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Wednesday, 25 September 2019

‘हिंदी गौरव’ संस्था द्वारा पटना में 22.9.2019 कवि गोष्ठी सम्पन्न

संयम, निष्ठा, प्रेम पर भारी पड़ी प्रपंच
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वरिष्ठ शायर संजय कुमार ‘कुंदन, जाने-माने कवि घनश्याम, नामचीन शायर समीर परिमल व गोड्डा से आमंत्रित और कार्यक्रम में सम्मिलित हुए शायर सुशील साहिल की उपस्थिति में दिनांक 22.09.19 को पटना के मुसल्लहपुर हाट में अवस्थित स्वाध्याय क्लासेज परिसर में लोकप्रिय शायर सुनील कुमार की अध्यक्षता में एक शानदार कवि-गोष्ठी आयोजित हुई जिसमें आद्योपांत ग़ज़लों, गीतों, छंदों और शेर-ओ-शायरी की एक अविरल रसधार बहती रही घंटों ।

राष्ट्रीय संस्था "हिंदी गौरव" के तत्वाधान में इसकी बिहार इकाई के संयोजक युवा कवि मनीष तिवारी व अनुराग कश्यप ठाकुर के संयोजन से आहूत इस कविगोष्ठी के कुशल संचालन का जिम्मा उठाया युवा कवि राहुलकांत पांडेय ने जिसमें युवा कवियों ने विशेष रूप से अपनी प्रस्तुतियों से बेजोड़ समां बाँधा। यह कहते हुए कि “युवा हाथों में हिंदी कविता का भविष्य न केवल सुरक्षित है अपितु उसे एक नया आयाम और ऊँचाई मिलेगी ऐसी आश्वस्ति भी दिखती है” एक सकारात्मक और उत्साहवर्धक टिप्पणी करके युवा कवियों की हौसला अफ़ज़ाई की गई।

इस काव्य गोष्ठी में पधारे वरिष्ठ कवियों और शायरों ने इस गोष्ठी में चार चांद लगा दिये।
पटना बिहार से घनश्याम ने दोहे पढ़े -
“हर भाषा का हम करें यथा योग्य सम्मान
लेकिन हिन्दी से बने भारत देश महान”

पटना निवासी सुप्रसिद्ध शायर समीर परिमल ने भी अपनी ग़ज़लों के अलावा ये दोहा पढ़ा :-
“धर्म का हेवी ब्रेकफास्ट और अफवाहों का लंच
संयम, निष्ठा, प्रेम पर भारी पड़ी प्रपंच।“

पटना में रहनेवाले ही वरिष्ठ शायर संजय कुमार कुंदन ने अपनी एक उम्दा नज़्म प्रस्तुत की -
“फ़रमान लेके घूमते सकाफत के ठेकेदार
 हम पहनेंगे क्या, खाएंगे क्या लिखवाया हुआ है।“

गोड्डा से आये सुशील साहिल ने पड़ोसी देश के विरुद्ध एक कविता पढ़ी।

शायरी में प्रौढ़त्व प्राप्त कर चुके युवा कवि कुंदन आनंद ने इश्किया लहजे में एक बड़ा सच सामने रख दिया -
“फिरता है आवारा लड़का
इक लड़की का मारा लड़का
ख्वाबों से डरता है अब तो
ख्वाबों का हत्यारा लड़का।“

उनके बाद अनेक युवा कवि-कवयित्रियों ने अपने जोशीले और इश्किया मिज़ाज में शायरी और कविताओं के नमूने प्रस्तुत किये -

अनुराग कश्यप ठाकुर  ने पढ़ा ने उम्र बढ़ने के साथ-साथ बिम्बों के अर्थ में हुए बदलाओं को उजागर किया-
“जो कभी चांद को मामा कहता था,
अब उसे माशूका कहने लगा है।
मेरे अंदर का वो छोटा बच्चा
अब बड़ा होने लगा है।“

मनीष तिवारी ने सरस घनाक्षरी छंद पढ़ कर अपना परिचय कुछ इस प्रकार दिया :-
मेरा प्यारा प्यारा गांव, कदंब की ठंडी छांव,
वहां का मुरारी हूं मैं, आप भान लीजिए।

कवि राहुल कांत पांडे ने ने अपनी माशूका को ग़ज़लों में बसने की बात की -
मुहब्बत के तिरे किस्से सुनाता हूँ मैं मंचो से
तू मेरी शायरी बनकर मेरी गजलों में रहती है।

कवि केशव कौशिक जैसे अंतर्दृष्टि रखनेवालों को माजरा समझने में देर नहीं लगती -
“ये मेरे दूर का रिश्तेदार हैं
 ये झूठ तुम कितनो को समझाती हो?”

उत्कर्ष आनंद की ग़ज़ल पर तमाम लोग झूम उठे -
“यूं सज- धज के निकलो न घर से अकेले
कि लड़ते हैं कह सब हमारा  हमारा”

मुकेश ओझा ने प्यार की नजाकत को सलीके से रखा -
“अपना  हाल- ए -दिल बताऊँ  तो बताऊँ  कैसे
जो राज दिल में है वो छुपाऊँ तो छुपाऊँ कैसे
एक पल में तो नहीं मिली हैं ये ज़िंदगी की  सौगात
फिर इस ज़िंदगी को भूलाऊँ तो भूलाऊँ  कैसे।“

कवियत्री सिमरन ने अपना यथार्थवादी तेवर दिखाया -
“सुखी हुई नदी की एक घूँट हूं मैं
हां ये सच है कि एक झूठ हूं मैं”

इसके अलावा कवियत्री निधि राज, डॉ. प्रतिज्ञा, कवि विकास राज, आशुतोष, रंजन, अश्वनी सरकार एवं अन्य नवोदित कवि-कवयित्रियों ने अपने शानदार काव्य पाठ से सबको मंत्रमुग्ध कर दिया।

कार्यक्रम के अंत में कार्यक्रम के अध्यक्ष सुनील कुमार ने अपनी दो ग़ज़लों के अलावा एक मस्त हास्य प्रतिगीत पढ़ा जिसे सुनते ही समस्त उपस्थित कवि श्रोता बरबस ठहाकों के बीच झूम उठे।
गीत के बोल कुछ यूँ थे -
“मिली पत्नी से फटकार / अरे रे बाबा ना बाबा
कहो कौन करेगा प्यार / अरे रे बाबा ना बाबा"

वैसे तो युवा कवि-कवयित्रियों ने भी खूब वाहवाही लूटी लेकिन सच यह है कि वरीय कवियों की गरिमामयी उपस्थिति एवं शानदार काव्य पाठ ने काव्य गोष्ठी को साहित्यिक सोपान के एक  उच्च स्तर पर प्रतिष्ठापित कर दिया।
.....

रपट के लेखक - सुनील कुमार
छायाचित्र सौजन्य -  हिन्दी गौरव
प्रतिक्रिया हेतु ईमेल - editorbejodindia@yahoo.com





Tuesday, 24 September 2019

बेटी दिवस - 22.9.2019 को लेख्य-मंजूषा की अंतराजाल (इंटरनेट) कवि-गोष्ठी सम्पन्न

तुम पर होगा नाज,  आसमां को तू छू ले

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फाइल से चित्रों का संकलन
बेटी दिवस (22 सितम्बर) के अवसर पर  लेख्य-मंजूषा में बेटी दिवस मनाई गई सभी प्रतिभागियों ने अपनी स्व रचित भावाभिव्यक्ति से शमां बाँधा। नवोदय विद्यालय में पढ़ रही देश की एक बेटी की मौत की खबर ने हमें विचलित कर रखा  है। 


विभा रानी श्रीवास्तव ने बेटे को पतवार तो बेटी को सौगात बताया - 
वक़्त के अवलम्बन हैं बेटे, जीवन की दिन-रात हैं बेटियाँ
भंवर के पतवार हैं बेटे, आँखों की होती सौगात हैं बेटियाँ

वहीं अनीता मिश्रा सिद्धि ने बेटी को जीवन का सार और आधार माना -
बेटी तू ही जननी
तू ही बनी भगिनी
तू जीवन का सार है
तेरी हँसी बड़ी प्यारी 
तेरी छवि बड़ी न्यारी 
तू जीवन आधार है।

पूनम (कतरियार) भी एक अच्छी कवयित्री हैं. उन्होंने बेटियों के के झोले में तमगों की झड़ी लगा दी-
"बेटियाँ, हमारा अभिमान"

कोमल -चंचल बाला जब
 फौलाद हो जाती हैं ,
सहमी -सकुचाई आंखों में   
 'निश्चय' उभर जाता है
'अबला'  कहने वालों को
 'दैवीय' लगने लगती है
 भारत -माता का आंचल 
 जब   तमगों से भर देती हैं.
अजेय हिमालय का शीश 
'हिमा'मय*  हो  जाता  है
हर्ष -विह्वल अधरो पर तब
'जन -गण' मचल जाता है.
स्वर्ण-रजत -कांस्य उपलब्धियां     
 गले  का  हार बन  जाती  है
सवा- सौ करोड़  दिलों पर 
एक  गुरूर -सा  छा  जाता  है
'बेटियां,   हमारा   अभिमान' 
आन, बान, शान  बन  जाती  हैं,
बुलंदियां उनके कदमों को चूमती हैं  
पूरा हिंदुस्तान झूम -झूम जाता है
(हिमा दास, आईएएएफ वर्ल्ड अंडर-20 एथलेटिक्स चैम्पियनशिप की 400 मीटर दौड़ स्पर्धा में स्वर्ण पदक जीतने वाली पहली भारतीय महिला खिलाड़ी हैं - संपादक)
                 
प्रियंका श्रीवास्तव 'शुभ्र' भी कहाँ पीछे रहनेवाली थीं. उन्होंने भी बेटियों के प्रशस्तिगान का परचम लहराया पूरे शान और मान से -
बेटियां  बाबुल की शान हैं
अव्वल आ रखती ये मान हैं
घर बाहर दोनों संभाल
रखती सबका ख्याल हैं।
सासरा को स्वर्ग बनाती
मायका में याद सताती
सर्वत्र है इनका परचम
तभी तो सर्वत्र प्यार पाती।
दादी नानी बनकर भी
बालिका बन जाती
बच्चों संग खेल रचाती
सखियों से यारी निभाती।
       
मीनाक्षी सिंह ने बेटियों को औरों से जुदा बताया -
सात सुरों की सतरंगी तान हैं बेटियाँ।
सुमधुर धुन पायल की झंकार हैं बेटियाँ
समझो ईश्वर का आशीर्वाद इनको सब
औरों से जुदा खुद में बेमिसाल हैं बेटियाँ।

तो वहीं पर आज की युवा आवाज, नेहा नारायण सिंह खुद को माँ के अक्स में ढालती दिखीं -
 "मैं तू"
दर्पण  मैं  तेारी बनी
उसका तू  प्रतिबिंब 
नवी रूप की काया
लगे  उषा की ओस
निहार  के खुद को
तेरा मैं शुभ मनाऊं
देव  करे  पूरा तोहे
बिन मांगे बलिदान

प्रेमलता सिंह ने बेटियों में ईश्वर को भी कोख में रखने की क्षमता बताई-
घर की रौनक होती हैं बेटियां
पिता की शान तो मां की सम्मान होती है बेटियां
ईश्वर की दी हुई सौगात होती हैं बेटियां
ईश्वर को भी अपने कोख में रखने की ताकत रखती हैं बेटियां 
फिर क्यों कहते हो ऐ दुनिया वालों की कमजोर होती हैं बेटियां।
     ‌‌
संगीता गोविल ने बेटियों को स्वयं अपने जंग लड़नेवाली बताया -
धरा का पर्याय है बेटियाँ, वंश की पहचान है
बेटियाँ तो गगन के सितारों की भी शान है
इनकी शक्ति, इनका धीरज मत तौलो
अपनी जंग की ये हीं नेता और निगेहबान हैं ।

मधु खोवाला ने बेटी को भाई की राखी और पापा का प्यार कहा -
बेटी तू मेरी नैया 
तू जीवन आधार
तू भाई की राखी
तू पापा का प्यार

राजेन्द्र पुरोहित ने बताया कि कोकिला सा गान गानेवाली इन बेटियाँ के कारण ही घर, घर होता है -
 "बेटियाँ"
खुशियों की चहक
मोगरे सी महक
मयूरी सा नाद
अमिया सा स्वाद
चिड़िया सी उड़ान
कोकिला सा गान
पिता भाव अनूप
माता का प्रतिरूप
हौसलों का पर है
बिटिया से ही घर है

राज कान्ता राज ने अपनी गुड़िया को ताकत की पुड़िया बनाने में कोई कसर न छोड़ी -
ताकत की पुड़िया है 
मेरी ए गुड़िया 
छोटे छोटे पाँव 
और छोटे से हाथ 
लेकर मैं उसको जब चूमूँ 
छूती कभी गाल, कभी बाल 
कभी बिन्दी और नाक
छुप के छुपा के रहना सिखाई 
जैसे हीरे को बन्द कर डिबिया
ताकत की पुड़िया है 
मेरी ए गुड़िया 
गले लगती खिलखिला के
हँसी उसकी खूबियाँ 
ताकत की पुड़िया है 
मेरी ये गुड़िया
अब वो हुई पराई 
अकेली हूँ साथ तन्हाई
बीते हुए लम्हों की याद बहुत आई
चली अपने घर, साथ में जमाई 
सदा खुश रहना अपनी शहरिया
ताकत की पुड़िया है 
मेरी ये गुड़िया ।

वहीं वीणाश्री हेम्ब्रम जो कवयित्री होने के साथ-साथ अनेक सामाजिक संघठनों से भी जुड़ी हैं, ने अपनी बेटी की रुनझुन सी झंकार सुनी कुछ इस तरह से -
रुनझुन सी झंकार लिए
गुड़ियों की भांति इठलाती
घर आँगन आबाद किए
ममत्व जहां में फैलाती
शक्ति है वो स्रष्टा भी
विपत्तियों में दुर्गा भी!

डॉ. पूनम देवा ने हर दिन बेटी का सम्मान किया है और करती रहेंगी -
 मान हैं, अभिमान है
बेटियां ‌दो,दो घरों की 
पहचान ‌हैं ।
एक  हीं दिन क्यूं हो ? 
हर दिन उनका
सम्मान  है।

वहीं ज्योति मिश्रा. कुंडलियां छंद में बेटी को हर जगह आगे बढ़ाती दिखीं -
01
छू लूं चंदा आज मैं, मां तुम देना साथ 
मुट्ठी में आकाश हो, तारे अपने हाथ 
तारे अपने हाथ,  बनी तुम मेरी  सीढी
बेटी है मुस्कान, खिलेगी अगली पीढी 
तेरा सपना पाल, ऑख अपनी मैं खोलूं 
सब पूरा हो  आज,  कहो जो  चंदा छू लूं   !
02
बेटी की मुस्कान से, मात  खिली है आज
कर पाई  यदि मैं नहीं, तुम पर  होगा  नाज 
तुम पर होगा नाज,  आसमां को तू छू ले 
बनूं सहारा नाथ,  हाथ में चंदा  झूले 
बेटों देखो आज,  कम नहीं  हैं  ये चेटी 
खेल -कूद  मैदान , हर जगह  आगे बेटी

प्रभास   ने वर्ण पिरामिड में बेटियों के सद्गुणों को ढाला -
                मैं     है
             बेटी     बेटी
           सौम्य     निडर
         सुशील     नीरजा
       सकुशल     अभिमान
   स्वाभिमानी    प्रतिभावान
सबकी चहेती     स्व आत्मनिर्भर
    
शशि शर्मा 'खुशी'  ने बेटियों को सांसों का तरन्नुम और लबों का तबस्सुम बताया -
हृदय की धड़कन, सांसों की तरन्नुम है बेटियाँ
घर की किलकारी, लबों का तब्बसुम है बेटियाँ
जो घर-आँगन आबाद है बेटियों के आगमन से
उस घर की सुख समृद्धि का हसीं संगम है बेटियाँ।

अभिलाषा सिंह ने भगवतियों को पूजने की बजाय बेटियों में ही उनके दर्शन कर लिए -
दुर्गा, लक्ष्मी, सरस्वती
तीनों ही तुझमें बसती हैं
तू क्योंकर इनको पूजे
ये खुद कर्मों में तेरे सजती हैं।
है शक्तिस्वरूपा देवी तू
सबकुछ कर सकने में सक्षम
मनोबल कभी कम हो पाए नहीं
मैं संग तुम्हारे हूँ हरदम।
               
मधुरेश नारायण सस्वर पाठ करनेवाले एक संवेदनशील गीतकार हैं. उन्होंने तो पूरा बिटिया-पुराण ही रच डाला -
मेरी प्यारी बिटिया
बेटे तो बेटे हैं पर बिटिया उनसे कहाँ कम है
जिस घर में बिटिया हो फिर काहे का गम है
वंश बढ़े यह सोच कर बेटे की ही कामना करते 
बिन बिटिया वंश कैसे बढे, उसकी अवमानना करते
बेटा-बेटी दो आँखें हमारी बात न हम यह भूलने पाएं
बेटा कहने पर गर्व हो जितना न बेटी कहने में शरमाये
कंधे से कंधा मिला कर हर तरफ बिटिया नजर आती 
अंतरिक्ष हो या विमान उड़ाना बिटिया कहाँ पीछे रहती
अंदर बाहर की जिम्मेदारी बराबर से बिटिया निभाती
माँ बनने का सौभाग्य धरा पर बिटियाँ ही है पाती 
भगवान भी अवतार लेते है,माँ के आंचल में खेलने को
माँ पर आई मुसीबत को अपने पर लेकर झेलने को
वह बिटिया ही तो है जो पहले बहन, पत्नी, माँ रही
हर रूप को जीने में न जाने कितनी तकलीफे है सही
कितना बखान करूँ बिटिया की गुणवती होने की यहाँ
कितने खंड लग जाएंगे, बिटिया-पुराण लिखने में यहां।

शायरा शाइस्ता अंजुम ने बेटियों को दरख्तों के साये में धूप झेलते पाया -           
जहां दरख्तों के साये में
धूप लगती है,
वहीं तो संघर्ष की 
कली खिलती है
वहीं पर
खिल उठती है बेटियाँ।

इस तरह से हमें महसूस होता है कि बेटियाँ अपने-आप में एक सृष्टि हैं और सम्पूर्ण जगत उन्हीं के दम पर चल रहा है। नि:संदेह बेटों का भी अपना महत्व है लेकिन महिलाओं के विविध रूपों में सहायता लिये बिना वे कुछ भी नहीं कर सकते।
......


संयोजिका - विभा रानी श्रीवास्तव
संयोजिका का ईमेल - vrani.shrivastava@gmail.com
प्रस्तुति - हेमन्त दास 'हिम'
प्रतिक्रिया हेतु ईमेल - editorbejodindia@yahoo.com

फाइल फोटो 

Monday, 23 September 2019

मंत्रिमंडल सचिवालय द्वारा आयोजित 'प्रभात' एवं 'दिनकर' की जयंती पर,संगोष्ठी और कवि गोष्ठी 23.9.2019 को पटना में सम्पन्न

"स्वाधीन भावना को समर्पित थी दिनकर की कविताएँ"

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मंत्रिमंडल सचिवालय (राजभाषा) विभाग द्वारा आयोजित केदारनाथ मिश्र प्रभात एवं रामधारी सिंह दिनकर की जयंती पर, उनकी कविताओं का राष्ट्रीय पक्ष विषय पर व्याख्यान और कवि गोष्ठी का आयोजन बिहार राज्य अभिलेख भवन सभागार, पटना में सम्पन्न हुआ।

प्रमोद कुमार ने संचालन के क्रम में कहा कि 'प्रभात' की रचनाएं सतत जीवन की उजियाली को दार्शनिकता से रंजित कर यथार्थ बोध के जीवित स्पंदनों से भर देती है - 
"बनो कर्म के लिए कल्पना मेघदीप की मणिमाला!
बनो कर्म के लिए प्रेरणा, बनो चेतना की ज्वाला!"

युवा साहित्यकार ऋषिकेश मिश्रा ने कहा कि - "केदारनाथ जी ने कैकयी जैसी उपेक्षित पात्र को सकारात्मक दृष्टि दिया है।" जबकि कुमार गौरव का कहना था कि-"दिनकर ने अपना पूरा जीवन साहित्य में तपाया है। प्रकृतिवादी और मानवतावादी कवि के रूप में पहचाने जाते हैं दिनकर। दिनकर जी अपने समय के सूर्य थे। दिनकर ऐसे इन्द्रधनुष हैं, जिनपर अंगारे भी जलते हैं।"

रेल स्टेशन प्रबंधक निलेश कुमार ने कहा कि-"न मैं वक्ता हूं, न विद्वान हूं। लेकिन फिर भी कहना चाहूंगा कि एक ही विचार दुहराने के अपेक्षा, इन बातों पर विमर्श किया जाए कि दिनकर ही राष्ट्रकवि क्यों? दूसरा क्यों नहीं? दिनकर बचपन से ही विद्रोही थे। केवल एक दिन नहीं सालों भर दिनकर को सम्मान दीजिए। हमने ऐसा ही प्रयास किया है, अपने स्टेशन पटना जं. पर। पटना जंक्शन के बाहर दीवार पर दिनकर की छवि और उनकी काव्य पंक्तियां देखी जा सकती है।"

डॉ. हरज़ान ने कहा कि - "नवयुग की गाथा कह गए दिनकर जी। जनजागरण का जयघोष कर गए दिनकर। वीर रस से ओतप्रोत और देश के स्वाधीन भावना को समर्पित थी दिनकर की कविताएँ।"

विजय कुमार शांडिल्य ने कहा कि -"प्रभात जी हिन्दी काव्य के विभूति थे। आग अंबर में लगाना जानते थे वे।" दूसरी तरफ, शिववंश पांडेय ने कहा कि- "सरकारी भय से बचने के लिए वे छायावाद की ओर मुड़ गए थे और देश की आजादी के बाद प्रभात जी फिर राष्ट्रीय भावना की ओर मुड़ गए।"

राम उपदेश सिंह 'विदेह' ने पहले अपने ही कृतित्वों पर चर्चा की। कुछ देर बाद अपने विषय पर लौटते हुए उन्होंने कहा - "दिनकर की कविताओं को पढ़ते हुए मेरे भीतर कवितापन आया। सच यह भी है कि साहित्य तो राजनीति को शुद्ध नहीं कर पाया, लेकिन राजनीति ने साहित्य को दुषित जरूर कर दिया है।

दिनकर का साहित्य इतना विस्तृत है कि उन पर त्वरित चर्चा संभव नहीं। दिनकर सरकार के विरोध में भी कविताएं लिखा लेकिन अपने नाम से नहीं बल्कि अपने छद्म नाम 'अमिताभ' नाम से। राष्ट्रीय चेतना की एक सशक्त कविता "कलम आज उनकी जय बोल!" सर्वाधिक लोकप्रिय रही है।

दिनकर की काव्य पंक्तियां और अपनी काव्य पंक्तियां प्रस्तुत करते हुए 'विदेह' जी  यह प्रमाणित करना चाह रहे थे कि, दिनकर, हरिवंशराय बच्चन और मेरी कविताओं में कितनी समानता है!!

समारोह के बीच में, केदारनाथ प्रभात के पुत्र और पुत्रवधू, मोहन और नम्रता को साल ओढ़ा कर सम्मानित भी किया गया। उन्होंने कहा कि दिनकर और मेरे ससुर प्रभात जी, एक ही मुहल्ले में रहते थे। दोनों को एक साथ नमन किया जाना सुखद अनुभव है। "

कवि गोष्ठी के पूर्व अपने अध्यक्षीय उद्बबोधन में सत्यनारायण जी ने कहा कि - "दिनकर जी अपने समय के अर्धनारीश्वर कवि थे। उन्होंने कुरुक्षेत्र से उर्वशी तक की काव्य रचना किया। दिनकर आशा और विश्वास के कवि थे। उनकी काव्य दृष्टि में कलात्मकता सहज रूप से दिख पड़ता है। अपने समकालीनों से अलग थे दिनकर। बावजूद युवा कवियों ने उनकी कविताओं से प्रेरणा लेते रहें हैं।

चेतना के शिखर पर नंगे पांव चलना क्या होता है, यह प्रभात की कविताओं में देखा जा सकता है। साहित्य के क्षेत्र में, बिहार को अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर पहचान दिलाने में, रामधारी सिंह दिनकर की रचनाशीलता की अहम भूमिका रही है। हरिवंशराय बच्चन ने आत्मकथा चार खंडों में लिखा है, वह उपन्यास से भी रोचक है। अविस्मरणीय है। उसी तरह "शुद्ध कविता की खोज" जैसा लेख लिखा है दिनकर ने,  वह भी चमत्कृत करने जैसा हो। उनका गद्ध लेखन भी कहीं से कमतर नहीं है।

आमंत्रित कवियों में , कविता का आरंभ कवयित्री मनोरमा कुमारी से हुआ - 
"मैंने सबको नाच नचाया 
मैं कैसा हूं / मैं पैसा हूं!"

कुमारी सरस्वती की गजल भी खूब रही -
"मन का मिलना- मिलाना मुझे आ गया! 
दिल किसी से लगाना मुझे आ गया 
कैसी हालत मेरी, इश्क में हो गई 
गम में भी मुस्कुराना मुझे आ गया!"

पत्रकार हृदयनारायण झा की कविता थी -
"भारत में आकर फिर से लोगों को जगाओ बापू!! "

कवयित्री रानी श्रीवास्तव की कविता, पौराणिक कथाओं पर आधारित थी-
"अनंत काल से चली आ रही तुम्हारे पुरुषत्व की चुनौती नहीं देती मैं! 
और पांडवों की एकता का प्रतीक बनाई गई द्रोपदी!"

इस साहित्यिक समारोह में मधुरेश नारायण, विजय प्रकाश, घनश्याम, सिद्धेश्वर, लताप्रासर, ओम प्रकाश, सविता मिश्र माधवी, कमला प्रसाद, डॉ. अर्चना त्रिपाठी, पूनम श्रेयसी आदि साहित्यकारों की भी उपस्थिति रही।

समारोह के अंत में, लाल बाबू पासवान ने सभी साहित्यकारों और श्रोताओं की भीड के प्रति कृतज्ञता प्रकट करते हुए धन्यवाद दिया। 
......

आलेख - सिद्धेश्वर 
छायाचित्र - सिद्धेश्वर
प्रतिक्रिया हेतु ईमेल - editorbejodindia@yahoo.com










चाणक्य स्कूल आफ पालिटिकल राईट्स एण्ड रिसर्च के द्वारा "हिन्दी साहित्य और राजनीति" विषय पर परिचर्चा और गोष्ठी दि.22.9.2019 को पटना में सम्पन्न

सहित्य का राजनीति से प्रभावित होना एक खतरनाक संकेत

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हिन्दी पखवाड़ा के तहत, चाणक्य स्कूल आफ पालिटिकल राईट्स एण्ड रिसर्च (पटना) के तत्वावधान में "हिन्दी साहित्य और राजनीति" विषय पर परिचर्चा, कवि गोष्ठी और सम्मान समारोह का आयोजन किया। बिहार इंडस्ट्रीज एसोसिएशन पटना के सभागार में आयोजित इस कार्यक्रम के मुख्य अतिथि नालंदा खुला विश्वविद्यालय के कुलपति रासबिहारी प्रसाद सहित पत्रकारिता, कला आदि के क्षेत्र में पांच गणमान्य व्यक्तियों - राम उपदेश सिंह विदेह, नृपेन्द्रनाथ गुप्त, कृष्ण प्रसाद सिंह केसरी, बांके बिहारी सिंह और कुमार जितेन्द्र ज्योति को सम्मानित किया गया।

हिंदी साहित्य और राजनीति विषयक संगोष्ठी में विभिन्न साहित्यकारों ने अपने - अपने उद्गार व्यक्त किए। आखिर में अनेक कवियों ने अपने काव्य पाठ से श्रोताओं को मंत्रमुग्ध कर दिया। 

"हिंदी के विरोध करने वाले देश की  राष्ट्रीयता की बात नहीं करते, सिर्फ अपनी राजनीति करते हैं! समारोह में स्वागत भाषण करते हुए संस्था के अध्यक्ष सुनील कुमार सिंह ने इन बातों को  कहा। 

मुख्य अतिथि नालंदा विश्वविद्यालय के कुलपति रास बिहारी प्रसाद ने कहा कि "हमारे एक पूर्व प्रधानमंत्री ने हिंदी को विश्व स्तर पर पहुंचाकर, इसे ग्लोबल का रुप दिया। अंग्रेजी के बजाय स्थानीय भाषा को अंगीकार करना चाहिए। हम खुद हिंदी को उपेक्षित कर रहे हैं। आखिर वह कौन सा कारण है कि हम विश्वविद्यालय के स्तर पर भी, हिंदी की बजाए अंग्रेजी भाषा का चुनाव करते हैं? इन बातों पर चिंतन-मनन करने की आवश्यकता है।"

बिहार राज्य सूचना आयुक्त  ने कहा कि शिक्षा का उद्देश्य रोजगार के लिए है। और रोजगार में अंग्रेजी जानने वालों को ही प्राथमिकता मिलती है। ऐसे में  छात्र  हिंदी के प्रति लगाव क्यों रखेगा? 

विशिष्ट अतिथि  सिद्धेश्वर ने कहा कि राजनीति और साहित्य पर अलग-अलग विचार किया जाना चाहिए। जिनके कंधे पर देश बदलने की जिम्मेदारी दी गई है वे खुद ही नहीं बदल रहे हैं तो देश कैसे बदलेगा? यह भी साहित्य का विषय है। 

उन्होंने कहा कि  हमारे नेता, सरकारी अधिकारी और कर्मचारी भष्टाचार के आकंठ में डूबे हुए हैं। ऐसे में स्वच्छ प्रशासन की बात बेमानी है। जब राजनीति अपने रास्ते से भटकती है, साहित्य उसे संभाल लेता है। । किंतु राजनीति आज इतनी दलदल में फंस गई है कि लगता है साहित्य ही राजनीति के दलदल में फंसता जा रहा है। सहित्य ही  राजनीति से प्रभावित होने लगी है जो खतरनाक समय का संकेत है। 

इसके बाद एक कवि गोष्ठी भी चली जिसमें कवियों ने अपनी-अपनी रचनाएँ सुनाईं-

कवयित्री आराधना प्रसाद ने सस्वर एक गजल का पाठ किया -
"मौत  को भी मार आई जिंदगी
जिंदगी भर डगमगाई जिंदगी!"

आचार्य विजय गुंजन ने दो नवगीत का पाठ किया -
 "जज्बातों को समझना अगर होता आसान और 
 हिंदी की छोटी बहन, उर्दू है कमसिन 
 "अपने ही घर में है देखो, रानी पड़ी उदास रे 
ऊंचा पद, ऊंचा सिंहासन और मिले सम्मान, उसे खास रे!" 

कवि प्रणय कुमार सिन्हा ने मां के  संदर्भ में काव्य पाठ किया -
"मां मृत्यु तुम्हें कैसे आई? 
मां, तुम तो अब तक मुझमें जीवित हो!" 

पत्रकार कवि प्रभात कुमार धवन की कविता थी -
"अपनी पीड़ाओं के बीच अकेली रहती हैं मां
जो मां सबकी चिंता. करती है 
उनके करीब आने से क्यो भागते हैं लोग? 
रिश्तों की लम्बाई क्यों छोटी पड़ गई, मां? 
    
सुनील की गजल थी -
"मैंने एक सपना देखा है यारों
 आफताब को भी डूबते देखा है यारों! "
   
चंद्र प्रकाश महतो ने कविता सुनाई-
"मां !कौन तुम्हारे कोख की लाज रखे समझ नहीं आता 
अपना दुःख दर्द किससे कहें  
सभी तो नजर आते हैं बेगाने " 
      
 अर्जुन कुमार गुप्ता ने कहा - 
"तू मेरी मुरली की धून 
 मैं तेरा संगीत प्रिय 
             
 संचालक महोदय ने कहा कि -
"बचने को मेरी कविता से 
वो नदी पार कर जाते हैं।" 
       
अपने अध्यक्षीय उद्बबोधन में  श्याम जी सहाय  ने कहा कि -
"कहीं उर्दू की मारी है 
कहीं अंग्रेजी से हारी है! हिन्दी आज भी बेचारी है!"

सच यही है कि शुद्ध राजनीति के कारण ही  हिन्दी आज भी बेचारी बनी हुई है। 
      
समारोह में मात्र एक महिला कवयित्री आई थीं-आराधना प्रसाद। वे भी अपनी कविता पढ़ी और चली गई। ऐसा दुर्भाग्य है  आज की कविता और कवि गोष्ठी की। समारोह का संचालन अशोक प्रियदर्शी ने किया। 
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आलेख - सिद्धेश्वर
छायाचित्र - सिद्धेश्वर
प्रतिक्रिया हेतु ईमेल - editorbejodindia@yahoo.com                  













Friday, 20 September 2019

‘अदब- ए- मौसिकी’ संगीत-साहित्य महोत्सव 21-22 सितंबर 2019 को पटना में होगा

‘अदब- ए- मौसिकी’ संगीत-साहित्य महोत्सव 21-22 सितंबर को तारामंडल, पटना में
देश के नामचीन संगीत लेखक और संगीतज्ञ करेंगे शिरकत / केन्द्रीय मंत्री रविशंकर प्रसाद करेंगे उद्घाटन

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पटना, 19 सितंबर। ‘नवरस’ देश में अपनी तरह का पहला कार्यक्रम ‘अदब- ए-मौसिकी’ का आयोजन कर रहा है। यह कार्यक्रम संगीत विषयक साहित्य, संगीतकारों के जीवन, हिंदुस्तानी शास्त्रीय संगीत की घराना परंपरा और तवायफ और देवदासी परंपरा आदि को समर्पित महोत्सव है। यह कार्यक्रम 21-22 सितंबर 2019 को तारामंडल ऑडिटोरियम, पटना में आयोजित होगा। इस कार्यक्रम में संगीतकारों और संगीत परंपराओं से संबंधित 7 वार्ता सत्रह आयोजित होंगे। इसके अलावा उत्सव के दौरान 3 संगीत कंसर्ट भी आयोजित होंगे।

नवरस स्कूल ऑफ परफॉर्मिंग आर्ट्स के सचिव डॉ. अजीत प्रधान ने होटल चाणक्य में आज प्रेस वार्ता में बताया कि अदब-ए-मौसिकी भारत में अपनी तरह का इकलौता और अनूठा कार्यक्रम है। भारत में पहली बार ऐसा प्रयास हो रहा है कि संगीत साधना करने वाले कलाकार और संगीत पर लेखन करने वाले लेखक एक साझा मंच पर बैठें। संगीत के माधुर्य और संगीत लेखन की गंभीरता का यह अनोखा सम्मेलन पूरे भारत में पहली बार पटना में हो रहा है। उन्होने यह भी बताया कि आगे से यह कार्यक्रम नवरस द्वारा प्रतिवर्ष आयोजित किया जाएगा।

डॉ अजीत प्रधान ने बताया कि यह महोत्सव 21 सितंबर को शाम 5.30 बजे शुरू होगा। इस कार्यक्रम का उद्घाटन श्री रविशंकर प्रसाद, केंद्रीय मंत्री- कानून और न्याय, संचार और इलेक्ट्रॉनिक्स और सूचना प्रौद्योगिकी, द्वारा किया जाएगा। उद्घाटन समारोह के दौरान जयपुर अतरौली घराना की वरिष्ठ गायिका विदुषी पद्मा तलवलकर को हिंदुस्तानी शास्त्रीय संगीत में उनके योगदान के लिए सम्मानित भी किया जाएगा।

डॉ. अजित प्रधान ने बताया कि इस कार्यक्रम का ख्याल उन्हें 8 साल पहले आया था जब किशोरी ओमनकर पटना के गांधी मैदान आयी थी और कुछ असामाजिक तत्वों के कारण कारण उन्हें स्टेज छोडना पड़ा था। उसी दौरान  किशोरी जी से बात करते हुए यह बात जेहन में आई कि इस तरह का कार्यक्रम किया जाय जिसमें संगीत की मधुरता और संगीत विमर्श की गंभीरता को मिलाते हुए एक विशिष्ट आयोजन किया जाए।

कार्यक्रम के बारे में आगे जानकारी देते हुए डॉ प्रधान ने बताया कि 21 की शाम को ही पहले सत्र में प्रख्यात संगीत लेखक यतीन्द्र मिश्र, विक्रम सम्पत और नमिता देवीदयाल शिरकत करेंगे। इसके बाद फेस्टिवल के पहले कंसर्ट में मीता पंडित की प्रस्तुति होगी। इस सत्र का नाम ‘स्वरों की वर्षा - संगीत- विद मीता पंडित’ है।

रविवार 22 सितंबर को सुबह 10 बजे दरभंगा घराना के ध्रुपद गायकी से शुरू होगी जिसमें प्रशांत और निशांत मल्लिक शामिल होंगे इसके बाद अगले सत्र में सत्र ‘घराना: फ्रॉम दी म्यूजिक फ्लो‘ में इरफान ज़ुबैरी, मीता पंडित, पद्मातलवाकर और अजित प्रधान शिरकत करेंगे और इसका संचालन अखिलेश झा करेंगे ।

अगले सत्र में पवन कुमार वर्मा और सवर्णमाल्या गणेश भारतीय संगीत की देवदासी परंपरा पर चर्चा करेंगे। इसके बाद ठुमरी, गजल और तवायफ परंपरा पर लेखक अरुण सिंह, सबा दीवान और विद्या शाह द्वारा चर्चा होगी। अगले सत्र में अनीश प्रधान, नमिता देवीदयाल और अखिलेश झा भारतीय शास्त्रीय संगीत पर लेखन पर विमर्श करेंगे।

कार्यक्रम का मुख्य आकर्षण है प्रख्यात गायिका और संगीतज्ञ बॉम्बे जयश्री और विक्रम सम्पत की वार्ता। इसके बाद उत्सव का समापन पंडित सुरेश तलवलकर के कंसर्ट ‘आवर्तन’ के साथ होगा, जो ताल योगी पंडित सुरेश तलवलकर द्वारा तबले की काव्यात्मक व्याख्या है।

ये जानकारियां डॉ. अजित प्रधान द्वारा दी गईं जो जीवन हार्ट हॉस्पिटल के मुख्य कार्डियक सर्जन होने के साथ साथ नवरस स्कूल ऑफ परफार्मिंग आर्ट के सचिव भी हैं।
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प्रस्तुति- सत्यम कुमार
प्रतिक्रिया हेतु ईमेल - editorbejodindia@yahoo.com






Wednesday, 18 September 2019

साहित्य परिक्रमा, रा व ना का मंच और भा यु.सा. परिषद द्वारा संयुक्त कवि गोष्ठी पटना में 17.9.2019 को सम्पन्न

चल, करे फूलों की खेती

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सिर्फ और सिर्फ हिन्दी दिवस, हिन्दी पखवाड़ा और हिंदी माह मनाकर, हम अपने उत्तरदायित्व से मुक्त नहीं हो सकते। हिंदुस्तान में हिंदी रोजमर्रा की भाषा है। इसलिए अब और देर न करते हुएहमारी सरकार को चाहिए कि  पूरी कर्मठता से यह घोषित कर दे कि देश की राष्ट्रभाषा हिन्दी है।"

संगोष्ठी का सशक्त संचालन करते हुए, उपरोक्त उद्गार जाने-माने लेखक सिद्धेश्वर ने, साहित्य परिक्रमा, राष्ट्रीय वरिष्ठ नागरिक काव्य मंच एवं भारतीय युवा साहित्यकार परिषद् के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित हिन्दी महोत्सव के अवसर पर कही। गीतकार मधुरेश नारायण ने, अपने निवास के प्रांगण में आयोजित हिन्दी महोत्सव में काव्य पाठ के पहले, अपने स्वागत भाषण में कहा कि "हिंदी की चलन और अनिवार्यता पहले से अधिक बढ़ी है!" 

बेतिया से पधारे इस सारस्वत संगोष्ठी के मुख्य अतिथि डां गोरख प्रसाद मस्ताना  ने कहा कि "अपनी एक राष्ट्रभाषा में ही, किसी भी देश का विकास हो सकता है।" काव्य गोष्ठी की अध्यक्षता करते हुए विश्वनाथ वर्मा ने कुछ हास्य कविताओं से श्रोताओं का मनोरंजन किया।

काव्य पाठ करने वाले कवियों में प्रमुख थे - सुनील कुमार उपाध्याय,  मनोज कुमार अम्बष्ठ, अर्जुन कुमार गुप्ता,  आराधना प्रसाद, प्रभात कुमार धवन, उषा, सिद्धेश्वर आदि।

कवि घनश्याम ने कई हिन्दी गजलों का पाठ कर शमां को रौशन किया -
"दोस्ती बालू की होगी भीत ये सोचा न था ?  
क्षत-विक्षत होगी पुरानी प्रीत ये सोचा न था  
हमने सुर मेंं सुर मिलाया था नये सुर के लिए  
पर चुभन देगा मधुर संगीत ये सोचा न था! 
और
"दिल के दरिया मेंं मुहब्बत की लहर होती है 
जब कभी आपके आने की ख़बर होती है!"

अपने मोहक और आकर्षक अंदाज़ में गीत प्रस्तुत किया मधुरेश नारायण ने-
"भगवन इसमें कोई भेद ज़रूर है 
तेरी भक्ति में रहे / वो उतना तुझ से दूर है!"

उपस्थित रचनाकारों ने अर्जुन प्रसाद गुप्ता की आनुप्रासिक कविता  उनके सुमधुर आवाज में सुनी तो उनकी काव्य-प्रतिभा का कायल हो गए आदि से अंत तक प्रत्येक पंक्ति में अनुप्रास का अद्भुत संयोजन कविता के भाव और अर्थ बोध का सम्यक् निर्वाह करते हुए

इस गोष्ठी में आराधना प्रसाद ने अपने सुमधुर कंठ से अपनी बेहतरीन ग़ज़लें प्रस्तुत कीं। 

गोष्ठी की अध्यक्षता कर रहे विश्वनाथ प्रसाद वर्मा ने अपनी हास्य रचनाओं से माहौल को खुशनुमा बना दिया। डॉ. सुनील कुमार उपाध्याय ने क्रमशः हिन्दी और भोजपुरी में गांव की सोंधी खुशबू से सराबोर कविताओं का सस्वर पाठ कर वातावरण को सांगीतिक बना दिया।

इस गोष्ठी अरुण शाद्वल, प्रभात कुमार धवन, मनोज कुमार अम्बष्ट तथा उषा नेरुला ने अपनी उत्कृष्ट कविताएं प्रस्तुत कीं। 

अन्त में डा.गोरख प्रसाद 'मस्ताना' ने अपने गीतों का सस्वर पाठ कर सबों को मंत्रमुग्ध कर दिया। उन्होंने हिन्दी और भोजपुरी में मुक्तक और गीतों का पाठ किया। डॉ. मस्ताना ने अपने सधे हुए कंठ से हिन्दी और भोजपुरी में गीत सुनाये - 
"चल करे फूलों की खेती / सुगन्धित मन प्राण हो
स्वस्ति कण कण धारा / सब के लिए वरदान हो!"

अंत में  मधुरेश नारायण ने धन्यवाद ज्ञापन किया।  इस प्रकार स्नेहपूर्ण माहौल में इस गोष्ठी का समापन हुआ। 
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आलेख - सिद्धेश्वर / घनश्याम
छायाचित्र - सिद्धेश्वर एवं अन्य सहभागी
प्रतिक्रिया हेतु ईमेल - editorbejodindia@yahoo.com








Monday, 16 September 2019

स्टेशन राजभाषा कार्यान्वयन समिति, राजेन्द्र नगर टर्मिनल द्वारा पटना में 14.9.2019 को आयोजित हिन्दी काव्योत्सव सम्पन्न

निहार सकूं अपने हिस्से का आकाश
"सरकार को चाहिए कि पूरी कर्मठता से यह घोषित कर दे कि भारत देश की राष्ट्रभाषा हिन्दी है"

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"सरकार को चाहिए कि पूरी कर्मठता से यह घोषित कर दे कि भारत देश की राष्ट्रभाषा हिन्दी है!

हिन्दी का दायरा, घट नहीं रहा, बल्कि बढ़ रहा है। जीवन और व्यावसाय के विभिन्न क्षेत्रों में, हिन्दी को प्राथमिकता देना चाहिए। 

स्टेशन राजभाषा कार्यान्वयन समिति, राजेन्द्र नगर टर्मिनल द्वारा आयोजित हिन्दी काव्योत्सव पर मंडल रेल राजभाषा अधिकारी राजमणि मिश्र ने उपरोक्त उद्गार व्यक्त किया। अध्यक्षता कर रहे वरिष्ठ साहित्यकार भगवती प्रसाद द्विवेदी ने बताया कि" हिन्दी भाषी लोग हिन्दी की उपेक्षा कर रहे हैं जिस कमजोरी का फायदा सरकार उठाती आ  रही है।" उन्होंने अपनी कविता के माध्यम से हिंदी के संबंध में कहा- 
"भाषा बहता नीर हमारी हिन्दी है 
 तहजीबी तासीर हमारी हिन्दी है।" 

रेलवे कोचिंग काम्प्लेक्स में आयोजित कवि सम्मेलन के पहले  समारोह के विशिष्ट अतिथि, वरिष्ठ साहित्यकार सिद्धेश्वर ने हिन्दी पर विस्तार से चर्चा करते हुए कहा कि - "सिर्फ हिन्दी दिवस या हिन्दी पखवाड़ा मनाकर हम हिन्दी की कैसी भलाई कर रहै हैं कि हिन्दी आज भी राजभाषा का सिंहासन पाने के लिए सरकार और देशवासियों के सामने गिड़गिड़ाने की स्थिति में है! सरकार की इच्छा शक्ति के अभाव में  हिन्दी आज भी अपनी अस्मिता की लड़ाई लड़ रही है और  अंग्रेजी की दासी बनी हुई है, जो एक आजाद देश के लिए खतरनाक स्थिति है। सरकार अगर चाहे तो देश की भाषाई सिंहासन पर से अंग्रेजी को हटाकर, हिन्दी को बैठा दे और रातों रात विश्व भर में ऐलान कर दे कि "भारत देश की  राष्ट्रभाषा' हिन्दी 'है"।

समिति के सचिव मो. नसीम अख्तर के  सशक्त संचालन में हिन्दी काव्योत्सव का आरंभ करते हुए,कहा-
"यहां फूल दामन पर खिला कहां है 
जहां देखिए, खिंजा ही खिंजा हैं 
बगावत-अदावत नफरत है हर सू
मुहब्बत का दुश्मन जालिम जहां है!"

यशस्वी शायर घनश्याम ने विशुद्ध हिन्दी गजल कही - 
"हर भाषा का हम करें, यथायोग्य सम्मान 
लेकिन हिन्दी से बने, भारत की पहचान!" 
और 
"वक्त देता है  जब दगा बिल्कुल 
टूट जाती है फिर वफा बिल्कुल!" 

वरिष्ठ शायर रमेश कंवल ने कहा-
*दूर कीजिए अधूरापन मेरा 
आज भर दीजिए, ये मन मेरा! " 

शायर सुनील कुमार ने कहा कि
"दुश्मनों को निढाल रखते हैं 
दोस्ती की मिसाल रखते हैं! "

 इसी तर्ज पर शमां कौसर शमां की गजल थी -
"सड़कों पे वो बहाने लगे हैं  मेरा लहू ऐ शमां
दहशतों में नहाई है जिंदगी!" 

हिन्दी के प्रति अपना उद्गार व्यक्त करते हुए सिद्धेश्वर ने काव्य प्रस्तुति दी -
"हिन्दी की यह दुर्दशा, अब देखी नहीं जाती 
सौतेली बनी हमारी भाषा, अब देखी नहीं जाती?" 

नई प्रतिभाएं भी, गीत - गजल लिखने या यों कहें अभ्यास करने में रुचि ले रही हैं। 
एक तरफ श्वेता मनी की रचना थी -
"वक्त उसी मोड़ पर लाया क्यों कर? 
जहां से चला, वहीं लौट कर आया क्यों कर?" 

तो दूसरी तरफ कुमारी स्मृति ने कहा-
"सौ रसों की एक रस है, तू रसों की खान हिन्दी! 
देवभूमि भारतवर्ष में, कब नहीं महान हिन्दी!?" 

अपने सुरीले स्वर में, गीतकार मधुरेश नारायण ने गीत गाए-
"चलो मिट्टी, पानी की ओर चलें 
कुछ अपनी जिद्द भी छोड़ चलें !"

सविता मिश्र माधवी ने हिंदी के प्रति अपनी उद्गार इस  प्रकार व्यक्त की -
" बूद-बूंद घट भरै, शब्द -शब्द से भाषा 
आगे बढ़ाने के लिए हिंदी है समृद्धि की भाषा!" 

वरिष्ठ साहित्यकार अरुण शाद्वल ने स्त्री विमर्श पर एक लम्बी समकालीन कविता का पाठ किया - 
"नहीं चाहिए मुझे, तुम्हारी पूजा और वो सारे आडंबर/
मैं नहीं बनना चाहती पूज्या / मैं तो बस इतनी चाहती हूं /
कि खड़ी हो सकूं तुम्हारे / कंधे से कंधा मिलाकर /
निहार सकूं अपने हिस्से का आकाश!" 

इसके बाद युवा कवि संजय कुमार संज ने अपने दार्शनिक अंदाज में यूँ काव्य पाठ किया-
"कुछ नहीं होता अमर है / शरीर भी तो होता नश्वर है
परन्तु जब तक ये भुवन है / कुछ चीजें रहती हैं जिंदा!"

इनके अतिरिक्त हिन्दी और जिंदगी से संदर्भित की कविताएं गीत और गजलों ने  महफ़िल को यादगार जश्न में बदल दिया, जिनमें प्रमुख हैं - विश्वनाथ वर्मा, सुबोध कुमार सिन्हा, लता प्रासर, प्रभास कुमार प्रभास, गुड्डू आलम आदि। 

हिन्दी काव्योत्सव का समापन रामवृक्ष बेनीपुरी हिंदी पुस्तकालय के पुस्तकाध्यक्ष अमितेश कुमार के धन्यावाद ज्ञापन से हुआ।

हिन्दी दिवस, हिन्दी सप्ताह, हिन्दी पखवाड़ा, हिन्दी माह और फिर,,, ? सारा तमाशा खत्म.? सालों भर हिन्दी को यह मान-सम्मान क्यों नहीं.? सबकुछ सही से गुजर जाने के बाद  भी, क्या यही एक सवाल मन को अशांत नहीं कर देता?
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प्रस्तुति - सिद्धेश्वर 
छायाचित्र -  सिद्धेश्वर /नसीम अख्तर /सुनील कुमार 
प्रस्तुतकर्ता का ईमेल - sidheshwarpoet.art@gmail.com
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