पटना रंगमंच में श्रेष्ठता के नए नाट्य मानकों का निर्माण
अजित थियेटरवाला सम्मान, 2017 से सम्मानित युवा रंगकर्मी अजित कुमार के निर्देशन में मंचित यह नाटक पटना रंगमंच के मील का पत्थर है. उदय प्रकाश की इस कहानी के मंचन में जिस तरह की निर्देशकीय तकनीकों का उपयोग किया गया वह यहाँ पहले कभी देखने को नहीं मिला था. साथ ही प्रकाश-संयोजन, ध्वनि-प्रभाव सब के सब उत्कृष्ट कोटि के थे. नाटक का आलेख अत्यंत कसावट से भरा और व्यवस्था की विकृतियों पर गहरा चोट करने में सक्षम था. अभिनय में सजीवता भी गज़ब की थी हलाँकि कुछ नए कलाकार जैसे एस.पी. का रोल निभानेवाले से आगे और अच्छी उम्मीद की जा सकती है. मंच के पीछे से वस्त्र-विन्यास, मंच सज्जा आदि का भी भरपूर सहयोग था. दर्शक मंत्र-मुग्ध होकर देखते रहे. विस्तृत समीक्षा बाद में इसी ब्लॉग में डाली जाएगी. संघ के सत्ता में आने पर जो नेताओं के बड़े वर्ग में भोगवाद और वैचारिक पतन सामने आता है यह उसको बखूबी प्रदर्शित करता है. यद्यपि किसी सांविधानिक प्रक्रिया द्वारा चुने गए सत्ता-प्रमुख का मूल्यांकन उसके कामों के आधार पर होना चाहिए न कि उसकी उम्र और उसकी तथाकथित बीमारी द्वारा. आलेख लेखक को इसका ख्याल रखना चाहिए था. चाहे जो हो यह नाटक अभूतपूर्व रहा जो दशकों के लिए बहुआयामी श्रेष्ठता का एक नया मानक स्थापित करने में पूरी तरह से सफल रहा।
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