"दूब की तरह अड़ा रहूंगा / मैं छोटा ही रहूंगा"
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डॉ. सीताराम दीन हृदय को झंकृत करने वाले कवि थे। उन पर संत कबीर का गहरा प्रभाव था। वे कबीर साहित्य के विद्वान मर्मज्ञ और बड़े अध्येता थे।
सम्मेलन के अध्यक्ष डॉ. अनिल सुलभ ने अपने अध्यक्षीय उद्बबोधन में उपरोक्त बातें कही। जबकि समारोह का उद्घाटन करते हुए पटना विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति डा एस एन पी सिन्हा ने कहा कि 'दीन' हिंदी भाषा के बड़े विद्वान थे।
नृपेन्द्रनाथ गुप्त ने कहा कि वे मानवतावादी थे। क्रांतिकारी थे। उन्होंने अपने कठिन तपस्या और श्रम से अपने स्वाभिमान की सतत रक्षा किया।
उपस्थित अतिथि साहित्यकारों ने भी कहा कि - "दीन जी के साहित्य में कबीर का स्वर दिखाई देता है। दीन जी का साहित्य सम्मेलन से भी गहरा संबंध था साहित्य मंत्री के रूप में भी उन्होंने सेवाएं दी।
सीता राम दीन की सुपुत्री डां मंगला रानी ने अपने पिता के व्यक्तित्व और कृतित्व पर विस्तार से प्रकाश डाला।
बिहार हिन्दी साहित्य सम्मेलन के सभागार में, स्मृति- शेष स्तुल्य कवि डां सीताराम दीन जयंती एवं कवि सम्मेलन का आयोजन किया गया। सम्मेलन के अध्यक्ष डां अनिल सुलभ का भी आज जन्म दिन मनाया गया।
मृत्युंजय मिश्र करूणेश की गजलों से, कवि गोष्ठी का आरंभ हुआ -
" बादल है भरमाएगा ही/सागर है लहराएगा ही
जिसने होंठों पर रख ली है/ वो बांसुरी बजाएगा ही।"
डां शंकर प्रसाद ने अपने मधुर कंठ से एक गजल पेश किया -
"जिधर निगाह उठाओ है हर्ष बरपा
कोई बताए अमल -ओ आशिकी क्या है/
कोई बताए अमल -ओ आशिकी क्या है/
किसी को और बताऊं तो और बताऊं क्या
समझ रहा हूं मैं कि जिंदगी क्या है?
वो क्या बतलाएगा मंजिल का पता
जो खुद भटकता फिरे उसकी रहबरी क्या है."
कवयित्री सविता मिश्र माधवी की कविता बहुत खूब रही -
" \यह अनमोल जीवन एक बार ही मिलता
रे दुखित मन, मत आने दे
मन में तनिक भी निराशा "
विजय प्रकाश ने गीत सुनाया -
"बांधे पायल पांव में। /बैठ बरगदी छांव में!
"बांधे पायल पांव में। /बैठ बरगदी छांव में!
कही अनकही, करें बतकही बरगदी छांव में
एक बार. फिर से बुला लो अपने गांव में!"
एक बार. फिर से बुला लो अपने गांव में!"
पूनम श्रेयसी -
"अहंकार जब होम हुआ
पत्थर-पत्थर मोम हुआ!"
"अहंकार जब होम हुआ
पत्थर-पत्थर मोम हुआ!"
तथा ओम प्रकाश पांडे की कविता थीम-
"रुई का ढेर है और थोड़ा हल्कापन
तथा हथेली पर आग लेकर चलो"
मीना कुमारी परिहार की गजल भी खूब वाहवाही बटोरी
" आपको भी पता है हमें भी पता
और क्या है नया, सोचिए- सोचिए!"
आरा से पधारे कवि जनार्दन मिश्र की कविता भी प्रभावकारी रही -
तुम उधर जलो, मैं इधर जलूं
यह तो पल- प्रतिपल विवाद - संवाद है।
कवयित्री पूनम आनंद की कविता के क्या कहने -
"नफरतों के बीच जला देती है.रौशनी बेटियां! "
वरिष्ठ शायर घनश्याम की गजल से पूरा हाल गुंजमान हो उठा -
"आंसुओं में न डूबे कहीं जिंदगी
आंख में लाल सूरज उगा दीजिए।
आंख में लाल सूरज उगा दीजिए।
भुख से छटपटाते हंस को
नेह के चंद मोती चुंगा दीजिए।"
नेह के चंद मोती चुंगा दीजिए।"
प्रभात कुमार धवन की कविता थी -
"मुझे छोटा ही रहने दो दूब की तरह
झेल लूंगा हवा का तेज झोंका भी
दूब की तरह अड़ा रहूंगा
मैं छोटा ही रहूंगा।"
मैं छोटा ही रहूंगा।"
जयप्रकाश ने भी एक गीत सुनाई।
तत्पश्चात - "डां शालिनी पांडेय की कविता ने दर्शकों को मनमुग्ध कर दिया -
"बदल के आवरण जरा, मन मेरा संवार दो
निखार दो, निखार दो / मन मेरा संवार दो। "
निखार दो, निखार दो / मन मेरा संवार दो। "
कवि सिद्धेश्वर ने अपने ही अंदाज में कहा -
"न शिकवा प्यार से है, न शिकायत है यार से
खुद लौट आएं हैं हम अपने ही द्वार से! "
इन कवियों के अलावे, अपनी कविताओं की अच्छी प्रस्तुति देने वाले रचनाकारों में प्रमुख थे, राजेन्द्र प्रसाद सिंह, उषा सिन्हा, बी एन विश्वकर्मा, डॉ. अर्चना त्रिपाठी, पूनम सिंह श्रेयसी, राजकुमार प्रेमी, शहनाज फातमी, श्रीकांत सत्यदर्शी, पूनम आनंद, सुधा सिन्हा, सुनील कुमार दुबे, बिंदेश्वर प्र गुप्ता, बच्चा ठाकुर, माधुरी लाल तथा मंच संयोजक योगेन्द्र प्र मिश्र।
अपने अध्यक्षीय संबोधन के पश्चात डां अनिल सुलभ ने भी अपनी एक गजल पेश की -
"बातों से बनती है बात, बात बिगड़ती बात से.
सुलभ संभल कर बात करे बात ही रह जाती है। "
इस साहित्य गोष्ठी के समापन के पूर्व कृष्ण रंजनयसिंह वा सभी आये हुए रचनाकारों और श्रोताओं का धन्यवाद अर्पित किया। यह कार्यक्रम 6.11.2019 को पटना स्थित बिहार हिंदी साहित्य सम्मेलन के सभागार में सम्पन्न हुआ।
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रपट की प्रस्तुति - सिद्धेश्वर
छायाचित्र सौजन्य - सिद्धेश्व2अर
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