वर और तेरा खुदा
मिलजुलकर काम करता है।
**जबह करता है कोई मेरा
या कोई तेरा हत्या करता है
बचाने ना खुदा आता है
ना भगवान रक्षा करता है
बरखुदार, लगता है
मेरा ईश्वर और तेरा खुदा
मिलजुलकर रहता  है ।
**मैं साधना करता हूं
तुम अजान पढ़ता है
ना तेरा सुनता है
नहीं मेरा बोलता है
बरखुदार , लगता है
मेरा ईश्वर और तेरा खुदा
मिलजुलकर काम करता है।
मेरा लहू निकलता है
तेरा खून बहता है
 मैं जिंदा नहीं रह पाता 
और तू भी मर जाता है
बरखुदार , लगता है
मेरा चाकू और तेरा खंजर
मिलजुलकर वार करता है ।

ऋचा वर्मा -
एक मां हूँ मैं,
अपने बच्चों के लिए, कोमल भावनाएं रखतीं हूँ।
दुनिया की सारी खुशियां,
निछावर करना चाहती हूँ। 
चाहतीं हूँ.. मेरे बच्चे... 
तू जिन राहों से गुजरे, 
फूल बिछे हों,उन राहों पर।
पर मेरे बच्चे... 
जान ले कई बार,
यह जिंदगी फूलों की सेज है,
तो कई बार कांटों का ताज भी।
मां के आंचल की छांव,
और पिता के सरपरस्ती के बाहर, 
कभी - कभी, यह दुनिया पेश आएगी,
बहुत क्रुरता से, तुम्हारे साथ।
इसलिए दिल मजबूत कर लेती हूँ.. 
जब कभी तुम्हारे कदम लड़खड़ाते हुए देखती हूँ,
जबरन हाथों को रोक लेती हूँ,
तुम्हें पकड़ने से... 
जानती हूँ, एक दिन लड़खड़ाते - लड़खड़ाते,
तुम्हारे कदम संभल जाएंगे।
आज तो बढ़ कर पकड़ लूं तुम्हे
लेकिन तुम्हे तो रहना है,
इस दुनिया में.. मेरे बाद.., 
जब मैं न होऊंगी तो,
फिर कौन संभालेगा तुम्हे,
यही सोचकर रोक लेती हूँ, खुद को।
एक मां हूँ मैं
चाहतीं हूँ तुम्हे मजबूत देखना.. 
.. इतना मजबूत कि, कल को जब मेरे कदम लड़खड़ाएं,
तो उन्हें संभालने के लि‍ए, तुम्हारे हाथ आगे आएं

सिद्धेश्वर - 
 प्रकृति  की  अनुपम  सृष्टि  है  मां ! 
  संसार   की   दिव्य - दृष्टि   हैं  मां ।। 
  मां है तो  जीवन, कितना अनमोल है।। 
  मां  के आंचल में समाया भूगोल है।। 
  मां  की  गोद  में  पनपता  है  प्यार । 
  दूजा  कौन  दे  सकता  है  ऐसा दुलार। 
  ईश्वर  की  आराधना और भक्ति है मां ।
  लक्ष्मी, सरस्वती, दुर्गा की शक्ति है मां!! 
   मां  की  ममता  का  नहीं  कोई  मोल ।
    नाप लो  आकाश  या  फिर  भूगोल ।। 
    मां के बिना जीवन का सफर है अधूरा।.   
    मां  की  छांव में हर ख्वाब होता है पूरा।।.     
     देवलोक से उतरी हुई प्रतिमूर्ति हैं मां ।
   धर्मग्रंथ, साहित्य की जीवंत कृति है मां।।.        
    
भगवती प्रसाद द्विवेदी ने कहा किसाहित्य की विविध विधाओं की मार्फत माँ की बहुआयामी छवियां उकेरकर उन्हें नमन करने का यह आयोजन अविस्मरणीय है जिसमें 
रचनाकारों ने गहरी संवेदना जगाई।।
...

रपट की प्रस्तुति - सिद्धेश्वर 
प्रस्तोता का ईमेल आईडी - sidheshwarpoet.art@gmail.com
प्रतिक्रिया हेतु ब्लॉग का आईडी - editorbejdondia@gmail.com














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