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Sunday, 25 September 2022

भागवतशरण झा 'अनिमेष' - बिहार में जन्मे एक विलक्षण भारतीय संस्कृतिकर्मी

 भागवत अनिमेष का सांस्कृतिक सफर

(05.01.1963 - 17.9.2022)


भागवतशरण झा जी बिहार  में जन्मे और पले-बढ़े एक ऊर्जावान रचनाकार और कलाकार थे जो अपनी विपुल सांस्कृतिक सम्पदा बिहार और भारत को सौंपकर 17 सितम्बर 2022 को इस नश्वर दुनिया को छोड़ गए. वे सैद्धांतिकी नहीं बल्कि कार्मिकता में विश्वास रखनेवाले थे.  "आशंका से उबरते हुए" एकल कविता-संग्रह समेत उन्होंने जो कुछ अपने फेसबुक वाल पर डाला विशेष रूप से हिंदी, बज्जिका और मैथिली कविताएँ वे बहुमूल्य धरोहर हैं और उन्हें इकट्ठा एक जगह रखने की कोशिश की जाएगी. यदि आप उसमें सहयोग कर सकें तो आपका आभार होगा. उनके पुत्र श्री हरि ओम झा जी ने बिहारी धमाका ब्लॉग को उनकी रचनाएँ प्रकाशित करने का अधिकार दे दिया है. हालाँकि स्वत्वाधिकार (कॉपीराइट) उन्हीं के पास रहेगा. साथ ही यदि किन्हीं परिजन या सज्जन/ देवी के पास उनकी रचना, फोटो या संस्मरण हो अवश्य साझा करें. उसे हम इस पेज पर प्रकाशित करने की कोशिश करेंगे. - hemantdas2001@gmail.com / editorbejodindia@gmail.com

यह जाहिर कर देना उचित होगा कि "बिहारी धमाका" ब्लॉग उन्हीं की प्रेरणा से स्थापित हुआ था और चल रहा था. इस पर तथा "बेजोड़ इंडिया" ब्लॉग पर उनकी अनेक रचनाएँ पहले से प्रकाशित हैं जो देखी जा सकती हैं. हम उन सभी लिंकों को एक जगह इसी पेज पर डालने का शीघ्र प्रयास करेंगे. -  hemantdas2001@gmail.com / editorbejodindia@gmail.com

नीचे प्रस्तुत है उनके सम्बंध में अनेक व्यक्तियों के संस्मरण और उद्गार:

 *अनिमेष जी के चार यार*
(हेमन्त दास 'हिम') 

भागवत सर के चार यार के गैंग में शामिल थे - उपेंद्र जी, भारती जी, हेमंत यानी मैं और अनुवाद अधिकारी अनिल जी. हम लोग अक्सर उनके साथ लंच के समय या खाली समय में सांस्कृतिक चर्चा किया करते थे. "मैं जहाँ खड़ा हो जाता हूँ, लाइन वहीं से शुरु होती है" उपेंद्र जी का यह संवाद काफी लोकप्रिय हुआ था. महिला कलाकारों में प्रमुख थीं - चुनचुन देवी और रूबी कुमारी. एक गायक धर्मेंद्र से उन्हें (और हमें भी) बेहद लगाव था. हर नाटक में लोग उस गायक कलाकार का गायन बड़े चाव से सुनते थे. हम से पहले के दौर में स्व. राजकुमार प्रेमी जी (मगही कवि और रंगकर्मी) के ग्रुप में वे थे. ये सब के सब पटना आयकर कार्यालय में कार्यरत हैं या थे. नाटकों में कुछ नए लड़के भी थे- मुकेश, प्रशांत (नाम भूल रहा हूँ). आदि. उनके बैचमेट राकेश बिहारी लाल से उनको विशेष लगाव था जो स्वयं एक बड़े कला-पारखी के रूप में विभाग में विख्यात हैं.

कार्यालय के बाहर भी अनेकानेक कार्यक्रमों में मैं उनके साथ गया- चाहे दूरदर्शन हो, आकाशवाणी हो, रवींद्र भवन हो, हिंदी साहित्य सम्मेलन कदमकुआ, कनीय अभियंता भवन, जनशक्ति प्रेस के समीप भवन, पुस्तक मेला, वातायन और पता नहीं कहाँ कहाँ!! मैं तो फ्री था पर वे परिवार वाले पर पता नहीं कैसे वे नौकरी और परिवार को सम्भालते हुए भी सांस्कृतिक गतिविधियों के लिए मेरे समान ही फ्री रहते थे. यह उनकी महानता थी कि उन्होंने दूसरे सहकर्मियों से कभी धन-वैभव में मुकाबला करने में या कोई और कम्पीटीशन करने की बजाय समाज को साहित्यिक और सांस्कृतिक रूप से समृद्ध करने में अपने-आप को लगाना उचित समझा. हालांकि परिवार भी उनका सम्भल गया और वे खुद भी अपने करियर की बुलंदियों तक पहुंच ही गए.

उनके किसी मित्र ने मेरे बारे में सूचना दे दी थी कि यह लड़का विद्यार्थीकाल में रंगमंच और साहित्य में बहुत सक्रिय रहा है. 11 वर्ष की नौकरी के बाद जब 2009 ई. में मैंने कार्यालय से सहमति लेकर मुम्बई में एमबीए किया तो उसके बाद मेरे निजी परिवार में बिखराव आ चुका था और मैं रांची छोड़कर पटना रहने लगा. वहीं आयकर कार्यालय में अपने अनुरोध पर पोस्टिंग भी मिल गई. तब कुछ दिनों के अंदर ही मुख्य आयकर आयुक्त के कार्यालय में भागवत झा सर मुझसे मिलने आये जो उस समय निरीक्षक थे और मैं उनसे जुनियर पोस्ट पर था. उन्होंने मुझे 15 अगस्त को होनेवाले विभागीय सांस्कृतिक कार्यक्रम में एक नाटक तैयार किया और मुझे महत्वपूर्ण रोल दिया. वह नाटक काफी प्रशंसित हुआ. अभिनय तो लोगों को भाया ही, अनिमेष जी का स्क्रिप्ट और संवाद बहुत देसी और स्वाभाविक हुआ करते थे जो कि सबको आकर्षित भी करता था. पूरे नाटक में संदेश के साथ-साथ हास्य और गायन क भयंकर समावेश रहता था. अक्सर उनके नाटकों में आयकर विभाग की छापामारी का महत्वपूर्ण दृश्य रहता था. उन्होंने मेरे द्वारा अभिनीत पहले विभागीय नाटक में मुझे एक सेठ के युवा बेटे की भूमिका दी थी. उनकी अपनी बेटी सेठ की बेटी (मेरी बहन) बनी थी. उसमें हमें यह गाना भी था- "फूलों का तारों का सब का कहना है, एक हजारों में मेरी बहना है".

उसके बाद उनके द्वारा लिखित एक नाटक "जूते" का प्रदर्शन हुआ जिसमें भी मैं था. उसमें अधिकारियों के निर्णय लेने में विलम्ब करने पर करारा व्यंग्य था जिसको लेकर कार्यालय के अनेक अधिकारियों ने उनकी आलोचना भी कर डाली. पर नाटक खूब मनोरंजक और लोकप्रिय रहा. लोगों को यह समझना चाहिए कि वे खुद भी अधिकारी थे और उन्होंने नाटक में किसी खास पदधारी पर निशाना नहीं साधा था. निर्णय लेने में देर कोई भी कर सकता है- आयकर अधिकारी या आयुक्त. यह नाटक में कहीं नहीं था कि कौन अधिकारी देरी कर रहा है.

उनका एक नाटक था "पप्पू पास हो गया". यह नाटक उनके लेखन-निर्देशन में हमने "बिहार हिंदी साहित्य सम्मेलन" कदम कुआँ में किया जो काफी चर्चित हुआ. इसमें एक साधारण मेधाशक्ति वाले लड़के को सफलता प्राप्त करने हुए दिखाया गया है.

भागवतशरण झा 'अनिमेष' जी की रचनाएँ बहुत पहले प्रतिष्ठित राष्ट्रीय पत्रिकाओं में भी छपी थीं. उनका एक संयुक्त कविता-संग्रह "जनपद" प्रकाशित हुआ था. एकल कविता-संग्रह "आशंका से उबरते हुए" भी प्रकाशित हुआ था जिसकी समीक्षा मैंने भी कि थी जो "बिहारी धमाका" ब्लॉग पर है. मुझे और ऋषि कुमार को साथ लेकर उन्होंने एक संयुक्त कविता-संग्रह "त्रिवेणी' प्रकाशित करवाई थी जो चर्चित रही. उनके द्वारा अबतक प्रकाशित साहित्य उनकी विशाल और अपरिमेय साहित्यिक क्षमता का परिचायक नहीं है. वे विलक्षण लोककवि भी थे. उन्होंने हिंदी के अलावा बज्जिका, मैथिली में भी बहुत कुछ लिखा है. आधुनिक बज्जिका साहित्य के स्तभों में से वे एक माने जाने चाहिए, ऐसा मेरा कहना है. उनकी अनेक बज्जिका और हिंदी रचनाएँ "बिहारी धमाका" ब्लॉग पर भी है.

मेरा कविता-संग्रह "तुम आओ चहकते हुए" की पांडुलिपि को देखते, संशोधित करते हुए उन्हें ज्ञात हुआ कि मैं अपनी नन्हीं बेटी से वर्षों से नहीं मिल पाया हूँ और इससे वे बहुत भाव-विह्वल हो उठे. जब वे दरभंगा में आयकर अधिकारी थे तो मैं बराबर दरभंगा जाया करता था और उनके कार्यालय और आवास पर उनसे मिलता था. एक बार तो वे, मैं और उनके एक जुनियर सहकर्मी सब मिलकर मेरी बेटी के नाना के दरभंगा स्थित घर की तरफ बढ़े कि बेटी का हाल-चाल जान सकें. मैं झा सर के साथ गली के इस ओर खड़ा रहा. लेकिन हमेशा की तरह बेटी के ननिहाल वालों ने सहयोग नहीं किया और मैं नहीं मिल पाया.

उन्होंने मुझसे कहा था कि हेमंत जी, आप ऐसा मत सोचिए कि आप को ईश्वर ने ज्यादा दुख दिया है. सब को ले-देकर एक समान ही दुख मिला है, सिर्फ रूप अलग-अलग है.

मैंने जो ब्लॉग बनाया उसके पीछे उन्हीं की योजना थी. दर-असल वे साथ मिलकर कोई पत्रिका निकालना चाहते थे. पर मैंने ब्लॉग के रूप में उसे ढालना ज्यादा कारगर समझा. पटना में उन्होंने ही मुझे शहंशाह आलम, शिव नारायण, हृषीकेश सुलभ, भगवती प्रसाद द्विवेदी, अरबिंद पासवान, राजकुमार राजन. हृषीकेश पाठक, विशुद्धानंद और न जाने कितने प्रसिद्ध और उभरते हुए साहित्यकारों से मुझे मिलवाया और परिचय करवाया.

भागवत जी की दृष्टि समावेशी थी. उनके ग्रुप में कोई जातिवाद या सम्प्रदायवाद नहीं था, विचारों में फकीरों जैसी सरलता थी. सब के लिए खुला हृदय था. मिजाज के खुशमिजाज और आशिकाना थे किंतु अत्यंत संस्कारी थे. कभी भी उनके मुँह से एक भी अपशब्द नहीं निकलता था. हिंदी भाषा के साहित्य में एमए ही नहीं थे बल्कि उसका गहरा अध्ययन उन्होंने किया था. मुझे उन्होंने साहित्य के बारे में काफी कुछ सिखाया. काफी सारा ज्ञान था हर विशेष रूप से महापुरुषों के जीवन से सम्बंधित. और इस सबसे बड़ी बात थी कि वे हमेशा धरती पर जीनेवाले थे, किताबी बातों को भी धरती पर उतारकर ही कहते थे. उनका आदर्श एक अच्छा मिलनसार और चरित्रवान आदमी बनना था, बड़ा बन कर नाम कमाना नहीं था. पर कौन साहित्यकार या रंगकर्मी या कलाप्रेमी होगा बिहार में जो उन्हें नहीं जानता होगा? सुगंध कब डिबिया में बंद की जा सकती है. इतनी सारी अप्रतिम अच्छाइयाँ हो तो यश अपनेआप फैलता है.

वे मेरे साथ मिलकर बहुत सारा साहित्यिक-सांस्कृतिक कार्य करना चाहते थे और मेरे द्वारा विभाग से स्विच्छिक सेवानिवृति लेने पर काफी नाराज हुए थे. मेरे पटना छोड़ने पर दुखी भी हुए थे. मैं उनका गुनहगार हूँ. मेरी अपनी समस्याएँ थीं.

कई बार रात के तीसरे पहर वो जगे रहते थे. और मैं तो हूँ ही फ्री स्टाइल में जीनेवाला. तो कई बार उस समय उनके फेसबुक मेसेज मिले कि हेमंत जी क्या कर रहे हैं? असल में उन्हें स्वास्थ्य की गम्भीर समस्या थी जो कई बार उन्हें रात में सोने नहीं देती थी. पर महत्वपूर्ण यह है कि वे अपने स्वास्थ्य को लेकर कम और समाज के पतन और पनप रहे अलगाववाद को लेकर कहीं ज्यादा चिंतित थे. उनकी अनेक कविताओं में भी इसका संकेत मिलता है जो उस समय उन्होंने लिखीं.

क्या लिखूँ, क्या छोड़ूँ? अनगिनत बाते हैं उनके साथ. उनके रहते मैं आश्वस्त रहता था कि दुनिया में कोई तो है जो मुझे समझता है. बहुत बड़ा खालीपन आ गया है उनके जाने के बाद. 

अरविन्द पासवान ने सबसे पहले यह दुखद सूचना डाली - अब हम इन्हें शब्दों में ढूँढ़ पाएँगे। कवि भागवतशरण झा 'अनिमेष' नहीं रहे। प्रिय कवि को आखिरी सलाम।

मनीश वर्मा (मनुकहिन) ने कहा -आपके (हेमन्त 'हिम'  के) लिखे एक एक शब्द भागवत शरण झा जी कितने महान व्यक्तित्व के स्वामी थे इस बात की गाथा कह रहा है। एक बहुआयामी व्यक्तित्व के स्वामी, जिनके बारे में जितना लिखा जाए कम है। मेरी पुस्तक मनु कहिन की समीक्षा उन्होंने लिखी थी। इस समीक्षा को हुबहु राष्ट्रीय सहारा ने अपने सभी राष्ट्रीय संस्करण में स्थान दिया था। मैं तो उसी फ्लोर पर बैठता हूं जहां वे बैठते थे। अब तो उधर झांकता भी नहीं हूं। बड़ा अजीब सा लगता है। एक खालीपन सा आ गया है। कहते हैं समय अच्छे से अच्छे घाव को भर देता है। थोड़ा समय लगेगा इस बात को मानने में कि अब वे नहीं रहे।

यही जिंदगी है। जब तक है कवायदें और समीक्षाएं चलती रहती हैं। उसके बाद तो बस एक शुन्य! विनम्र और भावपूर्ण श्रद्धांजलि

हरिनारायण सिंह 'हरि' ने कहा - हिन्दी,बज्जिका और मैथिली के सशक्त हस्ताक्षर प्रख्यात रंगकर्मी और आयकर अधिकारी मेरे सहृदय मित्र भागवतशरण झा अनिमेष नहीं रहे! विश्वास ही नहीं होता कि इतना जिंदादिल आदमी इस तरह बिना शोर किये कैसे चला गया! मित्र तुम्हें ऐसे नहीं जाना चाहिए था! भगवान के यहाँ भी तुम्हारी जिंदादिली बनी रहे! विह्वल हूँ! श्रद्धांजलि

बी. एन. विश्वकर्मा ने लिखा - गत दिनांक 17/9/22 को पटना में कवि अनिमेष जी का देहांत हो गया ,उनके श्रद्धांजलि में दो वाक्य समर्पित है --
**धन्य थे भागवत अनिमेष **
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सागर था झुब्द मेरु मंथन के उपरांत ,
नागों को पकड़ जकड़ कौन वीर करे शांत ।
टूटी हुई आस लिए, मौन खड़े हम तमाम ,
जानते है, आड़े झन कोई न आया काम ।।
विधि और विधान की सुरमई चपेट में ,
मृत्यु के नाग पाश की दुख़ मयी लपेट में ।।
विज्ञ कवि भागवत अनिमेष भी नहीं रहे,नहीं रहे ,
धन्य थे कवि अनिमेष ,अमर रहे ।अमर रहे ।।
डॉ o बी o एन o विश्वकर्मा ,पटना ,बिहार ।

राकेश बिहारी लालWhatever you have described about Jha jee is correct. During the period and after that he became physically depressed. I requested him to make himself active and restart his literary creativity. He accepted my suggestion and done some marvellous and matured work by writing very sensitive poems which show that his creativity was still fertile. On the last day of working I met him as usual and never felt that he was ill. It appears that the Almighty was eager to lift him from us to include him among Navratans of His durbar.
I feel very alone as nobody in this deptt is alive to latest developments in the field of literature. He was a factory of producing so many talented and upcoming poets and writers. Vinamra Shradhaanjali.

राजकुमार भारती - दिल दुखित है हमने खोया, नवनीत हृदय, जिंदादिल, कलावान, कौशल प्रवीण अपने सबसे नजदीकी रिश्ते को...
हे मेरे हृदय प्रेमी, आपको काव्यांजलि, ज्ञानांजलि, साहित्यांजलि पुष्पांजलि और अश्रुपूरित श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं।

संजीत पाठक  आप यहाँ मुस्कुरा रहे हैं और सभी रो रहा है l आपने बहुत से नाटक लिखे पर आपका ये नाटक हमें पसंद नहीं आया, कौन अधूरा अभिनय कर के जाता है! आऊँगा मैं भी जल्द तो पूछूंगा जरूर "ए बाबू मुशाय आप तो छलिया निकले जीवन रुपी नाटक में सारे पात्र को बीच में छोड़कर चले गए ...." अब कौन उंगली पकड़कर स्टेज तक ले जाएगा, कौन सरस्वति पुत्र कहेगा ? हँसने-हँसाने वाला संवाद लिखते-लिखते ये रुलाने वाला क्या लिख दिया जिसका न कोई पर्दा उठाने वाला है न गिराने वाला कोई है  भाई साहब आपको भुलाना सांस लेने को याद करने जैसा है। मुझे भाई साहब ने उद्घोषक की भूमिका दी थीl

मुकेश कुमार मृदुल ने पोस्ट किया (नीचे)
भागवतशरण झा 'अनिमेष ' के असमय देहावसान से हृदय विदीर्ण हो रहा है -
अईसन दुलार अब कहाँ पायेम ........ 
छोड़ के  चल कहाँ गेली ?
15 नवंबर 2021  · 
मिलन 🎊👏

हरेन्द्र सिन्हा ने गहरा दु:ख व्यक्त करते हुए उनके साथ अपना एक फोटो साझा किया जो नीचे देखा जा सकता है.

मिथिलेश प्रसाद चौहान बहुत दुःखद घटना, सर ने बहुत ज्यादा मेरा भी हौसला बढ़ाते रहते थे।























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