किसी ने आके पास पूछा क्या है धर्म तेरा? / मैंने कहा - मुहब्बत, मुहब्बत, मुहब्बत
(मुख्य पेज पर जायें- bejodindia.blogspot.com / हर 12 घंटे पर देखते रहें - FB+ Watch Bejod India)
साहित्यिक-सांस्कृतिक संस्था "आगमन" की पटना शाखा द्वारा, आगमन बिहार काव्योत्सव एवं सम्मान समारोह का भव्य आयोजन, बिहार उर्दू अकादमी के सभाकक्ष में किया गया ।
कार्यक्रम का उद्घाटन दीप प्रज्ज्वलित कर, "वीणा वादनी वर दे" की प्रार्थना गीत से हुआ। तत्पश्चात तीन पुस्तकों का लोकार्पण हुआ। "आगमन" के राष्ट्रीय राष्ट्रीय अध्यक्ष पवन जैन एवं विशिष्ट अतिथियों के हाथों, आगमन के सभी सदस्यों को सम्मानपत्र एवं शिल्ड प्रदान कर सम्मानित किया गया।
युवा कवयित्री नंदिनी प्रनय के काव्य पाठ से, काव्योत्सव का आरंभ हुआ -
"जीत बदलाव की, जीत साहस की,
जीत सपनों की ! जीत अपनों की! "
सुधांशु कुमार -की कविता थी-
" बंद होगा हैवानियत का दरवाजा! "
जीनत की कविता यूं इश्क के शुरुर में हम चूर हो गए!
उनसे हुए करीब, सबसे दूर हो गए/,
जीनत की कविता -
"तुम्हारे इश्क ने दीवाना कर दिया - पढा़ गया।"
राजमणि मिश्र की कविता देखिये -
" एक प्याली चाय सी है जिंदगी /चुस्कियों में जी लिया तो जी लिया। "
नसीर आलम की गजल देखिए -
चला गया है, बहुत दूर प्यार का मौसम /चलो समेट लो अब भी खुमार का मौसम! "
चला गया है, बहुत दूर प्यार का मौसम /चलो समेट लो अब भी खुमार का मौसम! "
और अपना बना के दगा दे रही हो/ वफाओं का कैसा सिला दे रही हो।
मनीष आर राही ने भी सारगर्भित कविता का पाठ किया।
जनाब खुर्शीद ने कहा "समंदर के अंदर था, घर जल गया कैसे ?
जनाब खुर्शीद आलम ने कहा कि -" नई पीढ़ी में जबरदस्त संभावनाएं हैं, किंतु उसे मांजने की जरूरत है। मैं खुद को गालिब समझता था। लिखने के बाद जाना, मुझे अभी अपनी रचनाओं को बहुत मांजना है। साहित्य को लोगों ने बाजार बना दिया है।
कुमारी सजलशालिनी -((छपरा)के बाद कुमारी रचना (पूर्णिया) ने कविता पढा़ -
"कब तक करोगे बलात्कार /योनि पर करोगे प्रहार!? "
कुमार अरुणोदय ने कहा कि -
"धर्म, जाति, की बात करते हैं। इस बीच साहित्य का छौंका लगाना बहुत प्रिय होता है।
-" हर पल हर क्षण चमके बिजुरिया, चिहुंक चिहुंक काग बो लै, आज आएंगे। मरे सजनिया!"
अमित कुमार आजाद-
" इलाहाबाद कहता है, मैं संगम का मेला हूं।
मैं तुम्हारा प्रेम पाना चाहता था/मैं तुम्हें रास्ता दिखाना चाहता था। "
इसके बाद कवियों की अनेक कविताएं पढीं गई -
"द्रौपदी की तरह हो रहा चिरहरण, कृष्ण के इंतजार में
मैं नंगी हो रही हूं।
"तथा-" गुमशुम - गुमशूम क्यों बैठे हो?
आराधना प्रसाद - ने कहा " उसके पहलू को किसी दिन, मेरा घर होने दो। "
कवयित्री कृष्णा सिंह पौराणिक विषय पर अपनी कविता का पाठ किया-
" महाभारत कथा *आज फिर याद आ गयी। आकाश से भी बड़ा है कौन,
युधिष्ठिर ने कहा-" पिता और कौन?" और पृथ्वी से महान, माता कहलाती है!"
कवयित्री नेहा नारायण सिंह की कविता थी-
"सत्ता तोड़ कल सत्ता बनाएंगे
सह और मात का यह खेल बहुत पुराना।है।"
और दिलीप कुमार खान ने गीत गाया, " ओ गोरी सुनले हमारी विनती सुन ले।
पायल ये रुनझून तेरी मुझे घायल किया जाए।"
रमेश कंवल की गजल थी - "मोबाईल, टी वी से सजाई है जिंदगी, न जाने कहां-कहां गंवाई है जिंदगी।
/शाईस अंजुम सीवान ने भी काव्य पाठ किया.
कवयित्री पूनम सिंहा ". श्रेयसी-"खांसता हुआ यौवन स्वतः हो जाता है, जिंदगी से बाहर।
"शकील जी की गजल थी-
"किसी ने ये पूछा मेरे पास आकर /बता मुझे तैरा धर्म क्या है? /मैंने कहा :मोहब्बत, मोहब्बत, मोहब्बत ।"
और" वो ख्यालों में आने लगे/हम गजल गुनगुनाने लगे/
याद न कुछ भी रहा /आप जब याद आने लगे //
आईना देखकर लोग चेहरा छुपाने लगे। ""
"किसी ने ये पूछा मेरे पास आकर /बता मुझे तैरा धर्म क्या है? /मैंने कहा :मोहब्बत, मोहब्बत, मोहब्बत ।"
और" वो ख्यालों में आने लगे/हम गजल गुनगुनाने लगे/
याद न कुछ भी रहा /आप जब याद आने लगे //
आईना देखकर लोग चेहरा छुपाने लगे। ""
सुनील कुमार ने अपने अंदाज में कहा-
"कौन रिश्ता वफा निभाता है" और वो हमको आजमाना चाहते हैं
/न जाने क्यूं सताना चाहते हैं।
प्रेमकिरण की गजल का तेवर देखिए -
"नफरत ही रह गई है मुहब्बत चली गई
हमारे घर से रुठ के बरकत चली गई
हमारे घर से रुठ के बरकत चली गई
दौलत का ये गुरुर भी कितना अजीब है
दस्तार बची तो रियासत चली गई।"
दस्तार बची तो रियासत चली गई।"
कवयित्री एवं चित्रकार नेहा नुपूर, शब्दों का चित्र, कुछ इस प्रकार बनायी-"
मैं राग रागिनी सरगम तुम खवैया बन जाओ।
पुष्पा जमुआर -
"एक और दर्द दे गया, सीने के आर पार। बिना चिरा लगाए, बिना खून का कतरा गिराए!"
"नीतू सिंह-"रूपेश ने भी काव्य पाठ किया।
शुभचंद्र सिन्हा -
"दीवानों से भी मिल कर रहा करो/ कोई नहीं सुनेगा, इनसे कहा करो!
"गणेश बागी ने व्यंग्य कविता का पाठ किया(
"
संजय कुमार संजकी कविता -
न होगा कोई हिंदु न मुसलमान होगा।
" बहला कर छोड़ देते हो, बूढ़े मां-बाप का ख्याल कौन रखता है?
रुठ जाया करो, मान जाया करो/मंजिलें उनकी नहीं, जिनको किनारा का चाहत नहीं। /
कवि-चित्रकार सिद्धेश्वर ने सकारात्मक सोच की प्रेरक कविता का पाठ किया-
"पंख कट जाने के बाद भी हम उड़ना नहीं भूले
पेड़ों पर लगे सैंकड़ों फल, मगर झुकना नहीं भूले
मंजिल पाने को कदम बढ़ाए मगर/
गिरे हुए को उठाने के लिए, झुकना नहीं भूले!"
नीलांशु रंजन ने एक श्रृंगारिक नज्म पेश किए-
"जब चांद अपने गलीचे में गेसू खोल रहा था''
कल जहाँ रखी थी उंगली,
वहां निकल आया है एक तिल!"
अपने अध्यक्षीय उद्बबोधन में राजीव कुमार सिंह, (भूतपूर्व प्रशासनिक अधिकारी) ने कहा कि" समाज में समरसा पैदा करना साहित्य का काम है। साहित्य राजनीति के आगे आगे चलने वाला मशाल है। संस्था में उल्लेखनीय कार्य करने के लिए, "आगमन" के राष्ट्रीय अध्यक्ष पवन जैन ने, पटना शाखा के सचिव वीणाश्री हेम्ब्रम और मो नसीम अख्तर को, आगमन गौरव सम्मान दिया गया।
......
आलेख - सिद्धेश्वर
छायाचित्र - सिद्धेश्वर
No comments:
Post a Comment
अपने कमेंट को यहाँ नहीं देकर इस पेज के ऊपर में दिये गए Comment Box के लिंक को खोलकर दीजिए. उसे यहाँ जोड़ दिया जाएगा. ब्लॉग के वेब/ डेस्कटॉप वर्शन में सबसे नीचे दिये गए Contact Form के द्वारा भी दे सकते हैं.
Note: only a member of this blog may post a comment.