सामाजिक तंत्र को नंगा करनेवाली कहानियाँ
हमारे आसपास के वातावरण में कई तरह की घटनाएँ घटित होती रहतीं हैं जिसे देखकर या सुनकर हमारा संवेदनशील मन कभी हर्षित होता है तो कभी व्यथित और फिर कभी अचंभित भी। और फिर हम मानव के स्वभावानुरूप अपने अपनो, इष्ट मित्रों, पड़ोसियों आदि से उस घटना की परिचर्चा करके अपनी मचलती हुई संवेदनाओं को शांत करने का प्रयास करते हैं। किन्तु एक लेखक का मन सिर्फ परिचर्चा करने मात्र से शान्त नहीं होता बल्कि उसकी तो नींद, चैन सब छिन जाता है।
घटनाएँ सोते - जागते मस्तिष्क पटल पर मंडराने लगतीं हैं, लेखनी मचलने लगती है, शब्द चहकने लगते हैं और फिर लिखी जाती हैं कहानियाँ। शायद ऐसा ही कुछ घटित हुआ होगा वरिष्ठ कथाकार शम्भू पी सिंह जी के इर्द - गिर्द और उनकी लेखनी चल पड़ी होगी। वैसे उन्होंने अपने उत्तर कथन में इस बात को स्वयं स्वीकारा भी है कि देखी सुनी घटनाओं ने शब्द दिये और कथा का प्रवाह बना रहे इसलिए कल्पना का भी सहारा लिया।
शम्भू पी सिंह की कथा संग्रह जनता दरबार का कवर पृष्ठ अपने नाम के अनुरूप ही सुन्दर एवम् सजीव है जिसमें कुल तेरह कहानियाँ संग्रहित हैं।
इस संग्रह में अधिकांश कहानियाँ सामाजिक मूल्यों को तिलांजलि देती हुई स्त्री - पुरुष के अंतरंग सम्बन्धों पर आधारित है जिसमें लेखक ने खूबसूरती से कथानक को पिरोया है और अंत तक कौतूहल बनाए रखा है जो पाठकों को बांधने में पूरी तरह से समर्थ और सक्षम है।
अक्सर स्त्री - पुरुष से सम्बन्धित कहानियों में महिलाओं की स्थिति पीड़ित, शोशित दयनीय तथा छली हुई दिखाई जाती है लेकिन इस संग्रह की अधिकांश कहानियों में लेखक ने महिलाओं के द्वारा पुरुषों को ठगा हुआ तथा छला हुआ दिखाया है। जैसे आज के आधुनिक युग में सामाजिक मूल्यों को तर्क के साथ तोड़ती हुई "बायोलाॅजिकल नीड्स" में स्त्री के द्वारा ही स्त्री के परम्परागत चरित्र पर अट्हास करते हुए अवैध सम्बन्ध को एक शारीरिक आवश्यकता बताया गया है ।
"तोहफ़ा" में सलील और स्नेहा के दाम्पत्य प्रेम को खूबसूरत सम्वादों के माध्यम से बहुत खूबसूरती से उकेरा गया है। दोनों में प्रेम की पराकाष्ठा है लेकिन स्नेहा के कोख में उसके अतीत का बच्चा यह सुन कर सलील अपने को ठगा हुआ महसूस कर रहा है । कहानी तृष्णा में चित्रा के चरित्र को भी आवश्यकतानुसार एक से अधिक पुरुषों को प्रेम में फांस कर छलते हुए लिखा गया है।
लेकिन लेखक ने पुरुष होते हुए भी एक महिला की पुरुषों के द्वारा बाल्यावस्था से लेकर उम्र के ढलान तक यौन शोषण की बारीकी से कथानक पेश करके पाठकों के मन में पुरुषों के प्रति पक्षपात वाली अवधारणा को सिरे से खारिज तो कर ही दिया साथ ही "एक्सीडेंट", "खेल खेल में", "अगली बार", "सिलवट का दूध", "भूख", "मिस्ड कॉल के इंतजार में" जैसी कहानियाँ लिखकर लेखक ने अपने अनुभव जन्य विविधता का परिचय दिया है।
कहानी "इजाजत" में आज के आधुनिक युग में मानवीय संवेदनाओं को ताक पर रखकर पड़ोसी की पार्टी में बाधा न उत्पन हो इसलिए पिता की मृत्यु पर भी रोने के लिए इजाजत माँगने पर नहीं मिली।
कहानी जनता दरबार में तो लेखक ने पूरे सामाजिक तंत्र को ही नंगा करके रख दिया है। जिसमें मुखिया के पति के द्वारा सरकारी पैसे से मकान बनवाने के एवज में भीखू की पत्नी को दो महीने से ज्यादा जबर्दस्ती अपने पास बंधक बनाकर रखा गया था। फिर भीखू का भाई रोहन मौके पर जनतादरबार में पहुँचकर सी एम के सामने सारा राज खोल देता है।
इस प्रकार कथाकार ने विभिन्न सामाजिक विषयों पर अपनी पैनी दृष्टि रखते हुए बहुत ही खूबसूरती से कलम चलाई है जिसके लिए वह बधाई के पात्र हैं।
कथा संग्रह - जनता दरबार
लेखक - शंभु पी. सिंह
प्रकाशक - संस्कृति प्रकाशन
पृष्ठ - 120
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आलेख - किरण सिंह
समीक्षक का ईमेल -
छायाचित्र सौजन्य - किरण सिंह
प्रतिक्रिया हेतु ईमेल - editorbejodindia@yahoo.com
किरण जी ने एक पाठक के नजरिए से संग्रह के कहानियों पर दृष्टि डाली है।जो स्थापित समीक्षकों से अधिक ग्राह्य और आम पाठक की अभिव्यक्ति को व्यक्त करता है।किरण जी एक कवियत्री और कथाकार तो हैं ही एक समीक्षक के सारे गुण भी मौजूद हैं।उन्हें मेरी शुभकामनाएं।
ReplyDeleteजी महोदय. आपने बिलकुल सही कहा. इस आलेख में समीक्षा के काफी सारे गुण मौजूद हैं. एक एक कहानियों के कथावस्तु की उन्होंने जितने सारगर्भित रूप से व्याख्या की है वह काबिले-तारीफ़ है. वे निश्चित रूप से बहुत अच्छी समीक्षक बन सकती हैं.
Deleteहार्दिक आभार
ReplyDeleteधन्यवाद. blogger.com में login करके अपना नाम डालने से यहाँ दिख सकता है.
Deleteबहुत आभार हेमन्त जी
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