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Saturday, 29 February 2020

रहना है जब साथ-साथ फिर तनातनी क्यों ? / कवि - हरिनारायण सिंह 'हरि'

गीत
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1
रहना है जब साथ-साथ फिर तनातनी क्यों ?
हिलमिल रहने का अपना इक धरम बनायें।

केवल निज हित सोच हमें छोटा करता है,
सिर्फ स्वार्थ तो हाय! हमें खोटा करता है।
परहित-चिंतन ही तो हमें बनाता मानव,
आओ परहित-चिंतन में हम समय बितायें।

हिन्दू-मुस्लिम धर्म नहीं, पूजा-पद्धति है, 
हाय बड़ा दुर्भाग्य हमारी यह दुर्गति है।
सबका है इक धर्म, जो वर्णित सद्ग्रंथों में,
परोपकार,सत्कर्म!उसी को हम अपनायें। 

राजनीति तो सब दिन से बहकी-सहकी-सी,
इसके कारण युग-युग से जनता दहकी-सी।
ऋषियों, सुफियों का सानिध्य बड़ा सुखदायी 
राह उसी की चलें, वही पथ हम अपनायें ।
......

2
गजल

दूर घर से रह रहे हैं, क्या कहें 
दुःख कैसा सह रहे हैं, क्या कहें 

पेट पापी भर सके इस वास्ते
कंटकों पर चल रहे हैं, क्या कहें 

उफ्! सुगंधी स्वप्न निज परिवेश का
अब नहीं मह-मह रहे हैं, क्या कहें

दिवस सोते, रात का जब शिफ्ट है
रतजगा हम कर रहे हैं, क्या कहें 

क्यों नहीं निज प्रांत में भी जाॅब हो
आप क्या-क्या कर रहे हैं,क्या कहें

पीर अपनी रोज बढ़ती जा रही
किस हवा में बह रहे हैं, क्या कहें !
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कवि - हरिनारायण सिंह 'हरि'
वर्तमान पता -अंकलेश्वर (गुजरात)
मूल पता - मोहनपुर (बिहार)
कवि का ईमेल - hindustanmohanpur@gmail.com
कवि का परिचय - कवि हिंदी और बज्जिका के जाने-माने साहित्यकार और पत्रकार हैं.
प्रतिक्रिया हेतु ब्लॉग का ईमेल - editorbejodindia@gmail.com
               


1 comment:

  1. very nice and impressive blog about bihar and its culture

    Regards,
    rajendra sha | rkrajendra8@gmail.com

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