मोहब्बत में सियासत मत करो जनाब
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हम कविता के लिए कलम उठा पाते हैं क्योंकि किसी ने अपने हाथों में बंदूक उठाये रखकर दिनरात हमारे सीमाओं को सुरक्षित रखा है. ये फौजी भी हमारी और आपकी तरह इंसान है जिनके सीने की धड़कनें भी तेज होती हैं किसी प्रेमिका के लिए और जिसकी आँखें भी नम हो आती हैं किसी माँ के आँचल को याद करते हुए. ऐसे परम पुनीत कार्य करने वाले प्रणम्य फौजियों को मंच पर बिठाकर उनके सम्मान में कवि गोष्ठी आयोजित की गई, कार्यक्रम की अध्यक्षता स्वाति सिंह ने की और मुख्य अतिथि थे भगवती प्रसाद द्विवेदी एवं सतीशराज पुस्करणा. कुशल संचालन विभूति कुमार ने किया.
16.11.2018 को पटना के इंस्टीच्यूशन ऑफ इंजीनियर्स के भवन में. कवयित्रियों की भागीदारी कवियों से भी अधिक थी और कुछ वैयाकरण सम्बन्धी त्रुटियों के बावजूद सबसे उल्लेखनीय बात यह साबित करना रहा कि कलम उठाना उन्हें भी अच्छी तरह मालूम है जिन्होंने अपने हाथ परिवार और बच्चों के भविष्य के नव-सृजन में पूरे मनोयोग से लगाये रखा है.
कई दिग्गज रचनाकार और शायर भी उपस्थित थे किंतु युवा स्वर बहुतायत में दिखे जिनमें पुरुष और स्थियाँ दोनो शामिल थे. पढ़ी गई रचनाओं की झलकी प्रस्तुत है-
समीर परिमल-
गर मुहब्बत जवान हो जाए / ये ज़मीं आसमान हो जाए
बन गया मैं अज़ान मस्जिद की / तू भी मुरली की तान हो जाए
भगवती प्रसाद द्विवेदी-
उनका जाना / महज एक जीवन का अंत नहीं था
विरह विदग्धा थी शकुंतला / पर दुष्यंत नहीं था
नसीम अख्तर -
वक्त के साँचे में ढलते जाइये / वरना अपने हाथ मलते जाइये
ज़िंदा रहना है अगर इस दौर में / ज़िंदगी का रुख बदलते जाइये
विभा रानी श्रीवास्तव-
मधुयामिनी / संकेतक रौशनी / पर्दे के पास (हाइकू-1)
दोस्ती की हद / खल की मजबूरी / हद में रहे (हाइकू-2)
स्वाति सिंह-
शुष्क है मौसम शहर / सूखा हर शज़र है
चंद सफों पर जो लिखी थी कविता
उन्हीं को पढ़ कर आँखें तर है
सुनील कुमार-
आशिकों में जिसे शुमार मिला / शख्स ज़ख्मी वो तार तार मिला
शाख पर फूट आया फिर कोंपल / गुलफ़िशानी का ऐतबार मिला
हेमन्त दास 'हिम' -
तुम आए तो ऐसा लगा / धूप में शीतल पवन बहा
पत्ते पत्ते फूल व खुशबू / प्यारा प्यारा हर लम्हा
पीयूष पराशर (वायुसेना) , निवास- गाज़ीपुर -
होऊँ जब कुर्बान वतन की राहों में
तोड़ूँ मैं ये दम धरती माँ की बाहों में
विशाल नारायण (भारतीय नौसेना)-
तेरे आशीष की आस लिए मैं / बापू बापू रोज पुकारूँ
जाने किन राहों में मिलोगे / हर राह मैं रोज निहारूँ
डॉ. सतीशराज पुस्करणा -
आज के साधु / माँगते चलें भीख
नाता नहीं है / वेद से, पुराण से
क्या देंगे कोई सीख
विभूति कुमार -
दिलो-ज़ाँ दे चुके हैं इस मुहब्बत में हजारों
मैं इससे बेहतर नज़राना ढूँढता हूँ
अमीर हमजा-
मैं हूँ नादान मुझे नादान रहने दो / सियासत से दूर गिरेबान रहने दो
मोहब्बत में सियासत मत करो जनाब / हमारे बीच अमन का पैगाम रहने दो
संजय कुमार सिंह -
आज़ादी के बाद किसी ने पूछा भारत माँ से / सब मना रहे जश्ने- आजादी तू उदास क्यो
खुशियाँ फैली है फिज़ाओं में / तुम निराश क्यों
मधुरेश नारायण-
देखने वालों को दिखता है ये सारा मंज़र / कहीं पर रात होती है कहीं पर सुबह होती है
क्यूँ बनाया इंसा को ये रब ही जानता है / उससे चलती है दुनिया ये वो भी मानता है
प्रतिमा सिन्हा-
ऐसे ना मिलूंगी कभी / कि तुम जुनून ठानो
तुम साजिशें रचो / कई दिल दुखाओ
कुंदन आनंद-
वो महाभोगी नहीं देते / मातृभूमि को प्यार
प्रिय की जंघाओं पर जिनका / बसता है संसार
नूतन सिन्हा-
नदी की धारा बहती है
बहती है कुछ कहती है
शाम्भवी-
आज खामोश हूँ फिर भी बोल रही हूँ
आज उदास हूँ फिर भी हँस रही हूँ
शुभांगी-
वो कहते हैं मैं उनकी परचाई सी दिखती हूँ
माथे के ललाट से लेकर पैरों की उँगली तक
अपने पिता से मिलती हूँ
कमला अग्रवाल-,
एक दिन मैंए पूछा ज़िंदगी से / ज़िंदगी तू क्या है
तू खुशी है या तू है ग़मों का सागर
संगीता गोविल-
चलते चलल्ते छोप में थक गए हैं पाँव
ढूँढते हैं कहीं मिल जाए थोड़ी सी छाँव
सुबोध सिन्हा-
तमाम उम्र मैं हैरान,परेशान हलकान सा / तो कभी लहुलुहान सा बना रहा
मानो मुसलमानों के हाथों में गीता / तो कभी हिंदुओं के हाथों में कुरान बना रहा
सरोज तिवारी-
जब तक दम में दम मेरे / प्राणों से प्यारे वतन मेरे
हो जायें तुझपे हम कुरबान / यही तो है अरमान
ईशाकी सरकार दवारा पम्मी सिंह तृप्ति (दिल्ली) की रचना का पाठ-
न गिरने का मलाल हो / न उड़ने पर धमाल हो
कदम उठे तो चल पड़े / रुके कदम पर मुड़े नहीं
राजकांता राज-
जब वो पहली बार मिले / हाय हेलो मुझसे बोले
हेलो सुन मुझे गुस्सा आया / लेकिन मन ही मन मुस्काया
रंगना सिंह कल्पना-
साँय साँय करते हुए वन में / थिरकते हुए पत्तों के बीच
एक दूजे से लिपटी हुई लगाएँ / दूर कहीं से शेर की दहाड़
मीनू झा (पानीपत) की रचना का पाठ नीतू कुमारी द्वारा-
जन्म का आधार तुम्ही हो / मेरा पहला प्यार तुम्ही हो
होंठ लगे जो श्रोत प्र अमृत / उष्मा थी जिस गोद सृजित
माँ वो तुम्हीं तो हो
अजीत कुमार-
मोहब्बत में इक उसूल है अपना / जो है पहली वही आखरी अपनी
माँ रोज नजर उतारती है / है उसकी भी डाक्टरी अपनी
शाईस्ता अंजुम-
अंधेरा है कैसा तुम्हारा खत पढ़ूँ / लिफाफे में जरा रौशनी भेज देते
चलो चाँद का किरदार अपना लें हम / दाग अपने पास रख लें
शशि कांत श्रीवास्तव-
कैसा ज़माना आ गया / कैसा ज़माना आ गया
रोटी मँहगी हो गई / टेलीफोन सस्ता हो गया
प्रभात कुमार धवन-
ओ कवि / तब तुम नहीं रहोगे
फिर भी तुम्हें जीवन देगी / तुम्हारी कविता
सुशांत सिंह-
बिक तो जाएंगे हम भी / कोई खरीदार तो मिले
दिल हम भी लगा लेंगे / कोई दिलदार तो मिले
एकता कुमारी-
अब मुझे भी तुम्हारी जरूरत नहीं / हर दिन टूटते बिखरते सपने
हर वक्त समेटने में गुजरता वक्त / बिखरते टूटते ख्वाब
प्रेमलता सिंह-
काश! हम सइर्फ इंसान होते / ना ही कोई धर्म की दीवार होती
ना ही कोई जाति का बंधन होता / आपस में भाईचारा होता
मधु रानी-
ड्योढ़ी घर की / स्वागत कर रही
खुले दिल से / अपनी बाँहें फैलाए
शशि शर्मा 'खुशी' (राजस्थान) पाठ प्रतिमा सिन्हा -
वाह, अप्रतिम,नायाब, अलौकिक, अनन्त, असीम, अद्भुत
अन्तहीन होता है इश्क, लेकिन कभी भी पुराना नही होता है इश्क।
अंकिता कुलश्रेष्ठ (आगरा) पाठ अभिलाष दत्त-
चार दिन महबूब से नाराज़गी के बाद
रात भर बरसी मोहब्बत, तिश्रगी के बाद
रात भर बरसी मोहब्बत, तिश्रगी के बाद
कार्यक्रम के अंत में संजय सिंह द्वारा धन्यवाद ज्ञापण किया गया और अध्यक्षा की अनुमति से सभा विसर्जित की गई.
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प्रस्तुति- हेमन्त दास 'हिम'/ विभा रानी श्रीवास्तव
छायाचित्र- बिहारी धमाका
प्रतिक्रिया हेतु ईमेल- editorbiharidhamaka@yahoo.com
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