प्रेम -कविता
कवयित्री का परिचय नीचे प्रस्तुत है
मैं जब-जब मुस्कुराई तुम्हारी याद में
तुम्हें हिचकियां जरूर आई होंगी
अपनी मोहब्बत पर भरोसा है मुझे
तुझसे भी यही उम्मीद रखती हूं
पैगाम हवाएं लेकर गईं हैं अभी-अभी
उम्मीद है तुम तक पहुंचाईं होंगी
हां, मैं जब-जब मुस्कुराई तुम्हारी याद में
तुम्हें हिचकियां जरूर आई होंगी
आसमां के सितारे मेरे ख्वाब बुनते हैं
हौसलों की उड़ान भर लूं जरा
बस चुप न रहना, कुछ कह देना
सितारों ने अपनी चमक तुम्हें दिखलाई होंगी
हां मैं जब-जब मुस्कुराई तुम्हारी याद में
तुम्हें हिचकियां जरूर आई होंगी
नाज़ुक बहुत है मोहब्बत की डालियां
हवा के आने से हिचकोले खातीं हैं
विश्वास के दरख़्त पर झूले डालकर
नर्म पत्तियां थपकाकर तुम्हें सुलाई होंगी
हां, मैं जब-जब मुस्कुराई तुम्हारी याद में
तुम्हें हिचकियां जरूर आई होंगी
गीत समंदर-सा मचलता है मेरे अंदर
तेरे एहसास से कभी बहकता है कभी सिमटता है
कुछ स्वर छूकर तुम्हें भी लहराईं होंगी
मैं जब-जब मुस्कुराई तुम्हारी याद में
तुम्हें हिचकियां जरूर आई होंगी
अश्क से शब्द और शब्द से अश्क बनते बिगड़ते रहते हैं
इश्क क्या है कोई तो बता दे मुझे
मेरी याद में तुम्हारी भी आंख छलछलाई होंगी
हां मैं जब-जब मुस्कुराई तुम्हारी याद में
तुम्हें हिचकियां जरूर आई होंगी
आंखें खुली हैं तो क्या तेरे बिन अंधेरा ही लगता है
दर्पण सा मुखड़ा तेरा सामने हो तो खुद को देखूं
तरानों में, इबादत में, खुशबू में, पहलू में
इन एहसासों ने मेरी तस्वीर तुम्हें भी दिखाई होंगी
तड़प यूं ही जिंदा रहे वक्त ने यही सिखलाई होंगी
हां, मैं जब-जब मुस्कुराई तुम्हारी याद में
तुम्हें हिचकियां जरूर आई होंगी!
.....
कवयित्री - लता प्रासर
पता - पटना बिहार
कवयित्री का ईमेल - kumarilataprasar@gmail.com
प्रतिक्रिया हेतु ईमेल - editorbejodindia@gmail.com
कवयित्री का परिचय - कवयित्री पेशे से शिक्षिका हैं और पटना में स्वतंत्र विचारोंवाली अत्यंत सक्रिय कवयित्री हैं. इनका एक काव्य संग्रह "कैसा ये वनवास" प्रकाशित हो चुका है. बिहार के वर्तमान साहित्यकारों की कृतियों पर ये अपना वक्तव्य अपने वीडियो चैनल के माध्यम से देती हैं जो काफी चर्चित हो चुका है.ये बिहार हिंदी साहित्य सम्मेलन की एक प्रमुख स्तम्भ हैं और इस ब्लॉग की सम्पादक मंडली में शुरुआती वर्षों से ही शामिल हैं.
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