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Sunday, 14 July 2019

सुधरे हमारे देश के हालात किस तरह / बाबा बैद्यनाथ झा की ग़ज़ल और कुंडलियाँ

  ग़ज़ल
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ग़ज़लों में भर  सकूँ कहो जज़्बात किस तरह  
सुधरे   हमारे   देश   के  हालात  किस  तरह

उजड़े  ही  जा  रहे  यहाँ  जंगल  पहाड़  भी 
ले साँस  जब हवा नहीं  नवजात किस तरह 

बेटी  हुई  जवान  अब  है   वह  पढ़ी-लिखी 
लाए   ग़रीब  बाप   है  बारात  किस  तरह 

'बाबा'  हमारे  मंच  पर  शायर  कमाल के
ग़ज़लों की हो रही यहाँ बरसात किस तरह
...


              वृक्षारोपण  पर कुण्डलियाँ               



   1
                
भक्षक  बनते   जा  रहे, जंगल  के  हम आप।
कुपित  आज  पर्यावरण, देता  है  अभिशाप।।

देता   है   अभिशाप,  उजड़ते  जाते  जंगल।
प्राणवायु   हो   लुप्त,  कहें   कैसे  हो  मंगल।।

नित्य   लगाएँ  पेड़,  बनें  हम   वन-संरक्षक।
या कर देगी नाश, प्रकृति ही बनकर भक्षक।।


2
                    
होती  ही   है  जा  रही, हरियाली  अब  लुप्त।
मानवीय     संवेदना,   क्रमशः   होती   सुप्त।।

क्रमशः  होती  सुप्त,  नित्य   हम  पेड़ लगाएँ।
हरे   भरे   वन  बाग,  सजाकर  स्वर्ग  बसाएँ।।

करे  प्रकृति तब नाश, धैर्य जब अपना खोती।
कभी अकारण क्रुद्ध,नहीं कथमपि वह होती।।
...

कवि- बाबा वैद्यनाथ झा 
कवि का ईमेल आईडी - jhababa55@yahoo.com
प्रतिक्रिया हेतु ईमेल आईडी- editorbejodindia@yahoo.com




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