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Tuesday, 10 December 2019

सूर्यगढ़ा (लखीसराय) में 8.12.2019 को ग़ज़लकार अशोक आलोक की स्मृति में कवि सम्मेलन सम्पन्न

इन आंसुओं की तो अभी बरसात बाकी है

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बिहार प्रदेश का चप्पा-चप्पा रचनाकर्म की ऊर्जा से ओत-प्रोत है. और, कहते हैं कि एक कवि कभी मरता नहीं है बल्कि बस अपना स्थान बदलता है. ये बातें स्वमेव सिद्ध होती दिखीं अभी हाल ही में आयोजित एक कवि गोष्ठी में.

दिनांक 08.12.2019 को ग़ज़लकार स्मृति शेष अशोक आलोक की दूसरी पुण्य तिथि के अवसर पर सूर्यगढ़ा (लखीसराय) स्थित आस्था पब्लिक स्कूल में एक कवि सम्मेलन का आयोजन किया गया.कवि सम्मेलन की अध्यक्षता पटना के कवि घनश्याम ने तथा संचालन वरिष्ठ कवि-शायर रामबहादुर चौधरी 'चंदन' ने किया.वरिष्ठ पत्रकार और शायर प्रो.राजेन्द्र राज के कुशल संयोजन और सूर्यगढ़ा के वरिष्ठ कवि-साहित्यकार प्रो. अंजनी आनन्द के मार्गदर्शन में कवि सम्मेलन सफलता पूर्वक सम्पन्न हुआ.

इस अवसर पर वरिष्ठ पत्रकार और कवि डा.विजय विनीत, चैम्बर आफ कामर्स के अध्यक्ष रविशंकर सिंह अशोक ,वरिष्ठ समाजसेवी और अधिवक्ता ओमप्रकाश साह और सूर्यगढ़ा के थानाध्यक्ष चंदन कुमार के अलावा अनेक प्रबुद्ध जनों की  उपस्थिति रही. उपस्थित सभी लोगों ने स्मृति शेष अशोक आलोक के चित्र पर पुष्पांजलि अर्पित की तथा उनके व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर प्रकाश डाला. आस्था पब्लिक स्कूल के प्राचार्य सहित सभी शिक्षकगणों का आयोजन की सफलता में भरपूर सहयोग रहा.

कवि सम्मेलन में शायर राजेन्द्र राज, रामबहादुर चौधरी "चंदन", हास्य कवि रंजीत दुद्धू,  कवयित्री डा.नूतन सिंह और स्थानीय कवियों के अलावा सभा के अध्यक्ष कवि घनश्याम ने भी काव्य पाठ किया.

मित्रों यह दुनिया अगर टिकी हुई तो इसलिए नहीं कि यहाँ किस्म-किस्म की सामग्रियाँ या असबाब हैं बल्कि सिर्फ और सिर्फ इसलिए कि हमारी आँखों में आँसू बचे हैं और हमारे दिलों में बचा है प्रेम जो किसी मित्र के चले जाने से व्यथित होता है, रोता है. गोष्ठी का कुशल संचालन करते हुए रामबहादुर चौधरी 'चंदन'  ने इस पीड़ा का इजहार कुछ यूँ किया-
.तुम  तो  चले  गए  तुम्हारा  साथ बाकी है
करते   रहे   हैं  बात   मगर  बात बाकी है
दो  बूंद  आंसुओं  से ही  भीगा बदन  मेरा
इन आंसुओं की तो अभी बरसात बाकी है
                      
डा. नूतन सिंह वो गुलाब हैं जो काँटों पर रहकर भी मुस्कुराता है बिना भेदभाव के-
गुलाब  बनके ही  कांटों पे मुस्कुराते रहो
वजूद अपना ज़माने को तुम दिखाते रहो
किसी भी धर्म को न जानती है आबोहवा
इन्हें  ही  देखकर सबको गले लगाते रहो

कुछ उसी तरह बिना भेदभाव के राजेन्द्र राज की नजर में हिन्दुस्तान खुद तिरंगा बन के लहराता है-
नक्शा हिन्दुस्तान का सीधा दिखाई देता
हौसले से  उड़ता तो तिरंगा दिखाई देता
                                 
दोस्तों, इसमें कोई संदेह नहीं कि आज के जमाने का सबसे बड़ा सच रिश्ता-नाता और प्यार नहीं बल्कि मोबाइल है. अगर मोबाइल है तो जिंदगी में सबकुछ है वरना कुछ भी नहीं. रंजीत दुद्दू परेशान होकर कह उठते हैं -
इ मोबइलबा तो हमरा ले काल हो
सबसे बड़का ई जी के जंजाल हो
                          
आपके विचार और आदर्श किसी काम के नहीं अगर क्या? सुनिये डॉ. विजय विनीत से -
प्यार करने में नहीं विश्वास करते हो तुम

अन्त में इस गोष्ठी के अध्यक्ष कवि घनश्याम ने पढ़ी गई रचनाओं पर अपनी संक्षिप्त प्रतिक्रिया दी फिर अपनी एक ग़ज़ल सुनाकर सब को मंत्रमुग्ध कर दिया -
अमन का जिस्म जब-जब चोट खाकर क्रुद्ध होता है
तो  जीवन-मौत  का  जमकर  भयंकर  युद्ध होता है
धरा  के  शुभ्र  आंचल  पर  लगे  जब  खून  के  धब्बे
तो   उसकी  कोख  से  उत्पन्न   गौतम,  बुद्ध होता है
हैं  कहने  को बहुत-सी बात  लेकिन कहा कहूं उनसे
अगर  कहना  भी  चाहूं  तो  गला   अवरुद्ध  होता है
फक़त  स्वर्णाभ  तन  पाकर  न सोना शुद्ध कहलाता
कसौटी   पर   अगर  उतरे  खरा  तब   शुद्ध  होता है.

इस तरह से बड़े ही सौहार्दपूर्ण माहौल में धन्यवाद ज्ञापन के बाद  गोष्ठी एक यादगार लम्हा बनकर कवियों और श्रोताओं की स्मृति में समा गई.
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प्रस्तुति - हेमन्त दास 'हिम'
आभार - कवि घनश्याम 
प्रतिक्रिया हेतु ईमेल - editorbejodindia@gmail.com















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2 comments:

  1. बहुत अच्छी रिपोर्ट बनी है।प्रस्तुति भी सराहनीय।बधाई।

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    1. धन्यवाद महोदय। blogger.com में login
      करके यहां कमेंट करने से उसके प्रोफाइल में दिया गया फोटो और नाम स्वतः दिखेंगे।

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