संगिनी के संग छिकै ,मोन फगुआय छै
हिंदी और अंगिका में होलियाई कवितायेँ
हिन्दी भाषा साहित्य परिषद् खगड़िया की वार्षिक पत्रिका " स्वाधीनता संदेश -2019 " का लोकार्पण -सह-बसंतोत्सव कविसम्मेलन " का आयोजन वीणा प्राइमरी एकेडमी, पिपरा, चौथम के प्रांगन में दिनांक 17:03:2019 (रविवार) को अवधेश्वर प्रसाद सिंह की अध्यक्षता में सम्पन्न हुआ।
कार्यक्रम के उद्घाटन कर्ता थे समस्तीपुर से पधारे कवि हरि नारायण सिंह हरि,मुख्य अतिथि थे दरभंगा से पधारे विनोद कुमार हँसौड़ा और विशिष्ट अतिथि थे सलीमनगर से पधारे ग़ज़लकार मो0 रिज़वान खाँ अहमक । स्वागतसचिव शिवकुमार सुमन ने अतिथियों का स्वागत किया और पुष्पा झा ने स्वागत गान गाकर अतिथियों का स्वागत किया। दीप प्रज्वलित करके हरि नारायण हरि ने कार्यक्रम का उद्घाटन किया। मुख्य अतिथि समेत सभी मंचस्थ अतिथियों ने स्वतंत्रता संदेश-2019 का विमोचन किया। मंच संचालन कैलाश झा किंकर ने किया।
कविसम्मेलन की शुरुआत कविता कोश के उप-निदेशक -सह-कार्यकारी सचिव,हिन्दी भाषा साहित्य परिषद राहुल शिवाय की सरस्वती वन्दना से हुई-
सादगी-सुअम्ब गहे, सरस-मधुर बहे,
पिंगल-पीयूष भरा, मधुरस गान दो l
सुखनन्दन पासवान ने होली गाकर वसंतोत्सव को सीधे परवान पर चढ़ा दिया-
देखो बसंत बहार,ऐलो होली के त्योहार
करो मन मे विचार यही देहिया में
रंग,अबीर लगाबो, मन के मैल मिटाबो
खुशी खुशी रहो ऐ नगरिया में ।
मो0 रिजवान खाँ अहमक-
दिल के जलते हुए शोलों पे चले हैं अब तक
इश्क में मेरी तरह कौन जले है अब तक ।
विनोद कुमार हँसौड़ा-
ढूँढ़ता हूँ ऐसे नौजवान को
स्वर्ग जो बनाए हिन्दुस्तान को
और
झलकता है दिलों से दिल का सच्चा प्यार होली मे
सदा होता है बत्तीसी का दीदार होली में ।
प्रीति कुमारी निराला-
धूप से गिला क्या करें जब छाँवों ने ही जला दिया।
गैरों की शिकायत क्या करूँ,जब अपनों ने ही दगा दिया।
हरि नारायण सिंह हरि-
किंकर जी की बात न पूछो कालिदास अवतार
कविता को दूतिनी बनाकर प्रेम बढाते यार -जोगिरा सारा रा रा---
शिव कुमार सुमन -
सपने लाख हजारों पर
नींद कहाँ अंगारों पर ।
सुमन कुमार रवि-
हम हैं तकदीर के मारे यूँ तो
मगर खुद के हैं सहारे यूँ तो
निशान्त आर्य-
जब रात का चाँद ढल रहा होगा
उम्मीद का सूरज भी चल रहा होगा।
डा0 सुनील कुमार मिश्र-
आँखों से काजल चुराना आता है मुझको
क्या कहें आपका प्रेम बहुत भाता है मुझको ।
राहुल शिवाय की होलीपरक रचना देखें-
सरहद पर वीरों का भाल सजाने वाली है
और कहीं होली प्रिय को अपनाने वाली है
लाठी से बरसाना खेले बिरज संग होली
लेकर आई है खुशियों की नव उमंग होली।
कैलाश झा किंकर ने अपनी प्रस्तुति में दर्जनों रचनाएँ सुनायीं।उनमें एक मनहरण घनाक्षरी वार्णिक छन्द देखा जाए-
वासंती उमंग छिकै,भौंरा नै अनंग छिकै
संगिनी के संग छिकै ,मोन फगुआय छै ।
हरा ,लाल, पीला, रंग, गोरी के करै छै तंग
भांग पीने छै मतंग,रंग से नहाय' छै ।
उड़ै सगरो गुलाल , होलै लाल मुँह-गाल
बूढ़ा-बूढ़ी भी बेहाल,झूठे खिसिआय छै।
भनई कैलाश कवि,होली खेलै खास कवि
ढूँढ़ै छी वसंती छवि ,जहाँ वें नुकाय छै ।
अवधेश्वर प्रसाद सिंह-
घर आने पर पत्नी मुझको डाँटती रहती
ई नै छो उ नै छो घर में भाँजती रहती।
धन्यवाद ज्ञापन करते हुए अवधेश्वर प्रसाद सिंह ने उपस्थित श्रोताओं/ कवियों और पत्रकारों के प्रति आभार प्रकट करते हुए कार्यक्रम के समापन की घोषणा की।
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आलेख - कैलाश झा किंकर
छायाचित्र - हिंदी भाषा साहित्य परिषद, खगड़िया
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