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Thursday, 17 October 2019

इस दिवाली / कवि - दिलीप कुमार के परिचय के साथ

इस दिवाली

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इस दिवाली
कुम्हारों की दशा पर तरस खा 
माटी के दीए मत जलाना

दूधिया रोशनी की चौंधियाहट
और पटाखों के शोरगुल के बीच
खोए हुए हो तुम
सघन अंधियारे और सन्नाटे में

हो सके तो
हौले से दिल के दरवाजे खोलना
कुछ दिखाई ना दे, फिर भी टटोलना

मिल जाए यदि वहां बचपन वाली नादानी
मिल जाए यदि वहां नानी की कहानी 
मिल जाए यदि गुलमोहर की वह लाली
मिल जाए यदि गांव वाली वह हरियाली

तो फिर पूछना खुद से
कृत्रिमता की चमक में तुम क्या खो आए हो
खुशियों की बगिया उजाड़, उदासी का कौन सा पौधा बो आए हो

कि कहां दफन हो गई है वह दुआर की रंगोली 
कहां खो गई है वह उन्मुक्त हंसी-ठिठोली

कुछ जवाब अगर दे सके वह दिन पुराना
तभी तुम कुम्हार के घर आना
माटी के दीए ले जाना
अपनेपन का तेल और प्यार की बाती डाल, उसे जलाना
उस जलते दिए की रोशनी में 
खुद को फिर से पाना।
...
कवि - दिलीप कुमार
प्रतिक्रिया हेतु ईमेल - editorbejodindia@yahoo.com
कवि का परिचय - श्री दिलीप कुमार एक बिहार के एक गम्भीर युवा कवि हैं जिनमें आम आदमी की कसक, जमीन की महक और परिवेशगत विसंगतियों के प्रति क्षोभ के दर्शन होते हैं. रेलवे विभाग के उच्च पर पर शोभायमान होते हुए भी लोक-संस्कृति के प्रति इनकी आस्था और सक्रियता देखते बनती है. इनका कविता संग्रह "अप और डाउन में फँसी ज़िंदगी" कार्यालय और वास्तविक ज़िंदगी के बीच के द्वंद्व को बखूबी दर्शाता है.





2 comments:

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