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Wednesday, 3 October 2018

लेख्य मंजूषा द्वारा कवि गोष्ठी पटना में 2.10.2018 को सम्पन्न

चाहिए बेदारियाँ और सो रहा है कुल शहर



गांधी जी के पहले और उनके बाद की दुनिया बिलकुल अलग है. उनके पहले सिर्फ हिंसा और शक्ति ही मुख्यत: सत्ता प्राप्ति के निर्धारक हुआ करते थे लेकिन उनके युग के पश्चात भारत ही नहीं पूरे विश्व ने जाना कि अहिंसक विरोध का स्वरूप कहीं ज्यादा व्यापक होता है और इसे दबाना दर-असल असंभव होता है. आज के आततायियों के पास ऐसे अत्याधुनिक संहारक शस्त्र हैं कि आप उनसे शस्त्र के बल पर नहीं जीत सकते लेकिन जब आप विचारों से लड़ते हैं और अपनी सद्भावना को औजार बनाकर लड़ते हैं तो उन्हें नष्ट करने का उनके पास कोई औजार नहीं होता.

गांधी जी के 150वीं जयंती एवं शास्त्री जी की 115वीं जयंती के अवसर पर लेख्य मंजूषा और अमन स्टुडियो के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित "जरा याद करो कुर्बानी" काव्यगोष्ठी का सफल आयोजन स्थानीय वेलकम होटल पटना में संपन्न हुआ.

शहर के जाने माने कवियों ने अपनी कविताओं से गांधी जी एवं शास्त्री जी को याद कर अपनी रचनाओं से श्रद्धांजलि अर्पित की. गोष्ठी की विधिवत शुरूआत मुख्य अतिथि  नीलांशु रंजन, सतीशराज पुष्करणा  के संग स्टुडियो के निदेशक श्री शहनवाज तथा संस्था की अध्यक्ष विभा रानी श्रीवास्तव ने की. कवि गोष्ठी की अध्यक्षता सतीशराज पुष्करणा और मंच संचालन ज्योति स्पर्श ने किया.

शहीदों को याद करते हुए सभी कवियों ने देश भक्ति पूर्वक रचनाओं को प्रस्तुत किया तो पूरा माहौल देशभक्ति के उमंग में सराबोर हो गया.
संजय कुमार संज ने हर्ष और उत्कर्श से एक नया इतिहास बनाने की बात कही-
कि हर्ष हो उत्कर्ष हो, खुशियां भी सहर्ष हो,
हास हो परिहास हो, नया इक इतिहास हो
शास्त्री हों और गांधी हों, बिस्मिल प्रयास में आंधी हो 
सर्व धर्म का आकाश हो, नया इक इतिहास हो.

सुनील कुमार आज के बिगड़े हुए माहौल को देख कर फिर से गांधी जी को खोज रहे हैं-
राजनेता अब कहां गांधी के जैसा,
देश को फिर से वो गांधी चाहिए

मो. नसीम अख्तर ने वतन की शान में इज़ाफा किया-
तकदीर क़ौम मिलकर बनाओ ऐ दोस्तों 
अपने वतन की शान बढ़ाओ ऐ दोस्तों 

विभूति कुमार ने जलते हुए देश को देख कर बापू का संदेश याद किया-
जल रहा है, झुलस रहा है हर राष्ट्र हर देश,
भूल गए हम बापू तेरा शांति का संदेश

युवा विपुल ने बापू की हत्या पर उत्तेजित होते हुए कहा कि-
नहीं मरे महात्मा उस दिन
नाथू राम के गोली से,
नहीं सजी थी धरती उसदिन,
बापू के रक्त रंगोली से,
पर आज मैंने एक देशभक्त को
तिरंगा नीचे करते देखा
बापू को मरते देखा!

निशांत निरंकुश ने अपने कर्तव्य से विमुख नागरिकों पर तंज कसते हुए कहा-
आजादी को छोड़ो, गांधी आजाद को लड़ने दो,
हम जागेंगे लेकिन पहले भगत सिंह को मरने दो

मधुरेश नारायण  ने कहा गांधी के साथ-साथ लाल बहादुर शास्त्री के जन्मदिवास को भी याद किया-
मातृ-भूमि की पुण्य धरा पर, दो महापुरुषों का जन्म हुआ
चमक उठा माॅ-भारती का भारत, ऐसा इनका कर्म हुआ 

ज्योति मिश्रा ने बापू के अहिंसा व्रत पर कहा-
दो अक्टूबर जन्म था, बापू सबके आप सत्य -
अहिंसा, प्रेम से, दुनियां ली थी नाप

संजय कुमार सिंह ने अपने मन में बसे भारत की तकदीर को रखा-
अमन का पैगाम ले कर,चल परे अब हर कदम
फिजा बदले,चमन बदले,न कहीं जलता हुआ कश्मीर हो
ऐसी भारत की तकदीर हो 

उत्कर्ष आनंद भारत ने अनीति के विरुद्ध युद्ध छेड़ दिया-
युद्ध युद्ध युद्ध है, अनिति के विरुद्ध है,
पार्थ भीम संग में, धर्मराज क्रुद्ध है.

अपने अध्यक्षीय भाषण में सतीशराज पुष्करणा ने पहले पढ़ी गई कविताओं पर अपने संक्षिप्त विचार देते हुए सबको शाबासी दी फिर अपनी कविता के माध्यम से सोते हुए शहर को जगा दिया-
चाहिए बेदारियाँ और सो रहा है कुल शहर
है बहुत दुश्वारियाँ और सो रहा है कुल शहर
खौफ के मारे बच्चे सिमटे माँ की गोद में
रो रही किलकारियाँ और सो रहा है कुल शहर

इस अवसर पर अन्य कवियों में विभूति कुमार, शाइस्ता अंजूम, मो रब्बान अली, विजयनाथ झा, विश्वनाथ वर्मा, अनिष कुमार मिश्र, आशीष कुमार झा आदि ने भी अपनी रचनाओं को प्रस्तुत किया.अंत में आये हुए कवि-कवयित्रियों का धन्यवाद ज्ञापन मो. नसीम अख्तर ने किया फिर अध्यक्ष की अनुमति से कार्यक्रम की समाप्ति की घोषणा हुई.
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आलेख -  संजय कुमार संज
छायाचित्र- लेख्य मंजूषा
प्रतिक्रिया हेतु ईमेल- editorbiharidhamaka@yahoo.com


















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