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Tuesday, 24 September 2019

बेटी दिवस - 22.9.2019 को लेख्य-मंजूषा की अंतराजाल (इंटरनेट) कवि-गोष्ठी सम्पन्न

तुम पर होगा नाज,  आसमां को तू छू ले

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फाइल से चित्रों का संकलन
बेटी दिवस (22 सितम्बर) के अवसर पर  लेख्य-मंजूषा में बेटी दिवस मनाई गई सभी प्रतिभागियों ने अपनी स्व रचित भावाभिव्यक्ति से शमां बाँधा। नवोदय विद्यालय में पढ़ रही देश की एक बेटी की मौत की खबर ने हमें विचलित कर रखा  है। 


विभा रानी श्रीवास्तव ने बेटे को पतवार तो बेटी को सौगात बताया - 
वक़्त के अवलम्बन हैं बेटे, जीवन की दिन-रात हैं बेटियाँ
भंवर के पतवार हैं बेटे, आँखों की होती सौगात हैं बेटियाँ

वहीं अनीता मिश्रा सिद्धि ने बेटी को जीवन का सार और आधार माना -
बेटी तू ही जननी
तू ही बनी भगिनी
तू जीवन का सार है
तेरी हँसी बड़ी प्यारी 
तेरी छवि बड़ी न्यारी 
तू जीवन आधार है।

पूनम (कतरियार) भी एक अच्छी कवयित्री हैं. उन्होंने बेटियों के के झोले में तमगों की झड़ी लगा दी-
"बेटियाँ, हमारा अभिमान"

कोमल -चंचल बाला जब
 फौलाद हो जाती हैं ,
सहमी -सकुचाई आंखों में   
 'निश्चय' उभर जाता है
'अबला'  कहने वालों को
 'दैवीय' लगने लगती है
 भारत -माता का आंचल 
 जब   तमगों से भर देती हैं.
अजेय हिमालय का शीश 
'हिमा'मय*  हो  जाता  है
हर्ष -विह्वल अधरो पर तब
'जन -गण' मचल जाता है.
स्वर्ण-रजत -कांस्य उपलब्धियां     
 गले  का  हार बन  जाती  है
सवा- सौ करोड़  दिलों पर 
एक  गुरूर -सा  छा  जाता  है
'बेटियां,   हमारा   अभिमान' 
आन, बान, शान  बन  जाती  हैं,
बुलंदियां उनके कदमों को चूमती हैं  
पूरा हिंदुस्तान झूम -झूम जाता है
(हिमा दास, आईएएएफ वर्ल्ड अंडर-20 एथलेटिक्स चैम्पियनशिप की 400 मीटर दौड़ स्पर्धा में स्वर्ण पदक जीतने वाली पहली भारतीय महिला खिलाड़ी हैं - संपादक)
                 
प्रियंका श्रीवास्तव 'शुभ्र' भी कहाँ पीछे रहनेवाली थीं. उन्होंने भी बेटियों के प्रशस्तिगान का परचम लहराया पूरे शान और मान से -
बेटियां  बाबुल की शान हैं
अव्वल आ रखती ये मान हैं
घर बाहर दोनों संभाल
रखती सबका ख्याल हैं।
सासरा को स्वर्ग बनाती
मायका में याद सताती
सर्वत्र है इनका परचम
तभी तो सर्वत्र प्यार पाती।
दादी नानी बनकर भी
बालिका बन जाती
बच्चों संग खेल रचाती
सखियों से यारी निभाती।
       
मीनाक्षी सिंह ने बेटियों को औरों से जुदा बताया -
सात सुरों की सतरंगी तान हैं बेटियाँ।
सुमधुर धुन पायल की झंकार हैं बेटियाँ
समझो ईश्वर का आशीर्वाद इनको सब
औरों से जुदा खुद में बेमिसाल हैं बेटियाँ।

तो वहीं पर आज की युवा आवाज, नेहा नारायण सिंह खुद को माँ के अक्स में ढालती दिखीं -
 "मैं तू"
दर्पण  मैं  तेारी बनी
उसका तू  प्रतिबिंब 
नवी रूप की काया
लगे  उषा की ओस
निहार  के खुद को
तेरा मैं शुभ मनाऊं
देव  करे  पूरा तोहे
बिन मांगे बलिदान

प्रेमलता सिंह ने बेटियों में ईश्वर को भी कोख में रखने की क्षमता बताई-
घर की रौनक होती हैं बेटियां
पिता की शान तो मां की सम्मान होती है बेटियां
ईश्वर की दी हुई सौगात होती हैं बेटियां
ईश्वर को भी अपने कोख में रखने की ताकत रखती हैं बेटियां 
फिर क्यों कहते हो ऐ दुनिया वालों की कमजोर होती हैं बेटियां।
     ‌‌
संगीता गोविल ने बेटियों को स्वयं अपने जंग लड़नेवाली बताया -
धरा का पर्याय है बेटियाँ, वंश की पहचान है
बेटियाँ तो गगन के सितारों की भी शान है
इनकी शक्ति, इनका धीरज मत तौलो
अपनी जंग की ये हीं नेता और निगेहबान हैं ।

मधु खोवाला ने बेटी को भाई की राखी और पापा का प्यार कहा -
बेटी तू मेरी नैया 
तू जीवन आधार
तू भाई की राखी
तू पापा का प्यार

राजेन्द्र पुरोहित ने बताया कि कोकिला सा गान गानेवाली इन बेटियाँ के कारण ही घर, घर होता है -
 "बेटियाँ"
खुशियों की चहक
मोगरे सी महक
मयूरी सा नाद
अमिया सा स्वाद
चिड़िया सी उड़ान
कोकिला सा गान
पिता भाव अनूप
माता का प्रतिरूप
हौसलों का पर है
बिटिया से ही घर है

राज कान्ता राज ने अपनी गुड़िया को ताकत की पुड़िया बनाने में कोई कसर न छोड़ी -
ताकत की पुड़िया है 
मेरी ए गुड़िया 
छोटे छोटे पाँव 
और छोटे से हाथ 
लेकर मैं उसको जब चूमूँ 
छूती कभी गाल, कभी बाल 
कभी बिन्दी और नाक
छुप के छुपा के रहना सिखाई 
जैसे हीरे को बन्द कर डिबिया
ताकत की पुड़िया है 
मेरी ए गुड़िया 
गले लगती खिलखिला के
हँसी उसकी खूबियाँ 
ताकत की पुड़िया है 
मेरी ये गुड़िया
अब वो हुई पराई 
अकेली हूँ साथ तन्हाई
बीते हुए लम्हों की याद बहुत आई
चली अपने घर, साथ में जमाई 
सदा खुश रहना अपनी शहरिया
ताकत की पुड़िया है 
मेरी ये गुड़िया ।

वहीं वीणाश्री हेम्ब्रम जो कवयित्री होने के साथ-साथ अनेक सामाजिक संघठनों से भी जुड़ी हैं, ने अपनी बेटी की रुनझुन सी झंकार सुनी कुछ इस तरह से -
रुनझुन सी झंकार लिए
गुड़ियों की भांति इठलाती
घर आँगन आबाद किए
ममत्व जहां में फैलाती
शक्ति है वो स्रष्टा भी
विपत्तियों में दुर्गा भी!

डॉ. पूनम देवा ने हर दिन बेटी का सम्मान किया है और करती रहेंगी -
 मान हैं, अभिमान है
बेटियां ‌दो,दो घरों की 
पहचान ‌हैं ।
एक  हीं दिन क्यूं हो ? 
हर दिन उनका
सम्मान  है।

वहीं ज्योति मिश्रा. कुंडलियां छंद में बेटी को हर जगह आगे बढ़ाती दिखीं -
01
छू लूं चंदा आज मैं, मां तुम देना साथ 
मुट्ठी में आकाश हो, तारे अपने हाथ 
तारे अपने हाथ,  बनी तुम मेरी  सीढी
बेटी है मुस्कान, खिलेगी अगली पीढी 
तेरा सपना पाल, ऑख अपनी मैं खोलूं 
सब पूरा हो  आज,  कहो जो  चंदा छू लूं   !
02
बेटी की मुस्कान से, मात  खिली है आज
कर पाई  यदि मैं नहीं, तुम पर  होगा  नाज 
तुम पर होगा नाज,  आसमां को तू छू ले 
बनूं सहारा नाथ,  हाथ में चंदा  झूले 
बेटों देखो आज,  कम नहीं  हैं  ये चेटी 
खेल -कूद  मैदान , हर जगह  आगे बेटी

प्रभास   ने वर्ण पिरामिड में बेटियों के सद्गुणों को ढाला -
                मैं     है
             बेटी     बेटी
           सौम्य     निडर
         सुशील     नीरजा
       सकुशल     अभिमान
   स्वाभिमानी    प्रतिभावान
सबकी चहेती     स्व आत्मनिर्भर
    
शशि शर्मा 'खुशी'  ने बेटियों को सांसों का तरन्नुम और लबों का तबस्सुम बताया -
हृदय की धड़कन, सांसों की तरन्नुम है बेटियाँ
घर की किलकारी, लबों का तब्बसुम है बेटियाँ
जो घर-आँगन आबाद है बेटियों के आगमन से
उस घर की सुख समृद्धि का हसीं संगम है बेटियाँ।

अभिलाषा सिंह ने भगवतियों को पूजने की बजाय बेटियों में ही उनके दर्शन कर लिए -
दुर्गा, लक्ष्मी, सरस्वती
तीनों ही तुझमें बसती हैं
तू क्योंकर इनको पूजे
ये खुद कर्मों में तेरे सजती हैं।
है शक्तिस्वरूपा देवी तू
सबकुछ कर सकने में सक्षम
मनोबल कभी कम हो पाए नहीं
मैं संग तुम्हारे हूँ हरदम।
               
मधुरेश नारायण सस्वर पाठ करनेवाले एक संवेदनशील गीतकार हैं. उन्होंने तो पूरा बिटिया-पुराण ही रच डाला -
मेरी प्यारी बिटिया
बेटे तो बेटे हैं पर बिटिया उनसे कहाँ कम है
जिस घर में बिटिया हो फिर काहे का गम है
वंश बढ़े यह सोच कर बेटे की ही कामना करते 
बिन बिटिया वंश कैसे बढे, उसकी अवमानना करते
बेटा-बेटी दो आँखें हमारी बात न हम यह भूलने पाएं
बेटा कहने पर गर्व हो जितना न बेटी कहने में शरमाये
कंधे से कंधा मिला कर हर तरफ बिटिया नजर आती 
अंतरिक्ष हो या विमान उड़ाना बिटिया कहाँ पीछे रहती
अंदर बाहर की जिम्मेदारी बराबर से बिटिया निभाती
माँ बनने का सौभाग्य धरा पर बिटियाँ ही है पाती 
भगवान भी अवतार लेते है,माँ के आंचल में खेलने को
माँ पर आई मुसीबत को अपने पर लेकर झेलने को
वह बिटिया ही तो है जो पहले बहन, पत्नी, माँ रही
हर रूप को जीने में न जाने कितनी तकलीफे है सही
कितना बखान करूँ बिटिया की गुणवती होने की यहाँ
कितने खंड लग जाएंगे, बिटिया-पुराण लिखने में यहां।

शायरा शाइस्ता अंजुम ने बेटियों को दरख्तों के साये में धूप झेलते पाया -           
जहां दरख्तों के साये में
धूप लगती है,
वहीं तो संघर्ष की 
कली खिलती है
वहीं पर
खिल उठती है बेटियाँ।

इस तरह से हमें महसूस होता है कि बेटियाँ अपने-आप में एक सृष्टि हैं और सम्पूर्ण जगत उन्हीं के दम पर चल रहा है। नि:संदेह बेटों का भी अपना महत्व है लेकिन महिलाओं के विविध रूपों में सहायता लिये बिना वे कुछ भी नहीं कर सकते।
......


संयोजिका - विभा रानी श्रीवास्तव
संयोजिका का ईमेल - vrani.shrivastava@gmail.com
प्रस्तुति - हेमन्त दास 'हिम'
प्रतिक्रिया हेतु ईमेल - editorbejodindia@yahoo.com

फाइल फोटो 

25 comments:

  1. Replies
    1. आभार तो आपका है अच्छी सामग्री देकर सहयोग करने हेतु।

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    2. सभी के रचनाओ को नमन । बधाई सभी को बेटी
      पर संकलित बहुत ही सुन्दर काव्य गोष्ठी ।
      लेख्य-मञ्जूषा परिवार को नमन।

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  2. बहुत सुंदर समीक्षा.
    पूनम (कतरियार)

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  3. हार्दिक आभार.
    बहुत सुंदर समीक्षा.
    पूनम (कतरियार)

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    Replies
    1. धन्यवाद। blogger.com पर गूगल पासवर्ड से login करके यहां कमेन्ट करने पर उसके प्रोफाइल वाला नाम और फ़ोटो यहां दिखेंगे।

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  4. बेटियों के प्रति सबके बहुत सुंदर भाव

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    1. धन्यवाद। ऊपरवाले उत्तर को पढ़ा जाय।

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  5. बेटी शब्द कानों में पड़ते ही रुनझुन तन बजने लगती है।जब इनसे जुड़ी भावनाओं की शब्द लहरी निकली तो बात ही कुछ और। सभी के भावभीनी शब्दों ने मन मोह लिया। किस किस की तारीफ करूँ, शब्द कम पड़ रहे। सभी को बहुत बधाई।

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  6. बेटी शब्द कानों में पड़ते ही रुनझुन तान बजने लगती है।जब इनसे जुड़ी भावनाओं की शब्द लहरी निकली तो बात ही कुछ और। सभी के भावभीनी शब्दों ने मन मोह लिया। किस किस की तारीफ करूँ, शब्द कम पड़ रहे। सभी को बहुत बधाई।

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  7. बेटी शब्द कानों में पड़ते ही रुनझुन तन बजने लगती है।जब इनसे जुड़ी भावनाओं की शब्द लहरी निकली तो बात ही कुछ और। सभी के भावभीनी शब्दों ने मन मोह लिया। किस किस की तारीफ करूँ, शब्द कम पड़ रहे।
    समीक्षक की कलम के क्या कहने , हर कविता में जान फूंक दी।

    समीक्षक समेत सभी को बहुत बधाई।

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    1. आपका हृदय से आभार।

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  8. बेटियाँ समाज का आधार भी है और आईना भी। ब्लॉग स्पॉट के आभारी हैं, जो हमें अपनी बात रखने का अवसर दिया। आदरणीया विभा जी का हृदय से आभार जो उन्होंने इतना जीवंत प्रतुतिकरण दिया।

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  9. बेटियाँ समाज का आधार भी है और आईना भी। ब्लॉग स्पॉट के आभारी हैं, जो हमें अपनी बात रखने का अवसर दिया। आदरणीया विभा जी का हृदय से आभार जो उन्होंने इतना जीवंत प्रतुतिकरण दिया।

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    1. हार्दिक धन्यवाद महोदय।

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  10. वाह.. खूबसूरत समीक्षा! एक से बढ़कर एक रचनाएँ सबकी! हार्दिक बधाई💐

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    1. हार्दिक धन्यवाद।

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  11. इन सभी कविताओं को पढ़कर ये स्वतःस्पष्ट हो जाता है कि बेटियों के प्रति दृष्टिकोण में परिवर्तन तो हो ही चुका है,बेटियों का मान सम्मान भी खूब बढ़ा है।आपने इस प्रकार काव्य गोष्ठी की,यह अनुभव शानदार रहा।

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    1. धन्यवाद। blogger.com पर गूगल पासवर्ड से login करके यहां कमेन्ट करने पर उसके प्रोफाइल वाला नाम और फ़ोटो यहां दिखेंगे।

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  12. सभी रचनाएँ बेहद सराहनीय है बेटियों के प्रति संवेदनशीलता और जागरूकता का आहृवान आवश्यक है आज के समय की माँग भी।
    सभी की रचनात्मक और मन से लिखी बेटियों के लिए अभिव्यक्ति को सादर प्रणाम।
    बहुत ही सुंदर संकलन तैयार हुआ है।

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    1. सराहना हेतु आभार, महोदया.

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  13. बेहद खूबसूरत संकलन ।

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  14. बेटी दिवस के अवसर पर एक से बढ़कर एक सुंदर, भावपूर्ण रचनाओं की प्रस्तुति के लिए सभी को हार्दिक बधाई

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    1. बहुत बहुत धन्यवाद आपको.

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