हम बनेंगे नहीं मीत / तो बताओ बनेंगे कैसे गीत
कविताकर्म और साहित्य की ओर प्रवृति बनाये रखना जीवन की कठिनाइयों को झेलते हुए आशावादिता को जिलाये रखना है. विभा रानी श्रीवास्तव की अध्यक्षता में साहित्यिक संस्था लेख्य मंजूषा इस बात को बखूबी समझती है कि कठिनाइयाँ सबसे अधिक हैं नारी के जीवन में विशेष रूप से उन नारियों के जीवन में जो युवा हैं और घर-बाहर की अनेकानेक जिम्मेवारियों से रू-बरू हैं. उनके जीवन में अपनी दैनिक जिम्मेवारियों सम्बंधी व्यस्तताओं में अपनी पहचान कहीं खोने सी लगती हैं और संसार में रचनात्मकता का उद्गम स्रोत होने के बावजूद खुद उनके रचनाकर्म में ठहराव सा आने लगता है. और चूँकि नारी का जीवन अपने पति, पुत्र, भाई और अभिभावक के रूप में पुरुष के बिना अधूरा रहता है इसलिए सब की सहभागिता को कायम रखते हुए लेख्य मजूषा द्वारा थोड़े थोड़े अंतराल के बाद आयोजित साहित्यिक गोष्ठियों के कार्यक्रम बड़ी संख्या में साहित्यकारों की भागीदारी के कारण शहर में विगत कुछ वर्षों से चर्चित रहे हैं.
ऐसा ही एक आयोजन दिनांक 5 जुलाई को साहित्यिक संस्था “लेख्य-मंजूषा" के तरफ से द इंस्टीच्यूट ऑफ इंजीनियर्स, अर. ब्लॉक, पटना में कवि गोष्ठी के रूप में किया गया। कवि गोष्ठी में वरिष्ठ साहित्यकार भगवती प्र. दिवेदी, हास्य कवि विश्वनाथ वर्मा और मुख्य अतिथि के रूप में ब्लॉगर वरिष्ठ साहित्यकार अर्चना चावजी (बंगलोर) उपस्थित थी । मंच संचालित करते ज्योति स्पर्श ने संस्था के सभी सदस्यों का परिचय अर्चना चावजी से करवाया । स्थानीय सदस्यों ने अपनी स्व -रचित कविताओं का पाठ किया।
वीणाश्री हेम्ब्रम ने विलुप्तप्राय होती नदी की धार पर चिन्ता जतायी-
सूखती जाती नदी प्रतीक्षा करती है
भूगर्भीय विचलन का..
पातालगामिनी हो जाने को!
जहाँ सब कुछ विलुप्त होता जा रहा हो वहाँ ऋता शेखर मधु सत्य की गूढ़ता को समझकर समाधान चाह रहीं हैं-
एथेंस का सत्यार्थी / उसने जब सत्य को देखा
आँखें चौंधिया गयी थीं उसकी / गूढ़ता समझ सकूँ
तब इतनी समझ न थी मेरी / अनुभवों ने बताया
सत्य स्वाभिमानी होता है / चमकीला निडर और
सत्यमेव जयते के / शाश्वत गान की शक्ति से ओतप्रोत
सत्यमेव जयते का गान सुनकर अर्चना चावजी भी माहौल को रूहानी बनाकर कहानी रच डालने को उत्सुक हैं-
शब्द ने कहा भावों से/ आया हूँ उबड़ खाबड़ राहों से
कहीं भाव बिखरे पड़े हैं / तो कहीं शब्द छिटके पड़े हैं
हम बनेंगे नहीं मीत / तो बताओ बनेंगे कैसे गीत
होता है जब माहौल रूहानी/ तभी तो बनती है कोई कहानी
मैं अकेला कुछ नहीं कर पाउंगा/ तुम साथ नहीं दोगे तो मर जाउंगा
आकर पास जरा मेरी तरफ़ देख/ मिलकर बना लें हम कोई लेख
मिलन की खुशबू से / भीगो दें हम अपना सविता
और शायद फ़िर हमारे प्यार से / जन्म ले कोई कविता ...
चूँकि अपने प्रिय से प्यार करने में उम्र कभी आड़े नहीं आती इसलिए अनिता मिश्रा 'सिद्धि' को उम्र के बढ़ते जाने से कोई डर नहीं लगता-
बढ़ती उम्र से ना जाने क्यों लोग डरते है
अपनी उम्र छुपाने के लिए ना जाने क्या -क्या करते है ?
मिनाक्षी सिंह को मालूम है कि सोना बिना तपाये कुंदन नहीं बनता -
वह कहाँ किसी से कुछ कहते हैं / बस अंदर ही अंदर,
बर्फ के समान, पिघलते हैं
वह / सोनार है बच्चे सोने,/ बिना तपाए सोने से,
आभूषण कहाँ बनते हैं।
प्रेमलता सिंह शक के साथ प्रेम के अवश्यम्भावी सम्बंध को देखकर बेचैन हैं-
खुदा न खास अगर मिल जाए सच्चा प्रेम
तब शक के दायरे में आ जाता हैं
ये प्रेम।
इस बिकाऊ समय में जहाँ विचार और वफादारी सबकुछ बिकी हुई है अखबारों को बिकते देखना सबसे ज्यादा दुर्भाग्यजनक लग रहा है ई. गणेश जी बागी को-
छप कर बिकता था कभी, जिंदा था आचार
जबसे बिक छपने लगा, मृत लगते अखबार
ऐसे कठिन युग में वृद्धावस्था को समीप पाते हुए देख कर मधुरेश नारायण भी सोच में पड़ गए हैं-
वह भी कया दिन थे / आज कया दिन है
आनेवाला दिन अपना कैसा होगा
कया दिन थे बचपन के,/ जवानी के क्या दिन,
आनेवाला बुढ़ापा कैसा होगा
सबकुछ प्रदूषित है आज के समय में नेहा नूपुर की नजरों में-
कच्ची पगडण्डी परती खेत / बिखरे कचरे के ढेर
और अम्बर को चिढाती / चिमनियों से उठता धुंआ -
वो नहीं पी सके ...
सीमा रानी अपने सनम को पुकार रही हैं-
अा जाओ, अब तक न सही पर अब तो सनम ,तुम वादा निभाने आ जाओ
दूर तलक अँधियारा हैं ,तुम दीप जलानें आ जाओ...
ज्योति स्पर्श अपना बयान दर्ज करा रही हैं नारी पर अत्याचार के खिलाफ-
हमको मारने / नोचने वालों
और मौका नहीं मिलने पर / मन मसोसने वालों
सनद रहे कि / यह कविता नहीं
हम बार-बार उगेगें / दर्ज करने को अपना बयान ।
मोहम्मद नसीम अख्तर गमगीन हैं दीवारों के घर के अंदर उठ जाने से-
इधर शम्मे उल्फत जलाई गई है / उधर कोई आँधी उठाई गई है
वो घर को नहीं बाँट डालेगी दिल को / जो दीवार घर में उठाई गई है
जहाँ दीवारें उठती जा रहीं होंं वहाँ अपना ठौर-ठिकाना बचाने की गरज से सुनील कुमार कह उठते हैं-
कोई दूसरा नहीं संसार चाहिए
बस घरवाली का ही प्यार चाहिए
जहाँ दीवारें उठती जा रहीं होंं वहाँ अपना ठौर-ठिकाना बचाने की गरज से सुनील कुमार कह उठते हैं-
कोई दूसरा नहीं संसार चाहिए
बस घरवाली का ही प्यार चाहिए
बच्चों पर चर्चा कर अर्चना चावजी ने अपनी कविता “खेल-खेल में” बताया कि बच्चें अपने सारी परेशानियों को खेल के मैदान में आपस में साझा करते हैं । दूसरी कविता “देने वाला भगवान” पर सभी सदस्यों से उन्हें काफी सराहना मिली।
वरिष्ठ साहित्यकार भगवती प्रसाद द्विवेदी ने कविता संरचना शिल्प के बारे में बताते हुए कहा कि कविता में सब बातें नहीं बताई जाती है , कुछ बातों को बता या लिख के बाकी पाठक या श्रोता के आत्मसात पर छोड़ देना चाहिए।
गोष्ठी की समापन में लेख्य-मंजूषा की अध्यक्ष विभा रानी श्रीवास्तव ने मुख्य अतिथि अर्चना चावजी को लेख्य मंजूषा संस्था के तरफ से प्रकाशित त्रैमासिक पत्रिकाओं और उनके द्वारा संपादित पुस्तक उपहार स्वरूप प्रदान की । संस्था के बारे बताते हुए विभा रानी श्रीवास्तव ने कहा कि लेख्य-मंजूषा हर माह मासिक प्रतियोगिता का आयोजन करवाती है । साथ में हर तीन माह पर त्रैमासिक कार्यक्रम करवाती है ।
धन्यवाद ज्ञापन देते हुए अतिथियों के संग मुख्य अतिथि अर्चना चावजी का आभार व्यक्त किया । साथ में संस्था के सभी सदस्यों का भी आभार व्यक्त किया । कार्यक्रम में घनश्याम, संजय कु, सिंह, संगीता गोविल, प्रतिभा सिन्हा, ईशानी सरकार, कृष्णा सिंह, डॉ. पूनम देवा, सुनील कुमार, निशा कुमारी, डॉ. कल्याणी कुसुम सिंह, अभिलाषा दत्त, हरेंद्र सिन्हा और रमाकान्त पाण्डेय ने भी भागीदारी की ।
...............
मूल आलेख- विभा रानी श्रीवास्तव
परिवर्धन और प्रस्तुति- हेमन्त दास 'हिम' / ज्योति स्पर्श
छायाचित्रकार - वीणाश्री हैम्ब्रम
परिवर्धन और प्रस्तुति- हेमन्त दास 'हिम' / ज्योति स्पर्श
छायाचित्रकार - वीणाश्री हैम्ब्रम
आप अपनी प्रतिक्रिया पोस्ट पर कमेंट करके अथवा editorbiharidhamaka@yahoo.com पर ईमेल भेजकर कर सकते हैं.
.
.
No comments:
Post a Comment
अपने कमेंट को यहाँ नहीं देकर इस पेज के ऊपर में दिये गए Comment Box के लिंक को खोलकर दीजिए. उसे यहाँ जोड़ दिया जाएगा. ब्लॉग के वेब/ डेस्कटॉप वर्शन में सबसे नीचे दिये गए Contact Form के द्वारा भी दे सकते हैं.
Note: only a member of this blog may post a comment.