(Hindi translation made by Google is presented first and after that is placed the original write-up in English.)
महाभारत काल में अंध शासक धृतराष्ट्र का काल था। यद्यपि आज भी आधुनिक समय में सत्तसीन व्यक्ति की दृष्टिहीनता के मामले कुछ उस काल से अलगा नहीं है। उस समय यह धृतराष्ट्र की शारीरिक बाधा थी, जिसने उसे अन्धा बना दिया था, परन्तु जो और अधिक हानिकारक है वह मानसिक है मानसिक अन्धापन। आजकल नियम मानसिक अंधापन से पीड़ित हैं जो सबकुछ जानते हैं जैसे उसने कुछ भी नहीं देखा है। शासन में बदलाव के बावजूद जनसामान्य की हालत दयनीय है। उनका भाग्य है शक्तिशाली पुरुषों के कहने पर मारा जाना और कुचला जाना। पूरे खेल प्रणाली की नग्न बदसूरत वास्तविकता को खोलता है और यह असंवेदनशीलता है।
(पहले आलेख का गूगल द्वारा किया गया हिन्दी अनुवाद प्रस्तुत है जिसके नीचे अंग्रेजी
में मूल आलेख दिया गया है.)
महाभारत काल में अंध शासक धृतराष्ट्र का काल था। यद्यपि आज भी आधुनिक समय में सत्तसीन व्यक्ति की दृष्टिहीनता के मामले कुछ उस काल से अलगा नहीं है। उस समय यह धृतराष्ट्र की शारीरिक बाधा थी, जिसने उसे अन्धा बना दिया था, परन्तु जो और अधिक हानिकारक है वह मानसिक है मानसिक अन्धापन। आजकल नियम मानसिक अंधापन से पीड़ित हैं जो सबकुछ जानते हैं जैसे उसने कुछ भी नहीं देखा है। शासन में बदलाव के बावजूद जनसामान्य की हालत दयनीय है। उनका भाग्य है शक्तिशाली पुरुषों के कहने पर मारा जाना और कुचला जाना। पूरे खेल प्रणाली की नग्न बदसूरत वास्तविकता को खोलता है और यह असंवेदनशीलता है।
प्रदर्शन शानदार था अनुभवी थियेटर कलाकार अमीया नाथ चटर्जी ने सभी अभिनेताओं, निर्देशक और नाटक से जुड़े कलाकारों की प्रशंसा की और कहा कि हर किसी ने अपनी बेहतरीन क्षमता दिखाई।
There
was an age of blind ruler Dhritrashtra in Mahabharata period. Though even the
modern time is noway different from that
age in terms of blindness of the person who rules. At that time it was the
physical handicap of Dhritrashtra which had made him blind though what is more pernicious
is the state of mental blindness .
Nowadays the rules suffer from mental blindness who knowing everything behave
like he has not seen anything. The condition of the common man is pathetic
irrespective of the change in regime. His fate is to get killed and crushed at
the behest of powerful men. The whole play moves
around the ugly
reality of the system and insensitiveness prevailing in general.
The
performance was fabulous. The veteran theatre artist Amiya Nath Chatterji
praised all the actors, director and the artists associated with the play and
stated that everyone showed their mettle.
प्रेस विज्ञप्ति
आज दिनांक 28 मार्च, 2017 (मंगलवार) को विश्व रंगमंच दिवस नाट्य समारोह के दूसरे
दिन कालिदास रंगालय में रंग-मार्च,
पटना ने धर्मवीर भारती लिखित नाटक ‘अंधा युग’ का मंचन मृत्युंजय शर्मा के निर्देशन में किया गया।
कथासार- महाभारत
को संदर्भ बना द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद लिखा गया ‘अंधा युग’ महाभारत के 18वें साँझ का विभत्स चित्रण है। कौरवों के
अधिपति धृतराष्ट्र को संजय का इंतजार है, जो कि भीम ओर दुर्योधन के अंतिम युद्ध का संदेश देने वाला है। लेकिन यह नाटक
मूलतः अश्वथाना पर केन्द्रित जो कि अपने पिता की हत्या से स्तब्ध और दुःखी है और
धर्म की अपने हित में व्याख्या पर उद्वेलित होने के साथ हीं प्रतिशोध की अग्नि में
जल रहा है। वह कृष्ण यानि प्रकृति को चुनौति देता है और ब्रह्मास्त्र का प्रयोग
करता है। इसे लिखते वक्त संभवतः लेखक धरती के विनाश का संदेश देने के बहाने द्वितीय
विश्वयुद्ध की ओर हमारा ध्यान आकृष्ट करना चाहते हैं, जो कि प्रतिशोध और साम्राज्यवादी व्यवस्था के लिए सत्ता के
केन्द्र के बदलाव की भी दास्तान है। कृष्ण द्वारा शापित होकर अश्वत्थामा
युगो-युगेन भटकने को अभिशप्त होता है, जो कि आज के समकालीन समय में हमारे एहसासों में साम्राज्यवाद की सनक के रूप
में जिन्दा है। वहीं माता गान्धारी पुत्र शोक के वशीभूत कृष्ण को शाप देती हैं। इस
तरह सत्ता का केन्द्र युधिष्ठिर के रूप में सामने आता है, जो कि उस युग से कई युगों का सफल तय कर इस युग में भी
बदस्तूर जारी है। विभिन्न प्रतीक चिन्हों, रंग-सामग्री और मल्टीमीडिया का इस्तेमाल इस नाटक की मंचीय गति को बरकरार रखती
है। दर्शकों के मानस पटल पर स्थित पूर्व के महाभारत के पात्रों की छवि को निर्देशक
ने चरित्रों की वेश-भूषा और पात्र सामग्री
से न सिर्फ तोड़ने की कोशिश की है, बल्कि उसके मन को
पूर्वाग्रह से आजाद हो आज के युग को भी उसी संदर्भ में समझाने की कोशिश की है।
अश्वथामा के केन्द्रीय चरित्र के अन्तर्मन जो कि युधिष्ठिर के कथनानुसार ‘नर’ और ‘कुंजर’ में विभाजित है, उसी रूप में चित्रित करने का प्रयास किया गया है।
ज्ञान पंडित और
राज पटेल द्वय ने अश्वत्थामा के मनोस्थिति से दर्शकों को परिचत कराने में सफल रहे
हैं। वहीं गान्धारी के चरित्र को नृत्यांग्ना-अभिनेत्री नूपूर चक्रवर्ती ने
शालीनता से निभाया। अन्य भाग लेनेवाले अभिनेताओं में रौशन कुमार
(युयुत्सु/प्रहरी/संजय), राजू कुमार
(धृतराष्ट्र/युधिष्ठिर), अर्पित शर्मा
(कृपाचार्य/प्रहरी), नितीश प्रियदर्शी
(विदुर/प्रहरी), कुमार पंकज
(कृतवर्मा/प्रहरी), सनी कुमार गुप्ता
(प्रहरी), विक्की राजबीर (वृद्ध
व्यक्ति/व्यास/प्रहरी), रौशन राज
(प्रहरी/संजय) एवं राहुल राज (प्रहरी) ने भी अपनी भूमिकाओं के साथ न्याय किया। प्रकाश
परिकल्पना में राजन कुमार सिंह नये आयामों को छूते नजर आते हैं और अभिनेताओं को
विभत्स वातावरण देने में कामयाब हैं। प्रकाश संचालन में रौशन कुमार और राहुल रवि
ने सहयोग दिया। वहीं म्यूजिक और मल्टीमीडिया के प्रभाव से दिपांकर शर्मा ने नाटक
के वातावरण का निर्माण किया। नाटक की वेश-भूषा सरिता कुमारी ने किया, वहीं रूप-सज्जा नूपुर चक्रवर्ती ने। कला सहयोग-
वीर, आर्ट कॉलेज, पटना।
रंग-मार्च,
पटना के कलाकारों द्वारा महाभारत की एक शाम का
दृश्य-श्रव्य माध्यम द्वारा आज के समकालीन सवालों को दर्शकों से रू-ब-रू कराने का
एक अच्छा प्रयास कहा जा सकता है।
प्रस्तुति
प्रभारी - अरूण कुमार श्रीवास्तव
प्रस्तुति -
रंग-मार्च, पटना
लेखक - धर्मवीर
भारती
परिकल्पना एवं
निर्देशन - मृत्युंजय शर्मा
(English translation made by Google)
Press release
Today, March 28, 2017 (Tuesday), on the second day of the World Theater Day theatrical celebrations, color-march in the Kalidas Rangalaya, Patna, in the direction of 'Dhanavir Bharti' written drama 'Anha Yug', was staged in the direction of Munshayjay Sharma.
Kathasar - The reference to the Mahabharata. The 'Ananda Yuga' written after the Second World War is a different depiction of the 18th Sage of the Mahabharata. Dhritarashtra, the ruler of Kurus, is awaiting Sanjay, who is going to give a message of the last battle of Bhima and Duryodhana. But this play basically focuses on Ashwathana, who is shocked and sad because of the murder of her father and is boiling on the interpretation of religion in her own interest, and burning in the fire of retribution. He challenges Krishna's nature and uses Brahmastra. While writing this, the authors may wish to draw our attention towards World War II, in the pretext of delivering the message of destruction of the earth, which is also a source of vengeance and the transformation of the center of power for the imperialist system. Being cursed by Krishna, Ashwatthama Yugo-Yugen is cursed to wander, which is alive as a fad of imperialism in our realm in today's contemporary times. At the same time, the mother-goddaughter curses Krishna, the beating of mourning. In this way the center of power comes in the form of Yudhisthira, which is continuing in this era by deciding the success of many eras in this era. The use of various symbols, paintings and multimedia preserves the speed of the play. The image of the characters of the Mahabharata of the former on the minds of the audience has not only tried to break the characters' character and character, but rather to liberate their mind from the prejudices of today's era in the same context. Have tried. An attempt has been made to portray the central character of Ashwathama, which is divided into 'Nar' and 'Kunjar' according to Yudhishtir's statement.
Jnan Pandit and Raj Patel duo have been successful in introducing the audience through Ashwaththama's mood. At the same time, the character of Gandhari was played by dancer-actress Nupur Chakraborty decently. Other participating actors include Raushan Kumar (Yuyutsu / Sentinel / Sanjay), Raju Kumar (Dhritarashtra / Yudhisthir), Arpit Sharma (Kripacharya / Prahar), Nitish Priyadarshi (Vidur / Prahar), Kumar Pankaj (Devvarmara / Prahar), Sunny Kumar Gupta (Sentinel), Vicky Rajbir (elderly person / diameter / watchdog), Roshan Raj (Pratari / Sanjay) and Rahul Raj (guardian) also judged their roles. In the light hypothesis, Rajan Kumar Singh appears to be touching new dimensions and is able to give a vibrant atmosphere to the actors. Raushan Kumar and Rahul Ravi collaborated in lighting operations. Dipankar Sharma, with the influence of music and multimedia, created the atmosphere of drama. The play was performed by Sarita Kumari, while the look was performed by Nupur Chakraborty. Art Cooperation - Veer, Art College, Patna
A good effort can be made to present contemporary questions to the audience with the audio-visual medium of an evening of Mahabharata by the artists of Rang-March, Patna.
Presentation Incharge - Arun Kumar Shrivastav
Presentation - Color-March Patna
Author - Dharmveer Bharti
Conceived and directed - Mrityunjaya Sharma
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