मानव प्राण कलाओं के विविध स्वरूप में बसता है. उसके अलावा तो वह मानव है ही नहीं यंत्र है अथवा पशु है। और कलाओं में लोककला जन जीवन से सीधा सरोकार रखनेवाली कला होने के कारण अत्यधिक दीर्घजीवी होती है जो सदियों से पीढ़ी-दर-पीढ़ी हस्तांतरित होती रहती है।
17.4.2019 को "लोक कला कृति" मधुबनी पेंटिंग संस्थान के तत्वावधान में एक चित्रकला के उपर संगोष्ठी आयोजित की गई जिसमें अनेक सुधी कलाकारों ने भाग लिया. इनमें सम्मलित थीं मंजू झा, सरिता झा, शिल्पी झा, सुरभी कुमारी, बबली कुमारी, साक्षी, अंजली ठाकुर, विन्नी विजेता, बबली कुमारी, वैभवी और कांति सिंह तथा उनके साथ संस्था की संचालिंका नूतन बाला ने भाग लिया,
नूतन जी देश के विभिन्न संस्थाओं जैसे ललित कला अकादमी, भारतीय रेलवे एवं लक्ष्मीश्वर सिंह संग्रहालय के द्वारा प्रायोजित कार्यक्रम में सहभागी रही है। समय-समय पर लोक कलाकृति के द्वारा देश के विभिन्न प्रांतों में प्रदर्शनी भी लगाई गई है। इसमे राष्ट्रपति पुरस्कार प्राप्त श्री दास पुष्कर जी ने सभी प्रतिभागियों को पेंटिंग का टिप्स सिखाया।
सभी प्रतिभागी अपनी शंकाओं का समाधान लिया। अंत में श्री डी. कुमार सब को धन्यवाद देते हुए सेमिनार का समापन किया ।
इस तरह के आयोजन सतत होते रहने चाहिए ताकि हमारी लोककला जीवित रहे और लोकजीवन तमाम कठिनाइयों और अभावों के बावजूद भी एक आंतरिक उल्लास से परिपूर्ण रहे।
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आलेख - चंदना दत्तजिला - मधुबनी
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