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Tuesday, 11 April 2017

प्रस्तुति रंगमंडल द्वारा 'लाल पान की बेगम' का पटना में 9.4.2017 को मंचन

(प्रवीण स्मृति सम्मान नाट्योत्सव, 2017, कालिदास रंगालय, पटना)
[English version of this article with more photos is available at lhttp://biharidhamaka.blogspot.in/2017/04/lal-pan-ki-begam.html

कोई चीज अपने-आप में अच्छी या बुरी नहीं होती दरअसल वह आप हैं जो उसे उस रूप में देखते हैं'लाल पान की बेगम की  जो उपाधि  बिरजू की मां को एक ग्रामीण महिला द्वारा उसका मजाक उड़ाते हुए दी गई थी वह  अभी कुछ घंटे पहले उसके ह्रदय में शूल की भाँति चुभ रही  थी पर , अब वही उपाधि  उसे उसकी सुंदरता की स्तुति लग रही थी

निर्देशक शारदा सिंह द्वारा 'अंचलिक साहित्य' (साहित्य की क्षेत्रीय शैली) के निर्विवाद सम्राट फनीशर नाथ 'रेणु' की सबसे लोकप्रिय कहानी में से एक के नाटक की प्रस्तुति पटना के दर्शकों के लिए एक उत्कृष्ट सुअवसर  था। नाटक की पटकथा लिखते हुए पुंज प्रकाश ने रेणु की एक अत्यंत संवेदनात्मक कहानी की आत्मा को संरक्षित करने में सक्षम रहे हैं अजीत कुमार की प्रस्तुति योजना और संजय उपाध्याय की संगीत निर्देश पूर्वोत्तर बिहार के विशिष्ट क्षेत्र की प्राचीन क्षेत्रीय सरलीकृत संस्कृति के चित्रण में आवश्यकता के अनुरूप बेहद रचनात्मक थे।

बिरजू की मां की 'नाच के खेल' को खोने की प्रत्याशा में बेचैनी से भरा गुस्सा और मेले की जाते समय बैलगाड़ी की सवारी का आनंद लेते हुए शानदार चमक उल्लेखनीय थे। बिरजू और उसकी बहन की बचकानी शरारतों ने सभी दर्शकों का  भरपूर मनोरंजन किया। बिरजू के पिता, गांव-महिलाओं और अन्य अभिनेताओं ने पूरी तरह से अच्छा अभिनय किया प्रकाश-व्यवस्था, ध्वनि-प्रभाव्, साज-सज्जा की जरूरतों के अनुसार और बड़े पहिया और झोपड़ी आदि के साथ तैयार मंच सज्जा एक गांव के प्राकृतिक माहौल पैदा कर रहे थे।

'लाल पान की बेगम', फनीश्वर नाथ 'रेणु' की एक प्रतिनिधि कहानी है जो सादगी से भरे आंचलिक जीवन का अच्छा प्रदर्शन करती है। बिरजू की मां ने कुछ मील दूर स्थित एक निष्पक्ष आयोजन में 'नाच' को देखने का एक सपना देखा है। वहां जाने के लिए एक बैलगाड़ी की आवश्यकता होती है और बिरजू के पिता घर लौटने में देरी कर रहे हैं

बिरजू की मां को यह सोचकर चिढ़ है कि उसका पति नचनिया का नाच देखने के लिए मेले में जाने के उसके कार्यक्रम में सहयोग नहीं कर रहा है। वह थोड़े समय के लिए एक गुस्सैल महिला की तरह बर्ताव करने लगती है और हर किसी पर गुस्सा उतारने लगती है। मखनिया बुआ की एक बहुत ही  मामूली जिज्ञासा कि "क्या तुम  नाच देखने नहीं जाओगी" उसका पारा चढ़  जाता हैवह जोरदार जवाब देती है कि नाच कार्यक्रम में जाने के लिए वह उनकी तरह सभी तरफ से मुक्त रूप नहीं हैं। यह बात मखनिया बुआ को भड़काऊ मौखिक हमले के समान लगती है जो असह्य है क्योंकि उनके पास पति या बच्चे नहीं हैं। वह सीधे-सीधे कुँए से पानी भर रही महिलाओं को बताती है जो उसकी अपमान की भावना के साथ सहानुभूति प्रकट करती हैं और इस बात से सहमत हैं कि कि नई-नई अमीर बनने वाली महिला बिरजू की मां ने इस गरीब बूढ़ी औरत मखनिया बुआ का अनादर किया है। आलोचकों के समूह में से एक नव-उत्साही महिला  बिरजू की मां 'लाल पन की बेगम' के रूप में  कह कर मजाक उड़ाती हैं। बिरजू की मां का गुस्सा अपने इस नए नाम पर और बढ़ जाता है

फिर बिरजू के पिता आते हैं और थोड़ा चापलूसी की मदद से वह अपनी पत्नी को मनाने में सफल होते हैं। वह अपनी पत्नी और बच्चों को नचनिया के तमाशे तक ले जाने के लिए तैयार है। बिरजू की मां ख़ुशी से झूम उठती है और अपनी लाल रंग साड़ी और चोली पर नजर डालते हुए  सोचती है कि वह वास्तव में लाल पान की बेगम की तरह तहलका मचा रही है। जाते समय वह साथ में सबों को ख़ुशी-ख़ुशी ले जाती है उनको भी जिन्होंने उसका दिल दुखाया था और खटास जाती रहती है 

नाटक में अभिनेता शारदा सिंह, सुमन कुमार, ऋषिकेश झा, सौरभ सफारी, विनीता सिंह, सारिका, भारती, गौतमी, मानसी आदि शामिल थे। मेक-अप जितेंद्र जितू का का था, परिधान रुबी खातून द्वारा थे, स्टेज-डिजाइनर उमेश शर्मा थे। संगीतकारों में मो. जॉनी, राजेश रंजन, विनोद पंडित, मोहम्मद नूर, मुकेश राहुल, रूबी खातून थे। प्रकाश राज कपूर ने किया था


(प्रतिक्रिया / लेख में सुधार के लिए आपके सुझाव hemantda_ _2001@yahoo.com पर भेजे जा सकते हैं)

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