परिंदों की सुनोगे चहचहाहट / तेरी सहर होगी
हिंदी को अपना सही मुकाम पाने को अभी बहुत दूरी तय करना है. इस दिशा में गोष्ठियों की विशेष भूमिका होती है. भारतीय युवा साहित्यकार परिषद, पटना लम्बे अरसे से इस हेतु प्रयासरत है. दिनांक 30.9.2018 को उसके द्वारा पुन: एक गोष्ठी आयोजित हुई जो राजेंद्रनगर टर्मिनस के कोचिंग कम्प्लेक्स ट्रेनिंग स्कूल, पटना में चली.
आजादी
का सही मतलब है कि हमने अपनी भाषा हिन्दी को किस हद तक अभिव्यक्ति और संवेदना से जोड़
रखा है. राजभाषा हिंदी से ही राष्ट्र की पहचान होती है. हिंदी पखवाड़ा के अवसर पर स्टेशन
राजभाषा क्रियांवयन समिति समिति एवं साहित्यिक संस्था भारतीय युवा साहित्यकार परिषद
के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित राजभाषा संगोष्ठी के मुख्य अतिथि राजमणि (मंडल राजभाषा अधिकारी) ने उपरोक्त उद्गार व्यक्त किए.
संगोष्ठी
का संचलन करते हुए सचिव सिद्धेश्वर ने कहा कि हमें भाषा के स्तर पर स्वतंत्रता चाहिए.
इसके लिए जरूरी है कि हिंदी को शिक्षा एवं रोजगार की भाषा अवश्य बनाई जाय.
संगोष्ठी के दूसरे सत्र में सिद्धेश्वर
के सशक्त संचालन में काव्योत्सव के तहत दो दर्जन नए-पुराने कवियों ने अपने गीत, ग़ज़ल और कविताओं से श्रोताओं को मंत्रमुग्ध कर दिया. गोष्ठी के
अध्यक्ष सुप्रसिद्ध शायर आर. पी. घायल थे.
इस काव्योत्सव में पढ़ी गई कविताओं के अंश इस प्रकार हैं-
आर. पी. घयल ने आजकल मुस्कान के गायब होने का राज़ बताया-
किसी के दिल में नफरत है तो वह मुस्का
नहीं सकता
किसी के प्यार का नगमा कभी भी गा नहीं
सकता
मो. नसीम अख्तर ने डर को निकाल दिल से निकाल फेंकने का आह्वाहन किया-
रोज किस्तों में मरते रहेंगे सदा
मौत से जो नसीम डर जाएंगे
कुछ इधर जाएंगे कुछ उधर जाएंगे
सूखे
पत्ते हवा में बिखर जाएंगे
सिद्धेश्वर ने संघर्ष के नाम की आड़ में चल रहे जुल्मो-सितम का चिट्ठा खोला-
झूठ और कत्लो-आम को
संघर्ष का नाम मत दो
अपनी मंज़िल पाने को
कितने ही घर उजाड़े
हैं तूने
मधुरेश शरण ने टेढ़े-मेढ़े रास्तों को भी सुगम बना दिया-
ऊँचे-नीचे टेढ़े-मेढ़े हैं
जीवन के रास्ते
बुलन्द रखो तुम जज़्बा अपना
राह सुगम बनाया करो
लेकिन कवि घनश्याम के लिए बाढ़ में तमाम कुनबा सिर पर उठाकर घूमना पड़ रहा है-
ये बात सही है कि सताए हुए हैं हम अपना वजूद फिर भी बचाए हुए हैं हम. सुरसा की तरह गांव को पानी निगल गया कुनबा तमाम सिर पे उठाए हुए हैं हम.
उपेंद्र प्रसाद राय को किसी को आजकल 'हेलो' कहने में भी खतरा नजर आने लगा है-
यहाँ बोलने पर है खतरा
पर चुप रहना
बहुत कठिन है
हैलो कहना बहुत कठिन है
कुन्दन आनन्द ने खबरों में कारीगरी दिखलानेवालों की पोल खोल दी-
जिस खबर की खबर से खबर मिट गई
उस खबर से तो कुन्दन रहे बेखबर
सूरज ठाकुर ने स्वीकार किया कि वे एक खानदानी रोग से पीड़ित हैं-
प्रेम खामोश इक कहानी है
प्रेम से
शुरू होती ज़िंदगानी है
हम किसी से बैर नहीं रखते
प्रेम का रोग खानदानी है
क़ौसर शमा ने सोये लोगों को परिंदों की चहचहाहट सुनाकर जगाया-
अभी गफलत में हो तुम
नींद से जागो
जरा तुम देखो
परिंदों की सुनोगे चहचहाहट
तेरी सहर
होगी
प्रभात कुमार धवन ने गरीबी का बड़ा मार्मिक बयान किया-
गरीबी में रिश्तों की
लम्बाई छोटी
पड़ गई
इसके अतिरिक्त डॉ. मेहता नागेन्द्र
सिंह, अशोक कुमार प्रजापति,
शैलेश कुमार, रवींद्र सिंह त्यागी, नंदिनी
प्रनय, लता प्रासर, कुमारी स्मृति, नए पुराने कवियों ने एक से बढ़कर एक
गीत, ग़ज़ल और समकालीन कविताओं से श्रोताओं को आप्यायित किया. .
कार्यक्रम में रचनाओं के प्रभाव से कभी तालियाँ गूँजती रही तो कभी स्तब्धता छायी रही. अंत में मो. नसीम अख्तर ने आये हुए कवि-कवयित्रियों का धन्यवाद ज्ञापन किया और अध्यक्ष की अनुमति से कार्यक्रम की समाप्ति की घोषणा हुई.
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आलेख- सिद्धेश्वर
छायाचित्र- भारतीय युवा साहित्यकार परिषद
प्रतिक्रिया हेतु ईमेल- editorbiharidhamaka@yahoo.com
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