Pages

Monday, 12 February 2018

संजय कुमार कुंदन की नई पुस्तक 'चाहे तुम और भी नाराज हो जाओ' पर चर्चा 11.2.2018 को पटना में संपन्न

हिम्मत बढाने वाली और उम्मीद जगानेवाली रचनाएँ 


आधुनिक प्रगतिशील शायरी की दुनिया में संजय कुमार कुंदन एक महत्वपूर्ण हस्ताक्षर हैं जो न सिर्फ उर्दू में गहरी पैठ रखते हैं बल्कि हिंदी में भी उनका दखल कुछ कम नहीं है. एक टूटे हुए आदमी की जद्दोजहद के साथ ये उतने ही बाबस्ता हैं जितने कि समाज और सम्पूर्ण मानव समुदाय के मौलिक संघर्षों से.

बिहार संगीत नाटक अकादमी के पूर्व अध्यक्ष आलोक धन्वा की अध्यक्षता और प्रखर युवा कवि राजेश कमल के सञ्चालन में बिहार इंडस्ट्रीज एसोसिएशन के सभागार, पटना  में जन संस्कृति मंच द्वारा आयोजित  के प्रसिद्ध शायर संजय कुमार कुंदन की नव प्रकाशित पुस्तक 'चाहे तुम और भी नाराज हो जाओ' पर चर्चा हुई. कार्यक्रम में कुंदन की  चर्चा में प्रसिद्ध मनोचिकित्सक डॉ. विनय कुमार, इतिहासकार डॉ. इम्तियाज अहमद , कथाकार पंकज मिश्र, सुधीर सुमन के साथ-साथ प्रसिद्ध शायर कासिम खुरशीद ने भी भाग लिया.

कासिम खुरशीद ने कहा कि संजय कुमार कुंदन हिंदी और उर्दू कविताओं के बीच में एक सेतु का काम कर रहे हैं. सुधीर सुमन ने कहा कि आज देश में खुद को खुदा मनवाने का दौर है. ऐसी स्थिति में संजय कुमार कुंदन की रचनाएँ प्रतिकार का स्वर लिए हुए खडी है. मनोचिकित्सक डॉ.\विनय कुमार ने बताया कि कुंदन फक्कड़ ताबियत के सूफी शायर हैं. मनोवैज्ञानिक विश्लेषण के आधार पर बताया कि कुंदन गहरी उदासी से उपजे शायर हैं. आलोक धन्वा ने भी संजय कुमार कुंदन की ग़ज़लों और नज्मों में प्रतिरोध के मजबूत स्वर की मौजूदगी को उजागर किया. इतिहासकार और शिक्षाविद इम्तियाज अहमद ने कहा कि शायर का काम जिंदगी और मआशरे की खामियों की ओर इशारा करना है. इससे समाज जागरूक होता है. 
....
आलेख - कुमार पंकजेश
छायाचित्र सौजन्य - संजय कुमार कुंदन 







No comments:

Post a Comment

अपने कमेंट को यहाँ नहीं देकर इस पेज के ऊपर में दिये गए Comment Box के लिंक को खोलकर दीजिए. उसे यहाँ जोड़ दिया जाएगा. ब्लॉग के वेब/ डेस्कटॉप वर्शन में सबसे नीचे दिये गए Contact Form के द्वारा भी दे सकते हैं.

Note: only a member of this blog may post a comment.