मिथकों का प्रयोग कर उन्हें तोड़ती हुई कवितायेँ
दूसरा शनिवार नामक संस्था द्वारा गाँधी मैदान, पटना में 3 जून, 2017 को वरिष्ठ कवि अनिल विभाकर का एकल कविता पाठ का कार्यक्रम आयोजित किया गया. इस कार्यक्रम में अनिल विभाकर ने अपनी अनेक सशक्त समकालीन कविताओं का पाठ किया जिनमें से कुछ के शीर्षक थे- मथुरा का रास्ता, मिथिला और अयोध्या, स्वर्ग, बनी रहे धरती, अपने-अपने पहाड़, पत्थर, कलाहांडी, नियम राजा, पहचान, आँगन आदि.
"देश की पहचान हल की मूँठ थामे
मज़दूर और किसान हैं
मज़दूर और किसान हैं
जो दिल्ली की हरकतों से हैरान हैं
दिल्ली की हरकतें देश की पहचान नहीं हो सकतीं"
कुमार पंकजेश ने कवि के द्वारा पढ़ी गई कविताओं पर अपने विचार प्रकट करते हुए कहा कि कवि का फलक बहुत व्यापक है और उसमें उडीसा के स्थानों का उल्लख बार-बार हुआ है. अनीश अंकुर का कथन था कि अनिल विभाकर पहले अपना प्रतिपाद्य तैयार करते हैं और फिर कविता के माध्यम से उसकी संपुष्टि करते हैं. उनकी कविताओं में वक्तव्य भी झलकता है.
शिवदयाल ने कहा कि कवि की कवितायें आज के समय के लिए उपयुक्त हैं और कवि ने स्थापित पतिमानो को तोडा है. यह कवि की बड़ी विशेषता है. भगवती प्रसाद द्विवेदी ने कहा कि अनिल विभाकर ने धार्मिक मिथकों का प्रयोग सबल तरीके से किया है परन्तु उसकी उसी रूप में स्थापना करने हेतु नहीं बल्कि समकालीन सन्देश को देश और दुनिया तक लाने के लिए. राजकिशोर राजन ने कहा कि समकालीन का बोध वर्तमान समय के सभी रचनाकारों से नहीं है वरन उन गिने-चुने रचनाकारों से हैं जिनकी रचनाओं में समकालीन धारा दृष्टिगोचर होती है. आज की समकालीन धारा है आम आदमी की समस्या. कवि की सपाटबयानी दर्शकों को खींचती है क्योंकि इनकी कविताओं में शिल्प का भ्रमजाल नहीं है.
सुजीत वर्मा ने अपने विचार रखते हुए कहा कि विभाकर जी
मिथकों का प्रयोग उन्हें तोड़ने के लिए करते हैं. ऐसा करते हुए ही उन्होंने पहाड़ का
मिथक तोड़ डाला और उसकी विशालता का खंडन करते हुए उसे अत्यन्त छोटा कर दिया. स्वर्ग
का मिथक भी उन्होंने बखूबी तोडा है. मुकेश प्रत्यूष ने कहा कि विभाकर ने और लोगों
की तरह बचने का प्रयत्न न करते हुए धर्म जैसे मुद्दे पर खुल कर कहा है. और क्यों न
हो. आखिरकार धर्म कोई मानव जीवन से इतर तो नहीं. अवधेश प्रीत ने कहा कि कवि द्वारा
गढे गए बिम्ब काफी चाक्षुस हैं. कवि कहीं का भी उल्लेख करने को स्वतंत्र है क्योंकि
जहां तक कोई नहीं पहुँच पाता है वहाँ तक भी कवि की पहुँच होती है. उनकी कवितायेँ
यथा- पहाड़, नदी, आँगन आदि कोई नोस्टैल्जिक (भावुकतापूर्ण)
कवितायेँ नहीं हैं बल्कि पूरी तरह से प्रासंगिक कवितायेँ हैं जो आज की समस्याओं और
परिवेश के अंतर्विरोधों की बातें करती हैं.
राकेश प्रियदर्शी ने कहा कि कवि प्राकृतिक
बिम्बों का सहारा लेकर गहरी बाते कहते हैं. नामचीन शायर संजय कुमार कुंदन ने अपने
विचारों को स्पष्ट करते हुए कहा कि विभाकर की भाषा सरल है और उसमें गज़ब की सम्प्रेषणीयता है जिससे उनकी बातें बिना किसी रुकावट के सीधे पाठकों के जेहन तक पहुंचती हैं. प्रत्युष चन्द्र मिश्र ने कहा कि कवि की दृष्टि
बहुत ब्यापक है. एक उद्धरण देते हुए उन्होंने कहा कि मथुरा और कुरुक्षेत्र में
अंतर क्या है- यही कि मथुरा में राधा है जबकि कुरुक्षेत्र में नहीं. अर्थात जहाँ
राधा यानी प्रेम होता है वह मथुरा जैसा आनंददायक स्थान हो जाता है और जहाँ प्रेम
नहीं होता है वह कुरुक्षेत्र बन जाता है. प्रभात सरसिज ने कहा कि कवि पाठकीयता की
समस्या को दूर करने में सक्षम है क्योंकि इनकी कविताएँ पाठकों के लिए बोधगम्य और
रुचिकर हैं. साथ ही कवि ने अपने कवि धर्म को प्रभावकारी ढंग से निबाहा है.
कार्यक्रम में युवा रचनाकार कुन्दन आनंद ने भी अपने विचार
रखे एवं साहित्यकार हेमन्त दास 'हिम' भी उसमें उपस्थित थे . अंत में आये हुए सभी
रचनाकारों को धन्यवाद दिया गया.
नोट: इस रिपोर्ट पर अपनी प्रतिक्रिया/ सुझाव इस इ-मेल पर: hemantdas_2001@yahoo.com
(from Left to Right) Bhagwati Pd Dwivedi, Shiv Dayal, Prabhat Sarsij, Awadhesh Preet, Anish Ankur, Sanjay Kr. Kundan,, Anil Vibhakar (with poly-bag), Kumar Pankajesh, Rajkishore Rajan, Sujeet Verma |
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