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Friday, 12 July 2019

खूब मुझको अब बजाएँ झुनझुना है ज़िन्दगी / कैलाश झा किंकर की दो ग़ज़लें

ग़ज़ल-1

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खूब मुझको अब बजाएँ झुनझुना है ज़िन्दगी
मुफलिसों की चारसू संवेदना है ज़िन्दगी 

नौनिहालों के लिए भी तुम नहीं गंभीर हो
लग रहा चारों तरफ उत्तेजना है ज़िन्दगी 

धन-कुबेरों पर टिकी हैं आज भी उनकी नज़र
कामगारो ! देख अन्धेरा घना है ज़िन्दगी 

आस की खेती हुई पर हर तरफ उल्टा असर
लूटने वालों से करती सामना है ज़िन्दगी 

था जहाँ संतोष धन उसकी जगह ले ली हवस
स्वार्थ में अन्धी बनी दुष्कामना है ज़िन्दगी 

हो रही घटना मुसलसल शर्म से झुकता है सिर
सिरफिरों की सोच में बस वासना है ज़िन्दगी ।
.....

ग़ज़ल-2

खुशी झूमती आशियाँ तक न आयी
कभी बात मेरी जुबां तक न आयी ।

बहन लौटकर जा चुकी माँ से मिल कर
बगल में हूँ फिर भी यहाँ तक न आयी।

पुकारा था उसने मदद को यकीनन
सदा ही मेरे कारवां तक न आयी।

दिलों में वही एक रहता है हरदम
कभी शान जिसकी गुमां तक न आयी।

अदब की ये दुनिया है जन्नत की दुनिया
न कहना ग़ज़ल कह-कशाँ तक न आयी ।
....
कवि - कैलाश झा किंकर 
कवि का ईमेल आईडी - kailashjhakinkar@gmail.com
प्रतिक्रिया हेतु ईमेल आईडी - editorbejodindia@yahoo.com




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