जाति-प्रथा के किले को ध्वस्त करता उपन्यास
भारतीय समाज सदियों से अगर पिछ्ड़ा रहा है तो इसका कारण यहाँ मेधा में कमी नहीं है बल्कि विभाजित सामाजिक संरचना है जो जाति-प्रथा की सड़ी गली मानसिकता के रूप में सामने आती है. तमाम प्रगतिशीलता के दावों के बावजूद हजारों साल से चली आ रही और पूरी तरह विकृत हो चुकी यह व्यवस्था है कि पूरी तरह से निकल ही नहीं रही है. आज हम चाहे जो भी काम करें हमारे मन में रहता है कि हम फलाँ जाति के अंग हैं. डॉ. राजेंद्र प्रसाद का उपन्यास 'बल्लो' इसी व्यवस्था के प्रति विद्रोह है.
खगड़िया: 01:10:2018 हिन्दी माह पर विशेष आयोजन हेतु हिन्दी भाषा साहित्य परिषद् खगड़िया के तत्वावधान में डा0 राजेन्द्र प्रसाद विरचित उपन्यास 'बल्लो' का लोकार्पण-सह- कविसम्मेलन का आयोजन वीणा प्राइमरी एकेडमी पिपरा,चौथम में सम्पन्न हुआ जिसकी अध्यक्षता अवधेश्वर प्रसाद सिंह ने की जबकि मंचसंचालन का दायित्व शिवकुमार सुमन निभा रहे थे। मुख्य अतिथि के रूप में प्रसिद्ध समालोचक व ग़ज़लकार अनिरुद्ध सिन्हा, मुंगेर और विशिष्ट अतिथि के रूप में घनश्याम जी, पटना, रणजीत दूद्धू, नालन्दा, बिनोद कुमार हँसौड़ा, दरभंगा, मंजुला उपाध्याय मंजुल, पूर्णियाँ, सच्चिदानंद पाठक,बेगूसराय एवम् कैलाश झा किंकर मंचस्थ थे।
डा0 राजेन्द्र प्रसाद विरचित उपन्यास 'बल्लो' का लोकार्पण मंचस्थ कवियों ने किया। कैलाश झा किंकर ने बल्लो उपन्यास के संदर्भ में कहा कि खगड़िया उपन्यास लेखन में भी आगे बढ़ रहा है।मंत्रिमंडल सचिवालय(राजभाषा)विभाग, पटना ने पांडुलिपि प्रकाशन योजनान्तर्गत 2017-18 का प्रकाशन अनुदान देकर इसकी गुणवत्ता को रेखांकित किया।इसके पहले नन्देश निर्मल के उपन्यास 'उत्सर्ग', डा0 सोहन कुमार सिन्हा के उपन्यास 'सैलाब' और डा0 कविता परवाना के उपन्यास" एम्बीशन"और डा0 राजेन्द्र प्रसाद के उपन्यास "मिस रंजू कुमारी,बिलसवाऔर शैम" को पाठकों का स्नेह मिल चुका है।
बल्लो उपन्यास में भी उपन्यास के छहों तत्व मौजूद हैं। यथार्थ विषय जाति-प्रथा पर इनका लेखन कथावस्तु को पुष्ट करता है।फूलबाबू, बासो भैंसवार, बोधी साह, बलेशरा, विशुनदेव, रामखेलावनसाह, फुलकुमारी, राजू, महावीर मिसर, महेशरा, गौरीशंकर जैसे पात्रों के द्वारा घटनाओं को मोड़ देने में उपन्यासकार सफल हुए हैं। कथोपकथन का सुन्दर,सुगठित प्रयोग उपन्यासकार को विशिष्ट बनाता है। देशकाल परिस्थिति की बात करें तो जातिप्रथा की विद्रूपताओं को विखंडित करके अन्तर्जातीय विवाह को बढ़ावा देने के इस वर्तमान माहौल में बल्लो उपन्यास एक मील का पत्थर सिद्ध होने वाला है।भाषा एकदम सरस,सरल और पात्रानुकूल है जो फणीश्वरनाथ रेणु की याद दिलाता है। उपन्यास का उद्देश्य जातिप्रथा को तोड़ना है। जहाँ तक शैली की बात है तो बल्लो उपन्यास में कथात्मक शैली को अपनाया गया है। उपन्यासकार डा0 राजेन्द्र प्रसाद आगे भी अपनी लेखनी को चलाते रहें,तो कुछ और कृतियाँ आएँगी ही।
मुख्य अतिथि अनिरुद्ध सिन्हा ने खगड़िया की साहित्यिक ऊँचाई को रेखांकित करते हुए कहा डा0 राजेन्द्र प्रसाद खूब काम कर रहे हैं। चार उपन्यास देकर इन्होंने साहित्य के भंडार में इजाफा किया है। बल्लो उपन्यास की सफलता की कामना करते हुए कहा कि पिपरा प्रक्षेत्र की यह कहानी आज लोकार्पित होकर विश्व साहित्य में चमकेगी।
द्वितीय सत्र में कविसम्मेलन की शुरुआत मंजुला उपाध्याय की सरस्वती वन्दना से हुई। कविता पाठ करने वालों में निशान्त आर्या, शिवकुमार सुमन, रंजीत दुद्धू,बिनोद कुमार हँसौड़ा, अवधेश्वर प्रसाद सिंह,घनश्याम जी,अनिरुद्ध सिन्हा,कैलाश झा किंकर, मंजुला उपाध्याय मंजुल, सुखनन्दन पासवान, सच्चिदानंद पाठक आदि प्रमुख थे।
सभी कवियों को पुष्पमाल, अंगवस्त्रादि से सम्मानित किया गया। हिन्दी के विकास में रचनाकारों के योगदान को रेखांकित करते हुए देर रात तक चले इस आयोजन की समाप्ति की घोषणा अवधेश्वर प्रसाद सिंह ने की।
कुल मिलाकर खगड़िया के साहित्याकाश से रचनाकर्म की रश्मियों को बिखेरता यह कार्यक्रम लम्बे समय तक लोगों की स्मृतियों में कायम रहेगा.
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आलेख- कैलाश झा किंकर
छायाचित्र- हिन्दी भाषा साहित्य परिषद् खगड़िया
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