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Saturday, 8 February 2020

भा. युवा साहित्यकार परिषद और स्टे.रा..भा. क्रि. समिति, राजेंद्रनगर टर्मिनस की साहित्यिक गोष्ठी 5.2.2020 को पटना में सम्पन्न

चल करें फूलों की खेती / सुगंधित मन-प्राण हो 

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दिनांक 5.2.2020 को भारतीय युवा साहित्यकार परिषद्,पटना की ओर से राजेन्द्र नगर टर्मिनल स्थित रामवृक्ष बेनीपुरी पुस्तकालय में सुप्रसिद्ध गीतकार,कवि एवं कथाकार भगवती प्रसाद द्विवेदी की अध्यक्षता तथा बेतिया से पधारे वरिष्ठ गीतकार और मुख्य अतिथि डॉ. गोरख प्रसाद मस्ताना  एवं आरा से पधारे वरिष्ठ कवि और विशिष्ट अतिथि जीतेन्द्र कुमार की  उपस्थिति में एक सार्थक और सफल काव्य गोष्ठी का आयोजन किया गया जिसमें पटना के अनेक सुपरिचित एवं प्रतिष्ठित कवि-कवयित्रियों ने अपनी श्रेष्ठ सम- सामयिक कविताओं का रसास्वादन कराया.

इस अवसर पर सुप्रसिद्ध चित्रकार-कथाकार एवं कवि सिद्धेश्वर की काव्य पुस्तिका "काव्य कलश" का लोकार्पण भी किया गया. कवि गोष्ठी का संचालन श्री सिद्धेश्वर और धन्यवाद ज्ञापन वरिष्ठ गीतकार मधुरेश नारायण  ने किया..

कविता की विविध रंगों की सारगर्भित रचनाओं को लेकर कवि सिद्धेश्वर ने समकालीन संदर्भों को बहुत ही शिद्दत के साथ अपनी नई किताब "काव्य कलश" में उकेरा है। साहित्यिक संस्था "भारतीय युवा साहित्यकार परिषद" और राजेंद्र नगर टर्मिनल स्टेशन राजभाषा कार्यान्वयन समिति के संयुक्त तत्वाधान में आयोजित लघु पुस्तक "काव्य कलश" का लोकार्पण करते हुए वरिष्ठ साहित्यकार भगवती प्रसाद दिवेदी ने उपरोक्त उद्गार व्यक्त किए।

समारोह के आरंभ में सचिव मो, नसीम अख्तर ने स्वागत भाषण के दौरान कहा कि कम पृष्ठों में अधिक सामग्री को संजोना सिद्धेश्वर जी की कलात्मक सूझ-बूझ है।

 समारोह के मुख्य अतिथि गोरख प्रसाद मस्ताना ने कहा की सिद्धेश्वर के रेखाचित्र कविता के साथ बोलते नजर आते हैं।

कवियत्री डॉ अर्चना त्रिपाठी ने, काव्य कलश में प्रकाशित "कविता बच्चे झूठे नहीं होते", "जीवन एक वसंत है", "लगाव", "काले धुंए का गीत" की प्रशंसा करते हुए कहा कि "सिद्धेश्वर की कविताएँ कम शब्दों में बहुत कुछ कहती हुई प्रतीत होती हैं।"

रामवृक्ष बेनीपुर हिंदी पुस्तकालय के कक्ष में आयोजित इस सारस्वत साहित्यिक समारोह के दूसरे सत्र में कवि गोष्ठी का संचालन किया सिद्धेश्वर ने किया।  यह कवि गोष्ठी अतिथि कवि गोरख प्रसाद मस्ताना को समर्पित था।

तो आइये, इस अवसर पर बही काव्य रसधार की कुछ बूंदों का पान करते हैं-

हाल ही में "रोज डे" मनया गया। और इसी संदर्भ में इस विशिष्ट गोष्ठी के सर्वप्रमुख आकर्षण रहे गोरख प्रसाद मस्ताना की यह कविता आज के अशांतिपूर्ण माहौल में भी शीतलता प्रदान करनेवाली और सच्ची राह दिखाती हुई प्रतीत हुई  -
 "*चल करें फूलों की खेती, सुगंधित मन प्राण हो ।
    सुवासित कण-कण धरा सब के लिए वरदान हो
  *सिंचाई हो स्नेह की और खाद होवे प्रीत की 
     नेह के छिड़काव पर खेती हो उत्तम गीत के
    सांस के अंतिम शिखर तक भाव में कल्याण हो!
 *सब में हो सद्भावना तो एकता का भाव हो
    प्यार के खलिहान में तिल भर भी न दुर्भाव हो
    कि अब जो बोएँ बीज उसमें संतुलित सम्मान हो!
 *शास्त्रीयता हो हरी साहित्य की हर उपज में
    जैसे पंखुड़ियाँ सजी होती हैं नीले जलद में
    परागों में शब्द के तुलसी भी हों रसखान हो!

सिद्धेश्वर की नजरों में ये जाति, धर्म, नैतिकता, मानवता तो कहने की बाते हैं. असली मसला तो गरीब की रोटी का है -
आदर्श, नैतिकता, प्रतिभा न तो मानवता है बहुत कुछ  
 देश को लूटने वालों की चर्चा है बहुत कुछ 
न जाति, न धर्म, न आबरू, न शरम
पेट के लिए रोटी का टुकड़ा है बहुत कुछ!"

शमां कौसर शमां देशभक्ति की भावना से ओतप्रोत दिखीं-  
"रहे शादाब  हर दम ये चमन अपना
रहे शादां हमेशा ये वतन अपना
न आए आंच अज़मत पर कभी उसकी
न हो नापाक फिर ग॓ग व जमन अपना "

मो.नसीम अख्तर आज के माहौल में व्याप्त हिंसात्मकता से आजिज़ हो गए लगते हैं -
"हाथ में जब सभी के ही पत्थर रहे
किस तरह सलामत कोई सर रहे !"

सच्चे देशभक्त को आप मार तो सकते हैं पर डरा नहीं सकते देश को नुकसान पहुँचानेवालों को चुनौती देते हुए कवि घनश्याम कहते हैं -
 मुझको मरना ही होगा तो मर जाऊंगा
 अपनी खुशबू तेरे नाम कर जाऊंगा
 भूल कर भी नहीं यह भरम पालना
तू जो धमकाएगा तो मैं डर जाऊंगा।"

 डॉ रश्मि गुप्ता का कहना है कि इंसान, नदियों  की तरह नहीं होता जो जब चाहे बदल ले खुद को -
"नदी बदल लेती है धारा 
 रास्ता खुद चुन लेती है अपने बहाव का
 इंसान बदल लेता है है वस्त्र 
 नहीं बदल पाता है / अपने स्वभाव को "

सबसे गहरा होता है वह सागर जो नयनों में बहता है। पूनम सिन्हा 'श्रेयसी' कहती हैं-
 छ्ल- छ्ल छलके है नयनों में!
 सागर की बेटी छलक-छलक
 तड़प रही है अब पिया बिना
 सागर की बेटी ढुलक-ढुलक। "

किसी की चाहत मिले तो ज़िंदगी संवर जाती है पर जब चाहत हद से ज्यादा हो तो मीना कुमारी 'मीना' के शब्दों में -
 "जो भी कहती हूं वह अफ़साना बनाते क्यूँ हो?
 मेरी हर बात को सीने से लगाते क्यों हो?
 इतना चाहो न मुझे और परेशान न करो
 मेरे हर दर्द को आँखों से बहाते क्यों हो?"

इस उथली संवेदना वाले आधुनिक युग में कुछ लोगों ने चेहरे को ही किताब मान लिया पर एक अनुभवी कवि मधुरेश शरण को अच्छी तरह मालूम है सच्ची पुस्तक किसे मानना चाहिए-
 "गगन में उड़ने दो
 जीवन की पुस्तक पढ़ने वाले
 यहाँ सबसे अधिक अनुभव है
 हमें अपना जीवन गढ़ने दो।"

एक कर्मण्य पुरुष को कार्य में ही आनंद आता है सो कार्यालय का कार्यकाल समाप्त हो जाने का अहसास तक नहीं होता पूर्व में अन्य कवियों द्वारा पढ़ी गई रचनाओं पर अपनी संक्षिप्त टिप्पणी करते हुए इस गोष्ठी के अध्यक्ष भगवती प्रसाद द्विवेदी कहते हैं-
"समझ में कुछ भी ना आया, कब रिटायर हो गए! 
फुदकती आंगन की चिड़ईं मैं उड़ाने भर गया था !"

उनकी अतिरिक्त अपनी कविताओं से श्रोताओं को मंत्रमुग्ध कर दिया -उन्में प्रमुख हैं, आराधना प्रसाद, प्रभात कुमार धवन, शुभचंद्र सिन्हा, जितेंद्र कुमार, हरेंद्र सिंहा, उमेश, कुमारी स्वीटी।
 मधुरेशशरण के धन्यवाद ज्ञापन के साथ इस सारस्वत आयोजन का समापन हुआ ।
.....
आलेख - मो. नसीम अख्तर / घनश्याम
छायाचित्र सौजन्य - घनश्याम
प्रस्तुति - हेमन्त दास 'हिम'/ सिद्धेश्वर
प्रतिक्रिया हेतु ईमेल - editorbejodindia@gmail.com
गीत का वीडियो - यहाँ क्लिक कीजिए


























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