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Wednesday, 13 December 2017

आशा छपड़ा द्वारा नाटक 'रामलीला' का मंचन 11.12.2017 को जेठुली (पटना) में सम्पन्न

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सबसे बड़ा विभ्रम लोगों में हैं कि कुछ धार्मिक अनुष्ठान करने अथवा कीर्तन-भजन कर लेने से धर्म हो जाता है भले ही मन से और कर्म से पाप ही पाप होते चले जायें1 उन्हें विश्वास होता है कि कुछ निहित विधि-विधान का पालन कर लेने से चूँकि उनके पूरे पाप धुल ही जाएंगे तो क्यों न जीभर के सारे गलत काम करके जिंदगी का मजा ले ही लें.  ऐसी ही विकृत सोच पर कुठाराघात करता है मुंशी प्रेमचंद द्वारा लिखित कहानी 'रामलीला' जिसे बखूबी मंचित किया आशा छपड़ा की टीम ने वह भी मुख्य शहर से काफी दूर एक सुदूर क्षेत्र जेठुली में.  


समाज के दोहरे चरित्र को उजागर करने में नाटक पूरी तरह से कामयाब रहा1 सचमुच आज का आदमी का व्यक्तित्व विरोधाभासी होता है. एक ओर तो वह धार्मिक कार्यक्रमों में कथा सुन-देख कर अपने आप को धर्म करनेवाला मान लेता है वहीं उस धार्मिक नाटक को प्रस्तुत करनेवाले गरीब कलाकारों के प्रति रत्ती भर भी दया नहीं दिखाता भले ही वेश्याओं पर हजारों यूँ ही लुटा दें. 

11 दिसम्बर, 2017 को संस्कृति मंत्रालय भारत सरकार के सहयोग से आशा छपरा द्वारा जेठुली में प्रेमचंद की कहानी पर आधारित व मोहम्मद जहाँगीर (परिचय नीचे पढें) के द्वारा नाटक रामलीला के सफल मंचन  में समाज की उस भावना को उकेरा गया है जिसमें धार्मिक और सामाजिक मूल्यों का ह्रास हो रहा है l  

नाटक ‘ रामलीला’ एक बच्चे के मन से समाज को समझने की कोशिश है, जो प्रसिद्ध कथाकार मुंशी प्रेमचंद द्वारा लिखा गया है, एक बच्चा समाज के दोहरे उसूलों को समझ नहीं पता है, वो रामलीला में राम बने राम जी को ही वास्तविक भगवान राम समझता है और उसके प्रति पूरी श्रद्धा रखता है जब राम की रामलीला समाप्त हो जाती है तो उसी राम बने व्यक्ति को कोई पूछता तक नहीं l उसके पास वापस जाने के लिए किराये तक के पैसे नहीं होते जबकि दूसरी और नाचने वाली औरतों पर लोग झूठी शान और रोब दिखने के नाम पर पैसे लुट रहे होते हैं जिसमे उसके पिता भी शामिल होते हैं1 वह यह देख कर बेचैन हो जाता है, वह अपने पिता से भी पैसे मांगता है मगर वो इंकार कर देते हैं l जिससे बच्चे के मन में पिता के प्रति नफरत भर जाती हैl यह नाटक समाज के ढ़ोंग व पाखंड का पोल भी खोलता है , जहाँ समाज खुद दोहरा चरित्र रखता है और हर दूसरा आदमी एक दूसरे को नसीहत देता फिरता है l 

भाग लेनेवाले कलाकार थे-

मंच पर
अंजली शर्मा  ,अजित कुमार, रवि कुमार, चन्दन कुमार प्रियदर्शी, मो० फुरकान, राहुल कुमार, शशांक शेखर, उज्वल कुमार, नंदकिशोर नंदू , तेजप्रताप, अनुराग , अरविन्द l  

  मंच परे
प्रकाश परिकल्पना – राहुल रवि, रोशन कुमार, संगीत – अजित कुमार गीत – समूह, स्वर – चन्दन कुमार , रवि कुमार , प्रदीप्त मिश्र, तरुण कुमार , राजनन्दन, हारमोनियम – चन्दन कुमार  , ढोलक – हीरालाल, नगाडा – गौरव पांडे , खंजरी और घुंघरू – नंदकिशोर, रंग वस्तु – सत्य प्रकाश व समूह, रूप सजा – संजय कुमार, प्रायोजित संगीत  – समीर, कार्ड फोल्डर डिज़ाइन व प्रचार प्रसार  - प्रदीप्त मिशश्रा, मिडिया / फोटोग्राफी – राजनन्दन, पूर्वाभ्यास प्रभारी – तरुण कुमार, संस्था – एसोसिएशन फॉर सोशल हारमनी एंड आर्ट , (आशा) , छपरा l परिकल्पना एवं निर्देशन – मोहम्मद जहाँगीर 1

निर्देशक का परिचय
इसे निर्देशित किया था- मोहम्मद ज़हांगीर  ने जो  मध्य प्रदेश नाट्य विद्यालय (भोपाल ) से प्रशिक्षित एक युवा रंगकर्मी हैं । इनको वर्ष 2008 में भारत सरकार खेल एवं युवा मंत्रालय,भारत सरकार द्वारा सामाजिक एवं संस्कृतिक योगदान के लिए इंदिरा गाँधी राष्ट्रीय सेवा योजना के राष्ट्रीय पुरस्कार से सम्मानित किया गया है । मो 0 जहाँगीर वर्ष 2008 में ही कामनवेल्थ द्वारा आयोजित युवा कार्यशाला , माले,मालदीव में भारत का प्रतिनिधित्व किया है, ये एक रंगकर्मी के रुप में लगभग एक दशक से बिहार के रंगमंच में सक्रिय हैं ,  इनके द्वारा निर्देशित व् अभिनीत नाटकों में प्रमुख है आनंद रघुनन्दन, मारे गए गुलफाम, लोक शकुन्तला , आधे अधूरे, गोई, गगन दमामा बज्यो, होरी ,धरती आबा,अमली, घासी राम कोतवाल, अबू हसन, दो कौड़ी का खेल, हम तो ऐसे ही हैं इत्यादि l 

इनके द्वारा निर्देशित नाटकों में हाथी, एक और दिन, पकवाघर, महानिर्वाण, अटकी हुई आत्मा ओक्का बोक्का, आत्मदाह इत्यादि प्रमुख हैं l इन्होंने  देश के प्रतिष्ठित रंगनिर्देशकों यथा संजय उपाध्याय, जयंत देशमुख, रघुवीर यादव, सी. आर. जाम्बे, अलोक चटर्जी, कन्हैयालाला कैथवास , कुमार दास टी. एन. के , राजीव रंजन श्रीवास्तव के सानिध्य में रदेश के विभिन्न क्षेत्रों में कार्य किया है l   वर्तमान में ये मध्य प्रदेश नाट्य विद्यालय द्वारा प्राप्त अध्ययन अनुदान योजना के अंतर्गत बिहार के विभिन्न जिलों में काम कर रहे हैं। ये पटना दूरदर्शन व आकाशवाणी से भी जुड़े रहें हैं1  इनके द्वारा अभिनीत धारावाहिक “बलचनवा” का पुनः प्रसारण हल ही में डी० डी० बिहार पर हुआ है , साथ ही जी पुरवैया के चर्चित धारावाहिक “बस एक चाँद मेरा भी “ में इनके अभिनय की चर्चा रही l सम्मान - इंदिरा गाँधी राष्ट्रीय सेवा योजना पुरस्कार 2008 1 प्रवीण संस्कृति युवा रंगमंच सम्मान 2017 1
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प्रतिक्रिया भेजने हेतु इमेल- hemantdas_2001@yahoo.com


पटना में इसी नाटक के प्रदर्शन की समीक्षा यहाँ पढ़िये-    https://biharidhamaka.blogspot.com/2017/08/1382017.html







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