हिम्मत बढाने वाली और उम्मीद जगानेवाली रचनाएँ
आधुनिक प्रगतिशील शायरी की दुनिया में संजय कुमार कुंदन एक महत्वपूर्ण हस्ताक्षर हैं जो न सिर्फ उर्दू में गहरी पैठ रखते हैं बल्कि हिंदी में भी उनका दखल कुछ कम नहीं है. एक टूटे हुए आदमी की जद्दोजहद के साथ ये उतने ही बाबस्ता हैं जितने कि समाज और सम्पूर्ण मानव समुदाय के मौलिक संघर्षों से.
बिहार संगीत नाटक अकादमी के पूर्व अध्यक्ष आलोक धन्वा की अध्यक्षता और प्रखर युवा कवि राजेश कमल के सञ्चालन में बिहार इंडस्ट्रीज एसोसिएशन के सभागार, पटना में जन संस्कृति मंच द्वारा आयोजित के प्रसिद्ध शायर संजय कुमार कुंदन की नव प्रकाशित पुस्तक 'चाहे तुम और भी नाराज हो जाओ' पर चर्चा हुई. कार्यक्रम में कुंदन की चर्चा में प्रसिद्ध मनोचिकित्सक डॉ. विनय कुमार, इतिहासकार डॉ. इम्तियाज अहमद , कथाकार पंकज मिश्र, सुधीर सुमन के साथ-साथ प्रसिद्ध शायर कासिम खुरशीद ने भी भाग लिया.
कासिम खुरशीद ने कहा कि संजय कुमार कुंदन हिंदी और उर्दू कविताओं के बीच में एक सेतु का काम कर रहे हैं. सुधीर सुमन ने कहा कि आज देश में खुद को खुदा मनवाने का दौर है. ऐसी स्थिति में संजय कुमार कुंदन की रचनाएँ प्रतिकार का स्वर लिए हुए खडी है. मनोचिकित्सक डॉ.\विनय कुमार ने बताया कि कुंदन फक्कड़ ताबियत के सूफी शायर हैं. मनोवैज्ञानिक विश्लेषण के आधार पर बताया कि कुंदन गहरी उदासी से उपजे शायर हैं. आलोक धन्वा ने भी संजय कुमार कुंदन की ग़ज़लों और नज्मों में प्रतिरोध के मजबूत स्वर की मौजूदगी को उजागर किया. इतिहासकार और शिक्षाविद इम्तियाज अहमद ने कहा कि शायर का काम जिंदगी और मआशरे की खामियों की ओर इशारा करना है. इससे समाज जागरूक होता है.
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आलेख - कुमार पंकजेश
छायाचित्र सौजन्य - संजय कुमार कुंदन
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