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Friday, 31 March 2017

सुधा कर्ण - मैथिली भाषा की प्रथम महाकवयित्री (Sudha Karn- the first super-poetess of Maithili language)

(This article is presented here both in Maithili and English)
प्रियतम कैलन्हि मनमानी
सुनू हे सखी
देलन्हि प्रेम निशानी
सुनू हे सखी
शकुन्तला के मन पर
छल ने लगाम
उड़ैत छली ओ पवन समान
बात कहै बखानी
सुनू हे सखी
(- सुधा कर्णक 'प्रेयसी' खण्डकाव्य केँ अठारहम अनुच्छेद सँ)
My lover played frolc with me
Listen to my friend
He gave this token of love, you see. 
Listen to my friend
In the mind of Shakuntala
There was no control
she had been flying
Like air in sky, whole
She explained this in a glee
Listened to my friend
(Lines of Sudha Karn translated by Hemant 'Him')

   मैथिली के जौं विश्वक मधुरतम भाषा कहल जाय तो ई अतिशयोक्ति नहीं होयत. भारत देशक आठम अनुसूची में स्थान पाओल अहि भाषाक साहित्य सदैव उच्चस्थ शिखर पर अपन विशेष स्थान लय विराजमान रहल अछि. आ अहि उच्चताक परम्परा केँ कायम रखाबा मे कविगणक संग-संग कवियित्रि गणक सेहो अग्रगण्य भूमिका रहल अछि. मुदा सुधा कर्णक अवदान एतेक विपुल आ बहमूल्य छैक जे हुनका मैथिली भाषाक प्रथम महाकवयित्रीक संज्ञा देबा मे कोनो संकोच नहि हेबैक चाही. ई कहब छन्हि मैथिली भाषाक परम विदुषी डॉ. वीणा कर्ण कें.
    If you call Maithili the sweetest language on the earth then it would not be an  exaggeration.  Finding it’s place in the Eight Schedule of the Constitution of India Maithili language always adorn the topmost summit of literature with its special significance. And to maintain this high position many poetess too along with the great poets have played leading roles.  And the contribution of Sudha Karn is so rich and precious that there should not be any compunction in calling her the first super-poetess of Maithili literature. This is the saying of Dr. Veena Karn, the great scholar of Maithili.

   अपन संवेदनशीलता, दार्शनिकता, माधुर्य, लालित्य, विनयशीलता आदि अनेक कारण सँ. गहन सामाजिक सरोकार रखैत मैथिली अतेक प्रांजल आ मनोविनोदपूर्ण अछि जेकर कोनो सानी नहि  छैक. विद्यापति जकाँ कालजयी कवि द्वारा सिंचित ई मैथिली भाषा केँ वर्तमान समय मे अहि सम्माननीय स्थान मे अनबाक दिशा में सैकड़ों साहित्यकार अपन बहुमूल्य योगदान देने छथि हरिमोहन झा, जीवकांत झा, लाल दास, गोबिन्द दास, चन्दा झा, उषाकिरण खान, खड्ग बल्लभ दास स्वजन’, सुधा कर्ण एवम अनेक. हम स्वीकार करैत छी जे एतेक उच्च कोटिक साहित्यकार सँ परिपूर्ण एहि भाषाक रचनाकारक फेहरिस्त कखनो सम्पूर्ण नहि भs सकैत अछि.
    Keeping intense social connect and having  many of her qualities including sensitiveness, philosophical metaphorism, sweetness, beauty and humbleness , Maithili has emerged as unparalleled chaste as well as entertaining language.  Watered by such a classical poet as Vidyapati Maithili language has got its honoured status also because of important contribution of hundreds of litterateurs – Harimohan Jha, Jeevakant Jha, Lal Das, Gobind Das, Chanda Jha, Usha Kiran Khan, Khadg Ballbh Das ‘Swajan’, Sudha Karn and many more. We admit that replete with highest breeds of litterateurs the list of creators in this language can never be complete.

   सुधा कर्ण ओहि कवयित्रीक नाम अछि जे मैथिलीक लोकगीत विधा केँ पारम्परिकत बिधि-बिधानक गीत सँ गहन दार्शनिकता के तरफ ल जेबाक माद्दा रखैत छथि. किछु मास पहिने हिनकर निधन सँ मैथिली भाषा केँ अपूरणीय क्षति भेल अछि. दुर्भाग्यवश अनेक गोट लेल ई अखनो अपरिचित हेती कियेक तौं ई अति-गुणवती महान कवयित्री कहियो अपन कविता पोथी केँ बाजार सँ जोड़बाक पर्याप्त प्रयास नहि करलन्हि. मैथिली गीत रामायण, मिथिलाक पावनि विहार, मैथिलीक नवगीतिका, मैथिली गीतमय गीता,केहन बदलि गेलए दुनियाँ, दिनकर गीतमाला, सामा चकेवा, मैथिली गीतमय संक्षिप्त दुर्गासप्तशती, जय शिवशंकर, माँ भगवती, चलए काँवरिया बाबाधाम आ प्रेयसी (खण्डकाव्य). मैथिलीक अहि अत्यन्त विशिष्ट कवयित्रीक कविताक फलक एतेक उर्वर अछि जे हुनकर निधनक पश्चात अखनो हुनकर पच्चीस टा काव्य ग्रन्थ प्रकाशनक बाट देखि रहल अछि. कोनो गुण के पहिचानैवला प्रकाशक लेल ई साहित्यिक विपुल भण्डार अखनो पड़ल अछि हुनकर माध्यमसँ सम्पूर्ण जगत के अपन आभा सँ जगमग करै लेल. देखियौ किनका ई सौभाग्य भेटैत छन्हि.
   Sudha Karn is the name of that poetess who has guts to take the folklore style of Maithili from conventional ritualistic songs to deep philosophical realm. Maithili language has suffered an irredeemable loss by the death of Sudha Karn a few months ago. Unfortunately, for a large section of people she would still be an unknown personality because this superbly talented poetess never tried to tap her poetic merit onto the floors of market by bringing her books there wholeheartedly. Maithili songs, Ramanaya, Mithilak Pawani Vihar, Maithilik Navageetika, Maithili lyrical Geeta, How the world has changed, Dinkar Geetmala, Sama Chakeva, Maithili lyrical brief Durgasaptshati, Jai shivshankar, Maa Bhagwati, Chalay Kanwariya Babadham and Beloved (Semi-epic). The universe of this very special poetess of Maithili is so fertile that even after demise, there are more than twenty-five books still waiting for publication. This amazingly rich repertoire in classical Maithili lyrics  is still available to illuminate the whole world with its distinctive lustre through a connoisseur publisher. Let us see who gets this fortunate opportunity.

   सुधा कर्णक बहिन डॉ. वीणा कर्ण सेहो उच्च कोटिक साहित्यकार छथि आ पटना विश्विद्यालय में मैथिलीक बिभागाध्यक्ष पद सँ सेवानिवृत भय मैथिलीक साहित्य अकादमी के दू बेर सदस्य रहि चुकल छथि. मुदा ऊहो स्वीकार करैत छथि जे हुनकर सम्पूर्ण सम्मानित सृजन कार्य हुनकर बहिन सुधा कर्णक साहित्यिक योगदानक आगू लघु छैक. सुधा कर्ण विध्यालय शिक्षिकाक पद सँ सेवानिवृत भेली आ हुनकर चारि टा पुत्र शेखर वर्मा (विशवविद्यालय सँ स्वर्ण पदक प्राप्त), सुधांशु शेखर (शिक्षक), शशांक शेखर (विदेश में कार्यरत सी. मैंनेजर), सचिन वर्मा (व्यवसायी) नीक जकाँ अपन जीवन यापन करैत छथि आ अपन जीवन में अपन माताक आशीर्वाद कें हरदम अनुभव करैत छथि.

    Dr. Veena karn, the sister of Sudha Karn is also a highly reckoned Maithily poet and reviewer and after getting retired from the Head of Department post in Patna University, she has been the member of Maithili Sahitya Academy for two full terms.  Though she also concedes that her whole high-level creative works is insignificant in comparison with the contribution  of her sister Sudha Karn to Maithili literature. Sudha Karn retired from the post of a school teacher and has four sons- Shekhar Verma (University Gold medalist), Sudhanshu Shekhar  (teacher), Shashank Shekhar (Sr. Manager working abroad) Sachin Verma (Businessman) are leading their respective lives well and always feel the blessing of their mother in their lives. 
      









































नोट: सुधा कर्ण के विषय में और जानकारी अथवा इस लेख में सुधार/वृद्धि हेतु सुझाव ई-मेल 
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Wednesday, 29 March 2017

Andha Yug was staged at Patna on 28.3.2017 ('अन्धा युग' नाटक का पटना में 28.3.2017को मंचन

(Hindi translation made by Google is presented first and after that is placed the original write-up in English.) 
(पहले आलेख का गूगल द्वारा किया गया हिन्दी अनुवाद प्रस्तुत है जिसके नीचे अंग्रेजी में मूल आलेख दिया गया है.)

महाभारत काल में अंध शासक धृतराष्ट्र का काल था। यद्यपि आज भी आधुनिक समय में सत्तसीन व्यक्ति की दृष्टिहीनता के मामले कुछ उस काल से अलगा नहीं है। उस समय यह धृतराष्ट्र की शारीरिक बाधा थीजिसने उसे अन्धा बना दिया थापरन्तु जो और अधिक हानिकारक है वह मानसिक है मानसिक अन्धापन। आजकल नियम मानसिक अंधापन से पीड़ित हैं जो सबकुछ जानते हैं जैसे उसने कुछ भी नहीं देखा है। शासन में बदलाव के बावजूद जनसामान्य की हालत दयनीय है। उनका भाग्य है शक्तिशाली पुरुषों के कहने पर मारा जाना और कुचला जाना। पूरे खेल प्रणाली की नग्न बदसूरत वास्तविकता को खोलता है और यह असंवेदनशीलता है।
प्रदर्शन शानदार था अनुभवी थियेटर कलाकार अमीया नाथ चटर्जी ने सभी अभिनेताओंनिर्देशक और नाटक से जुड़े कलाकारों की प्रशंसा की और कहा कि हर किसी ने अपनी बेहतरीन क्षमता दिखाई।

There was an age of blind ruler Dhritrashtra in Mahabharata period. Though even the modern time is noway different  from that age in terms of blindness of the person who rules. At that time it was the physical handicap of Dhritrashtra which had made him blind though what is more pernicious  is the state of mental blindness . Nowadays the rules suffer from mental blindness who knowing everything behave like he has not seen anything. The condition of the common man is pathetic irrespective of the change in regime. His fate is to get killed and crushed at the behest of powerful men. The whole play moves around the ugly reality of the system and  insensitiveness prevailing in general.

The performance was fabulous. The veteran theatre artist Amiya Nath Chatterji praised all the actors, director and the artists associated with the play and stated that everyone showed their mettle.


प्रेस विज्ञप्ति
आज दिनांक 28 मार्च, 2017 (मंगलवार) को विश्व रंगमंच दिवस नाट्य समारोह के दूसरे दिन   कालिदास रंगालय में रंग-मार्च, पटना ने धर्मवीर भारती लिखित नाटक अंधा युगका मंचन मृत्युंजय शर्मा के निर्देशन में किया गया।

कथासार- महाभारत को संदर्भ बना द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद लिखा गया अंधा युगमहाभारत के 18वें साँझ का विभत्स चित्रण है। कौरवों के अधिपति धृतराष्ट्र को संजय का इंतजार है, जो कि भीम ओर दुर्योधन के अंतिम युद्ध का संदेश देने वाला है। लेकिन यह नाटक मूलतः अश्वथाना पर केन्द्रित जो कि अपने पिता की हत्या से स्तब्ध और दुःखी है और धर्म की अपने हित में व्याख्या पर उद्वेलित होने के साथ हीं प्रतिशोध की अग्नि में जल रहा है। वह कृष्ण यानि प्रकृति को चुनौति देता है और ब्रह्मास्त्र का प्रयोग करता है। इसे लिखते वक्त संभवतः लेखक धरती के विनाश का संदेश देने के बहाने द्वितीय विश्वयुद्ध की ओर हमारा ध्यान आकृष्ट करना चाहते हैं, जो कि प्रतिशोध और साम्राज्यवादी व्यवस्था के लिए सत्ता के केन्द्र के बदलाव की भी दास्तान है। कृष्ण द्वारा शापित होकर अश्वत्थामा युगो-युगेन भटकने को अभिशप्त होता है, जो कि आज के समकालीन समय में हमारे एहसासों में साम्राज्यवाद की सनक के रूप में जिन्दा है। वहीं माता गान्धारी पुत्र शोक के वशीभूत कृष्ण को शाप देती हैं। इस तरह सत्ता का केन्द्र युधिष्ठिर के रूप में सामने आता है, जो कि उस युग से कई युगों का सफल तय कर इस युग में भी बदस्तूर जारी है। विभिन्न प्रतीक चिन्हों, रंग-सामग्री और मल्टीमीडिया का इस्तेमाल इस नाटक की मंचीय गति को बरकरार रखती है। दर्शकों के मानस पटल पर स्थित पूर्व के महाभारत के पात्रों की छवि को निर्देशक ने चरित्रों  की वेश-भूषा और पात्र सामग्री से न सिर्फ तोड़ने की कोशिश की है, बल्कि उसके मन को पूर्वाग्रह से आजाद हो आज के युग को भी उसी संदर्भ में समझाने की कोशिश की है। अश्वथामा के केन्द्रीय चरित्र के अन्तर्मन जो कि युधिष्ठिर के कथनानुसार नरऔर कुंजरमें विभाजित है, उसी रूप में चित्रित करने का प्रयास किया गया है।
ज्ञान पंडित और राज पटेल द्वय ने अश्वत्थामा के मनोस्थिति से दर्शकों को परिचत कराने में सफल रहे हैं। वहीं गान्धारी के चरित्र को नृत्यांग्ना-अभिनेत्री नूपूर चक्रवर्ती ने शालीनता से निभाया। अन्य भाग लेनेवाले अभिनेताओं में रौशन कुमार (युयुत्सु/प्रहरी/संजय), राजू कुमार (धृतराष्ट्र/युधिष्ठिर), अर्पित शर्मा (कृपाचार्य/प्रहरी), नितीश प्रियदर्शी (विदुर/प्रहरी), कुमार पंकज (कृतवर्मा/प्रहरी), सनी कुमार गुप्ता (प्रहरी), विक्की राजबीर (वृद्ध व्यक्ति/व्यास/प्रहरी), रौशन राज (प्रहरी/संजय) एवं राहुल राज (प्रहरी) ने भी अपनी भूमिकाओं के साथ न्याय किया। प्रकाश परिकल्पना में राजन कुमार सिंह नये आयामों को छूते नजर आते हैं और अभिनेताओं को विभत्स वातावरण देने में कामयाब हैं। प्रकाश संचालन में रौशन कुमार और राहुल रवि ने सहयोग दिया। वहीं म्यूजिक और मल्टीमीडिया के प्रभाव से दिपांकर शर्मा ने नाटक के वातावरण का निर्माण किया। नाटक की वेश-भूषा सरिता कुमारी ने किया, वहीं रूप-सज्जा नूपुर चक्रवर्ती ने। कला सहयोग- वीर, आर्ट कॉलेज, पटना।
रंग-मार्च, पटना के कलाकारों द्वारा महाभारत की एक शाम का दृश्य-श्रव्य माध्यम द्वारा आज के समकालीन सवालों को दर्शकों से रू-ब-रू कराने का एक अच्छा प्रयास कहा जा सकता है।
प्रस्तुति प्रभारी - अरूण कुमार श्रीवास्तव
प्रस्तुति - रंग-मार्च, पटना
लेखक - धर्मवीर भारती

परिकल्पना एवं निर्देशन -    मृत्युंजय शर्मा

(English translation made by Google)
Press release
Today, March 28, 2017 (Tuesday), on the second day of the World Theater Day theatrical celebrations, color-march in the Kalidas Rangalaya, Patna, in the direction of 'Dhanavir Bharti' written drama 'Anha Yug', was staged in the direction of Munshayjay Sharma.

Kathasar - The reference to the Mahabharata. The 'Ananda Yuga' written after the Second World War is a different depiction of the 18th Sage of the Mahabharata. Dhritarashtra, the ruler of Kurus, is awaiting Sanjay, who is going to give a message of the last battle of Bhima and Duryodhana. But this play basically focuses on Ashwathana, who is shocked and sad because of the murder of her father and is boiling on the interpretation of religion in her own interest, and burning in the fire of retribution. He challenges Krishna's nature and uses Brahmastra. While writing this, the authors may wish to draw our attention towards World War II, in the pretext of delivering the message of destruction of the earth, which is also a source of vengeance and the transformation of the center of power for the imperialist system. Being cursed by Krishna, Ashwatthama Yugo-Yugen is cursed to wander, which is alive as a fad of imperialism in our realm in today's contemporary times. At the same time, the mother-goddaughter curses Krishna, the beating of mourning. In this way the center of power comes in the form of Yudhisthira, which is continuing in this era by deciding the success of many eras in this era. The use of various symbols, paintings and multimedia preserves the speed of the play. The image of the characters of the Mahabharata of the former on the minds of the audience has not only tried to break the characters' character and character, but rather to liberate their mind from the prejudices of today's era in the same context. Have tried. An attempt has been made to portray the central character of Ashwathama, which is divided into 'Nar' and 'Kunjar' according to Yudhishtir's statement.
Jnan Pandit and Raj Patel duo have been successful in introducing the audience through Ashwaththama's mood. At the same time, the character of Gandhari was played by dancer-actress Nupur Chakraborty decently. Other participating actors include Raushan Kumar (Yuyutsu / Sentinel / Sanjay), Raju Kumar (Dhritarashtra / Yudhisthir), Arpit Sharma (Kripacharya / Prahar), Nitish Priyadarshi (Vidur / Prahar), Kumar Pankaj (Devvarmara / Prahar), Sunny Kumar Gupta (Sentinel), Vicky Rajbir (elderly person / diameter / watchdog), Roshan Raj (Pratari / Sanjay) and Rahul Raj (guardian) also judged their roles. In the light hypothesis, Rajan Kumar Singh appears to be touching new dimensions and is able to give a vibrant atmosphere to the actors. Raushan Kumar and Rahul Ravi collaborated in lighting operations. Dipankar Sharma, with the influence of music and multimedia, created the atmosphere of drama. The play was performed by Sarita Kumari, while the look was performed by Nupur Chakraborty. Art Cooperation - Veer, Art College, Patna
A good effort can be made to present contemporary questions to the audience with the audio-visual medium of an evening of Mahabharata by the artists of Rang-March, Patna.
Presentation Incharge - Arun Kumar Shrivastav
Presentation - Color-March Patna
Author - Dharmveer Bharti



   

Conceived and directed - Mrityunjaya Sharma

Tuesday, 28 March 2017

मजेदार मगही -मिलिये लोकभाषा के कुछ कवियों से (Exciting Magahi - meet some poets of local tongue)

 (See the English translation just below the Hindi text) 
देख निमन्त्रण कार्ड देह से, टपके लगे पसीना
नेवता पुरते-पुरते हमरा, मोस्किल हो गेल जीना.

मँहगाई के समय हको, तों जइहा बनके पकिया
चुपके-चुपके देबे पड़तो, कम से कम सौ टकिया

ओकरा से कम देला पर, झुकतो ईज्जत के झंडा
बंद लिफाफा खुलते जब, फुट जइतो तोहर भंडा.

मुरगा के काउंटर पर मिलते, टीसन जैसन भीड़
बड़का-बड़का पहलवान के, फुट जा हे तकदीर

पुड़ी आउर पोलाव फ्री हो, चटनी हो मनमनता
आईसक्रिम के काउंटर पर, सुमरे पड़तो हनुमंता.
(पूरी कविता दिए गए चित्र में देखें)
The first glance over the cards and body started perspiration
My life has turned a hell by again and again invitation
It's time of inflation you have to look well-made
Looking abashed you give  at least hundred rupees they said
If you give a less amount,  your self-esteem comes down
The moment envelop opens,  you’ll be object over to frown
At the counter of chicken it is a crowd like an station
Even the biggest of the fighters have to suffer this oppression  
As much as you want, you take puris and casserole
Though for the Ice-cream,  just call Hanuman, my soul!

(Translation by Hemant Das ‘Him’ or original magahi poem of Kavi ji)

लोकभाषा में ही आदमी के व्यक्तित्व का डी.एन.ए. होता है इसलिए आदमी को जानने के लिए उसकी लोकभाषा को जानना आवश्यक होता है. लोकभाषा से कटा हुआ मनुष्य वैसा ही होता है जैसे कि जड़ से कटा हुआ कोई वृक्ष. वह दिखने भी कुछ दिनों तक तो विशाल लग सकता है परन्तु जल्द ही मूल्यहीनता और संदर्भहीनता के संकट में उसके घिर जाने की सम्बभावना रहती है. पता चला है कि उदय शंकर शर्मा को मोहन लाल महतो 'वियोगी' पुरस्कार से सम्मनित किया जाएगा. यह पुरस्कार उन्हें 30 मार्च 2017 को हिन्दी भवन, छज्जू बाग, पटना में दिया जाएगा. 


Uday Shankar Sharma @ Kavi Ji
बिहार सरकार के राजभाषा विभाग द्वारा इस सम्मान के अंतर्गत ‍‍‍‍‍‍‍रु.50000/= तथा सम्मानपत्र दिये जाते हैं. उनकी लिखी हुई मगही गीता अत्यंत सरल मगही भाषा में भागवत गीता के गूढ़ रहस्यों को उजागर करती है जो किसी भी हिन्दी भाषी के लिए सुगम है. यह पुरस्कार पहले ही हरींद्र विद्यार्थी जो को दिया जा चुका है. श्री विद्यार्थी मगही साहित्य अकादमी के सदस्य रह चुके हैं.हरींद्र विद्यार्थी  तारेगना के सरकारी विद्यालय में शिक्षक थे और अभी सेवानिवृत हैं, विद्यार्थी जी का मगही कविता-संग्रह 'मोरहर के पार' खास लोकप्रिय पुस्तक है जो एम.ए. के सिलेबस के अंतर्गत आज भी पढ़ाई जाती है. वे अंग्रेजी के भी अच्छे लेखक हैं. राकेश प्रियदर्शी के पुरजोर ऊर्जा वाले कवि हैं जिनके शब्दों में क्रांति के विगुल की तान बजती रहती है.उदय शंकर शर्मा उर्फ कविजी स्वतन्त्र लेखक हैं और राकेश प्रियदर्शी बिहार बिधान परिषद में कार्यरत हैं.

डॉ. बी एन. विश्वकर्मा ने बताया कि मगही भाषा के प्रसिद्द रचनाकारों में डॉ, अभिमन्यु प्रसाद मौर्य, डॉ.सत्येन्द्र सिंह 'सुमन' (संपादक - 'अलका मागधी') , डॉ. ओम प्रकाश जमुआर , रामदास आर्य उर्फ़ घमंडी राम , डॉ. सम्पति आर्यानी, मिथिलेश कुमार सिन्हा औ राजकुमार प्रेमी का नाम भी प्रमुख है. देवन मिसिर इस लोकभाषा के सर्वप्रसिद्ध लोकगायक हुए हैं जिनके गीत घर-घर में गूंजते हैं. 

 (English translation of the Hindi text)
    DNA of person's personality is only in the local language. Therefore it is necessary to know the person's language in order to know the man. The person cut off from the his local tongue is like a tree cut from the root. He may also look like a giant for a few days, but soon there is big possibility of loss of values and perspective in vision. It has been learnt that Uday Shankar Sharma will be conferred Mohan Lal Mahto 'Vioji' award. This award will be given to him in the Hindi Bhawan, Chhejjoo Bagh, Patna on March 30, 2017. 

(From left)  Rakesh Priyadarshi, Harindra Vidyarthi, Uday Shankar Sharma @ Kavi ji

    Under this an appreciation letter along with  Rs. 50000 / = is given by the Official Language Department of Bihar Government. In the book  Magahi Gita he reveals the unintelligible mysteries of the Bhagwat Geeta in very simple Magahi language which is easily comprehensible for any Hindi knowing person. This award has already been given to Harindra Vidyarthi. Shri Vidyarthi has also been a member of the Magahi Sahitya Akademi. He was a teacher at the Government School of Tarangana and is retired now, the magahi poetry collection 'Morhar ke Paar' of Vidyarthi Ji is a specially popular book . It is still taught under the syllabus. He is also a good writer of English. Rakesh is an energetic revolutionary poet, in whose words the bugle of revolution keeps ringing.  Uday Shankar Sharma alias Kaviji is an independent writer and Rakesh Priyadarshi is working at the Bihar Bidhan Parishad.

Dr. B. N. Vishwakarma conveyed that among the famous creators of Magahi language the names of Dr. Abhimanyu Prasad Maurya, Dr. Satyendra Singh 'Suman' (Editor - 'Alka Magadhi'), Dr. Om Prakash Jamuar, Ramdas Arya alias Ghambandi Ram, Dr. Samatii Aryani, Mithilesh Kumar Sinha and Rajkumar Premi  are also prominent. Devan Misir has been a famous folk song writer of this dialect whose songs resonate in every house-house.

मगही लोकगीत यहाँ देखें / Find Magahi folklores here http://kavitakosh.org/kk/%E0%A4%AE%E0%A4%97%E0%A4%B9%E0%A5%80_%E0%A4%B2%E0%A5%8B%E0%A4%95%E0%A4%97%E0%A5%80%E0%A4%A4

मगही साहित्य पर उपयोगी ब्लॉग- नारायण प्रसाद / Magahi Literature- useful blog of Narayan Prasad  http://magahi-sahitya.blogspot.in/




Hrikhikesh Pathak

B. JN. Vishawakarma













From Left- Rakesh Priyadarshi, Bhagwat Animesh (Wajjika poet), Harindra Vidyarthi and UdayShankar Sharma
Send more info and photos regarding Magahi litterateurs at email: hemantdas_2001@yahoo.com




Monday, 27 March 2017

नारी -शक्ति का कलात्मक उत्कर्ष : मिथिला पेंटिंग्स- (Artistic Zenith of Women-Power: Mithila Paintings) By Bhagwat Sharan Jha 'Animesh'

(English translation made by Google is placed beneath the Hindi text)
🎊🎊🎊🎊~~~~~~ ●◆●~~🎊🎊🎊🎊🎊 ©◆ भागवतशरण झा 'अनिमेष '।

Artist Mahasundari Devi 

बिहार आदिकाल से अपनी विशिष्टताओं के लिए चर्चित रहा है।बिहार का उत्तर और पूर्वी भाग मिथिलांचल इसका अभिन्न अंग रहा है।मिथिलांचल की सांस्कृतिक विलक्षणता अद्वितीय है।इसी सांस्कृतिक विलक्षणता और गहन सृजनधर्मिता का उदाहरण है --- मिथिला पेंटिंग । इसे मिथिला की चित्रकला , मिथिला पेंटिंग और मधुबनी पेंटिंग के नाम से भी जाना जाता है। मिथिला की इस चित्रकला का यह यश अब बिहार या भारत ही नहीं , बल्कि पूरी दुनिया तक अपनी उपस्थिति दर्ज़ कर चुका है।पूरी दुनिया के कला-समीक्षक अब इस चित्रशैली को जानने और पहचानने लगे हैं। बीसवीं सदी के उत्तरार्द्ध के बाद भयंकर बाढ़ की विभीषिकाओं ने जब मिथिलांचल की अर्थ-व्यवस्था को छिन्न-भिन्न कर दी थी , तब मूलतः कृषि पर आधारित यहाँ की अर्थव्यवस्था लगभग चरमरा-सी गई थी।इसी संकटकाल में जितवारपुर और मधुबनी के आसपास की महिलाओं ने अपनी चित्रकला को आर्थिक सहयोग का आधार बनाने का प्रयत्न किया।इसी कोशिश का नतीजा था कि मधुबनी से बाहर के लोगों को भी इस अचरजभरी लोककला का भान हुआ।गाँव की कमपढ़ और उम्रदराज़ महिलाओं की परम्परागत कला-शैली पर बिहार के संस्कृतिप्रेमियों का ध्यान गया।बिहार सरकार ने भी इस पर कमोबेश ध्यान देना शुरू किया।लोककलाप्रवाह की यह अविरलधारा आज भी सृजनात्मकता के नए क्षितिज को छूने की अनंत संभावनाओं से परिपूर्ण है।


Madhubanin Painting by Bharti Lal



आरम्भ और विकास :
~~~~||||~~~~~ मिथिला चित्रकला का आरम्भ राजा सीरध्वज ( जनक) के काल से बताया जाता है।इसमें दो मत नहीं कि मिथिला चित्रकला का सरोकार लोक से रहा है। इसका प्रयोग भी धार्मिक और सामाजिक संस्पर्श के साथ किया जाता रहा है।अतः इसका उत्स भी कम पुराना नहीं है।1930 के दशक के मध्य में कला-पारखी डब्ल्यू जी आर्चर और उनकी पत्नी मिल्ड्रेड ने इसे पहचाना , कलाजगत में इस पर चरचा की , और इसकी बारीकियों और मौलिकता के कायल हुए।1934 में बिहार में आये भूकम्प के दौरान राहतकार्य के दायित्व से जुड़े इस अंग्रेज अधिकारी ने भूकम्प में क्षतिग्रस्त मिथिला के हृदयस्थल के कुछ घरों को देखा । इसी दौरान भित्तिचित्र ने इन्हें आकर्षित किया।फिर इस कला के कई आयाम को देख-समझकर दंग रह गए।फ़टाफ़ट फोटोग्राफ्स लिए।महत्वपूर्ण पत्र-पत्रिकाओं में लेख लिखे।आज़ादी के बाद इस काम में ठहराव आ गया।यह लोककला अपने प्रदेश में ही लगभग उपेक्षित रही।अनगिनत मातृशक्तियों की कलासाधना का प्रवाह अहर्निश चलता ही रहा। यह साधना रँग भी लाने लगी।भारत के प्रथम राष्ट्रपति डॉ0 राजेन्द्र प्रसाद , तत्कालीन प्रधानमन्त्री लाल बहादुर शास्त्री और बाद में लौह-महिला श्रीमती इंदिरा गांधी ने भी मधुबनी और उसके आसपास बने कलाक्षितिज की भूरि-भूरि प्रशंसा की।1960 के दशक में ऑल इण्डिया हैन्डीक्राफ्ट बोर्ड की तत्कालीन निदेशक पुपुल जयकर ने मुम्बई के कलाकार भास्कर कुलकर्णी को मिथिला क्षेत्र की चित्रकला को जाँचने, परखने और समझने के लिए भेजा गया। इसका अच्छा परिणाम सामने आने लगा। 1960 के दशक के मध्य से ही मधुबनी पेंटिंग ने अपनी पहचान गहरी कर ली। पद्मश्री सीता देवी की कीर्तिगाथा भारत के बाहर भी गूँजती रही। जितवारपुर की सीता देवी ने मिथिला चित्रकला के इतिहास में स्वर्णिम अध्याय को जोड़ा।वर्ष 2005 में लगभग 92 वर्ष की आयु में इनका देहान्त हुआ।बिहार-रत्न और पद्मश्री सहित कई पुरस्कारों से पुरस्कृत -सम्मानित सीता देवी ने भारत के बाहर विदेश के कलाप्रेमियों को भी चमत्कृत कर दिया था।पारंपरिक विषयों के अतिरिक्त वर्ल्ड ट्रेड सेंटर , आर्लिंगटन नेशनल सिमेटेरी , 19वीं सदी के न्यू यॉर्क के भवनों का समक्ष चित्र बनाकर विश्व को अपने हुनर का कायल बना लिया था।लन्दन के विक्टोरिया और अल्बर्ट म्युज़ियम , लॉस एंजेल्स के काउंटी म्यूजियम ऑफ़ आर्ट, फिलाडेल्फिया म्युज़ियम ऑफ़ आर्ट , मिथिला म्यूजियम ऑफ़ जापान एवम् the musee dy quai Branly Paris इत्यादि कला-संग्रहालयों में सीता देवी की कला की बानगी को सादर रखा गया है।सृजन की इसी लय को बनाए रखने में पद्मश्री महासुन्दरी देवी (1922-2013) और पद्मश्री बौआ देवी का अकथनीय योगदान रहा है। मेरा परम् सौभाग्य था कि आयकर विभाग के 150वें वर्षगाँठ पर बिहार आर्ट कॉलेज में आयोजित एक अतिविशिष्ट कार्यक्रम में अतिविशिष्ट अतिथि के रूप में पद्मश्री महासुन्दरी देवी को अपनी शिष्याओं के साथ देखने और समझने का अवसर मिला।इस दौरान चित्रकला का विशेष कार्यक्रम दो दिनों तक चला था।महासुंदरी देवीजी की सहजता , सरलता और विनम्रता अनुकरणीय थी । इस आयोजन के बाद फिर उनके दर्शन नहीं हुए।उसी साल काल उन्हें हमसे छीन ले गया।वर्ष 1961 ई0 से ही कलासाधना से अपनी पहचान बनानेवाली महासुंदरी देवी को लगभग 28 राज्य से लेकर राष्ट्र स्तरीय पुरस्कार मिले थे।#महासुन्दरी देवी का जन्म मधुबनी के पास राँटी में हुआ था।बचपन में ही माता-पिता के निधन के बाद इनकी काकी ने इनका पालन-पोषण किया। अपनी काकी देवसुन्दरी देवी से इन्होंने करची-कलम कुछ इस तरह पकड़ी कि दीर्घ-साधना से इतिहास रचने का निर्विकल्प संकल्प बन गया।परम्परा और प्रयोग की जो मिसाल इन्होंने पेश की वह मिथिला चित्रकला की सौंदयचेतना को नया आयाम प्रदान किया।
पद्मश्री सीता देवी और पद्मश्री महासुन्दरी देवी के साथ -साथ पद्मश्री बौआ देवी का योगदान भी सराहनीय रहा है।प्रथम दो महीयसी नारियों के महाप्रस्थान के बाद आप ही लीविंग लीजेंड हैं।आप ने इस कलाशैली को जनप्रिय बनाने और आगे बढ़ाने का जो दायित्व लिया है , वह संकल्प स्तुत्य है।इस क्षेत्र में रसीदपुर गाँव की गंगा देवी एवम् जितवारपुर की ही जगदम्बा देवी का भी योगदान अनमोल रहा है।जिस चित्रशैली को इन महीयसी कलानेत्रियों ने नया आयाम दिया ,उसे एक कला-आंदोलन के रूप में स्थापित करने की आवश्यकता है।इस क्षेत्र में हज़ारों कलाकार लगे हैं।मिथिलांचल और बिहार के बाहर भी इस पर काम हो रहा है।


परम्परा और प्रयोग :
^^^^^^^^^^^^^^^^^ भित्ति चित्र और अल्पना (अरिपन) की चित्र-शैली का घर, आँगन और द्वार से आगे निकलकर कागज , कैनवस और हस्तनिर्मित कागज पर यह कला निखर रही है।यह चलन एक क्रांति साबित हुई।इसकी उपयोगिता और स्वीकार्यता देश-विदेश तक पहुँच गई।
परम्परा के अनुसार सरल और सुलभ स्थानीय स्रोत से रँग प्राप्त किये जाते रहे हैं। हरी पत्तियों से हरा रँग , गेरू से लाल , काजल और कालिख से काला, सरसों और हल्दी से पीला और सिंदूर से सिंदूरी रँग ग्रहण किया जाता रहा है।पिसे हुए चावल , गोबर , पीपल की छाल और दूध का प्रयोग भी इस कला में होने का चलन रहा है। समकालीन मिथिला चित्रकला में ज़्यादातर कलाकार देसी और प्राकृतिक रँगों के बदले एक्रिलिक रँगों का इस्तेमाल करने लगे हैं, जिससे उनके बिखरकर बेतरतीब होने का जोखिम कम हो जाता है।रँगों में पकड़ बनाने के लिए बबूल के गोंद का भी प्रयोग होता है। पहले प्रायः गहरे चटख रँगों का प्रयोग होता था।फिर कुछ हल्के रँगों का प्रयोग होना शुरू हो गया। पीला , गुलाबी और नींबू के रंग भी प्रयोग में आने लगे।माचिस की तीली और बाँस की करची को कूची के रूप में इस्तेमाल किया जाता रहा है।पारम्परिक प्रसंगों के अतिरिक्त कुछ नए विषय भी इस चित्रशैली में व्यक्त होने लगे हैं।हाल ही नेपाल में आये भूकम्प की त्रासदी को भी इस कला द्वारा व्यक्त किया गया है। राजा सल्हेस की लोककथाओं के प्रसंग को (मिथिला चित्रशैली में ) दलित महिलाओं द्वारा अभिव्यक्त करना इस कला -शैली के लिए नई और उर्वर जमीन तैयार कर रहा है। यह इस शैली का नया आयाम है।
Madhubani painting by Bharti Lal

वर्त्तमान विमर्श : 
~~~~~~~~ लोककला को तुच्छ और हेय समझने की मानसिकता अभी गई नहीं है।अपनी लोकसंस्कृति पर गर्व करना अब भी हमें नहीं आ सका है। लोककलाकारों को बिचौलियों से बचाना भी आवश्यक है।आज के बाज़ारवाद ने हर जगह बिचौलियों का वर्चस्व खड़ा कर दिया है। कलाकार भी इसे शुद्ध व्यापार समझने की भूल न करें।यह साधना है।प्रमुख और अंतिम लक्ष्य धनार्जन नहीं है।सरकार , कलारसिक और संस्थाएं इसके संरक्षण में आगे आएँ ताकि इसकी गुणवत्ता बनी रहे , और इसका मूल स्वरूप भी सुरक्षित रहे।मिथिलांचल की राजनीति करनेवाले इस कला -विरासत को बचाने और बढ़ने के लिए आगे आएँ।स्कूल और कॉलेज के पाठ्यक्रम में मिथिला चित्रकला को उचित स्थान मिले।संस्कृति मंत्रालय , ललितकला अकादमी और अन्य राज्य-संपोषित संस्थाओं के अतिरिक्त जन-गण-मन को भी सांस्कृतिक पुनर्जागरण का संकल्प लेना चाहिए।तथा अस्तु।
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 लेखक : भागवत शरण झा अनिमेष मोबाइल: 91-8986911256
(English Translation made by Google)

Artistic Zenith of Women-Power: Mithila Paintings
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By:  Bhagwat Sharan Jha 'Animesh'
Bihar has been known for its specialties. It has been an integral part of the north and eastern part of Bihar. The cultural singularity of the hill is unique. This is an example of cultural extravagance and intense creativity --- Mithila painting. It is also known as Mithila painting, Mithila painting and Madhubani painting. Bihar's Mithila painting's fame is not only India, but the world has documented the presence of the whole world knowing art critic and began recognizing this Citrshaili. After the latter half of the twentieth century, when the floodwaters of the floods had disrupted the economy of Mithilanchal, then the economy here, based on agriculture, was almost staggering.In this crisis, women around Jitwarpur and Madhubani Tried to make their painting the basis of economic cooperation. The result of such an effort was that the people outside Madhubani also got to know this astounding folk art.

Beginnings and Development:

~~~~ |||| ~~~~~ Beginning of Mithila painting 
King Sirdwaj (Parent) from the time the odds are told not to do two of the Mithila folk art is concerned. Its use has also been done with religious and social intercourse. Therefore its festivity is not too old. In the mid-1930s, art-connoormant WG Archer and his wife Mildred recognized it, in the art world, and convincing detail and originality in the 0.1934 during the earthquake in Bihar Rahtcary liability associated with the British official in quake damaged Mithila Hridays The site saw some houses. Graffiti attracted them. Then many aspects of this art were amazed to see them. For fast photographs. Writing articles in important journals. After the independence, this work stopped. This folk art is in its territory Nearly neglected.Anglacious flow of countless mothers continued to flow. This practice will bring the color Lgikbart 0 Rajendra Prasad, the first President, the then Prime Minister Lal Bahadur Shastri and Indira Gandhi later iron women of Madhubani and Klakshitij turned around in the early 1960's lauded All India Pulul Jayakar, the then Director of Handcrafted Board, examined the artist of Mumbai, Bhaskar Kulkarni, to see the painting of Mithila area. And sent him to understand. The best result was coming. Since the mid-1960s, Madhubani painting has deepened its identity. Padmashri Sita Devi's kirtigatha also echoed outside of India. Sita Devi Jitwarpur golden chapter in the history of Mithila painting Jodhakwars their death in 2005 at the age of around 92, including Huakbihar Ratna and Padma Shri awards honored the goddess Sita out of India to foreign art lovers Apart from conventional subjects, the World Trade Center, Arlington National Cemetery, the 19th century New York buildings Q made a convincing picture of their skills to the world by the Victoria and Albert Museum Thaklndn, Los Angeles County Museum of Art, Philadelphia Museum of Art, Museum of Mithila Japan-and the musee dy quai Branly Paris art museums etc. Sita the hallmark of the art of the goddess placed Haksrijn regards to maintain the same rhythm Mahasunderi Padma Devi (1922-2013) and Padma Devi inexplicable Bua YSS Is not. I was fortunate that department Prm 150th anniversary Bihar College of Art held a very special guest in the VIP program Mahasunderi Padma Devi with his female disciples Milakis the opportunity to see and understand the special program of painting that lasted two days The ease, simplicity and modesty of Mahasamandri Devi were exemplary. He was not seen again after this event. He was taken away from us for the same year. Mahasundari Devi, who made his identification from Kalashadana since 1961, received about 28 states and nation-level awards. # Mahasundari Devi was born in Madhubani After the death of the parents in childhood, his uncle has nurtured them. From his Kaki Devasundari Devi, he got the taxis and pen somehow caught up in such a way that it was the resolve of creating history by long-pursuit. The example of Parampara and experiment that he presented presented a new dimension to the beauty of Mithila painting.

Padma Shri and Padma Shri Sita Devi Devi Mahasunderi Bua Padma Devi, along with two Mahiysi Hakprtham commendable contribution of women after Mahaprsthan the Klashaili you to the living legend of popular and has the obligation to pursue the , the resolution in this iconic and-Jitwarpur Rsidpur village of Ganga Devi Goddess Jagdamba of the precious contribution for which I Citrshail A new dimension to these Mahiysi Klanetriyon, it needs to be established as an art movement in this area for thousands of Bihar and outside Hankmithilancl artist began working on it happening.

Tradition and experimentation:

^^^^^^^^^^^^^^^^^ This art is fading on paper, canvas and handmade paper by moving beyond the picture-style house of murti and Alpana, ahead of the courtyard and doorway. the practice proved a revolution Huikiski utility and acceptability abroad went up.
According to tradition, ranges have been obtained from simple and accessible local sources. Green rings with green leaves, red from red, mascara and blacksmiths, black beans and turmeric with yellow and vermilion have been used to get the Sindoori rang. The use of burnt rice, dung, peepal bark and milk should also be used in this art Has been running. In contemporary mithila painting, most of the artists are beginning to use acrylic clumps instead of native and natural colors, which reduces their risk of disrupting them. Acacia gum is also used to make grip in rings. Rँgon often used before was there something deeper bright light began to be used Rँgon. The colors of yellow, pink and lemon also started to be used. The Karachi of the meshes and the bamboo used to be used as a kuchi. Apart from traditional contests, some new topics have also been expressed in this diagram. The earthquake tragedy has also been expressed by this art. Expressing the context of the folklore of King Sulhees (in Mithila picture style) by Dalit women, it is preparing new and fertile ground for this art style. This is a new dimension of this style.
Current discussions:

~~~~~~~~ Folk pinpoint and understand the mindset went down upon not to take pride in your in popular culture, but we could not. Lokklakaron necessary to protect today's Bajharwad middlemen everywhere dominated by intermediaries has caused. Do not forget to understand this as a pure business. This is a sad business. The main and final goal is not revenue collection. The government, the Kalarasi and the institutions come forward in its protection so that its quality remains, and its original form should also be safe.Mithilanchal's politics those who save and move on to the art -virast Aaakskul and college courses in the proper location Mileksnskriti Ministry Mithila painting, Litkla Academy and other state institutions, in addition to sustaining the cultural renaissance of Jana Gana Mana Chahia.ttha therefore be determined.
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Writer: Bhagwat Sharan Jha 'Animesh' Mobile: 91-8986911256
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